कलीसिया के लिए परामर्श

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नबी को ज्योति कैसे मिली

इस्राएलियों के अनुभव में जैसा हम देख चुके हैं एक बार परमेश्वर ने लोगों को बतलाया कि वह उनसे किस प्रकार नबियों द्वारा बातचीत करेगा. उसने कहा था, ‘’यदि तुम में कोई नबी हो तो उस पर मैं यहोवा दर्शन के द्वारा अपने को प्रगट करूंगा वा स्वप्न में उस से बात करूंगा.’‘ (गिनती 12:6) ककेप 11.2

पिछले पाठ में आपने महान वाद-विवाद से सम्बन्धित दर्शनों की कहानी पढ़ी जिनके संग कुछ विशेष भौतिक अचंभित घटनाएं उपस्थित हुई. शायद कोई तर्कानुसार यह प्रश्न करे कि ये दर्शन इस भांति क्यों दिये गये. निस्सन्देह लोगों में विश्वास स्थापन करने और आश्वासन दिलाने के लिए कि सचमुच में परमेश्वर नबी से बातें कर रहा है. मिसिज व्हाइट ने दर्शनों के बीच अपनी हालत का सविस्तार वर्णन कई बार नहीं किया पर एक समय उन्होंने कहा, ‘‘ ये सन्देश इस प्रकार इस लिये दिये गये कि लोगों का विश्वास मज़बूत हो ताकि इन अंतिम दिनों में हम नबूवत के आत्मा पर भरोसा करें.’‘ ककेप 11.3

ज्यों-ज्यों मिसिज व्हाइट का काम उन्नति करता गया त्यों-त्यों उस काम की जाँच बाइबल में बताई गई परीक्षाओं द्वारा होती गई. उदाहरणार्थ ‘’तुम उनको उनके फलों से पहचानोगे.’’परन्तु फल को बढ़ने में समय लगता है और परमेश्वर ने दर्शन देने के सम्बन्ध में आरंभ में ही ऐसे प्रमाण दिये जिसे लोगों को विश्वास करने में मदद मिली. ककेप 11.4

परन्तु सारे दर्शन जिनके संग प्रत्यक्ष भौतिक अचंभित घटनाएं उपस्थित हुई जन साधारण में नहीं दिये गये. जिस पद से यह पाठ आरंभ होता है उसमें हमें बतलाया गया कि परमेश्वर नबी से केवल ‘दर्शन द्वारा ही ‘‘ नहीं किन्तु ‘स्वप्न में भी बातें करेगा.’‘ यह नबुवती स्वप्न है जिसकी ओर दानिय्येल संकेत करता है: ककेप 11.5

“बाबुल का राजा बेलशस्सर के पहिले वर्ष में, दानिय्येल ने पलंग पर स्वप्न देखा, तब उसने वह स्वप्न लिखा, और बातों का सारांश भी वर्णन किया.’’(दानिय्येल 7:1)दानिय्येल उस बात का बयान करता है जो उसको दिखलाई गई थी. कई मौकों पर वह कहता है, “मैं ने रात के दर्शन में देखा. ‘’अकसर मिसिज़ व्हाइट के अनुभव में यह बात आई कि उनको दर्शन उस समय दिये गये जब रात के घंटों में उनका मन विश्राम कर रहा था. हम इस प्रकार की भूमिका सम्बन्धी कथन पढ़ते हैं, “रात के दर्शनों में कुछ बातें मुझे सफाई बतलाई गई,’’अथवा परमेश्वर अकसर नबी से नबुवती स्वप्न द्वारा बातें करता था. नबुवती स्वप्न या रात के दर्शन अथवा साधारण स्वप्न में आपस में क्या सम्बन्ध है इस प्रकार का प्रश्न उठना सम्भव है. इसके विषय में मिसिज व्हाइट ने सन् 1864 में लिखाः ककेप 11.6

“जीवन की साधारण बातों से उत्पन्न हुये अनेक स्वप्न होते जिनके संग परमेश्वर के आत्मा का कोई सम्बन्ध नहीं है. झूठे दर्शन भी होते हैं जो शैतानी आत्मा से उभारे जाते हैं. परन्तु परमेश्वर की ओर से दिये गये स्वप्नों को उसके वचन के अनुसार दर्शनों की श्रेणी में रखा जाता है. ऐसे स्वप्न अपनी यथार्थता का प्रमाण अपने में रखते हैं, जब इस बात पर विचार किया जाता है कि किस परिस्थिति के अधीन ये दिये गये और किन लोगों को दिये गये.’‘ ककेप 12.1

एक समय मिसिज़ व्हाइट के जीवन में अंतिम दिनों में उनके पुत्र एल्डर डब्लयू.सी. व्हाइट ने अधिक जानकारी रखने वाले लोगों के हेतु उनसे यह प्रश्न पूछा, “माता जी, आप अकसर कहती है कि आप पर रात के दर्शन में अमुक-अमुक बातें प्रगट की गई. आप उन स्वप्नों का वर्णन करती हैं जिनमें आपको प्रकाश दिया जाता है. हम सब स्वप्न देखते हैं. आप कैसे जानती हैं कि परमेश्वर ही आप से स्वप्न में बोल रहा है?” ककेप 12.2

उन्होंने उत्तर दिया, “क्योंकि जो स्वर्ग दूत रात के दर्शन में मेरे पास खड़े होकर आदेश देता है वही दिन के दर्शनों में भी पास रह कर आदेश देता है.’‘ वह स्वर्गीय प्राणी जिसका यहाँ संकेत किया गया है, अन्य अवसरों पर ‘’दूत’‘ “मेरा मार्ग दर्शक’‘ ‘’मेरा शिक्षक’‘ आदि करके कहा गया है. ककेप 12.3

रात के घंटों में प्राप्त हुए प्रकाशनों के विषय में नबी के मन में न तो कोई चिन्ता, न सन्देह उत्पन्न हुआ क्योंकि उनसे सम्बन्धित परिस्थितियों ने प्रत्यक्ष कर दिया कि आदेश परमेश्वर ही की ओर से है. ककेप 12.4

दूसरे मौकों पर मिसिज़ व्हाइट को प्रार्थना करते समय अथवा बातें करते व लिखते समय ही दर्शन दिये जाते थे, उनके साथ वालों को पता भी न चलता था कि वे दर्शन में हैं जब तक वह बोलते बोलते या प्रार्थना करते करते रुक न जाती थीं. एक दफा उन्होंने यह कहा: ककेप 12.5

“जब मैं उत्साहपूर्ण प्रार्थना में संलग्न थी तो मुझे अपने आस पास की बातों का कुछ भी पता नहीं रहा, कमरा प्रकाश से भर गया और मैं उस सन्देश को सुनने लगी जो लगता था कि जनरल कानफ्रेंस जैसी सभी को दिया गया हो.” ककेप 12.6

सत्तर वर्षों की दीर्वायु के सेवा कार्य के मध्य मिसिज़ व्हाइट को जितने दर्शन दिये गये उनमें सबसे लम्बा दर्शन चार घंटों तक और सबसे छोटा क्षण मात्र ही रहा. परन्तु अकसर ये दर्शन आधे घंटे या इससे कुछ अधिक देर तक रहा करते थे. लेकिन कोई विशेष नियम नहीं बतलाया जा सकता जिससे सारे दर्शनों पर एक-सा नियम लागू हो क्योंकि यह ठीक ऐसा था जैसा पौलुस लिखता है: ककेप 12.7

“पूर्व युग में परमेश्वर ने बाप दादों से थोड़ा-थोड़ा करके और भांति-भाति से भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा बातें करके.’‘ ककेप 12.8

नबी को दर्शनों के द्वारा ज्योति दी जाती थी परन्तु नबी दर्शन के समय लिखने को नहीं बैठता था. उसका कार्य यान्त्रिक नहीं था. विशेष अवसरों को छोड़ परमेश्वर उसे बोलने के लिये कोई विशेष शब्द नहीं देता था: न स्वर्गदूत नबी का हाथ पकड़कर लिखवाता था कि ठीक उन्हीं शब्दों का प्रयोग तथा उल्लेख हो जो उसके श्रोतागणों को प्रकाश तथा शिक्षा देने योग्य हों चाहें वे संदेश को पढ़े अथवा सुनें. ककेप 12.9

कदाचित् हम यह प्रश्न करें कि नबी का मन किस प्रकार प्रकाशमान होता होगा-उसको वे सूचनाएँ तथा आदेश किस प्रकार मिलने होंगे जिन्हें उसे लोगों तक पहुँचाने होते हैं? जिस प्रकार दर्शन देने का कोई खास नियम निश्चित नहीं किया जा सकता उसी प्रकार नबी को प्रेरित सन्देश प्राप्त करने का कोई विशेष नियम स्थापन नहीं किया जा सकता. तौभी हर हालत में अनुभव बिल्कुल स्पष्ट होता था जिससे नबी के मन पर अमित प्रभाव पड़ता था. जिस प्रकार वह वस्तु जिसे हम देखते तथा अनुभव से मालूम करते हैं हमारे मन पर उस वस्तु की अपेक्षा जिसे हम केवल सुनते है अधिक ग्रहण प्रभाव डालती है. उसी प्रकार वे प्रदर्शन जब नबी उन होने वाली घटनाओं को देखता है उसके मन पर दृढ़ और गहरा प्रभाव डाल देते हैं. ककेप 13.1

पिछले पाठ में उस महान वाद-विवाद से सम्बन्धित दर्शन की कहानी का वर्णन करते हुए हमने मिमिज़ व्हाइट के शब्दों का प्रयोग किया था कि ऐतिहासिक घटनाओं के सम्बन्ध में उनको किस प्रकार सूचनाएं मिली. दूसरे समय पर वर्णन करते हुए कि किस प्रकार प्रकाश उनके पास पहुँचा वह बोली कि दर्शन में, अकसर मेरा ध्यान उन दृश्यों की ओर आकर्षित किया जाता है जो पृथ्वी पर होते हैं. कभीकभी मुझको सुदूर भविष्य में पहुँचाया जाता है और होने वाली घटनाएं दिखलाई जाती हैं, फिर मुझको वे घटनाएं भी दिखलाई जाती हैं जो भूतकाल में हुई थीं. ककेप 13.2

इन बातों से स्पष्ट होता है कि एलन जी. व्हाइट ने इन घटनाओं को मानों प्रत्यक्ष रुप में साक्षात् गवाह के रुप में देखा. फिर वे दर्शन में उनके सामने प्रदर्शित हुई जिससे उनके मन पर स्पष्ट प्रभाव पड़ा. ककेप 13.3

अन्य समयों पर उनको ऐसा लगता था कि मानों वह सचमुच सामने आये दृश्य में भाग ले रही हैं और महसूस कर रही, देख रही, तथा आज्ञा पालन भी कर रही है जब कि वास्तव में वह भाग नहीं ले रही थी परन्तु उनके मन पर ऐसा प्रभाव पड़ा जिसे वह भूल न सकी. उनका सब से पहला दर्शन जो 56वे पृष्ठ से 62 वे पृष्ठ तक में पाया जाता है इसी प्रकार का था. ककेप 13.4

अन्य अवसरों पर जब मिसिज़ व्हाइट दर्शन में होती थीं तो ऐसा लगता था कि वह दूर दो जगहों में सभाओं या परिवारों में अथवा संस्थाओं में उपस्थित है. ऐसी सभाओं में उपस्थिति का भाव इतना प्रत्यक्ष होता था कि मिसिज व्हाइट सविस्तार बतला सकती थीं कि विभिन्न व्यक्तियों ने क्या-क्या कहा अथवा क्या-क्या किया. एक बार जब मिसिज़ व्हाइट दर्शन में थी तो उनको ऐसा महसूस हुआ कि वे हमारे एक अस्पताल का दौरा कर रही है और प्रत्येक कमरे की जाँच कर रही है मानो वे प्रत्येक कार्यवाही को देख रही है. इस अनुभव के विषय में उन्होंने लिखा: ककेप 13.5

‘‘वह वकवाद, व्यर्थ हंसी ठट्टा , निरर्थक उपहास के शब्द मेरे कान में सुनाई पड़े. तो मुझे बड़ा शोक हुआ ... जब मैं ने ईर्ष्या तृप्ति की भावना, शत्रुता पूर्ण शब्दों तथा बेलगाम बातचीत को सुना जिनसे स्वर्गदूत भी लज्जित होते हैं तो मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ.’‘ ककेप 13.6

फिर उसी संस्था की अधिक मनोहर दशायें दिखलाई गई. वह इन कमरों में लाई गई जहाँ से प्रार्थना की आवाज़ आ रही थी. यह आवाज कैसी सुन्दर थी. “पथ प्रदर्शक ‘’स्वर्गदूत की आज्ञानुसार जो उनकी इन कमरों में तथा विभिन्न विभागों में अग्रसरी कर रहा था यात्रा के आधार पर सन्देश लिखा गया. ककेप 13.7

मिसिज व्हाइट को स्पष्ट अकसर लाक्षणिक प्रदर्शनों में प्रकाश दिया जाता था. इस प्रकाश का प्रदर्शन निम्नलिखित चार वाक्यों में स्पष्टता से वर्णन किया गया है, जिसकी नकल एक प्रमुख कर्मचारी को दिये गये सन्देश से ली गई है जो एक खतरे में था. ककेप 14.1

” एक और मौके पर मुझ पर यह प्रगट किया गया कि आप सेनापति के रुप में घोड़े पर सवार हो एक झण्डा लिये जा रहे हैं. कोई आया और आप के हाथ से वह झण्डा छीन ले गया जिस पर ये शब्द लिखे थे, ” परमेश्वर की आज्ञाएँ और यीशु का विश्वास ‘‘ और उसको पाँव तले मिट्टी में रौंद डाला. मैं ने देखा कि लोग आप को घेरे हुए थे और आपको सांसारिक लोगों से सम्बन्धित बतलाते थे.’‘ ककेप 14.2

ऐसे भी अवसर थे जब मिसिज़ व्हाइट को दो विभिन्न प्रकार के दृश्य दिखलाये गये- एक में चित्रण किया गया कि कुछ योजनाओं तथा कूट नीतियों का अनुकरण करने से क्या-क्या नतीजा होगा और दूसरे दृश्य में अन्य योजनाओं तथा नीतियों का अनुकरण करने का कया फल होगा. इसका सर्वोत्तम उदाहरण अमरीका के पश्चिमी भाग के लोमा लिण्ड नामक स्थान के एक स्वास्थ सम्बन्धी खाद्य फैक्टरी को स्थापन करने में मिलता है, प्रधान संचालन तथा उनके सहकारी मुख्य सैनीटोरियम भवन निकट एक बड़ी इमारत खड़ी करने की योजना कर रहे थे. जब इन योजनाओं का विकास हो ही रहा था तो सैंकड़ों मील की दूरी पर मिसिज़ व्हाइट को अपने घर पर एक रात दो दर्शन दिये गये, एक के बारे में वह कहती: ककेप 14.3

“मुझे एक विशाल भवन दिखाया गया जहाँ नाना प्रकार के खाद्य पदार्थ तैयार किये जा रहे थे. बेकरी के निकट छोटे मकान थे. जब मैं पास खड़ी हुई तो क्या सुनती हैं कि उस काम के सम्बन्ध में जो हो रहा था ऊँचे-ऊँचे शब्दों में झगड़ा जैसे हो रहा है. कर्मचारियों में मेल नहीं था इस लिए गड़बड़ी पैदा हो गई थी.’‘ ककेप 14.4

तब उसने व्याकुल संचालक को अपने सहकारियों के संग मेल मिलाप के विषय में प्रयत्न करते देखा. उसने चिकित्सालय के मरीजों को देखा कि वे इस झगड़े को सुनकर खेद प्रगट करने लगे कि चिकित्सालय के निकट इस सुन्दर भूमि में खाद्य फैक्टरो स्थापन करना उचित नहीं है. तब एक जन दिखाई दिया जिसने कहा, ‘’यह सकल दृश्य वस्तुपाठ के रुप में तुमको दिखलाने सामने लाया गया है ताकि तुम इस प्रकार की योजनाओं का फल देख सके.’‘ ककेप 14.5

तब दृश्य बदल गया और क्या देखती है कि खाद्य फैक्टरी, चिकित्सालय के मकानों से कुछ दूरी पर रेल की पटरी की ओर सड़क पर खड़ी है. जहाँ पर काम का प्रारंभ परमेश्वर के प्रबंध के अनुसार मामूली रीति से हुआ. दर्शन के चार घंटो के अन्दर मिसिज़ व्हाइट लोमालिण्डा के कर्मचारियों को पत्र लिखने बैठी और उससे खाद्य फैक्टरी के उचित स्थान पर बनने का प्रश्न हल हो गया. यदि उनकी प्रारम्भिक योजना प्रयोग में लाई जाती तो भविष्य में बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता कि ऐसी भारी व्यावसायिक इमारत चिकित्सालय के इतना निकट क्यों बनाई गई. ककेप 14.6

इस प्रकार देखा जा सकता है कि भिन्न-भिन्न तरीकों से परमेश्वर के पैगम्बर को दिन को व रात को दर्शनों द्वारा सूचनाएँ तथा आदेश मिलते थे. प्रेरणा या दर्शन पाकर परमेश्वर की दासी बोलती व लिखती थी और उपदेश तथा सूचनाएं लोगों को पहुँचाती थी. इस काम में परमेश्वर का आत्मा मिसिज व्हाइट की सहायता करता था परन्तु इस में कोई यान्त्रिक नियन्त्रण नहीं था. सन्देश देने में शब्दों का प्रयोग उनकी इच्छा पर छोड़ा गया था. उनकी सेवा कार्य के आरंभिक काल में उन्होंने हमारी कलीसिया के समाचार पत्र में यूं लिखाः ककेप 14.7

“यद्यपि अपने विचारों का उल्लेख करने के लिए मैं आत्मा की सहायता पर आश्रित रहती हूँ तोभी उन दृश्यों के वर्णन करने में जो शब्दावली में प्रयोग करती हूँ वह मेरी निजी है सिवाय उन शब्दों के जिन्हें स्वर्गदूत ने जैसे के तैसे लिखने को कहा जिन्हें मैं उध्द्त के चिन्ह लगाकर लिख देती हूँ.” ककेप 15.1