कलीसिया के लिए परामर्श
सांसारिक कामों से विश्राम लेने का दिन
मरणशील मनुष्य के लिए अपना उल्लू सीधा करने की निमित से सर्वशक्तिमान के साथ समझौता करना भारी गुस्ताखी है. सब्बत के दिन कभी-कभी सांसारिक कारोबार में उपयोग करना व्यवस्था का इतना निर्दयता से उल्लंघन करना है जितना उसको कतई तौर पर रद्द करना है क्योंकि इस प्रकार परमेश्वर की आज्ञा को सुविधा की बात बनाई जाती है.सीनै पर्वत से यह गर्जन हुआ था, ‘‘ मैं तेरा परमेश्वर यहोवा जलन रखने वाला ईश्वर हैं. अधूरा आज्ञापालन तथा विभाजित दिलचस्पी को परमेश्वर स्वीकार नहीं करता, क्योंकि वह कहता है कि जो मुझसे बैर रखता है, पितरों के पापों का दण्ड उनके बेटों, पोतों और परपोतों को दिया करता हूँ और जो मुझसे प्रेम रखते औरमेरी आज्ञाओं को मानते हैं उन हज़ारों पर करुणा किया करता हूँ. पड़ोसी को लूटना मामूली बात नहीं है और जो कोई ऐसा कार्य करने से दोषी ठहरे उस पर महान कलंक लगता है;तोभी जो कोई अपने भाई को धोखा देगा वह निर्लज होकर अपने स्वर्गीय पिता के समय की चोरी करता है जिसे उसने आशीर्वाद देकर विशेष कार्य के लिए नियुक्त किया है. ककेप 51.5
शब्दों तथा विचारों को बड़ी सावधानी से प्रयोग करना चाहिये. जो सब्बत के दिन लेन देन के मामलों पर बातचीत करते और योजना बांधते है उनको परमेश्वर ऐसा समझता है मानो वे सचमुच कारोबार में संलग्न हैं. सब्बत को पवित्र रखने के लिये हमें अपने विचारों को सांसारिक विषयों पर केन्द्रित नहीं करना चाहिये. ककेप 52.1
परमेश्वर ने कहा है और उसका मतलब है कि मनुष्य माने. वह नहीं पूछता कि जब यह तुम्हारे लिए सुविधाजनक हो तब तुम करना. जीवन व महिमा के प्रभु ने अपनी सुविधा व आराम का ख्याल नहीं किया जब उसने अपना हाई कमाण्ड का दर्जा त्याग कर दुख पुरुष और शोक से जान पहिचान रखने वाला बन गया और बदनामी और मृत्यु को स्वीकार किया ताकि मनुष्य उसकी आज्ञा उल्लघंन के परिणामों से छुटकारा पावे.यीशु मनुष्य को पाप में बचाने के लिए नहीं किन्तु पाप से बचाने के लिए मरा. मनुष्य अपनी ही युक्तियों पर चलने की भूल को त्यागे और मसीह का नमूना पकड़े;अपनी क्रूस उठाकर उसके पीछे हो ले, आत्म त्याग करे और परमेश्वर की आज्ञाओं का किसी भी मूल्य पर पालन करे. ककेप 52.2
दुनियावी नफे की खातिर परिस्थिति किसी को सब्बत के दिन काम करने को निर्दोष न ठहरायेगी. यदि परमेश्वर एक को क्षमा करता है तो वह सबको क्षमा कर सकता है. भाई नन्हें सिंह गरीब आदमी है, अपना रोटी कमाने के लिए क्यों वह सब्बत के दिन काम नहीं कर सकता जब कि ऐसा करने से वह अपने परिवार का अच्छी तरह से पालन पोषण कर सकता है? दुसरे भाई लोग और सब के सब क्यों नहीं सब्बत को माने जब सुविधा हो? सीनै पर्वत से आवाज आती है, ‘’छ: दिन तो परिश्रम करके अपना सब काम काज करना. परन्तु सातवां दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये विश्राम दिन हैं.’’(निर्गमन 20:9,10) आप की अवस्था आपको ईश्वरीय आज्ञाओं का पालन करने से क्षमा नहीं करता. इब्राहीम की वृद्धावस्था में भारी परीक्षा हुई. परमेश्वर के वचन उस बूढे जन को अनुचित प्रतीत हुये. फिर भी उसकी प्रार्थना पर कोई सन्देह नहीं किया न आज्ञापालन से हिचका. वह यह विनेदन कर सकता था कि मैं बूढा और कमजोर हो गया हैं और अपने पुत्र की बलि नहीं दे सकता क्योंकि वह तो मेरे जीवन का हर्ष है. वह परमेश्वर को याद दिला सकता था कि यह आज्ञा इस पुत्र के विषय में जो वायदे दिये गये थे उनके विरुद्ध जा रही है. परन्तु इब्राहीम की आज्ञाकारिता में कोई चूं व चरा नहीं हुई. उसका परमेश्वर पर पक्का व अटल विश्वास था. ककेप 52.3
यीशु के सेवकों को झिड़की देनी चाहिये जो सब्बत को पवित्र मानने को याद रखने में चूकते हैं. उन्हें मेहरबानी और गम्भीरता से उनको डाटना चाहिये जो सब्बत का दावा तो करते हैं पर सब्बत के दिन सांसारिक बातचीत में लीन होते हैं. उन्हें पवित्र सब्बत के दिन परमेश्वर की भक्ति को प्रोत्साहन करना चाहिये. ककेप 52.4
किसी मनुष्य को पवित्र समय को अनुचित रीति से व्यतीत करने को स्वतंत्र नहीं समझना चाहिये.सब्बत मानने वालों को सब्बत का अधिकांश सोने में व्यतीत नहीं करना चाहिये.यह बात परमेश्वर को अप्रसन्न करने वाली है. ऐसा करने से वे परमेश्वर का अपमान करते हैं और अपने नमूने से प्रगट करते हैं कि छः दिन अधिक कीमती हैं कि उन्हें विश्राम में व्यतीत किया जाये. उनको रुपया पैदा करना चाहिये चाहे वह नींद खोकर ही प्राप्त हो जिसे वे पवित्र समय में सोने से पूरा करते हैं. वे अपने को ऐसा हैं कहके मुक्त मानते है कि, “सब्बत तो इसी लिये दिया गया है कि आराम करें.उपासना में जाने से मैं विश्राम का नुकसान क्यों उठाऊं? मुझे तो विश्राम की जरुरत है.’’ऐसे लोग पवित्र दिन का अनुचित उपयोग करते हैं.उन्हें उस दिन में विशेषकर उसको मानने पर अपने परिवार को दिलचस्प दिलानी चाहिये.अधिक लोगों या थोड़े के साथ जैसी भी हालत हो प्रार्थना के घर में इकट्ठा होना चाहिये. उनको अपना समय व शक्ति आध्यात्मिक सभाओं में लगाना चाहिये ताकि ईश्वरीय प्रभाव जो सब्बत का होता हैउनके साथ हफ्ते भर रहे. सप्ताह के समस्त दिनों में भक्ति सम्बन्धी विचारों तथा ख्यालों के लिये ऐसा हितकारी कोई और दिन नहीं है जैसा कि सब्बत का दिन. ककेप 52.5
अगर लोग सब्बत दिन को सदा पवित्रता के साथ मानते या पालन करते रहते तो आज संसार में न तो मूर्तिपूजक ही होते न नास्तिक. जिस सब्बत का स्थापन अदन में हुआ था वह उतना ही पुराना है जितना संसार है.सृष्टि के आरंभ से जितने कुलपति हुए सबों ने सब्बत का पालन किया था. मिस्र देश में जब इस्राएली दासत्व के बंधन में थे तब उनको बेगार कराने और सब्बत को तोड़ने के लिए विवश करते थे उन्होंने सब्बत दिन को नहीं पालन करने के लिए इतना उन पर दबाव डाला कि अंत में उस दिन की पवित्रता को जो ज्ञान उनके मन में था वह अधिकांश रुप में जाता रहा जब सिनाई पर्वत पर से व्यवस्था की घोषणा की गई चौथी आज्ञा का पालन वाक्य घोषित यह था.’’विश्राम दिन को पवित्र मानने के लिए स्मरण रखना ‘‘ इस वाक्य से यह संकेत मिलता है कि सब्बत उसी दिन स्थापन नहीं हुआ था बल्कि उसको उत्पत्ति के लिए हमें सृष्टि की ओर संकेत किया जाता है.परमेश्वर मानव जाति का सृष्टिकर्ता है इस बात को उनके मन से मिटा देने और बड़े स्मारक-चिन्ह को तहस-नहस करने के लिए शैतान कटिबद्ध था. उसका यह लक्ष्य था कि यदि मानव जाति अपने सृष्टिकर्ता को किसी भी तरह भूल जाए तो वह दुष्ट की शक्ति का विरोध करने के लिए भी प्रयास न करेगी और इस प्रकार शैतान को इस बात को निश्चय हो जायगी कि मानव जाति उसका शिकार बन चुकी हैं. प्रेट्रियाकर्स ऐण्ड प्रोफेटस, पेज 336. ककेप 53.1