कलीसिया के लिए परामर्श

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मसीह के सच्चे शिष्य उसकी साक्षी देंगे

यदि आप में से प्रत्येक एक जीवित मिशनरी होता तो इस समय के सन्देश को सेब देशों के लोगों, भाषाओं तथा राष्ट्रों में शीघ्रता से प्रचार हो जाता, ककेप 56.2

जो परमेश्वर के नगर में प्रवेश चाह ते हैं उनको सांसारिक जीवन के कार-व्यवहार में मसीह को प्रकट करना चाहिए. इसी के कारण वे मसीह के दूत और उसके गवाह कहलाते हैं. उनको बुरी प्राथाओं के विरुद्ध स्पष्ट निश्चित गवाही देनी है और दुष्ट कार्य करने वालों को परमेश्वर के मेम्ने की ओर संकेत करना है जो जगत के पापों को उठा लेता है, जो उसको ग्रहण करते हैं उनको वह परमेश्वर की संतान बनने का अधिकार देता है. नया जन्म ही केवल एक मार्ग है जो हम को परमेश्वर के नगर को पहुंचाता है. वह मार्ग सकरा है और वह फाटक जिससे हम प्रवेश करते हैं वह तंग है परन्तु उसी पर हमें पुरुष, स्त्री व बालकों का पथप्रदर्शन करना हैं और उनको शिक्षा देनी है कि मोक्ष प्राप्ति के लिए उनका नया ह्दय और नई आत्मा होनी चाहिए. पुराने पैतृक चाल-चलन पर विजय प्राप्त करनी चाहिए. आत्मा की प्राकृतिक अभिलाषाएं बदलनी चाहिए. धोखे बाजी, झुठ बोलना या गढ़ना तथा निन्दा करना त्याग देना चाहिए. नया जीवन जिससे स्त्री, पुरुष मसीह सरीखे बनते हैं व्यतीत करना चाहिए. ककेप 56.3

मेरे भाईयो और बहिनो ! क्या आप उस बंधन को तोड़ना चाहते हैं जो आप को जकड़े हुए है? मृत्यु जैसी सुस्ती में क्या आप जागना चाहते हैं? चाहे आप पसन्द करें या न करें काम करने जाइए. व्यक्तिगत रुप में आत्माओं को यौशु के पास तथा सच्चाई के ज्ञान की ओर लाइए. ऐसे परिश्रम करने में आप को उत्तेजना तथा बल प्राप्त होगा; वह उसकायेगा और शक्ति भी देगा. अभ्यास से आप की आत्मिक शक्तियां अधिक बलवन्त होंगी ऐसा कि आप सफलता से अपनी मुक्ति की युक्ति कर सकते है. बहुतों पर जो मसीह का इकरार करते हैं में मृत्यु की मूच्र्छा छाई हुई है, उनको जगाने के लिए जो कोशिश हो सकती है उसे करो. चितावनौ दो, विनय करो तथा तर्क-वितर्क करो.प्रार्थना करो कि परमेश्वर का पिघलाने वाला प्यार उनकी शीतल प्रकृतियों को गरम और मुलायम करे. यदि वे सुनने से इन्कार करें तो भी आप का परिश्रम अकारथ न जाएगा. दूसरों को आशीर्वाद देने के प्रयत्न में स्वयं आप की आत्माएं आनन्द प्राप्त करेंगी. ककेप 56.4

किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि हम तो शिक्षित नहीं है इस लिए परमेश्वर के काम में भाग नहीं ले सकते. परमेश्वर के प्रबन्ध में आप के लिए एक काम है. उसने प्रत्येक को एक काम दिया है.आप स्वयं अपने लिए पवित्रशास्त्र में तलाश कर सकते हैं.’‘ तेरी बातों के खुलने से प्रकाश होता है, उससे भोले लोग समझ प्राप्त करते हैं.’‘ (भजन संहिता 119:130) आप काम के लिए प्रार्थना कर सकते हैं. जो प्रार्थना सच्चे हृदय से विश्वास के साथ मांगी जाएगी वह स्वर्ग में ग्रहण की जाएगी. फिर आपको अपनी योग्यतानुसार कार्य करना है. ककेप 56.5

स्वर्गीय प्राणी मानव-साधन के संग सहयोग देने की बाट देख रहे हैं कि वे संसार को दिखलाएं कि मनुष्य क्या बन सकता है और उनके प्रभाव द्वारा नाश होने वाली आत्माओं को मोक्ष दिलाने में क्या क्या कर सकते हैं. ककेप 57.1

मसीह हम से तलब करता है कि उन हजारों के लिए जो अपने आप में नाश हुए जा रहे हैं और रेगिस्तानी किनारे पर जहाज के टूटे हुए भागों की तरह सब देशों में तितर बितर हैं धीरज तथा दृढता के साथ परिश्रम करें. जो मसीह की महिमा में भागी होना चाहते हैं उनको उसकी सेवा कार्य में भी भागी होना चाहिए, अर्थात् निर्बल भाग्यहीनों तथा निराश हुए लोगों की सहायता करने में. ककेप 57.2

अपनी कलीसिया के लिए प्रत्येक विश्वासी को सम्पूर्ण ह्दय से प्यार दिखलाना चाहिए. उसकी समृद्धशाली उसका प्रथम हित होना चाहिए और जब तक वह पवित्र कर्तव्याधीन अपने सम्बन्ध को मण्डली के लाभार्थ न बनावे तो कलीसिया स्वयं उसके बिना अच्छा कार्य कर सकता है. यह बात सभी के अधिकार के अन्दर है कि परमेश्वर के कार्य के लिए कुछ करें. कितने हो ऐसे हैं जो बड़े-बड़े रक़में फजूल भोग विलास में उड़ा डालते है;वे अपनी क्षुद्धा की तृप्ति करते हैं परन्तु कलीसिया के सम्भालने के हेतु अपना रुपया पैसा लगाना भारी कर समझते है. वे उससे सारे विशेषाधिकारों का लाभ तो उठाना चाहते हैं परन्तु चाहते हैं कि दूसरे लोग उसके बिल अदा करें. ककेप 57.3

मसीह की कलीसिया की तुलना सेना से की जा सकती है. प्रत्येक सिपाही की जिन्दगी,परिश्रम, कठिनाइयों और खतरों की होती है. चारों ओर सतर्क शत्रु की सेना है जिनका, अन्धकार की शक्तियों का राजकुमार नेतृत्व कर रहा है जो कभी सोता नहीं और अपनी चौकी छौड़ता नहीं है. जब कभी मसीही पुरुष सावधान नहीं है उसी समय यह शक्तिशाली शत्रु एकाएक जोरदार आक्रमण करता है. जब तक कलीसिया के सदस्य फुर्तीले तथा सतर्क न हों वे उसके हथकण्ड़ों के चक्कर में पड़ जाएंगे. ककेप 57.4

क्या होगा यदि सेना के आधे सिपाही जब आज्ञा है कि प्रत्येक अपने-अपने कर्तव्य का पालन करें, लापरवाही करें अथवा सो जाएं? परिणाम हार, दासत्व तथा मृत्यु होगी.यदि कोई शत्रु के साथ भाग जाए तो क्या वे पारितोषिक के योग्य समझे जाएंगे? नहीं,उनको तुरंन्त मृत्यु का दण्ड सुना दिया जाएगा.और यदि मसीह की कलीसिया बेपरवाह अथवा विश्वासयोग्य नहीं हो तो इसमें भी महत्वपूर्ण परिणाम निहित है. मसीही सैनिकों की एक सोती हुई सेना-इससे अधिक भयकर और क्या हो सकता है. संसार के विरुद्ध वे क्या धावा मार सकते हैं जो अंधियारे के राजकुमार के अधिकार में हैं. वे जो युद्ध के दिन लापरवाही से पीछे खड़े रहते हैं मानो उनको कोई दिलचस्पी नहीं और स्पद्धी के सम्बन्ध में उन्होंने कोई दायित्व महसूस नहीं किया.बेहतर है कि वे अपना रवैया बदल दें या तुरन्तु इस पद को छोड़ दें. ककेप 57.5