कलीसिया के लिए परामर्श
“सब्बत के दिन भलाई करना उचित हैं”
घर में एवं गिरजे में सेवा की भावना प्रगट करनी चाहिये, जिसने हमें शारीरिक काम करने के लिये छ: दिन दिये उसी ने सातवें दिन को आशीर्वाद दिया और पवित्र ठहरकर अपने लिये अलग किया. इस दिन में वही विशेष रुप में सभों को जो अपने आप को उसकी सेवा के लिये समर्पण करते हैं आशीष देगा. ककेप 49.5
समस्त स्वर्ग सब्बत को मानता है परन्तु बेपरवाही व व्यर्थ तरीके से नहीं. इस दिन में आत्मा की प्रत्येक शक्ति जाग्रत होनी चाहिये क्योंकि क्या हम परमेश्वर और अपने सृष्टिकर्ता मसीह से मुलाकात करने वाले नहीं हैं, हम उसको विश्वास द्वारा देख सकते हैं. वह प्रत्येक को ताज़गी देने तथा आशीष देने के लिए इच्छुक है. ककेप 49.6
दयालु ईश्वर ने पथदर्शन किया है कि रोगियों तथा दुखियों की देख-रेख होनी चाहिये;उनको आराम देने में जो शारीरिक परिश्रम किया जाय यह तो जरुरी कार्य है और इस से सब्बत नहीं टूटता. सारे अनावश्यक काम छोड़ देने चाहिये. ऐसा नहीं होना चाहिये कि कोई काम जो लापरवाही से सब्बत के शुरु होने तक छोड़ दिया गया है उसको सब्बत के समाप्त होने तक हाथ नहीं लगाना चाहिये. ककेप 50.1
जब कि सब्बत के दिन खाना पकाने से दूर रहना चाहिये जरुरी नहीं कि ठंडा खाना खाया. सर्दी के दिनों में भोजन जो पकाया गया है गरम कर लेना उचित है. भोजन सादा ही क्यों न हो मजेदार तथा लुभाने वाला होना चाहिये. खीर, हलुआ, फल, दहीआदि ऐसे भोजन का प्रबंध होना चाहिये जो जेवनार जैसा समझा जावे; ऐसा भोजन जिसे परिवार प्रतिदिन नहीं खाता. ककेप 50.2
यदि हम आज्ञाकारियों को वायदा की गई आशीषों की इच्छा रखें तो हमें सब्बत को और कड़ाई से मानना चाहिये. मुझे डर है कि अकसर हम इस दिन में सफर करते हैं जब कि हम रुक सकते है. उस प्रकाश के अनुसार जो मुझे परमेश्वर की ओर से सब्बत के मानने के सम्बंध में दिया गया हमे इस दिन में नाव अथवा रेल गाडीयां कारों से यात्रा करने में परहेज करना चाहिये. इन मामलों में हमें अपने बालकों तथा युवकों के सामने उचित नमूना रखना चाहिये. उन कलीसियाओं में पहुँचने के लिये जिन्हें हमारी सहायता की जरुरत है और उनको वह सन्देश दें जिसे परमेश्वर उन्हें देना चाहता है. हो सकता है कि हमें सब्बत के दिन यात्रा करनी पड़े परन्तु जहाँ तक सम्भव हो सके हमें सारे प्रबंध,टिकट मोल लेने आदि का पहिले कर लेना चाहिये.जब यात्रा करनी हो तो सारी मुमकिन कोशिश से प्रबंध करे कि मंजिल पर सब्बत के दिन पहुँचना न हो. ककेप 50.3
जब सब्बत को यात्रा करनी ही पड़े तो ऐसे लोगों की संगति से बचे रहना जो हमारे ध्यान को दुनियावी चीजों की ओर आकर्षित करें, हमें अपने ख्याल को परमेश्वर पर लगाये रखें और उसी से बातचीत करें. जब कभी मौका मिले हमें दूसरों से सच्चाई के विषय में बातचीत करनी चाहिये. हमें सदा तैयार रहना चाहिये कि दुखियों का दु:खयों का दु:ख दूर करें और जरुरतमन्दों की सहायता करें. ऐसी दशा में परमेश्वर चाहता है कि जो ज्ञान व बुद्धि उसने हमें दी है उसका प्रयोग करें. परन्तु हमें कारोबार के विषय में बात नहीं करनी चाहिये या किसी आम सांसारिक बातचीत में संलग्न नहीं होना चाहिये.हर वक्त और हर जगह परमेश्वर चाहता है कि हम अपनी नमक हलाली का सब्बत के आदर करने द्वारा प्रमाण दें. ककेप 50.4