कलीसिया के लिए परामर्श
नियमानुकूल भोजन करना
नियमित भोजन करने के बाद आमाशय को पांच घंटे विश्राम देना चाहिये.जब तक दूसरे आहार का समय न आ जाय तक भी ग्रीस मुंह में न जाना चाहिये.इस बीच आमाशय अपना कार्य करेगा,फिर वह ऐसी हालत में होगा कि और भोजन ग्रहण कर सके. ककेप 281.10
भोजन करने में नियमितता का सावधानी के साथ पालन करना चाहिये.भोजन के समयों के बीच किसी किस्म-किस्म की मिठाई, मेवे,फल, भोजन आदि का सेवन नही होना चाहिये.खाने पीने में अनियामितता से पाचन इन्द्रियों की स्वास्थ्य स्थिति नष्ट हो जाती है यहां तक कि स्वास्थ्य और सुख को भारी क्षति पहुंचती है और जब बालक मेज पर आते हैं तो वे आरोग्यकर भोजन आनंद के साथ नहीं खाते;उनकी क्षुधा उस प्रदार्थ की इच्छा करती है जो उनके लिये अहितकर है. ककेप 282.1
जब हम विश्राम करने के लिए पलंग पर लेट जाये तो आमाशय को अपना कार्य समाप्त कर लेना चाहिये ताकि वह और देह की अन्य इन्द्रियाँ भी विश्राम का आनंद ले सकें. जो लोग कुर्सी पर बैठ कर काम करते हैं उनके लिये विशेषकर शाम का भोजन यदि विलम्ब से खाया जाय तो हानिकारक होता है. ककेप 282.2
अनके परिस्थितियों में खाने की मामूली इच्छा होती है इस लिये कि पाचन इन्द्रियों पर दिन में अत्यधिक जोर पड़ा है.एक बार भोजन करने के बाद पाचन इन्द्रियों को विश्राम की आवश्यकता होती है.दो भोजनहारों के बीच कम से कम पांच छ: घंटों का अन्तर होना चाहिये और यदि इस योजन की परीक्षा की जाय तो अधिकतम लोगों को ज्ञान हो जायगा कि दिन भर में तीन आहारों के बजाय दो ही उत्तम रहेंगे. ककेप 282.3
दिन में केवल दो आहार खाने की आदत साधारण रीति में स्वास्थ्य के लिये हितकर पाई गई है परन्तु कुछ परिस्थितियों में तीसरी खुराक की भी आवश्यकता होती है. यदि इसकी आवश्यकता हो तो इसके बहुत हल्की और शीघ्र हजम होनी चाहिये. ककेप 282.4
जब शिक्षार्थी शारीरिक और मानसिक परिश्रम दोनों साथ-साथ करते हैं तो तीसरी खुराक की आपत्ति अधिकतर जाती रहती है.हस हालत में विद्यार्थी तीसरी खुराक,बिना सबूजी के परंतु सादा स्वास्थय वर्द्धक भोजन, उदाहरणार्थ फल और रोटी,ले सकते हैं. ककेप 282.5
भोजन को बहुत गरम अथवा बहुत ठंडा नहीं खाना चाहिये.यदि भोजन ठंडा है तो हज्म होने से पहिले उसको गर्म करने के लिये आमाशय की प्राणदा शक्ति पर जोर पड़ता है.इसी कारण वे ठंडे शरबत हानिकारक होते हैं और गर्म पेय का बार-बार इह्यतेमाल कमजोर करने वाला होता है.वास्तव में भोजन के साथ जितना अधिक तरल प्रदार्थ का सेवन किया जाता है उतना ही भोजन के पचन के लिये कठिन हो जाता है क्योंकि तरल प्रदार्थ को पाचनक्रिया के शुरु होने से पहिले शोषण हो जाना चाहिये.नमक का अधिकता के साथ प्रयोग नहीं करना चाहिये, चटनी,अचार और मसालेदार भोजनों को त्यागना चाहिये,फलों को बहुतायात में प्रयोग करना चाहिये.खाते समय जिस उत्तेजना के कारण पानी पीने की इच्छा होती है वह अधिकतर अन्तर्धान हो जायगौ.खाना धीरे-धीरे और खूब चबाकर खाना चाहिये.इस लिये कि लार भोजन के साथ अच्छी तर से मिल जाय और पाचन तरल पदार्थ कार्यरत हों,इस की आवश्यकता है. ककेप 282.6