कलीसिया के लिए परामर्श

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तैयारी का संस्कार

मसीह ने इस विधि को प्रभु भोज के संस्कार के संबंध में तैयारी के लिए नियुक्त है. जब तक पद के लिए घमंड,झगडे तथा मतभेद बने रहेंगे तब तक हमारा हृदय मसीह की संगति में प्रवेश नहीं पा सकता.हम उसकी देह और लोहु के प्रभु भोज में शरीक होने के लिए तैयार नहीं हैं. इसी लिए यीशु ने अपनी दीनता के यादगार के पहिले मानने की नियुक्त किया. ककेप 168.3

जब वे इस संस्कार के लिए आते हैं तो उन्हें जीवन तथा महिमा के प्रभु के वचनों को याद करना चाहिए. क्या तुम समझे कि मैं ने तुम्हारे साथ क्या किया? तुम मुझे गुरु और प्रभु कहते हो,और भला कहते हो,क्योंकि मैं वहीं हूँ.यदि मैं ने प्रभु और गुरु होकर तुम्हारे पाँव धोए तो तुम्हें भी एक दूसरे के पाँव धोना चाहिए.क्योंकि मैंने तुम्हें नमूना दिया है, कि जैसा मैं ने तुम्हारे साथ किया है तुम भी वैसा ही किया करो.मैं तुम से सच कहता हूँ दास अपने स्वामी से बड़ा नहीं और न भेजा हुआ अपने भेजने वाले से.तुम तो ये बातें जानते हो,और यदि उन पर चलो तो,धन्य हो.(यूहन्ना 13:12-17)मनुष्य में अपने को अपने भाई से अधिक बड़ा व्यक्त करने की अपनी स्वार्थपरता के लिए काम करने की और उच्चतम स्थान प्राप्त करने की प्रवृति होती है जो प्रायः आत्मा को तीखे एवं दोषपूर्व वातावरण में डाल देती है.प्रभु भोज से पहिले आयोजित होने वाली विधि द्वारा हर प्रकार के मिथ्याविचार दूर किए जाने चाहिए. मनुष्य को अपनी स्वार्थपरता से निकलना चाहिए और स्वाभिमान की भावना से अलग होकर हृदय की नम्रता की ओर झुक जाना चाहिए जिससे वह अपने भाई की सेवा कर सके. ककेप 168.4

इस अवसर पर स्वर्गीय पवित्र दूत उपस्थित होता है जिससे इस अवसर पर हृदय की छानबीन करने,पाप की ओर कायल होने और पापों की क्षमा का धन्य आश्वासन दिलाने का होता है.मसीह अपने अनुग्रह की भरपूरी में स्वार्थपूर्ण विचार धारा को बदलने के लिए वहाँ उपस्थित है.पवित्र आत्मा उनकी भावनाओं को जो प्रभु के आदर्श का अनुकरण करना चाहते हैं सजीव करती हैं.जब त्राणकर्ता की दीनता स्मरण की जाती है तो एक विचार से दूसरे विचार पर पहुँचते हैं और स्मृतियों की एक जंजीर तैयार हो जाती है,परमेश्वर के महान उपकार की और सांसारिक मित्रों को प्रेम व कृपा दृष्टि की स्मृतियाँ. ककेप 169.1

जब कभी यह संस्कार उचित रीति से मनाया जाता है तो परमेश्वर की संतान एक दूसरे को आशीर्वाद देने तथा मदद देने के हितार्थ पवित्र बंधन में जोड़े जाते हैं.वे वाचा बाँधते हैं कि उनकी जिन्दगी नि:स्वार्थ सेवा में व्यतीत की जाएगी.और यह एक दूसरे के लिए ही नहीं.उनका परिश्रम का क्षेत्र इतना ही विस्तीर्ण था जितना उनके स्वामी का था.संसार ऐसे लोगों से भरा है जो हमारी सेवा के जरुरतमंद है.हर कहीं निर्धन,लाचार और अज्ञान लोग पाए जाते हैं.जो लोग मसीह के साथ उपरौठी कोठरी में बातचीत करते थे वे उसी तरह सेवाकार्य में आगे बढ़ेंगे जिस तरह उसने किया था. ककेप 169.2

यीशु जिसकी सब की सेवा की सबका सेवक बनकर आया.चूंकि उसने सब की सेवा की इस लिए उसको सर्वसाधारण द्वारा सेवा तथा आदर किया जाएगा.जो लोग उसके ईश्वरीय गुणों में भाग लेंगे और उद्धार पाई आत्माओं की खुशी में उसके साथ सम्मिलित होंगे उन्हें उसकी परस्वार्थ सेवा के नमूने को अनुकरण करना चाहिए. ककेप 169.3