कलीसिया के लिए परामर्श

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जलन रखने हारा व्यक्ति दूसरों के अन्दर कोई अच्छाई नहीं देखता.

हमें अपने जीवन की कठिनाइयों और निराशाओं को और अपनी आत्मा कमजोर और भय और अधीर नहीं करना चाहिए.किसी तरह की भी बुराई न हो,विचार में व बोलने में, जिसमें ईश्वर को दु:ख पहुँचे.मेरे भाई,यदि आप अपने हृदय को बुराइयों के लिए खोलेंगे तो पवित्र आत्मा आप के अन्दर नहीं रह सकता.मसीह में भरपूरी के लिए प्रयत्न कीजिए.खीषट की रीति की ओर परिश्रम कीजिए.प्रत्येक विचार,शब्द और विचार को उसको प्रगट करें.आप को प्रतिदिन प्रेम के बपतिस्मे की आवश्यकता है जैसा प्रेरितों के दिनों में वे एक मन से रहते थे.यह प्रेम शरीर,मस्तिष्क और आत्मा को स्वस्थ बनायेगा. अपनी को ऐसे आत्मिक जीवन से मजबूत बनाइए.विश्वास ,आशा, साहस और प्रेम की आदत डालिए ताकि ईश्वर की शान्ति आप के हृदयों में राज कर सके. ककेप 233.3

डाह न केवल स्वभाव का बिगाड़ है,परन्तु एक बुराई है जो कि हमारे प्रत्येक गुण का ह्यस करती है.इसका आरम्भ शैतान से है उसने स्वर्ग में सर्वप्रथम बनने की इच्छा की क्योंकि उसके पास पूरी शक्ति और महिमा नहीं थी जिसे वह चाहता था. उसके पास उसने ईश्वर के राज्य के विरुद्ध विद्रोह किया उसने हमारे पहिले माता-पिता की परीक्षा की, और उन्हें पाप में गिराकर समस्त मानव जाति को भ्रष्ट किया. ककेप 233.4

बुराई करने वाला मनुष्य अपने नेत्रों को, दूसरों के अच्छे गुण तथा भले कार्यों को देखने के लिए बन्द रखता है.वह सदैव ही उच्चतम बातों को गलत रीति से समझता है.वह सदैव सर्वोतम वस्तु की निंदा तथा मिथ्या वर्णन करने को तैयार रहता है.अकसर मनुष्य अपने अपराधों को मानकर छोड़ हैं परन्तु ईष्र्यालु मनुष्य से ऐसी कोई आशा नहीं की जा सकती.किसी मनुष्य से ईर्षा रखने का अर्थ यही है कि हम उसको अपने से उच्च स्वीकार करते हैं परन्तु अहंकार किसी ऐसी बात को स्वीकृति न देगा.यदि किसी ईष्र्यालु मनुष्य को उसके अपराधों से परिचित कराने की कोशिश की जाय तो वह उस मनुष्य के साथ जो उसका ईर्षा पात्र हुआ है और भी कठोर हो जाता है यहां तक कि उसकी स्थिति प्रायः असाध्य हो जाती है. ककेप 234.1

ईर्षालु जहाँ कही भी जाता है जहर उगलता है,मित्रों को अलग करता तथा परमेश्वर और मनुष्यों के विरुद्ध घृणा और विद्रोह पैदा करता है.वह श्रेष्ठता के लक्ष्य प्राप्ति के लिए साहसपूर्ण एवं स्वार्थ त्याग कोशिशों के द्वारा नहीं किन्तु जहां खड़ा है वहीं अडिग रह कर दूसरों की योग्यता की निंदा करके सबसे बड़ा तथा उत्तम बनने की चेष्टा में रहता है. ककेप 234.2