कलीसिया के लिए परामर्श
मेल तथा ऐक्य हमारी सब से पक्की दृढ़ गवाही
हमें संसार के विरोध से अधिक भय नहीं पैदा होता, नाम के मसीहियों के हृदय में छिपी हुई बुराई ही भंयकर आपदा का कारण है जो परमेश्वर के कार्य की उन्नति में वाधक होती है.हमारी धार्मिकता को निर्बल करने का विश्वस्त उपाय और कोई नहीं है सिवाय एक दूसरे से ईष्र्या करने, संदेह भाव से देखने, दोषारोपण करने तथा संदिग्धता को भावना की ह्दय में स्थान देने के यह ज्ञान वह नहीं, जो ऊपर से उतरता है वरन सांसारिक और नागरिक, और शैतानी है.इस लिए कि जहाँ डाह और विरोध होता है,वहाँ बखेड़ा और हर प्रकार का दुष्कर्म भी होता है. पर जो ज्ञान ऊपर से आता है वह पहिले तो पवित्र होता है, फिर मिलनसार,कोमल और मृदभाव और दया, और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कष्ट रहित होता है.और मिलाप करने वालों के लिए धार्मिकता का फल-मिलाप के साथ बोया जाता है.(याकूब 3:15-18) ककेप 84.4
विभिन्न स्वभाव के लोगों में मेल तथा ऐक्य का होना एक जबरदस्त गवाही है कि परमेश्वर ने अपने बेटे को जगत में पापियों के उद्धार के लिये भेजा है. हमारा बड़ा ही इस गवाही को देना सौभाग्य है. परन्तु ऐसा करने के हेतु हमें अपने को मसीह के आज्ञाधीन रखना चाहिए.हमारे चरित्र उसके चालचलन के सांचे में ढलने चाहिये और हमारी इच्छा उसकी इच्छा के अधीन होनी चाहिये.तब हम आपस में बिना मुठभेड़ हुये सुगमता से काम करेंगे ककेप 85.1
छोटे-छोटे मतभेदों पर ध्यान लगाये रखने से ऐसे-ऐसे कार्य होते हैं जो मसीही सत्संग को नष्ट कर देते हैं.हमें शत्रु को अपने ऊपर सिक्का जमाने नहीं देना चाहिये.आइए हम परमेश्वर की और एक दूसरे की निकटता में आयें.तब हम धार्मिकता के वृक्षों की भांति होंगे जिन्हें प्रभु ने लगाया हैऔर जो जीवन की नदी से सींचे जाते है.और हम कितने फलदायो होंगे.क्या मसीह ने न कहा था, “मेरे पिता की महिमा इसी से होती है कि तुम बहुत सा फल लाओ.’’(यूहन्ना 15:8) ककेप 85.2
जब मसीह की प्रार्थना पर पूर्ण विश्वास हो जाय,जब उसके आदेश परमेश्वर के लोगों के दैनिक जीवन में परिर्वतन होंगे तो हमारी पंक्तियों में मेल दृष्टिगोचर होगी. भाई से भाई मसीह के प्रेम के सुनहले बंधन में बंध जायगा.परमेश्वर का आत्मा ही इस ऐक्य को उत्पन्न कर सकता है. जिसने अपने को पवित्र किया है अपने शिष्यों को भी पवित्र कर सकता हैउसके साथ मिलकर वे एक दूसरे के साथ भी पवित्रतम विश्वास में मिल जायेंगे. जब हम इस मेल व ऐक्य के लिये उसी प्रकार कोशिश करते हैं जिस प्रकार मसीह चाहता है तो हम उसे अवश्य प्राप्त करेंगे. ककेप 85.3
हमारी संस्था की न बड़ी संख्या,न बड़ी इमारते,न बाहरी आडम्बर परमेश्वर को भाता है किन्तु निज लोगों के आपस के मेलजोल के काम ऐसे लोगों के जो परमेश्वर के चुने हुये और निजी लोग हैं जो आपस में मेल रखते हैं जिसका जीवन मसीह में छिपा हुआ है. हर एक मनुष्य अपने-अपने स्थान पर अपने-अपने मार्ग पर खड़ा हो के विचार, वचन व कर्म में उचित प्रभाव डाले. जब परमेश्वर के सारे कर्मचारी ऐसा करेंगे तब ही उसका काग्र पूर्णता व सिद्धता को पहुंचेगा. ककेप 85.4
परमेश्वर खरे विश्वास और स्वास्थ्य मन के लोगों को बुलाता है ऐसे लोग सत्य और असत्य में भेद रखते हैं. प्रत्येक को सावधान रहना चाहिये और यूहन्ना के सतरहवें अध्याय में दिये गये पाठों का अध्ययन करते तथा व्यवहार में लाते रहना चाहिये और इस समय के सत्य द्वारा अपने विश्वास की रक्षा करनी चाहिये.हमें उस आत्मसंयम की आवश्यकता है जो हमारी आदतों को मसीह की प्रार्थना के अनुकूल लाने में हमारी सहायता करेगा. ककेप 85.5
मसीह का हृदय उसके शिष्यों द्वारा परमेश्वर के मनोरथ को पूर्णतया पूरा करने पर लगा हुआ हैं.यद्यपि वे जगत में तिजर-बितर हैं फिर भी उनको मसीह में एक होना है. परन्तु परमेश्वर उनको मसीह में एक नहीं कर सकता जब तक वे अपनी राहें छोड़कर उसकी राह न पकड़े. ककेप 85.6