महान संघर्ष

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धर्म सुधार

सता-सता का सन्तों को मार डालने के बावजूद भी जीवित साक्षी-दाता चारों ओर से गवाही देने लगे। सन्तों को उत्साहित देकर गवाही दिलवाने का काम ईश्वर के दूतों को सौंपा गया था। जो ईमानदार व्यक्ति थे उनको दूतों ने अंधकार गुफाओं और खाईयों से खोज निकाला। ये लोग गलत रास्ता में चल रहे थे पर जैसा उसने पौलुस को खोज निकाला वैसा इन्हें भी निकाला। जैसा पौलुस को सच्चाई की गवाही देने का पात्र ठहराया वैसा ही इन्हें ईश्वर के लोगों को जगाने का काम करवाया। ईश्वर के दूतों ने मार्टिन लूथर, मेलान्थोन और दूसरे लोगों को विभिन्न जगहों से सच्चाई के प्यासे लोगों के बीच ईश्वर का वचन की गवाही देने भेजे। शत्रु भी बाढ़ की तरह उमड़ आये। उनके विरोध में मंडली का स्तर को ऊँचा उठाना था। लूथर ने इस तूफान को गले लगाया और गिरा हुआ कलीसिया को कीचड़ से उठा कर उसे उनलोगों की मदद से साफ-सुथरा बनाया जो सच्चे रूप से मसीही हुए थे। ईश्वर को नाखुश करने का भय, उसे हमेशा बना रहता था। अपने काम के द्वारा ईश्वर को खुश करना चाहता था। पर वह तब तक सन्तुष्ट नहीं हुआ तब तक स्वर्ग से ज्योति आकर उसका अंधकारमय मन को हटाकर ख्रीस्त का लोहू पर भरोसा करने को न कहा। अब उसे मालूम हुआ कि अपने काम के द्वारा और न पोप के पास जाकर पाप स्वीकार करने से मुक्ति मिलेगी, पर सिर्फ यीशु से लूथर का यह ज्ञान कितना बहुमूल्य ठहरा। उसने इस बहुमूल्य ज्योति को अपना लिया। इसने उसका अंधकार मन और अंधविश्वास को हटा दिया। उसके लिये पृथ्वी का धन से भी उत्तम ठहरा। ईश्वर का वचन नया हुआ। सब कुछ बदल गया। जिस किताब को पाने से उसे डर था। यह सोचकर कि उसमें जीवन की सुन्दरता नहीं हैं। पर यह तो उसके लिये जीवनदायक बन गई। यह उसके लिये आनन्द, सन्तुष्टि और अच्छा शिक्षक के रूप में साबित हुई। इस को अध्ययन करने के लिये अब कोई रोक नहीं सकता था। इसे पढ़ने से मृत्यु की सजा पाने का भय था। परन्तु जैसे ही वह इसे पढ़ना शुरू किया तो सब डर भय लुप्त हो गया। अब वह ईश्वर का चरित्र की प्रशंसा करने लगा और उसे प्रेम भी करने लगा। वह ईश्वर का वचन को ढूँढ़-ढाँढ़ करने लगा। इसमें जो बहुमूल्य खजाना है उसे पाकर सन्तुष्ट हो गया। अब इस ज्ञान को मंडली को भी बाँटना चाहा। जिन पापों की क्षमा प्राप्त कर वह उद्धार पाना चाहता था उनकी क्षमा होते हुए न पाकर वह बहुत घबड़ा गया। वह जिस अंधकार से घिरा था उसमें बहुत से लोगों को फँसे हुए देखकर घबड़ाया। इन्हें ईश्वर का मेम्ना के विषय बताने के लिये उतावला हो उठा क्योंकि वही सिर्फ पाप क्षमा कर सकता है। उसने पोप की मंडली की गलतियों और पापों के विरूद्ध आवाज उठानी शुरू कर दी। जिस अंधविश्वास से हजारों लोग बाँधे गए थे उसे तोड़ फेंकने के लिये वह उत्सुक हो उठा और काम के द्वारा उद्धार पाना असम्भव है उसका पर्दाफास किया। ईश्वर का अनुग्रह का सच्चा धन को लोगों के बीच बाँटने के लिये दृढ़ प्रतिज्ञा करने लगा। उद्धार प्राप्त करने का जरिया सिर्फ यीशु है इसको बताने के लिये भी बहुत ललायित था। पवित्रात्मा की मदद से उसने बड़े जोश के साथ मंडली के नेताओं के द्वारा जो पाप कलीसिया में था उसके विरूद्ध आवाज उठाने लगा। पादरियों के द्वारा जो अंधकार का तूफान उठाया गया था उसका उसने दृढ़ता से सामना किया। उसका दिल जरा भी विचलित नहीं हुआ। क्योंकि वह तो ईश्वर के हाथ के नीचे सुरक्षित था। विजय के लिये वह उसी पर भरोसा रखे हुए था। जैसे-जैसे वह इस लड़ाई में आगे बढ़ता गया वैसे-वैसे पादरियों का गुस्सा भी बढ़ता गया। वे सुधार के पक्ष में नहीं थे। वे तो आराम से जीवन बिताना चाहते थे। बुराई के सुख में डूबे रहना चाहते थे। वे मंडली को अंधकार ही में छोड़ना चाहते थे। 1SG 92.1

मैंने देखा कि पाप को दिखा कर डाँटने और सच्चाई का उसने दुष्टों के लिए लूथर को सहासी और जोशिला देखा। उसने दुष्टों और शैतान से कुछ नहीं डरकर खूब डाँट फटकार सुनाया। वह जानता था कि उसके साथ ईश्वर है जो उनसे बहुत शक्तिशाली है। लूथर में जोश की अग्नि थी, साहस का पहाड़ था। इसलिये वह निडर होकर आगे बढ़ता ही गया। लूथर के साथ मेलान्थोन आया पर वह लूथर का चरित्र से उल्टा था। वह लूथर की मदद कर धर्मसुधार का काम में कुछ सहयोग नहीं दे रहा था। मेलान्थोन तो एक डरपोक, डर से भरा हुआ, पर सावधान से चलने वाला और धीरजवन्त भी था। वह भी ईश्वर का प्रिय शिष्य तो था। वह भी पवित्रशास्त्र का विद्वान भी था। उसकी न्यायशक्ति और तर्क बुद्धि भी उत्तम थी। ईश्वर के काम के लिये वह भी लूथर के समान ही प्यारा था। इन दो दिलों को ईश्वर ही ने जोड़ दिया था। ये दोनो मित्र थे। वे एक दूसरे से अलग होना नहीं चाहते थे। जब मेलान्थोन सुस्त और डरपोक होने का खतरा में था तो लूथर उसका एक बड़ा सहायक बना था। मेलान्थोन भी लूथर का उस वक्त बड़ा सहायक होता था। जब लूथर बहुत तेजी से सुधार का काम में आगे बढ़ता था तो वह उसे धीरे चलने की सलाह देता था। मेलान्थोन की असावधानी की दूरदर्शीता ने कई बार मुसीबत आने से रोक दिया। यदि यह काम सिर्फ लूथर पर ही आता और मेलान्थोन पर छोड़ा जाता तो धर्मसुधार का काम आगे नहीं बढ़ता। धर्मसुधार के काम को आगे बढ़ाने के लिये इन दो व्यक्तियों को चुनने से मैंने ईश्वर की बुद्धि को देखा। 1SG 94.1

प्रेरितों के युग की बात या घटना यहाँ देखने को मिली। उस वक्त पतरस एक निडर और जोशीला धर्म प्रचारक के रूप में निकला और उसका साथी यूहन्ना साधारण पर धीरजवन्त और नम्र व्यक्ति था। कभी-कभी पतरस बेकाबू हो जाता था। उस वक्त प्रिय चेले गण पतरस की उतावला से भंयकर घटना होने से रोक देते थे। पर उसे सुधार न सके। पतरस का यीशु को इन्कार करने पर उसने पश्चात्ताप किया, मन फिराया, तब उसको यूहन्ना जैसा नम्र और धीरजवन्त बनने की जरूरत पड़ी। उसने अपना हठीला जोश या उदण्डता को घटा दिया। यदि सिर्फ यूहन्ना जैसा चरित्रवालों के हाथ में यीशु का काम छोड़ा जाता तो आगे नहीं बढ़ पाता। पतरस जैसा जोशिला व्यक्ति की जरूरत थी। उसका सहासी शक्ति ने हमेशा उनको मुसीबत में पड़ने से बचाया। शत्रुओं को भी उसने चुप करवाया। यूहन्ना ने अपने धैर्य, सहनशीलता और भक्ति के कारण बहुत लोगों को ख्रीस्त के पास लाया। 1SG 95.1

पोप की मंडली के पापों को दिखाने के लिये धर्मसुधार के काम को आगे बढ़ाने के लिये ईश्वर ने लोगों को चुन कर निकाला। शैतान न इन जीवित गवाहों को नाश करना चाहा पर ईश्वर ने उसकी रक्षा की। कुछ लोगों को नहीं बचाया। उन्होंने उसके नाम की महिमा के लिये घात होकर अपने खून से गवाही के काम का मोहर छाप डाल दिया। पर लूथर और मेलान्थोन जैसे धर्मवीर निकले जिन्होंने पोप, राजाओं और पादरियों के पापों के विरूद्ध आवाज बुलन्द की और ईश्वर की महिमा की। लूथर की आवाज के सामने वे थर-थर काँपते थे। उन चुने हुए लोगों के द्वारा सच्चाई की ज्योति चारों ओर फैली और बहुत लोगों ने बड़े आनन्द से इसे ग्रहण किया और इस पर चलने लगे। जब एक गवाही देने वाला कत्ल किया जाता था तो उसके स्थान पर दो-तीन या अधिक लोग उठ खड़े होते थे। 1SG 95.2

शैतान इस पर सन्तुष्ट नहीं था। उसको सिर्फ शरीर पर ही अधिकार था। उसने विश्वासियों की आशा और विश्वास को नहीं छुड़ा सका। मृत्यु के बाद, धर्मीजनों का पुनरूत्थान होगा और उन्हें अमरता मिलेगी, इसकी बड़ी आशा उनके मन में प्रज्जवलित थी। इस प्रकार वे शरीर के मरने से नहीं डरते थे। एक क्षण के लिये भी सोने का साहस नहीं करते थे। उन्होंने क्रिश्चियन का सारा हथियार पकड़ रखा था और धर्मयुद्ध के लिए तैयार थे। सिर्फ आत्मिक दुश्मनों से लड़ने के लिये नहीं पर मनुष्य के रूप में शैतान से लड़ने के लिये भी। वे लगातार लोगों को धमकी देकर चिल्ला रहे थे कि ईश्वर पर विश्वास करना छोड़ो या मरने के लिये तैयार हो जाओ। उन थोड़े क्रिश्चियन जो ईश्वर पर पूरा भरोसा रखते थे, वे ही अधिक उसके लिए मूल्यवान थे बनिस्पत कि आधा संसार नाम भर के लिये क्रिश्चियन हुए थे। क्योंकि ये ईश्वर के काम के लिए डरपोक थे। इसलिये ये निकम्मा थे। जब कलीसिया में सताहट हो रही थी तो ये सच्चे क्रिश्चियन एकता में रहकर एक दूसरे से प्रेम करते थे। वे ईश्वर में मजबूत थे। पापियों (भ्रष्टाचारियों) को इनके साथ शामिल होने नहीं दिया जाता था। उनमें चाहे ठगे गए हों या ठगनेवाले हों किसी को नहीं मिलाया जाता था। जो ख्रीस्त के लिये अपना सब कुछ छोड़ने को राजी होता था सिर्फ उसी को वे यीशु का चेला बनाते थे। वे यीशु के समान दीन-हीन और नम्र चरित्र का होना पसन्द करते थे। 1SG 96.1