कलीसिया के लिए परामर्श
सब्बत के दिन स्कूल जाना
जो कोई चौथे हुक्म को मानता है उसे मालूम होगा कि उसके और दुनिया के बीच एक विभाजित करने वाली लकीर है.सब्बत एक जाँच है. मानवी मांग नहीं परन्तु परमेश्वर की जांच है. जो परमेश्वर की सेवा करते हैं और जो नहीं करते हैं उनके बीच यही अन्तर दिखलाएगा और इसी बात पर सत्य और असत्य के बीच अन्तिम वाद विवाद का महान संघर्ष उमड़ आयेगा. ककेप 50.5
हमारे कुछ लोगों ने अपने बालकों को सब्बत के दिन स्कूलों को भेजा है.वे ऐसा करने को विवश नहीं किये गये परन्तु स्कूल के अधिकारियों ने ऐतराज किया कि बालक जब तक हफ्ते में छ: दिन स्कूल न आये तो उनको नहीं ले सकते. इन स्कूलों में विद्यार्थियों को केवल साधारण शिक्षा ही नहीं दी जाती किन्तु उन्हें तरह तरह के काम भी सिखलाये जाते हैं और यहाँ इकरारी आज्ञापालन करने वालों के बालक सब्बत के दिन भेजे जाते हैं. कुछ माता-पिताओं ने मसीह के शब्दों का प्रमाण देकर अपने रवैये को सत्य प्रमाणित करने की कोशिश की कि सब्बत के दिन भलाई करना उचित है. परन्तु यही तर्क सिद्ध कर सकता है कि लोग सब्बत के दिन परिश्रम कर सकते हैं क्योंकि उनको अपने बच्चों का पेट तो पालना ही है. ऐसा करने से यह दिखलाने की कोई हद नहीं रहती कि क्या करना उचित है और क्या अनुचित. ककेप 51.1
हमारे भाइयों को परमेश्वर की मंजूरी की आशा नहीं रखनी चाहिये जब वे अपने बालकों को ऐसी जगह में रखते हैं जहां उनको चौथी आज्ञा का पालन करना असम्भव है. उनको अधिकारियों के साथ ऐसे प्रबंध करने की कोशिश करनी चाहिये जिससे बालकों को सातवें दिन स्कूल में हाजिर होने से छुट्टी मिल जाय, यदि इसमें सफलता न हो तो उनका कर्तव्य स्पष्ट हो जाता है कि वे परमेश्वर की मांग का किसी भी कीमत पर पालन करें. ककेप 51.2
कुछ लोग कहेंगे कि परमेश्वर अपनी मांगों में इतना सुक्ष्म रुप से ध्यान नहीं रखता कि उनका कर्तव्य नहीं कि सब्बत को नुकसान उठाकर ऐसा कड़ाई से माना जाय अथवा अपने को ऐसे स्थान पर रखें जहाँ उन्हें देश के कानूनों से संघर्ष करना पड़े.यही पर तो जाँच हो रही है कि हम परमेश्वर की आज्ञायों का आदर करेंगे या मनुष्य की आज्ञाओं का यही पर आदर करने वालों तथा निरादर करने वालों में फर्क नज़र आयेगा, यहीं पर हमें अपनी स्वामी भक्ति का प्रमाण देना है. प्रत्येक युग में अपने लोगों के साथ परमेश्वर के बर्ताव का इतिहास बतलाता है कि वह पूरी पूरी आज्ञाकारिता चाहता है. ककेप 51.3
यदि माता-पिता अपने बालकों की दुनियावी तालीम लेने की आज्ञा दें और सब्बत को एक सामान्य दिन बनावें तब तो परमेश्वर की छाप उन पर नहीं लग सकती.वे संसार के साथ नाश होंगे तो क्या उनका लोहु उनके माता-पिता पर न लगाया जायगा? परन्तु यदि हम अपने बालकों को विश्वस्तता से परमेश्वर की आज्ञाओं को सिखलावें और उनको माता-पिता को अधीनता में रखे,तब विश्वास व प्रार्थना के साथ उनको परमेश्वर के सुपुर्द कर दें तो वह हमारे प्रयत्नों के साथ-साथ काम करेगा क्योंकि उसने वायदा किया है. और जब उमड़ता हुआ ईश्वरीय कोप मुल्क के ऊपर फैलेगा तो वे भी हमारे संग परमेश्वर के तम्बू के गुप्त स्थान में छिप सकें. ककेप 51.4