कलीसिया के लिए परामर्श
मिसिज व्हाइट का जीवन और कार्य
एलन जी. हार्मन और उनकी जुड़वाँ बहन का जन्म नवम्बर 26सन् 1826 ई. में अमरीका के उत्तर पूर्वी भाग में गीरहम मेन नामक जिले में हुआ था. जब उनकी अवस्था नौ वर्ष की हुई तो नासमझ सहपाठी ने उनकी पत्थर मारा जिससे दुर्घटना पैदा हो गई. मुख पर के घाव के कारण उनका सारा जीवन व्यर्थ-सा हो गया. कमजोर होने के कारण पढाई रोक देनी पड़ी. ककेप 15.2
ग्यारह वर्ष की आयु में उन्होंने अपना मन परमेश्वर को दे दिया और उनके थोड़े समय बाद उनको समुद्र में डुबकी का बपतिस्मा दिया गया. वह मैथोडिस्ट कलीसिया में शामिल हुई. अपने परिवार के अन्य मेम्बरों के साथ वह पोर्टलैण्ड मेन में जो ऐडवेनटिस्ट सभा हो रही थी में जाने लगी, जहाँ विलियम मिलर और उनके साथी मसीह के द्वितीय आगमन की निकटता के सम्बन्ध में व्याख्यान दे रहे थे जिसे उन्होंने पूर्ण रुप से स्वीकार कर लिया और सृष्टिकर्ता के आगमन के विश्वास के साथ बाट देखने लगी. ककेप 15.3
सन् 1844 के दिसम्बर के एक प्रात: की बात है कि जब वह चार दूसरी महिलाओं के संग प्रार्थना कर रही थीं परमेश्वर की शक्ति उनके ऊपर आई. प्रथम उनको सारी सांसारिक वस्तुओं का कुछ ज्ञान नहीं रहा फिर लाक्षणिक दर्शन में उसने देखा कि यीशु के आगमन पर विश्वास करने वाले लोग परमेश्वर के नगर की ओर यात्रा कर रहे थे उनके प्रतिफल को भी देखा. डरते काँपते इस 17 वर्षीया युवती ने इस दर्शन और बाद के दर्शनों का वर्णन पोर्टलैण्ड के सह-विश्वासियों से किया. बाद में अवसर मिलने पर उसने इस दर्शन का वर्णन मैन तथा अन्य रियासत के ऐडवेनटिस्ट मेम्बरों से किया. ककेप 15.4
सन् 1846 के अगस्त महीने में एलन हार्मन का एक युवक पादरी के संग जिसका नाम जेम्स व्हाइट था विवाह हो गया. अगले पैंतीस वर्षों तक मिसिज व्हाइट अपने पति के संग सुसमाचार के सेवा कार्य में बड़ी तत्परता से संलग्न रहीं. 6 अगस्त1881 को पति की मृत्यु ने उन्हें उनसे जुदा कर दिया. उन्होंने समस्त अमरीका की विस्तृत रुप में यात्रा की और जहाँ-जहाँ वह गईं वहाँ-वहाँ उन्होंने प्रचार किया, पुस्तक पत्रिकाएं लिखीं,इमारतें खड़ी की और कलीसिया स्थापन तथा शासन का कार्य किया ककेप 15.5
समय और परीक्षण ने प्रमाणित कर दिया कि एल्डर और मिसिज व्हाइट तथा उनके सहकारियों ने विस्तृत और मजबूत बुनियादें रखीं और बड़ी बुद्धिमानी तथा सुचारु रुप से उनका निर्माण किया. सन् 1848 और 1850 ई. में उन्होंने सब्बत मानने वाले ऐडवेनटिस्टों के बीच छापे खाने के काम का उद्धघाटन करने में और कलीसिया की संस्था का विकास करने में मार्गदर्शन किया जिससे मण्डली की आर्थिक दशा मजबूत हो गई. यह कार्य इतने उच्च शिखर पर पहुँचा कि सन् 1863 में सेवन्थ- डे ऐड्वेनटिस्ट कलीसिया की जनरल कानफ्रेंस संस्था का स्थापन किया गया. हमारी कलीसिया में चिकित्सा कार्य का आरंभ 1865 व 1866 ई. के बीच हुआ और शिक्षा सम्बन्धी कार्य का आरंम्भ सन् 1872 या 1873 के आस पास हुआ. वार्षिक कैम्प मीटिंग स्थापन करने की योजना का विकास 1868 में हुआ और 1874 ई.में सेवन्थ -डे ऐड्वेनटिस्ट लोगों ने अपना प्रथम मिशनरी विदेश को भेजा. इन सारी उन्नतियों में परमेश्वर की ओर से दिये गये भौखिक वे लिखित उपदेशों ने पथ-प्रदर्शन किया. ककेप 15.6
आरम्भ में समाचार अधिकतर तो व्यक्तिगत पत्र के रुप में अथवा हमारे प्रथम प्रचलित समाचारपत्र (प्रकाशन ) प्रेजेंट ट्रुथ द्वारा भेजे जाते थे. सन् 1851 में मिसिज़ व्हाइट ने ए स्केच ऑफ दी क्रिश्चन एक्सपीरीयंस एण्ड वियुज ऑफ एलन जी. व्हाइट ( एलन जी. व्हाइट के मसीही अनुभव तथा विचारों का संक्षिप्त विवरण) नामक अपनी प्रथम 64 पृष्ठीय पुस्तक छपवाई. ककेप 16.1
1855 में छोटी पुस्तिकाओं का एक सिलसिला प्रकाशित किया गया, प्रत्येक का नाम थाः टेस्टीमोनीज़ ऑफ दी चर्च( कलीसिया की साक्षियां) इनके द्वारा उपदेश तथा सुधार के सन्देश प्राप्त होते थे जिन्हें परमेश्वर ने समय समय पर अपने लोगों को आशीर्वाद देने, समझाने तथा मार्ग-दर्शन के निमित्त भेजना उचित समझा. इस उपदेश की निरंतर मांग की पूर्ति के लिए उसे 1885 ई.चार जिल्दों में छपवाया गया और उनमें दूसरी जिल्दों जो 1889-1909 में निकलीं उन्हें शामिल करके अब नौ जिल्दों का एक सेट तैयार हो गया जिसे टेस्टीमोनोज फॉर चर्च ( कलीसिया के लिए साक्षियाँ ) कहते हैं. ककेप 16.2
व्हाइट दम्पति के चार बालक पैदा हुये. सबसे बड़ा हेनरी 16 वर्ष की आयु में और सबसे छोटा हरबर्ट तीन महीने के बाद मर गया. दो लड़के एडसन और विलियम वृद्धावस्था तक जीवित रहे और प्रत्येक सेवन्थ-डे ऐडवेनटिस्ट कलीसिया के काम में उत्सुकता से संलग्न रहे. ककेप 16.3
जनरल कान्फ्रेंस के प्रार्थना-पत्र के उत्तर में श्रीमती मिसिज व्हाइट सन् 1885 ई. के गरमी के मौसम में यूरोप को रवाना हुई. वहाँ पर उन्होंने दो वर्ष उस महाद्वीप में नये विकसित कार्य को मजबूत किया, वैजल, स्वीटजरलैण्ड को निवास स्थान बना कर उन्होंने विस्तृत रुप में दक्षिणी, मध्य तथा उत्तरी यूरोप की यात्रा की और कलीसिया के बड़े-बड़े सम्मेलनों में शामिल हुई और मेम्बरों से भेंट की. ककेप 16.4
अमरीका में चार साल रहने के उपरान्त जनरल कान्फ्रेंस की बुलाहट के उत्तर में मिसिज व्हाइट ने 63 वर्ष की आयु में आस्ट्रेलिया को प्रस्थान किया. वहाँ पर वह नौ वर्ष तक रहों और काम को शुरु करने तथा उन्नत करने में मदद देने लगी. विशेषकर शिक्षा तथा चिकित्सा विभागों में. श्रीमती मिसिज़ व्हाइट ने सन् 1900 ई. में अमरीका के पश्चिमी भाग में लौटकर सेंट हलीना, कैलीफोर्निया को निवास स्थान बनाया और सन् 1915 ई. तक मृत्यु के समय लों वही रहती रहीं. मिसिज़ इ-व्हाइट की अमरीका में साठ साल की और समुद्र पार के प्रदेशों में दस साल की लम्बी सेवा के बीच उनको 2000 दर्शन दिये गये जिनसे व्यक्तियों, कलीसियों, सामान्य सभाओं और जनरल कान्फ्रेंस की सभाओं को परामर्श देने के अथक परिश्रम द्वारा इस विशाल आन्दोलन को भारी उन्नति हुई. परमेश्वर-प्रदत्त संदेशों को सब लोगों तक पहुँचाने का कार्य कभी उनके ख्याल से न उतरा . ककेप 16.5
उनके उल्लेखों की गिनती एक लाख पृष्ठों से ऊपर तक पहुँचती है.उनकी कलम से सन्देश, वैयक्तिक पत्र द्वारा, हमारी कलीसिया के समाचार पत्र द्वारा अथवा उनकी पुस्तकों द्वारा लोगों तक पहुँचाये जाते थे. जिन विषयों पर वह पत्र व्यवहार करती थी उनमें धार्मिक इतिहास, दैनिक मसीही अनुभव, स्वास्थ्य, शिक्षण, सुसमाचार तथा अन्य व्यवहारिक विषय में हुआ करते थे. उनकी 46 पुस्तकों में से संसार की बहुत सी प्रमुख भाषाओं में छप चुकी हैं और लाखों प्रतियाँ बिक चुकी हैं. ककेप 16.6
81 वर्ष की आयु में मिसिज व्हाइट ने अन्तिम बार सन् 1909 की जनरल कानफ्रेंस में उपस्थित होने के लिए महाद्वीप को पार किया. उनकी उम्र के बाकी छ: साल साहित्य सेवा में समाप्त हुए. अपने जीवन के अन्त में मिसिज़ व्हाइट ने ये शब्द लिखे, ” चाहे मैं जीवित रहूं या न रहूँ, मेरे उल्लेख सर्वदा बोलते रहेंगे और उनकी आवाज आगे-आगे बढ़ेगी जब तक संसार रहेगा.’‘ अपने सृष्टिकर्ता पर पूर्ण विश्वास तथा बड़ी धैर्य रखते हुये उनका 23 जुलाई सन् 1915 ई. को अपने ही घर पर देहान्त हो गया और अपने पति तथा पुत्रों की बगल में बैटलग्रीक मिशिगन में ओकहिम कब्रिस्तान में उसको दफन किया गया. ककेप 17.1
मिसिज व्हाइट को सहकारियों, कलीसियों और उनके परिवार के सदस्यों द्वारा श्रद्धापूर्ण माता और उत्साही, उदार हृदय तथा अथक धार्मिक कर्मचारिका की भाँति आदर की दृष्टि से देखा जाता था. उन्होंने कलीसिया में कभी कोई पद स्वीकार नहीं किया. कलीसिया और वह स्वंय भी यह जानती थी कि वह लोगों को सन्देश देने के लिए परमेश्वर की ओर से पैगम्बर नियुक्त हुई है. उन्होंने कभी दूसरों से नहीं कहा कि मेरा नमूना पीछा करो न उन्होंने उस वरदान को अपने तईं धनाय बनाने अथवा ख्याति प्राप्त करने में इह्यतेमाल किया. उनका जीवन एवं सर्वस्व परमेश्वर की सेवा के निमित्त अर्पित किया हुआ था. ककेप 17.2
उनको मृत्यु पर प्रसिद्ध साप्ताहिक पत्र दौ इनेण्डीपैन्डेट के सम्पादक ने अगस्त 23,1905 के प्रकाशन में उनके सफल जीवन पर अपनी टीका को इन शब्दों में समाप्त किया, वह अपने प्रकाशित वाक्यों पर विश्वास करने में बिल्कुल सच्ची थी. उनका जीवन उन प्रकाशनों के अनुकूल था. उनके अन्दर कोई आत्मिक घमण्ड न था न उनमें अनुचित लाभ की अभिलाषा थी. उसने एक सुयोग्य नबिया का जीवन व्यतीत किया सुयोग्य नबिया ही के समान कार्य किये.’‘ ककेप 17.3
अपनी मृत्यु के कुछ ही वर्ष पूर्व मिसिज़ व्हाइट ने बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज का स्थापन किया जिसमें कलीसिया के प्रमुख नेता सम्मिलित थे जिनको उन्होंने अपने उल्लेख इस चेतावनी के साथ सौंपा कि वे उन्हें सुरक्षित रखें और उन्हें लगातार छपवाते रहें. सेवंथ-डे ऐडवेनटिस्ट कलीसिया के सारी दुनिया के हेड क्वार्टर्स, वाशिंगटन डी. सौ. अमरीका में इस बोर्ड का दफ्तर है जहाँ से वे एलन जी. व्हाइट की पुस्तकों को अंग्रजी भाषा में लगातार छपवाते रहते हैं और अन्य भाषाओं में भी आंशिक रुप में या पूर्णत: छपवाने की कोशिश करते हैं. मिसिज़ व्हाइट के आदेशनुसार उन्होंने सामयिक लेखों और हस्त लिखित उल्लेखों की कई संग्रहित प्रतियाँ छपवाईं. इसी बोर्ड के अधिकार से यह प्रति प्रकाशित की जा रही है. ककेप 17.4