कलीसिया के लिए परामर्श
स्वास्थ्य सुधारक सिद्धान्तों को प्रयोग
पथ्य सुधार में असली साधारण बुद्धि की आवश्यकता है.इस विषय का विस्तार तथा गम्भीरता के साथ अध्ययन होना चाहिये और किसी को एक दूसरे को आलोचना नहीं करनी चाहिये क्योंकि एक की आदत दूसरे सी नहीं होती.हर व्यक्ति की आदतों को विधिवत बनाने के लिये कोई अटल नियम बनाना असम्भव है और किसी को अपने तई दूसरों के लिये कसौटी नहीं बनाना चाहिये.सब लोग एक ही वस्तु नहीं खा सकते.कुछ भोजन जो एक व्यक्ति के लिये मजेदार तथा आरोग्यकर हैं दूसरे के लिये हानिकारक व अरुचिकर हो.कुछ लोग दूध का प्रयोग नहीं कर सकते पर दूसरे उसी पर पनपते हैं.कुछ लोग मटर तथा सैम हज्म नहीं कर सकते परन्तु दूसरों के लिये आरोग्यकर सिद्ध होते है.कुछ लोगों के लिये मोटे अनाज से तैयार किया भोजन अच्छा है परन्तु दूसरे उन्हें खा नहीं सकते. ककेप 282.7
भोजन की गलत आदत को सुधारने में देर नहीं करनी चाहिये. जब आमाशय के दुरुपयोग के परिणाम स्वरुप अजीर्ण का रोग लग जाता है तो दबाव डालने वाले भार को हटाकर,जरुरी शक्तियों के शेष बल को सुरक्षित रखने के लिये सावधानी के साथ कोशिश करनी चाहिये.हो सकता है कि देर तक दुरुपयोग के बाद आमाशय अपनी स्वास्थ्य अवस्था में फिर न आ सकें ;परन्तु पथ की एक यथोचित व्यवस्था आने कमजोरी से बचा सकती है और कई एक न्यूनाधिक पूर्णत: स्वास्थ्य भी हो सकेंगे.बलवान पुरुषों को जो शारीरिक परिश्रम करते हैं अपने भोजन की किस्म और परिणाम के बारे में इतना सावधान होने की आवश्यकता नहीं है जितना बैठे-बैठे काम करने वाले लोगों को आवश्यकता है;परन्तु ये भी अच्छे स्वास्थ्य का आनंद ले सकते हैं यदि ये खाने पीने में आत्मनियंत्रण का व्यवहार करें.कुछ लोगों को इच्छा यह होती है कि उनके भोजन के लिये कोई विशेष नियम नियत किया जाता तो अच्छा होता.एक व्यक्ति दूसरे के लिये कोई खास नियम नहीं बना सकता.हर एक को अकूल और आत्म नियंत्रण को काम में लाना चाहिये और सिद्धान्त के अनुकूल चलना चाहिये. ककेप 283.1
पथ सुधार प्रगतिशील होना चाहिये.जानवरों में बीमारी बढ़ जाने के कारण दूध और अंडे का सेवन अधिकाधिक भयानक होता जायगा.तो कोशिश करनी चाहिये कि इनकी जगह कोई और चीजों का प्रयोग करें जो स्वास्थ्यवर्द्धक और सस्ती हैं.सब जगह लोगों को सिखलाना चाहिये कि जहां तक सम्भव है बिना दूध और अंडे के भोजन तैयार करें और उसे स्वास्थ्यकर और मजेदार बनायें. ककेप 283.2
देह की अवहेलना करने अथवा दुरुपयोग करने से परमेश्वर का आदर नहीं होता और इस प्रकार वह उसकी सेवा के लिये आयोग्य रहती है.गृहस्थ का प्रथम कर्तव्य है कि देह के लिये तथा बलवर्द्धक भोजन जुटाकर उसकी रक्षा करे. भोजन की सामग्री में कमी करने के बजाय यह बेहतर है कि कम मूल्य के वस्त्र पहिने जायं तथा घर का सामान सस्ता हो. ककेप 283.3
कुछ गृहस्थ पारिवारिक मेज़ में कमी करके मेहमानों के लिये कीमती दावत तैयार करते हैं.यह मूर्खता की बात है.अतिथियों की खातिर करने में अत्यधिक सादगी होनी चाहिये.परिवार की जरुरतों को प्राथामिकता देनी चाहिये. ककेप 283.4
नादानी की मितव्ययता और कृत्रिम रीति रिवाज, अतिथि सेवा में जहां उसकी जरुरत है और उससे आशीष मिलती है रुकावट डालते हैं. हमारी मेजों के लिये भोजन सामग्री ऐसी प्रचुर मात्रा में हो कि यदि कोई अतिथि ठीक खाने के वक्त पर आ जाय तो गृहणी अतिरिक्त तैयारी करने के बजाय उसका स्वागत कर सके. ककेप 283.5
अपने भोजन पर खूब सोचविचार कीजिए.कारण से परिणाम तब खूब अध्ययन कीजिए.आत्म नियंत्रण का अभ्यास कीजिए.अपनी क्षुधा को विवेकाधीन रखिए.अत्यधिक भोजन से पेट का दुरुपयोग न कीजिए परन्तु पेट को स्वास्थ्य,स्वादिष्ट भोजन से जो स्वास्थ्य के लिये उपयुक्त हैं कभी वंचित न रखिए. ककेप 283.6
जो लोग स्वास्थ्य के नियमों को समझते तथा उनकी पाबंदी करते हैं वे इन बातों से अर्थात् खाने पीने में अति रत रहने अथवा अपने ऊपर पाबन्दियाँ लगाने से दूर रहेंगे.वे भोजन का चुनाव क्षुधा की तृप्ति के विचार से नहीं किन्तु देह के निर्माण के विचार से करेंगे.वे प्रत्येक शक्ति को अच्छी दशा में रखने की चेष्टा करेंगे ताकि परमेश्वर की तथा मानव को उत्तम सेवा हो सके.उनकी क्षुधा विवेक और अतः करण के नियंत्रण में रहती है इसी वास्ते उनको शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य का पारितोषिक मिलता है.यद्यापि वे अपनी सम्मति दूसरों पर नहीं लादते उनका नमूना ही यथोचित सिद्धान्तों के पक्ष में एक साक्षी है.ऐसे लोगों का सत्य के पक्ष में विस्तृत प्रभाव पड़ता है. ककेप 284.1
सब्बत के दिन के लिये अन्य दिनों की अपेक्षा हमें भोजन सामग्री अधिकता में अथवा विभिन्न प्रकार के भोजन पदार्थ जुटाने की आवश्यकता नहीं है.इसके बजाय भोजन साधारण हो और इस लिये कि आध्यात्मिक बातों को समझने के लिये बुद्धि स्पष्ट और तीव्र हो, भोजन कम मात्रा में खाना चाहिये. ककेप 284.2
सब्बत के दिन पकाने का काम बंद होना चाहिये परन्तु इसकी जरुरत नहीं कि उस दिन ठंडा खाना खाया जाय.ठंडे मौसम में कल का पका हुआ भोजन गरम कर लेना उचित है.भोजन कितना हो सादा क्यों न हो उसे स्वादिष्ट तथा रुचिकर होना चाहिये.विशेषकर उन परिवारों में जिन में बच्चे हैं सब्बत के दिन ऐसे भोजन की व्यवस्था करनी चाहिये जो दावत जैसी समझी जाय अर्थात् जो अन्य दिनों से भिन्न हो. ककेप 284.3