कलीसिया के लिए परामर्श
मसीह के साथ और एक दूसरे के साथ मेल मिलाप में ही हमारी सुरक्षा
संसार मसीहियों के बीच के विरोध को बड़े संतोष के साथ देख रहा है.नास्तिक लोगों से इस से अति प्रसन्नता होती है. परमेश्वर अपने लोगों में परिवर्तन की मांग करता है.मसीह के साथ और एक दूसरे के साथ मेल हो इन अंतिम दिनों में हमारी एक मात्र रक्षा है. शैतान को मौका नहीं देना चाहिये कि वह हमारी कलीसिया के सदस्यों की ओर इंगित करे और कहें, “देखों यह लोग कैसे हैं मसीह के झंडे के नीचे खड़े हैं और एक दूसरे से द्वेष रखते हैं. हमें उनसे डरने की आवश्यकता नहीं क्योंकि वे मेरी सेना से लड़ने की अपेक्षा आपस के झगड़े-टंटे में अपने बल को नष्ट कर देते हैं.’‘ ककेप 83.2
पवित्र आत्मा के उतरने के बाद शिष्य लोग एक जी उठे त्राणकर्ता का प्रचार करते गये और उनकी मात्र इच्छा यह थी मानव-उद्धार.वे पवित्र जनों को सुखद सत्संग का आनंद लेते थे. वे कोमल,विचारशील, आत्म त्याग होते हुये सत्य के लिये किसी मूल्य पर भौ बलिदान करने को तैयार थे. उनके एक दूसरे के साथ रोजाना सम्पर्क में वे मसीह के प्रेम को प्रगट करते थे. निस्वार्थ शब्दों तथा कर्मों से वे इस प्रेम की अग्नि को दूसरों में प्रज्वलित करते थे. ककेप 83.3
विश्वासियों को उसी प्रेम से प्रेरित होना चाहिये जिससे पवित्र आत्मा के उतरने के बाद शिष्यों के मन भर गये थे.उनको नयी आज्ञा के प्रतिपालन में आगे बढ़ना था,“जैसा मैं ने तुम्हें प्यार रखा है वैसा हो तुम भी एक दुसरे से प्रेम रखो.’’(यूहन्ना 13:34)उनको मसीह के संग ऐसा निकट का सम्बन्ध रखना था जिससे वे सारी मांगों को पूर्ण करने योग्य हो जाते.त्राणकर्ता की शक्ति जो उनको अपनी धार्मिकता से धर्मी बना सकती थी उसका मान बढ़ाना चाहिये था. ककेप 83.4
परन्तु प्रारम्भिक मसीही एक दूसरे में दोष ढूंढने लगे. दूसरों की गलतियों पर ध्यान लगाये हुये, निर्दय आलोचनाओं को मौका देते हुये उनकी दृष्टि से मसीह और वह महान प्रेम जो उसने पापियों के सन्ती प्रगट किया ओझल हो गये. वे बाहरी रीति-रस्सों को पाबंदी में कट्टर और धार्मिक सिद्धान्तों के विषय में अति सावधान और कटू आलोचन बन गये. दूसरों को दोषी ठहराने के आवेग गलतियों को भूल गये. मसीह के सिखाए हुये भ्रातृ प्रेम के पाठ को वे भूल गये, और सब से शोक की बात यह कि वे अपनी हानि की ओर से अज्ञान हो गये. उन्होंने यह नहीं समझा कि खुशी और सुख उनके जीवन से अर्तर्धान हो रहे हैं और जल्दी उन्हें अंधकार में कदम रखना होगा क्योंकि उन्होंने अपने मन से परमेश्वर के प्रेम को निकाल दिया है. ककेप 84.1
प्रेरित यूहन्ना ने महसूस किया कि कलीसिया के बीच से भ्रातृ प्रेम क्षीण होता जा रहा है इसलिए वह विशेषकर इसी बात पर डटा रहा. अपनी मृत्यु के दिन तक वह विश्वासियों पर एक दूसरे के लिये प्रेम निरन्तर व्यवहार पर जोर देता रहा.उसकी कलीसिया के नाम की पत्रियां इसी विचार से भरी पड़ी है.वह लिखता है, ‘हे प्रियो,हम आपस में प्रेम रखें;क्योंकि प्रेम परमेश्वर से ...परमेश्वर ने अपने एकलौते पुत्र को जगत में भेजा कि हम उसके द्वारा जीवन पाएं...हैं प्रियों, जब परमेश्वर ने हमसे ऐसा प्रेम किया, तो हमको आपस में प्रेम रखना चाहिए.’’(1यूहन्ना 4:7-11) ककेप 84.2
परमेश्वर की मंडली में आज भ्रातृ स्नेह की भारी कमी है.उन में से बहुत लोग जो त्राणकर्ता को प्यार करने का इकरार करते हैं उनको प्यार करने से मुंह मोड़ते हैं जो उनके साथ मसीही सत्संग में शामिल हैं. हमारा धर्म एक ही है,एक ही परिवार के सदस्य है, सबके सब एक ही स्वर्गीय पिता के संतान हैं और सब की अमरत्व की एक ही धन्य आशा है. वह बंधन जो हमको एक साथ बांध डालता है कैसा निकट और कोमल होना चाहिये.संसार के लोग हमको ताक रहे हैं कि देखें कि हमारा विश्वास हमारे हृदय पर पवित्र प्रभाव डाल रहा है कि नहीं. वे हमारे जीवन के प्रत्येक दोष और हमारे काम में अनौचित्य को भांपने में तेज हैं. आइये हम उन्हें अपने विश्वास पर दोष लगाने का अवसर न दें. ककेप 84.3