कलीसिया के लिए परामर्श

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नबियों द्वारा मंडलियों की व्यवस्था

यरुशलेम की मंडली का संस्थान अन्य जगहों की मंडलियों के संस्थान के लिये एक नमूना होने को था जहाँ सत्य के संदेश देने हारे सुसमाचार के लिये शिष्य बनाते.जिनको मंडली की देखरेख का दायित्व सौंपा गया उनको परमेश्वर की मीरास के ऊपर प्रभुता न जतलानी थी परन्तु बुद्धिमान चरवाहों की भांति परमेश्वर के झुंड के लिए दृष्टान्त बन कर रखवाली करनी थी और सेवकों को सुख्यात बुद्धि और पवित्र आत्मा से परिपूर्ण होना था. इन लोगों को सत्य के पक्ष में संयुक्त होकर अपना-अपना स्थान लेना था, और उस पर दृढ़ता तथा निर्णय के साथ कायम रहना था. इस प्रकार उनका समस्त झंड़ पर संयुक्त करने वाला प्रभाव पड़ता.” ककेप 106.3

नये चेलों की आत्यात्मिक वृद्धि में महत्वपूर्ण प्रतिनिधि की हैसियत से प्रेरितगण उनको सुसमाचार सम्बंधी व्यवस्था के सुरक्षाओं से घेरे रखने में सावधान थे.प्रत्येक मंडली में (अध्यक्ष) अफसर चुने जाते थे और विश्वासियों के आध्यात्मिक कल्याणार्थ सारे मामलों में यथोचित व्यवस्था एवं नीति स्थापन की जाती थी. ककेप 106.4

यह बात मसीह के समस्त विश्वासियों को एक समुदाय में शामिल करने के सुसमाचार की योजना के अनुकूल थी और इसी योजना का पालन करने में पौलुस अपने सारे सेवा कार्य में बड़ा सावधान रहा.उसके परिश्रम व मेहनत द्वारा किसी भी स्थान में जिनका मसीह को सृष्टिकर्ता स्वीकार करने की ककेप 106.5

ओर मार्गदर्शन किया गया वे यथोचित समय में मंडली के रुप में व्यवस्थित किये गये.विश्वासियों की संख्या केवल छोटी होने पर भी मंडली का संस्थान किया जाता था.इस प्रकार मसीहियों को एक दूसरे की सहायता करना सिखलाया जाता था और यह प्रतिज्ञा याद दिलाई जाती थी ‘’जहाँ मेरे नाम पर दो या तीन इकट्टा होंगे वहाँ मैं उनके बीच उपस्थित हूँगा.’‘ ककेप 106.6