कुलपिता और भविष्यवक्ता

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अध्याय 21—युसुफ और उसके भाई

यह अध्याय उत्पत्ति 41:54-56, 42—50 पर आधारित है

उपजाऊ वर्षो के प्रारम्भ से ही आने वाले अकाल के लिये तैयारियाँशुरू हो गई। युसुफ के निर्देशन में समूचे मिस्र में सभी मुख्य स्थानों पर विशाल भण्डारगृहों का निर्माण किया गया और प्रत्याशित उपज के अतिरिक्‍त भाग के सरंक्षण के लिये पर्याप्त व्यवस्था की गई। यही विधिसमृद्धि के सात वर्षों के दोरान कायम रही, जब तक कि भण्डार में बेहिसाब अनाज की मात्रा इकट्ठी न हो गई। PPHin 219.1

अब युसुफ की भविष्यद्वाणी के अनुसार, सात वर्षों के लिये अकाल पड़ने लगा, परन्तु सारे मिस्र देश में अन्न था। जब मिस्र का सारा देश भूखों मरने लगा, तब प्रजा फिरौन से चिलला-चिल्लाकर रोटी माँगने लगी और उसने सब मिस्रियों से कहा, “युसुफ के पास जाओं, और जो कुछ वह तुमसे कहे, वही करो । इसलिये जब अकाल सारी पृथ्वी पर फैल गया, तब युसुफ सब भण्डारों को खोल खोलकर मिस्रियों के हाथों अन्न बेचने लगा। PPHin 219.2

अकाल कनान देश तक भी फैल गया और देश के जिस भाग में याकूब रहता था वहाँ उसका प्रकोप अधिक था। मिस्र के राजा द्वारा अन्त के प्रयोजन के बारे में सुनकर याकूब के दस पुत्र अन्न मोल लेने के लिये वहाँ गए। उनके आगमन पर उन्हें राजा के प्रतिनिधि के पास भेजा गया और वे राज्य के शासक के सम्मुख प्रस्तुत होने को आए और उन्‍होंने, “भूमि पर मुँह के बल गिरकर उसको दण्डवत किया।” युसुफ ने अपने भाईयों को पहचान लिया, लेकिन उन्होंने उसको नहीं पहचाना। उसका इब्री नाम राजा द्वारा दिए गये नाम से बदल दिया गया था और प्रधान मंत्री और उनके द्वारा इशमाएलियों को बेचे गए किशोर में नहीं के बराबर समानता थी। PPHin 219.3

जब युसुफ ने अपने भाईयों को दण्डवत प्रणाम करते देखा, उसे अपने स्वप्न का स्मरण हुआ और बीते समय के दृश्य स्पष्ट रूप से उसके सामने आ खड़े हुए। दल का पैनी दृष्टि से निरीक्षण करते हुए उसे ज्ञात हुआ कि उनमें बिन्यामीन नहीं था। क्‍या वह भी उन दुष्ट मनुष्यों कीकपटी निर्दयता का शिकार हो गया था? उसने सच्चाई जानने का निश्चय किया । उसने कठोरतापूर्वक कहा, “तुम भेदिए हो, इस देश की दुर्दशा को देखने के लिये आए हो।” वह जानना चाहता था कि क्या उनमें अभी भी वही अहंकारी भावना थी जो उनमे उसके साथ होने के समय थी और वह उनसे उनके घर के बारे में जानकारी निकालना चाहता था, लेकन वह जानता था कि उनके कथन कितने छल से भरे हो सकते थे। उसने आरोप को दोहराया और उन्‍होंने उत्तर दिया, “हम तेरे दास बारह भाई हैं, और कनान देशवासी एक ही पुरूष के पुत्र हैं, और छोटा इस समय हमारे पिता के पास है और एक जाता रहा।’ PPHin 219.4

उनकी कहानी की सच्चाई पर सन्देह करने का और उन्हें अभी भी भेदिए समझने का ढोंग करते हुए, राज्यपाल ने घोषणा की कि वह उन्हें इस रीति से परखेगा कि जब तक उनमें से एक जाकर अपने छोटे भाई को नहीं लाएगा, तब तक वे मिस्र देश में रहेंगे। यदि वे इस बात से सहमत न होंगे तो उन्हें भेदिए ही माना जाएगा। लेकिन याकूब के पुत्र इस व्यवस्था को स्वीकार नहीं कर सकते थे क्योंकि जो समय इसका पालन में लगता उसमें उनके परिवार खाने के लिये परेशान होते, उनमें से कौन अपने भाईयों को कैदखाने में अकेले यात्रा करने का जोखिम उठाता? इन परिस्थितियों में वह अपने पिता से कैसे मिल सकता था? ऐसा प्रतीत हुआ कि सम्भवतः उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाएगा या दास बना दिया जाएगा और यदि बिन्यामीन कोलाया भी जाए तो उसका भी वही हाल होगा । उन्होंने अपने पिता को उसके अकेले बचे हुए पुत्र को भी खो देने के अतिरिक्ति दुख से बचाने के लिये निर्णय किया कि वे एकसाथ वही रहेगें और कष्ट उठाऐंगे ।इस कारण उन्हें कारावास में डाल दिया गया, जहां वे तीन दिनों तक रहे । PPHin 220.1

उन वर्षों के दौरान, जबसे युसुफ अपने भाईयों से अलग हुआ था, याकूब के इन पुत्रों के चरित्र में बदलावआया था। वे द्वेषपूर्ण, उधमी, कपटी, निर्दयी व प्रतिशोधी हुआ करते थेलेकिन अब जब वे विपत्तति द्वारा परखे गयेतो वे निःस्वार्थी, एक-दूसरे के प्रति सच्चे, पितृभक्त और स्वयं अधेड़ उम्र पुरूष अपने पिता के अधीन पाए गये । PPHin 220.2

मिस्री कारावास में तीन दिन अत्यन्त पीड़ाजनक थे जब भाईयों ने अपने पिछले पापों पर विचार किया। जब तक बिन्यामीन को लाया नहीं जाता उनके भेदिए होने की प्रतीति निर्विवाद लग रही थी और यह आशा बिल्कुल नहीं थी कि उनका पिता बिन्यीन की अनुपस्थिति को स्वीकार करेगा। तीसरे दिन युसुफ ने भाईयों को बुलवाया। वहउन्हें और रोक रखने का दुस्साहस न कर सका। उसका पिता और उसके साथ रह रहे परिवार खाने को तरस रहे होंगे। “एक काम करो, तब जीवित रहोगे”, उसने कहा, “क्योंकि मैं परमेश्वर का भय मानता हूँ। यदि तुम सीधे मनुष्य हो, तो तुम सब भाईयों में से एक जनइस बनन्‍्दीग्रह में बंधुआ रहे, और तुम अपने घरवालों की भूख मिटाने के लिये अन्न ले जाओ और अपने छोटे भाई को मेरे पास ले आओ, इस प्रकार तुम्हारी बातें सच्ची ठहरेंगी और तुम मार डाले न जाओगे ।” हालाँकि पिता द्वारा बिन्यामीन को उनके साथ ले जाने की अनुमति की कम ही आशा थी, लेकिन फिर भी उन्होंने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। युसुफ ने उनके साथ एक दुभाषिये के माध्यम से संपर्क किया था, और इस बात से अनजान कि राज्यपाल उन्हें समझ सकता था, उसकी उपस्थिति में वे एक-दूसरे के साथ खुलकर बातचीत करते थे। युसुफ के साथ किये गए व्यवहार के सन्दर्भ में उन्होंने स्वयं पर आरोप लगाया, “निःसन्देह हम अपने भाई के विषय में दोषी है, क्योंकि जब उसने हम से गिड़गिड़ाकर विनती की, तब भी हमने यह देखकर कि उसका जीवन कैसे संकट में पड़ा है, उसकी न सुनी, इसी कारण हम भी अब इस संकट में है।” रूबेन, जिसने दोतान में उसे छुड़ाने की योजना तैयार की थी, ने कहा, “क्या मैंनेतुमसे न कहा था कि लड़के के अपराधी मत बनो? परन्तु तुम ने न सुना। देखो, अब उसके लहू का पलटा लिया जाता है।” यह सुनकर युसुफ अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण न रख सका और वह बाहर गया और बहुत रोया। फिर उनके पास लौटकर उसने शिमौन को बन्दी बनाकर बन्दीगृह में डालने की आज्ञा दी। उनके भाई के प्रति निर्दयतापूर्ण व्यवहार में शिमौन बहकाने वाला और मुख्य कर्ता था, और इसी कारण युसुफ द्वारा उसे चुना गया। PPHin 220.3

अपने भाईयों को जाने की अनुमति देने से पहले युसुफ ने आज्ञा दी कि उनके बोरे अन्न से भर दिए जाएँ प्रत्येक के बारे में चुपके से उसके रूपये भी रख दिए जाएँ । पशुओं के लिये चारा भी दिया गया। जब एक ने अपने बोरे को खोला तो उसमें उसका चाँदी के सिक्‍कों से भरा थेला पाकर वहआश्चर्यचकित हुआ। जब उसने यह तथ्य दूसरों को बताया तो वे चिंतित हुए और उलझन में पड़ गए और एक दूसरे से कहने लगे, “परमेश्वर ने यह हमसे क्‍या किया”?-क्या वे परमेश्वर की ओर से भलाई का प्रतीक माने, क्या उसने उनके पापों के लिये उन्हें दण्डित करने और उन्हें और अधिक कष्टों में घकेलने के लिये ऐसा होने दिया? उन्होंने स्वीकार किया कि परमेश्वर ने उनके पापों को देख लिया था और अब वह उन्हें दण्डित कर रहा था। PPHin 221.1

याकूब उत्सुकता से अपने पुत्रों के लौटने की प्रतीक्षा कर रहा था और उनके आगमन पर पूरे तम्बूवासियों ने उन्हें घेर लिया और उन्होंने अपने पिता को वह सब बताया जो उनके साथ हुआ था। प्रत्येक हृदय भय और आंशका से भर गया। मिस्री राज्यपाल का आचरण किसी षड़यन्त्र का संकेत दे रहा था और जब उन्होंने अपने बोरे खोले और प्रत्येक के बोरे में स्वामी की धनराशि पाई गई तो उनके भय की पुष्टि हो गई। दुखी होकर वृद्ध पिता ने कहा, “मुझ को तुमने निर्वश कर दिया, देखो युसुफ नहीं रहा, और शिमौन भी नहीं आया और अब तुम बिन्यामीन को भी ले जाना चाहते हो, ये सब विपत्तियाँ मेरे ऊपर आ पड़ी है।’ रूबेन ने उत्तर दिया, “यदि मैं उसको तेरे पास न लाऊं तो मेरे दोनों पुत्रों को मार डालना, तू उसको मेरे हाथ में सौंप दे, मैं उसे तेरे पास फिर पहुँचा दूँगा।’ जल्दबाजी में कहे इन शब्दों ने याकूब के मन को शान्त नहीं किया। उसने उत्तर दिया, “मेरे पुत्र तुम्हारे साथ नहीं जाएगा, क्योंकि उसका भाई मर गया और वह अब अकेला रह गया है। इसलिये जिस मार्ग से तुम जाओगे, उसमें यदि उस पर कोई विपत्ति आ पड़े, तब तो तुम्हारे कारण मैं इस बुढ़ापे की अवस्था में शोक के साथ अधोलोक में उतर जाऊेँंगा।” PPHin 222.1

लेकिन अकाल समाप्त नहीं हुआ और समय के साथ मिस्र से लाया गया अन्न का भण्डार लगभग समाप्त हो गया। याकूब के पुत्र भली-भांति जानते थे कि बिन्यामीन के बिना मिस्र को लौटना व्यर्थ था। उन्हें अपने पिता के संकल्प को बदलने की कम ही आशा थी और चुपचाप उसके उत्तर की प्रतीक्षा करते रहे । अकाल की छाया गहराती गई, डेरे में सबसे व्याकुल मुखाकृतियों में बूढ़े याकूब ने उनकी आवश्यकता को पढ़ लिया और अनन्तः वह बोला, “फिर जाकर हमारे लिये थोड़ी सी भोजनवस्तु मोल ले आओं।” PPHin 222.2

तब यहूदा ने उससे कहा, “उस पुरूष ने हम को चेतावनी देकर कहा, “यदि तुम्हारा भाई तुम्हारे साथ न आए, तो तुम मेरे सम्मुख न आ पाओगे। इसलिये यदि तू हमारे भाई को हमारे साथ भेजे, तब तो हम जाकर तेरे लिये भोजनवस्तु मोल ले आएंगे, परन्तु यदि तू उसको न भेजे, तो हम न जाएँगे क्योंकि उस पुरूष ने हमसे कहा, ‘यदि तुम्हारा भाई साथ न हो, तो तुम मेरे सम्मुख न आने पाओगे ।”पिता के संकल्प को डगमगाते देख उसने कहा, “उस लड़के को मेरे साथ भेज दे कि हम चले जाएं, इससे हम और तू और हमारे बाल-बच्चे मरने न पाएँगे, वरन जीवित रहेंगे” और उसने अपने भाई का जामिन होना स्वीकार किया और बिन्यामीन को पिता के पास लोटा कर न लाने की सूरत में स्वयं को सर्वदा के लिये अपराधी मानना स्वीकार किया । PPHin 222.3

याकूब अब अपनी सहमति को और न रोक पाया और उसने अपने पुत्रों को यात्रा की तैयारियाँ करने को कहा। उसने उन्हें यह भी कहा कि अधिकारी के लिये ऐसी उत्तम वस्तुओं की भेंट ले जाए जो वह अकाल-पीड़ित देश दे सकता था जैसे कि “थोड़ा सा बलसान, और थोड़ा सा मधु और कुछ सुगन्ध द्रव्य, और गन्धरस, पिस्ते और बादाम” और दुगनी धन राशि भी ले जाएं। उसने यह भी कहा, “अपने भाई को भी साथ लेकर उस पुरूष के पास फिर जाओ।” जब उसके पुत्र अपनी अनिश्चित यात्रा के लिये निकलने वाले थे, वृद्ध पिता PPHin 223.1

खड़ा हुआ और स्वर्ग की ओर हाथ उठाकर उसने प्रार्थना की, “सर्वशक्तिमान परमेश्वर ईश्वर उस पुरूष को तुम पर दया कराए, जिससे कि वह तुम्हारे दूसरे भाई को और बिन्यामीन को भी आने दे और यदि मै शोकसंतप्त हुआ तो होने दे। PPHin 223.2

वे फिर मिस्र को गए और स्वयं को युसुफ के सम्मुख प्रस्तुत किया। जब उसकी दृष्टि बिन्यामीन पर पड़ी जो उसकी अपनी माँ से पैदा हुआ था, वह भावुक हो उठा। उसने, हालाँकि अपनी भावनाओं को छुपाए रखा, लेकिन आज्ञा दी कि उन्हें उसके घर ले जाया जाए और उसके उनके साथ भोजन करने की तैयारी की जाए। राज्यपाल के महल में पहुँचाए जाने पर सब भाई डर गए कि कहीं उनके बोरी में मिली धनराशि का हिसाब देने तो नहीं बुलाया गया। उन्होंने सोचा कि धनराशि को जान बूझकर वहाँ रखा गया था ताकि उसे उन्हें दास बनाने का मौका मिल सके। इस संकट के समय उन्होंने घर के अधिकारी से परामर्श लिया। यह बताते हुए कि किन परिस्थितियों में उन्होंने मिस्र का दौरा किया था, और अपने निर्दोष होने के प्रमाण के रूप में उन्होंने उसे सूचित किया कि वह बोरी में मिली धनराशि को वापसले आये थे और उन्होंने यह भी कहा, “हम नहीं जानते कि हमारा रूपया हमारे बोरों में किसने रख दिया।” अधिकारी में उत्तर दिया, “तुम्हारा कुशल हो, मत डरो! तुम्हारा परमेश्वर, जो तुम्हारे पिता का भी परमेश्वर है, उसी ने तुम को तुम्हारे बोरों में धन दिया होगा, तुम्हारा रूपया तो मुझे मिल गया था।” वे चिंतामुक्त हो गये, और जब शिमौन कारावास से छटकर उनसे आ मिला तो उन्हें लगा कि परमेश्वर वाकई उनपर मेहरबान है। PPHin 223.3

जब राज्यपाल उनसे दोबारा मिला तो उन्होंने अपनी भेंट उसे दी और, “भूमि पर गिरकर उसको दण्डवत किया।” फिर से उसे उसके स्वप्नों का स्मरण हुआ और अपने अतिथियों का अभिवादन करने के पश्चात उसने उनसे पूछा, “क्या तुम्हारा वह बूढ़ा पिता, जिसकी तुमने चर्चा की थी, कशल से है? क्‍या वह अब तक जीवित है?” फिर से दण्डवत करते हुए उन्होंने कहा, “हाँ, तेरा दास हमारा पिता कुशल से है और अब तक जीवित है।” फिर उसकी दृष्टि अपने सगे भाई बिन्यामीन पर पड़ी और उसने पूछा, “क्या तुम्हारा यह छोटा भाई, जिसकी चर्चा तुम ने मुझ से की थी यही है?” हे मेरे पुत्र, परमेश्वर तुझ पर अनुग्रह करें। “लेकिन स्नेहशीलता की भावनाओं में बहकर वह और कुछ न कह सका। “वह तुरन्त अपनी कोठरी में गया और वहाँ रो पड़ा।” PPHin 224.1

फिर स्वयं पर नियन्त्रण पाकर वह लौटा और सब भोजन करने बैठे। जाति के नियमों के अनुसार मिस्रियों का अन्य जाति के लोगों के साथ भोजन करना निषिद्ध था।याकूब के पुत्रों के लिये अलग खाना परोसा गया और राज्यपाल ने, अपने ऊंचे पद के अनुसार, अलग से भोजन किया और मिस्रियों को भी अलग से भोजन परोसा गया। जब सब भाई बैठ गए तो उन्होंने विस्मय से देखा कि वे अपनी अपनी आयु के अनुसार उचित कम के अनुसार बैठाए गए थे। युसुफ “अपने सामने से भोजन-वस्तुएँ उठाकरउनके पास भेजने लगा।“'लेकिन बिन्यामीन को अपने भाईयों से पांच गुणा भोजन वस्तु मिली। बिन्यामीन पर विशेष कृपा-दृष्टि दिखाकर युसुफ जानना चाहता था कि कही उसके छोटे भाई को भी ईर्ष्या और घृणा से तो नहीं देखा जाता था जैसे कि उसके साथ होता था। अभी भी यह सोच कि युसुफ उनकी भाषा नहीं समझता था, सभी भाई एक दूसरे से खुलकर बातचीत कर रहे थे, और इस प्रकार उनकी वास्तविक भावनाओं को जानने का उसके पास अच्छा अवसर था। लेकिन फिर भी वह उन्हें और परखना चाहता था, और उनके निकास से पहले उसने आज्ञा दी कि उसका चाँदी का निजी प्याला सबसे छोटे भाई के बोरे में छिपा दिया जाए। PPHin 224.2

प्रसन्‍नतापूर्वक वे वापसी के लिये निकले। शिमौन और बिन्यामीन उनके साथ थे, उनके जानवर अन्न से लदे हुए थे और सब को लगा कि जो संकट उन्हें घेरे हुए प्रतीत हो रहे थे अब टल गए थे। लेकिन वे अभी नगर की बाहरी सीमा पर ही पहुँचे थे कि राज्यपाल के अधिकारी ने उन्हें आ पकड़ा और सख्ती से पूछताछ की, “तुमने भलाई के बदले बुराई क्‍यों की है? क्‍या यह वह वस्तु नहीं जिसमें मेरा स्वामी पीता है, और जिससे वह शकन भी विचारा करता है? तुमने यह जो किया है बुरा किया।” माना जाता था कि वह प्याला उसके अन्दर डाले गए किसी भी विषैली वस्तु का पता लगाने में सक्षम था। उन दिनों विषपान द्वारा हत्या के प्रति सुरक्षा के तौर पर ऐसे प्याले का बहुत महत्व था। PPHin 224.3

अधिकारी द्वारा लगाए गए आरोप का उत्त्तर देते हुए यात्रियों ने कहा, “हे हमारे प्रभु, तू ऐसी बातें क्यूँ कहता है? ऐसा काम करना तेरे दासों से दूर रहे है। देख, जो रूपया हमारे बोरो के मुहँ पर निकला था, जब हमने उनको कनान देश से ले आकर तुझे लौटा दिया, तब भला, तेरे स्वामी के घर में से हम कोई चाँदी या सोने की वस्तु कैसे चुरा सकते हैं? तेरे दासो में से जिस किसी के पास सेयह निकले, वह मारा डाला जाए, और हम भी अपने उस प्रभु के दास हो जाएँ। PPHin 225.1

अधिकारी ने कहा, “तुम्हारा ही कहना सही, जिसके पास यह निकले, वह मेरा दास होगा और तुम लोग निरपराध ठहरोगे। PPHin 225.2

ढूंढने का काम तत्काल शुरू किया गया। “वे जल्दी से अपने-अपने बोरे को उतार भूमि पर रखकर उन्हें खोलने लगे” और अधिकारी ने प्रत्येक का निरीक्षण किया, उसने रूबेन से शुरू किया और कमानुसार बड़े के बोरे से लेकर छोटे के बोरे तक खोज की, और कटोरा बिन्यामीन के बोरे में मिला । PPHin 225.3

अत्यन्त दयनीयता के प्रतीक के रूप में उन्होंने अपने वस्त्र फाड़े और धीरे-धीरे नगर को लौट गए। उन्हीं की प्रतीज्ञा के अनुसार बिन्यामीन के लिये दासत्व के जीवन का दण्ड मिला। वे अधिकारी के पीछे-पीछे महल पहुँचे और राज्यपाल को वहां पाकर उसको फिर से दण्डवत किया। उसने उनसे पूछा, “तुम लोगों ने यह कैसा काम किया? क्या तुम न जानते थे कि मुझ सा मनुष्य भविष्यद्वाणी कर सकता है?” युसुफ उनसे उनके द्वारा किए गए पाप को स्वीकार करवाना चाहता था। उसने कभी भी भविष्यद्वाणी करने की योग्यता का दावा नहीं किया था, लेकिन वह उन्हें आश्वस्त कराने को सहमत था कि वह उनके जीवन के रहस्यों को भांप सकता था। PPHin 225.4

यहूदा ने उत्तर दिया, “हम लोग अपने प्रभु से क्या कहे? हम क्या कहकर अपने को निर्दोष ठहराएँ? परमेश्वर ने तेरे दासों के अधर्म को पकड़ लिया है, हम और जिसके पास कटोरा निकला वह भी, हम सब के सब अपने प्रभु के दास ही है।” PPHin 225.5

युसुफ ने उत्तर दिया, “ऐसा करने से परमेश्वर मुझे रोके, लेकिन जिस जन के पास कटोरा निकला है वही मेरा दास होगा,और तुम लोग अपने पिता के पास कुशल चले जाओ ।” PPHin 226.1

तब अत्यन्त खेदित यहूदा ने राज्यपाल के पास जाकर कहा “हे मेरे प्रभु, तेरे दास को अपने प्रभु से एक बात कहने की आज्ञा हो, और तेरा कोप तेरे दास पर न भड़के, क्‍योंकि तू तो फिरौन के तुल्य है।” संवेदनशील वाकपटुता के शब्दों में उसने युसुफ को खोने के दुख और बिन्यामीन को उनके साथ मिस्र आने देने में संकोच का वर्णन किया, बिन्यामीन इसलिये क्योंकि वह उसकी माँ राहेल का अकेला जीवित बेटा था जिसे याकूब बहुत प्रेम करता था। उसने कहा, “इसलिये जब मैं अपने पिता तेरे दास के पास पहुँचू और यह लड़का साथ न रहे, उसका प्राण जो इसी पर अटका रहता है, यह देखकर कि लड़का नहीं है वह तुरन्त ही मर जाएगा। तब तेरे दासों के कारण तेरा दास हमारा पिता, जो बुढ़ापे की अवस्था में है, शोक के साथ अधोलोक में उतर जाएगा। फिर तेरा दास अपने पिता के यहाँ यह कहकर इस लड़के का जामिन हुआ है, यदि मैं इसको तेरे पास न पहुँचा दूँ तो मैं सदा के लिये तेरा अपराधी ठहरूगा। इसलिये अब तेरा दास इस लड़के के बदले अपने प्रभु का दास होकर रहने की आज्ञा पाए और यह लड़का अपने भाईयों के साथ जाने दिया जाए। क्योंकि लड़के के बिना साथ रहे मैं कैसे अपने पिता के पास जा सकँगा, ऐसा न हो कि मेरे पिता पर जो दुख पड़ेगा वह मुझे देखना पड़े।” PPHin 226.2

युसुफ सन्तुष्ट हुआ। उसने अपने भाईयों में सच्चे प्रायश्चित के फल को देख लिया था। यहूदा के नेक प्रस्ताव को सुनकर उसने आज्ञा दी उसके आस-पास के सभी लोग बाहर चले जाए और फिर वह चिल्ला चिल्लाकर रोते हुए बोला, “मैं युसुफ हूँ, क्या मेरा पिता अभी तक जीवित है? PPHin 226.3

उसके भाई निस्तब्ध खड़े रहे, डर और आश्चर्य से निशब्द । उनका भाई युसुफ, जिससे वे ईर्ष्या करते थे और जिसे वेमार देना चाहते थेऔर जिसे उन्होंने आखिर में दास की तरह बेच दिया, मिस्र का शासक। उनका सम्पूर्ण दुर्व्यवहार उनके सामने आ गया। उन्हें स्मरण हुआ कि किस प्रकार उन्होंने उसके स्वप्नों से घृणा की और उनके पूर्ण न होने देने का प्रयत्न किया। लेकिन फिर भी उन स्वप्नों के पूरा होने में उन्हें अपनी भूमिका निभाई थी, और अब जब वे पूर्णतया उसके वश में थे, वह निःसन्देह उसके द्वारा उठाए गए कष्टों का प्रतिशोध लेगा। PPHin 226.4

उनकी उलझन को देखकर वह नम्नतापूर्वक बोला, “मेरे निकट आओ” जब वे यह सुनकर निकट आए तो उसने कहा, “मैं युसुफ हूँ, तुम्हारा भाई” जिसको तुमने मिस्र आने वालों के हाथ बेच डाला था। अब तुम लोग मत पछताओं, और तुम ने जो मुझे यहां बेच डाला, इससे उदास मत हो, क्‍योंकि परमेश्वर ने तुम्हारे प्राणों को बचाने के लिये मुझे तुम्हारे आगे भेज दिया है।” यह आभास करते हुए कि उसके प्रति निष्ठुरता के लिये वे पर्याप्त कष्ट उठा चुके थे, उसने सज्जनता से उन्हें भयमुक्त करने उनके आत्म-तिरस्कार की कड़वाहट को कम करने के बारे में सोचा। PPHin 227.1

युसुफ ने कहा, “अब दो वर्ष से इस देश में अकाल है, और अब पाँच वर्ष और ऐसे ही होंगे कि उनमें न तो हल चलेगा और न अन्न काटा जाएगा। इसलिये परमेश्वर ने मुझे तुम्हारे आगे इसी लिये भेजा कि तुम पृथ्वी पर जीवित रहो, और तुम्हारे प्राणों के बचने से तुम्हारा वंश बढ़े। इस रीति अब मुझे यहाँ पर भेजने वाले तुम नहीं, परमेश्वर ही ठहरा और उसी ने मुझे फिरीन का पिता सा और उसके सारे घर का स्वामी, और सारे मिस्र देश का प्रभु ठहरा दिया है। अतः शीघ्र मेरे पिता के पास जाकर कहो, ‘तेरा पुत्र युसुफ यह कहता है कि परमेश्वर ने मुझे सारे ग्रिस का स्वामी ठहराया है, इसलिये तू मेरे पास बिना विलम्ब किये चला आ। तेरा निवास गोशेन देश में होगा, और तू बेटे, पोतों, भेड़-बकरियों, गाय-बैलों, और अपने सब कुछसमेत मेरे निकट रहेगा और अकाल के जो पांच वर्ष और होंगे, उनमें में वही तेरा पालन पोषण करूंगा, ऐसा न हो कि तू और तेरा घराना वरन्‌ जितने तेरे है, वे भूखे मरे। और तुम अपनी आंखो से देखते हो, और मेरा भाई बिन्यामीन भी अपनीं आखों से देखता है कि जो हम से बातें कर रहा है वह युसुफ है।” “तबवह अपने भाई बिन्यामीन के गले से लिपटकर रोया, और बिन्यामीन भी उसके गले से लिपटकर रोया । यहीनहींवह अपने सभी भाईयों को भी चूमकर रोया, और इसके पश्चात उसके भाई उससे बातें करने लगे। उन्होंने दीनतापूर्वक अपने पापों का अंगीकार किया और उससे क्षमा याचना की। उन्होंने लम्बे समय तक पछतावा और व्याकुलता को सहन किया था और अब उसके जीवित पाए जाने पर उन्होंने आनन्द मनाया। PPHin 227.2

जो घटित हुआ उसका समाचार फिरौन तक शीघ्र ही पहुँच गया जिसने युसुफ को कृतज्ञता प्रकट करने की इच्छा से युसुफ का अपने परिवार को आमन्त्रित करने को स्वीकार किया और वह बोला, “मिस्र देश में जो कुछ अच्छे से अच्छा है वह तुम्हरा हुआ।” भाईयों को, बहुतायत में सामग्री, गाड़ियाँ और प्रत्येक उस वस्तु के साथ जो उनके नौकर-चाकर और परिवारों को मिस्र लाने के लिये आवश्यक थी, कनान भेजा गया। बिन्यामीन को युसुफ ने अपने अन्य भाईयों से अधिक मूल्यवान उपहार दिये। फिर उस डर से कि घर जाते समय उनमें मतभेद न उत्पन्न हो जाए, उसने उनके उसे छोड़ कर जाने से पहले, उन्हें आज्ञा दी, “मार्ग में कही झगड़ा नहीं करना ।’ PPHin 227.3

याकूब के पुत्र शुभ समाचार के साथ अपने पिता के पास पहुँचे, “याकूब अब तक जीवित है और सारे मिस्र देश पर प्रभुता वही करता है।” पर उसने उनकी प्रतीति न की और वृद्ध पुरूष अपने आपे में नहीं रहा, जो उसने सुना उस पर वह विश्वास नहीं कर सका, लेकिन जब उसने गाड़ियों की कतार को और भार से लदे जानवरों को देखा, और देखा कि बिन्यामीनभी एक बार फिर उसके साथ था, उसे विश्वास हो गया और अत्यन्त प्रसन्‍नता व्यक्त करते हुए वह बोला, “बस, मेरा पुत्र युसुफ अब तक जीवित है, मैं अपनी मृत्यु से पहले जाकर उसे देखूंगा ।” PPHin 228.1

दसों भाईयों के लिये उन्हें दीन कर देने वाला एक और कार्य था। उन्होंने उनकी और उनके पिता के जीवन को इतने वर्षों से कटु बनाने वाली उनकी निर्दयता और छल का अपने पिता के सम्मुख अंगीकार किया ।याकूब ने कभी नहीं सोचा था कि वे इतना घोर पाप भी कर सकते हैं लेकिन उसने देखा कि भले के लिये सब कुछ भुला दिया गया था, और उसने अपने भटके हुए बच्चों को क्षमा कर उन्हें आशीर्वाद दिया। PPHin 228.2

पिता और उसके पुत्र, अपने परिवारों, भेड-बकरियों व गाय-भेंसो, व कई सेवकों सहित जल्द ही मिस्र की ओर चले। हृदय में हर्ष के साथ वे अपनी यात्रा करते रहे और बेशबा पहुँचने पर कुलपिता ने धन्यवाद की भेंट चढ़ाई और प्रभु से विनती की कि वह उनके साथ जाने का आश्वासन दे । जब परमेश्वर ने उसे रात का दर्शन में कहा, “तू मिस्र में जाने सेमत डर, क्‍योंकि मैं तुझ से वहां एक नई जाति बनाऊंगा। मैं तेरे संग-संग मिस्र को चलता हूँ और मैं तुझे वहां से फिर निश्चय ले आऊँगा। PPHin 228.3

“तू मिस्र में जाने से मत डर, क्‍योंकि मैं तुझ से वहां एक बड़ी जाति बनाऊंगा ।” यह आश्वासन महत्वपूर्ण था। अब्राहम को नक्षत्रों से असंख्य वंशजो की प्रतीक्षा दी गई थी, लेकिन अभी तक चुने हुए लोगो में कुछ ही वृद्धि हुई थी। और कनान देश में ऐसी जाति, जिसकी भविष्यद्वाणी की गईं थी, के विकास के लिये कोई संभावना नहीं थी। वह शक्तिशाली मूर्तिपूुजक कबीलों के अधीन था जो चार पीढ़ियों तक उन्हीं का रहना था। यदि इज़राइल के वंशजो को अपनी जनसंख्या में वृद्धि करनी थी तो यह अनिवार्यथा कि या तो वे वहां के निवासियों को खदेड़ दे या उन लोगों के बीच स्वयं को तितर-बितर कर दें। ईश्वरीय प्रबन्ध के अनुसार, पहला विकल्प वे नहीं ले सकते थे और यदि वे कनानियों के साथ मेल-जोल बढ़ाते तो उनको मूर्तिपूजा के लिये बहकाए जाने का खतरा था। फिर भी, मिस्र ने पवित्र योजना के परिपूर्ण होने के लिये आवश्यक परिस्थिति प्रदान की। देश का वह भाग जो जल-सम्पन्न और उपजाऊ था, उनके लिये खुला था, और उनकी शीत्र वृद्धि के लिये अनुकूल परिस्थितियाँ प्रदान कर रहा था। मिस्र के लोग चरवाहों से घृणा करते थे, इस कारण उनके व्यवसाय के कारण उत्पन्न होने वाला बैर-भाव उन्हें एक विशिष्ट और पृथक जाति होने में सहायक हुआ और मिस्र की मूर्तिपूजा में सम्मिलित होने से बाहर रखने में सहायक हुआ। PPHin 228.4

मिस्र पहुँचकर यह समूह सीधे गोशेन देश को गया। तब युसुफ राजसी अनुचरवर्ग के साथ भव्य रथ पर सवार होकर आया। वह अपने चारों और वैभव और अपने पद की मर्यादा दोनों को भूल गया, उसके मन में एक ही विचार था, हृदय को एक ही तृष्णा व्याकुल कर रही थी। यात्रियों को आते देख जिस प्रेम की तृष्णा को इतने वर्षो तक दबा कर रखा गया था, अब नियन्त्रण में न रह सकी । वह अपने रथ से कदा और अपने पिता का स्वागत करने आगे बड़ा। “वह उससे भेंट करके बहुत देर तक उसके गले से लिपटा हुआ रोता रहा।’ और इज़राइल ने युसुफ से कहा, “मैं अब मरने से भी प्रसन्न हूँ, क्योंकि तुझे जीवित पाया और तेरा मुहँ देख लिया।” PPHin 229.1

युसुफ अपने भाईयों में से पांच को फिरौन के सम्मुख ले जाने के लिये और उससे अपने भावी घर के लिये भूमि का दान प्राप्त करने गया। फिरौन अपने प्रधान मन्त्री का आभार प्रकट करनेको उन्हें सम्मानजनक पदों पर नियुक्त कर सकता था, लेकिन युसुफ यहोवा की आराधना में सच्चा, अपने भाईयों को एक मूर्तिपूजक दरबार के प्रलोभनों से बचाना चाहता था, इसलिये उसने उन्हें सलाह दी कि फिरौन द्वारा पूछे जाने पर, वे उसे स्पष्ट रूप से अपना व्यवसाय बता दे। याकूब के पुत्रों ने उसका कहना माना और बड़ी सावधानी से यह भी बता दिया कि वे वहां स्थायी निवासी बनने नहीं, बल्कि कुछ समय के लिये निवास करने आये थे और इस तरह उन्होंने अपनी इच्छानुसार वहां से चले जाने के अधिकार को सुरक्षित रखा। फिरौन ने उनके लिये एक घर नियुकक्‍त किया, जो गोशेन ‘राज्य में सबसे उत्तम” था। PPHin 229.2

अपने आगमन के कुछ ही समय पश्चात याकूब अपने पिता को भी फिरौन के सम्मुख लाया। कुलपिता राजसी दरबारों में अपरिचित था, लेकिन प्रकृति के उत्कृष्ट दृश्यों के बीच उसने एक महानतम सम्राट के साथ संगति की थी, और अब साभिप्राय वरिष्ठता में उसने हाथ उठाकर फिरौन को आशीर्वाद दिया। PPHin 230.1

युसुफ को अपने पहले अभिवादन में, याकूब ने ऐसे बात की थी, मानो दुःख और चिन्ता के आनन्दमयी अन्त में वह मरने को तैयार था। लेकिन गोशेन के शान्तिपूर्ण एकान्त स्थान में उसे सतरह वर्ष और मिलने थे। ये वर्ष खुशहाली के सन्दर्भ में पिछले वर्षों के विपरीत थे। उसने अपने पुत्रों में सच्चे प्रायश्चित का प्रमाण देखा था, उसने अपने परिवार को एक महान जाति के विकास के लिये आवश्यक परिस्थितियों से घिरा हुआ देखा, और उसके विश्वास का कनान में उनकी भावी गृहस्थी की असंदिग्ध प्रतिज्ञा का बोध हुआ। वह प्रेम के प्रतीकों से घिरा हुआ था, और अपने बहुत दिनों से बिछड़े हुए पुत्र की संगति में प्रसन्‍न, वह शान्तिपूर्वक अपनी मृत्यु को प्राप्त हुआ। PPHin 230.2

जब याकूब को लगा कि उसकी मृत्यु का समय निकट है, तो उसने युसुफ को बुलवाया। कनान पर अधिकार से सम्बन्धित परमेश्वर की प्रतिज्ञा को थामे हुए वह बोला, “यदि तेरा अनुग्रह मुझ पर हो, तो मुझे मिस्र में मिट्टी न देना, जब मैं अपने बाप-दादाओं के साथ सो जाऊँगा, तब तू मुझे मिस्र से उठा ले जाकर उन्हीं के कब्रिस्तान में रखना।” युसुफ ने वैसा ही करने का वचन दिया, लेकिन याकूब को सन्तुष्टि न हुई, उसने युसुफ को शपथ लेने को बाध्य किया कि वह उसके उसके बाप दादों के पास मकपेला की गुफा में रखेगा। PPHin 230.3

एक और आवश्यक कार्य ध्यान देने योग्य था, युसुफ के पुत्रों को इज़राइल की संतानों में औपचारिक ढंग से सम्मिलित करना था। पिता के साथ अपने अन्तिम साक्षात्कर के समय, युसुफ अपने साथ एप्रेम और मनरशे को लेकर आया। इन नौजवानों को, उनकी माता के द्वारा, मिस्री पुरोहिताई के सर्वश्रेष्ठ वर्ग से जोड़ा गया, और उनके पिता की प्रतिष्ठा ने उनके लिये गौरव और धन-सम्पत्ति के अवसर प्रदान किये बशर्त वे मिस्रियों के साथ मेल-जोल करने की तत्पर होते। लेकिन युसुफ की इच्छा थी कि वे अपने ही लोगों के साथ एक हों। तुच्छ चरवाहों के कबीलों के बीच स्थान पाने के लिये, जिनके सुर्पुद परमेश्वर की भविष्यद्वाणी की गईं थी, उसने वाचा की प्रतिज्ञा में अपना विश्वास प्रकट किया, व अपने पुत्रों की ओर से मिस्र के दरबार द्वारा प्रस्ताव सम्मानों का परित्याग कर दिया। PPHin 230.4

याकूब ने कहा, “तेरे दोनों पुत्र, एप्रैम और मनश्शे, जो मिस्र में मेरे आने से पहले उत्पन्न हुए हैं, वे मेरे ही ठहरेंगे, अर्थात जिस रीति से रूबेन और शिमौन मेरे हैं, उसी रीति से एप्रेम और मनश्शे भी मेरे ठहरेंगे।” वे उसी की सन्तान के तौर पर गोद लिये जाने थे जो आगे जाकर अलग-अलग कुटुम्बों के मुखिया बने ।इस तरह जन्मसिद्ध अधिकार का एक विशेषाधिकार, जिसे रूबेन ने खो दिया था, युसुफ को मिलना था-इज़राइल में दुगना भाग। PPHin 231.1

याकूब की दृष्टि आयु के साथ धुंधला गई थी, और उसे नौजवानों की उपस्थिति का ध्यान नहीं था, लेकिन अब उनकी आकृति के प्रारूपका अनुमान लगाकर उसने पूछा, “ये कौन है?” बताए जाने पर उसने कहा, “उनको मेरे पास ले आ कि मैं उन्हें आशीर्वाद दूं।” जब वे पास आए तो कुलपिता ने उन्हें चूमकर गले लगा लिया और उनके सिरों पर हाथ रखकर उन्हें आशीर्वाद दिया। फिर उसने प्रार्थना की, “परमेश्वर जिसके सम्मुख मेरे बापदादे अब्राहम और इसहाक चले, वही परमेश्वर मेरे जन्म से लेकर आज के दिन तक मेरा चरवाहा बना है, वही दूत मुझे सारी बुराई से छुड़ाता आया है, वही अब इन लड़कों को आशीष दे।” अब आत्मा-निर्भरता की कोई भावना नहीं थी और ना ही निपुणता या मानवीय क्षमता पर विश्वास । परमेश्वर उसका सहायक व रक्षक रहा था। बीते समय के बुरे दिनों की कोई शिकायत नहीं थी। बीते समय के संकट व दुख अब उसके (विरूद्ध/ जैसा विषय न थे। उसे केवल उसकी करूणा और प्रेमपूर्ण दयालुता का स्मरण था, जो सम्पूर्ण तीथयात्रा में उसके साथ था। PPHin 231.2

आशीर्वाद देने के बाद याकूब ने अपने पुत्र को आश्वासन दिया और दुख और दासत्व की लम्बी अवधि के दौरान आने वाली पीढ़ियों के लिये विश्वास की यह गवाही छोड़ी, “देख, में तो मरने पर हूँ, परन्तु परमेश्वर तुम लोगों के साथ रहेगा, और तुम को तुम्हारे पितरों के देश में फिर पहुँचा देगा।’ PPHin 231.3

अन्त में याकूब के सब पुत्र उसकी मृत्यु शैय्या के चारों ओर इकटठे हुए। याकूब ने उन्हें बुलाकर कहा, “इकटठेहो जाओ, हे याकूब के पुत्रों, इकट्ठे होकर सुनो, अपने पिता इज़राइल की ओर कान लगाओ” “मैं तुमको बताऊंगा कि अन्त के दिनों में तुम पर क्‍या बीतेगा।” प्रायः और उत्सुकता से उसने उनके भविष्य के बारे में सोचा था और अलग-अलग कूटुम्बों के इतिहास का चित्रांकन करने का प्रयत्न किया था। अब जब उसके बच्चे उसके आखिरी आशीर्वाद को प्राप्त करने की प्रतीक्षा कर रहे थे, प्रेरणा का आत्मा उस पर आया और उसके सामने भविष्यद्वक्ता दर्शन में उसके वंशजों का भविष्य खोला गया। एक के बाद एक उसके पुत्रों के नाम बताए गए, प्रत्येक के चरित्र का वर्णन किया गया और क॒ट॒म्बों के भावी इतिहास की संक्षेप में भविष्यद्वाणी की गई । PPHin 231.4

“हे रूबेन, तू मेरा जेठा, मेरा बल और मेरे पौरूष का पहला का फल है: प्रतिष्ठा का उत्तम भाग और शक्ति का भी उत्तम भाग तू ही हैं। PPHin 232.1

इत तरह पिता ने चित्रांकित किया कि पहलौठा पुत्र होने के नाते रूबेन का स्थान क्या होता, लेकिन एडार में उसके घोर अपराध ने उसे जन्मसिद्ध अधिकार के आशीर्वाद के लिये अयोग्य ठहराया। याकूब कहता गया- PPHin 232.2

“तू तो जल के समान उबलने वाला है, इसलिये दूसरों से श्रेष्ठ न ठहरेगा।” PPHin 232.3

पुरोहित लेवी के हिस्से मे आई, राज्य और मुक्तिदाता सम्बन्धित प्रतिज्ञा यहूदा के भाग में और मीरास का दो गुना हिस्सा युसुफ को मिला। रूबेन का क॒टुम्ब इज़राइल में प्रतिष्ठित न हुआ, वह यहूदा, युसुफ और डान के जितना बहुसंख्य नहीं था और दासत्व के पात्र बनने में प्रथम था ।आयु में रूबेन के बाद शिमौन और लेवी थे। शेकेम के वासियों के प्रति निर्दयता में वे साथी थे और युसुफ का सौदा करने में सबसे अधिक आरोपित थे। उनके सम्बन्ध में घोषणा की गई- PPHin 232.4

“मैं उन्हें याकूब में अलग-अलग और इज़राइल में तितर-बितर कर दूँगा।’ PPHin 232.5

कनान में प्रवेश के ठीक पहले, इज़राइल की जन गणना के समय शिमौन का सबसे छोटा कुटुंब था। मूसा ने, अपने अन्तिम आशीर्वाद में शिमौन का उल्लेख नहीं किया। कनान के निर्धारण में इस कट॒म्ब के पास यहूदा के भू-भाग का छोटा सा हिस्सा था और जो परिवार बाद मे शक्तिशाली बने उन्‍होंने अलग-अलग बस्तियाँ बनाई और पवित्र देश की सीमा के बाहरी क्षेत्र में बस गये। लैवी को भी राज्य के अलग-अलग भागों मे तितर-बितर अड़तालीस नगरों को छोड़ और कोई धरोहर नहीं मिली। लेकिन, दूसरे कृट॒म्बों द्वारा स्वधर्म-त्याग के समय, लैवियों की यहोवा के प्रति निष्ठा ने उन्हें हैकल के पवित्र विधि के लिये नियुक्त करवाया और इस तरह प्रकोप आशीर्वाद में बदल गया। PPHin 232.6

जन्मसिद्ध अधिकार की सर्वश्रेष्ठ आशीष यहूदा को दे दी गई। उस नाम का महत्व- जिसका अभिप्राय प्रशंसा है, इस जाति के भविष्यसूचक इतिहास में ज्ञात होता है — PPHin 233.1

हे यहूदा, तेरे भाई तेरा धन्यवाद करेंगे
तेरा हाथ तेरे शत्रुओं की गरदन पर पड़ेगा
तेरे पिता के पुत्र तुझे दण्डवत करेंगे।
यहूदा सिंह का बच्चा है।
हे मेरे पुत्र, तू अहेर करके गुफा में गया है
वह सिंह अथवा सिंहनी के समान दबकर बैठ गया
फिर कोन उसको छेड़ेगा। जब तक शीलो न आए
यहूदा से राजदण्ड न छूटेगा, न उसके वंश से
व्यवस्था देने वाला अलग होगा, और राज्य-राज्य
के लोग उसके अधीन हो जाएंगे।
PPHin 233.2

जंगल का राजा, सिंह, इस कट॒म्ब का उचित प्रतीक है, जिसमें से दाऊद आया, और दाऊद का पुत्र, शीलो, यहूदा के कुटुंब का सिंह था जिसके आगे सभी राज्य दण्डवत करेंगे और सब जातियाँ श्रद्धांजालि अर्पित करेंगी। PPHin 233.3

अपने अधिकतर बच्चों के लिये याकूब ने एक समृद्ध भविष्य की भविष्यद्वाणी की। आखिरकर युसुफ के नाम पर आकर पिता का हृदय उमड़ पड़ा जब उसने, युसुफ के सिर पर, जो अपने भाईयों से अलग किया गया था’ आशीर्वाद दिया — PPHin 233.4

युसुफ फलवन्त लता की एक शाखा है,
वह सोते के पास लगी हुई फलवन्त लता की शाखा है, उसकी डालियाँ भीत पर से चढ़कर फैल जाती है।
धनुर्धारियों ने उसको खेदित किया,
और उस पर तीर मारे,
और उसके पीछे पड़े हैं,
पर उसका धनुष दृढ़ रहा,
और उसकी बाँह और हाथ याकूब के
उसी शक्तिमान परमेश्वर के हाथों के द्वारा फूर्तीले हुए,
जिसके पास से वह चरवाहा आएगा,
जो इज़राइल की चटटान भी ठहरेगा
यह तेरे पिता के उस ईश्वर का काम है,
जो तेरी सहायता करेगा,
उस सर्वशक्तिमान का जो मुझे
ऊपर से आकाश में की आशीषें,
और स्तनों और गर्भ की आशीषें देगा।
तेरे पिता के आशीर्वाद,
मेरे पितरों के आशीर्वादों से अधिक बढ़ गए है,
और सनातन पहाड़ियों की मनचाही वस्तुओं
के समान बने रहेंगे, वे युसुफ के सिर पर,
जो अपने भाईयों से अलग किया गया था,
उसी के सिर के मुकूट पर फले पलेंगे।
PPHin 233.5

याकूब सर्वदा से ही प्रेम रखने वाला पुरूष था, उसका अपने पुत्रों के लिये प्रेम गहरा व विनम्र था और उसके मरने के समय की साक्षी एकपक्षीयता या अप्रसन्‍नता की अभिव्यक्ति नहीं थी। उसने सबको क्षमा कर दियाथा, और अन्त तक सबसे प्रेम करता रहा। उसकी पैतृक विनम्रता को आशा और प्रोत्साहन के ही शब्दों में अभिव्यक्ति मिलती। लेकिन परमेश्वर का आत्मा उस पर उतरा, और प्रेरणा के प्रभाव में वह सच्चाई बताने क लिये विवश हो गया। हालाँकि सच्चाई बहुत कष्टदायक थी। PPHin 234.1

अन्तिम आशीर्वाद देने के पश्चात्‌, याकूब ने अपने गाड़े जाने के सम्बन्ध में आज्ञा को दोहराया, “मैं अपने लोगों के साथ मिलने पर हूँ. इसलिये मुझे मेरे बापदादाओं के साथ मिट्टी देना..........उसी गुफा में जो मकपेला की भूमि में है।” “वहाँ अब्राहम और उसकी पत्नी सारा को मिट्टी दी गई, और वही इसहाक और उसकी पत्नी रिबका को भी मिट्टी दी गई, और वही मैने लिआ को भी मिट्टी दी।” इस प्रकार उसके जीवन का अन्तिम कार्य परमेश्वर की प्रतिज्ञा में विश्वास को प्रकट करना था। PPHin 235.1

याकूब के अन्तिम वर्ष एक दु:खित और थकाने वाले दिन के बाद शान्ति और विश्राम की संध्या लेकर आए। उसके मार्ग में अन्धेरा करने वाले बादल एकत्रित हुए, लेकिन उसके सूर्यास्त का आकाश साफ था और स्वर्ग के प्रकाश ने उसकी अन्तिम घड़ियों को प्रकाशमान किया। पवित्र-शास्त्र कहता है, “सांझ के समय उजियाला होगा ।/”-जकर्याह 14:7 “खरे मनुष्य पर दृष्टि कर और धर्मी को देख, क्योंकि मेल से रहने वाले पुरूष का अन्तफल अच्छा है।” - भजन संहिता 37:37। PPHin 235.2

याकूब ने पाप किया था, और घोर कष्ट उठाया। उस दिन से, जब उसके पाप ने उसे उसके पिता के तम्बू से भागने पर विवश कर दिया, याकूब ने दुख, चिन्ता और कठोर परिश्रम के कई वर्ष बिताए थे। एक निराश्रय पलायक अपनी मां से बिछड़ कर, जिसे उसने फिर न देखा, सात वर्षो तक उसके लिये परिश्रम करते हुए जिससे वह बहुत प्रेम करता था, केवल छले जाने के लिये, बीस वर्षों तक एक कपटी और लालची परिजन की सेवा में कठोर परिश्रम करते हुए, अपनी धन-सम्पत्ति में वृद्धि देखते हुए अपने पुत्रों को बड़ा होता देखते हुए, लेकिन विभाजित और कलहपूर्ण घराने में आनन्द के अभाव में, अपनी पुत्री के साथ हुए क॒कर्म से दुःखी, उसके भाईयों द्वारा प्रतिशोध से दुखी, राहेल की मृत्यु से दुखी, रूबेन के अस्वाभाविक अपराध से दुखी, यहूदा के पाप से दुखी, युसफ के प्रति उसके पुत्रों के निर्दयी धोखे और ईर्ष्या से दुखी- बुराईयों की यह सूची जो हमारे सामने फैली है कितनी विस्तृत और अन्धकारमय है! बार-बार उसने अपने पहले गलत काम के फल की फसल काटी थी। बार-बार उसने अपने पुत्रों को वही गलतियाँ दोहराते हुए देखा जिनके लिये वह स्वयं दोषी था। लेकिन अनुशासन भले ही कठोर रहा हो, उसमें अपना काम सम्पन्न कर दिया था। ताड़ना, भले ही कठोर थी, लेकिन उससे ‘शान्ति के साथ धर्म का प्रतिफल मिला। (इब्रानियों 12:11) PPHin 235.3

‘प्रेरणा’ भले मनुष्यों की गलतियों का स्पष्टता से उल्लेख करती है, उनका जो परमेश्वर की कृपा-दृष्टि के द्वारा विशिष्ट थे, यथार्थ में उनकी त्रुटियाँ उनके सदगुणों से अधिक सम्पूर्णता से प्रस्तुत की गई है। यह कई लोगों के लिये आश्चर्य का विषय है, और इसने नास्तिकों को बाईबल का तिरस्कार करने का अवसर दिया है। लेकिन यह पवित्र शास्त्र में सच्चाई का सबसे ठोस प्रमाण है कि तथ्यों को छिपाया नहीं गया है और न ही उसके मुख्य पात्रों के पापों को दबाया गया है। मनुष्य का मन इतना पक्षपाती है कि मानवीय इतिहास का पूरी तरह से निर्षेक्ष होना सम्भव नहीं है। यदि बाईबल प्रेरणा रहित मनुष्यों द्वारा लिखी गईं होती तो निःसन्देह विशिष्ट मनुष्यों के चरित्र को प्रशंसापूर्ण प्रकाश में प्रस्तुत किया जाता। लेकिन जैसा यथार्थ में है, हमें उनके अनुभवों का सही उल्लेख मिलता है। PPHin 236.1

वे मनुष्य, जिन पर परमेश्वर की कृपा-दृष्टि थी और जिनको उसने महान दायित्व सौंपा था, कभी कभी प्रलोभन में पड़कर पाप कर बैठते थे, जैसे कि आज भी हम प्रयत्न करते है, डगमगाते है और बहुत बार गलती कर बैठते है। उनके जीवन, उनकी त्रुटियों औरऔर मूर्खताओं के माध्यम से हमें चेतावनी देने और प्रोत्साहित करने के लिये हमारे सामने है। यदि उन्हें त्रुटिहीन प्रस्तुत किया जाता तो हम अपने पापमय स्वभाव के आधार पर, अपनी गलतियों और विफलताओं को लेकर हताश हो जाते। लेकिन यह देखते हुए कि अन्य लोगों ने भी हमारी तरह निराशा की स्थिति में संघर्ष किया, जहाँ वे भी हमारी तरह प्रलोभन में पड़े, लेकिन फिर भी साहस करके परमेश्वर के अनुग्रह के द्वारा पराक्रमी हुए तो हम धार्मिकता प्राप्त करने के लिये प्रोत्साहित होते हैं। जैसे वे यद्यपि कभी-कभी पछाड़े जाते थे, लेकिन फिर से अपना स्थान पा लेते थे और परमेश्वर द्वारा धन्य ठहराए जाते थे, इसी प्रकार हम भी यीशु की शक्ति में विजयी हो सकते हैं। दूसरी ओर उनके जीवन का उल्लेख हमारे लिये चेतावनी का काम कर सकता है। वह बताता है कि परमेश्वर अपराधी को किसी भी तरह निर्दोष नहीं ठहराएगा। जिन पर उसकी अधिक कृपा-दृष्टि है, उन प्रियों के भी पापों को वह देखता है, और उनके साथ इस सन्दर्भ में, कम प्रकाश और दायित्व वाले लोगों से अधिक सख्ती से व्यवहार करता है। PPHin 236.2

याकूब को मिट्टी देने के पश्चात युसुफ के भाईयों के हृदय फिर डर से भर गए। उनके प्रति उसकी दयालुता के बावजूद, सचेतन अपराधबोध ने उन्हें संकोची और अविश्वसनीय बना दिया हो सकताहैे कि उसने प्रतिशोध में केवल विलम्ब किया हो, पिता के सम्मान की खातिर और अब वह उन्हें उनके अपराध का दण्ड होगा। उन्होंने व्यक्तिगत तौर पर उसके सम्मुख आने का दुस्साहस तो नहीं किया, लेकिन एक सन्देश भेजा, “तेरे पिता ने मरने से पहले हमें यह आज्ञा दी थी, तुम लोग युसुफ से इस प्रकार कहना कि हम विनती करते हैं कि तू कि तू अपने भाईयों के अपराध और पाप का क्षमा कर, हम ने तुझ से बुराई की थी, पर अब अपने पिता के परमेश्वर के दासों का अपराध क्षमा कर ।” इस सन्देश से प्रभावित होकर युसुफ रो पड़ा, और इससे प्रोत्साहित होकर उसके भाई आकर उसके सामने गिर पड़े और बोले, “देख हम तेरे दास है।” अपने भाईयों के लिये युसुफ का प्रेम गहरा व निःस्वार्थ था, और इस विचार से उसे दुख हुआ कि उसे प्रतिशोध की भावनाओं को संजोए रखने वाला मान रहे थे। उसने कहा, “मत डरो, क्‍या में परमेश्वर की जगह पर हूँ? यद्यपि तुम लोगों ने मेरे लिये बुराई का विचार किया था, परन्तु परमेश्वर ने उसी बात में भलाई का विचार किया, जिससे वह ऐसा करे, जैसा आज के दिन प्रकट है कि बहुत से लोगों के प्राण बचे है।” इसलिये अब मत डरो, में तुम्हारा और तुम्हारे बाल-बच्चों का पालन-पोषण करता रहूँगा।’ PPHin 237.1

युसुफ का जीवन मसीह के जीवन का उदाहरण है। वह ईर्ष्या ही थी जिसने युसुफ के भाईयों को उसे बेच डालने के लिये उकसाया, वे उसे स्वयं से अधिक महान बनने से रोकना चाहते थे। और जब उसे मिस्र ले जाया गया वे इस बात से आनन्दित हुए कि युसुफ के स्वप्न उन्हें और परेशान नहीं करेंगे, क्योंकि उनके पूरे होने की प्रत्येक सम्भावना को उन्होंने समाप्त कर दिया था। लेकिन उनकी युक्‍क्ति को परमेश्वर ने नाकाम कर दिया ताकि वह उस घटना को घटित कर सकेजिसे उन्‍्होंनें बाधित करने का षड़यन्त्र रचा। इसी प्रकार यहूदी धर्मगुरू और पुरनिये (एल्डर) मसीह से डाह करते थे, इस डर से कि वह लोगों का ध्यान उन पर से हटाकर स्वयं की ओर आकर्षित करेगा। उन्होंने उसे राजा बनने से रोकने के लिये मृत्यु के घाट उतार दिया, लेकिन वही हुआ जो होना था। PPHin 237.2

युसुफ, मिस्र में अपने दासत्व के माध्यम से, अपने पिता परिवार के लिये मसीहा बना, लेकिन फिर भी इस तथ्य ने उसके भाईयों का अपराध कम नहीं हुआ। इसी प्रकार मसीह के शत्रुओं द्वारा उसे कूस पर चढ़ा देने से वह मनुष्यजाति का मुक्तिदाता बना, पतित जाति का उद्धारकर्ता, व समस्त जगत का राजा, लेकिन उसके हत्यारों का अपराध उतना ही घिनौना था मानो मनुष्य की भलाई और अपनी स्वयं की महिमा के लिये परमेश्वर के शुभ हाथों ने घटनाओं पर नियन्त्रण ना रखा हो। PPHin 238.1

जैसे युसुफ को उसी के भाईयों द्वारा अधर्मियों को बेच दिया गया, इसी प्रकार मसीह को उसी के एक शिष्य द्वारा उसके द्वेषपूर्ण शत्रुओं को बेच दिया गया। युसुफ को उसके सदगुण के कारण, झूठे आरोप के कारण कारावास में डाल दिया गया, इसी प्रकार मसीह को तिरस्कत व अस्वीकत किया गया, क्‍योंकि उसका धार्मिकता व आत्म-त्याग का जीवन पाप के लिये ताड़ना था, और निर्दोष होते हुए भी उसे झूठी साक्षी के कथन के आधार पर दण्डित किया गया। और अन्याय और अत्याचार की परिस्थिति में युसुफ का धैर्य और दीनता, उसकी तत्पर क्षमाशीलता, अपने सौतेले भाईयों के प्रति उसकी शिष्टतापूर्ण उदारता, दुष्ट मनुष्यों के दुराचार और द्वेष के प्रति उद्धारकर्ता की तत्पर सहनशीलता को और ना केवल उसके हत्यारों के प्रति, वरन्‌ प्रायश्चित करते हुए उन सभी क्षमाप्रार्थियों के प्रति जो उसके पास आते है, उसकी क्षमाशीलता को दर्शाता है। PPHin 238.2

युसुफ अपने पिता से चौपन वर्ष अधिक जीवित रहा। “और युसुफ एप्रेम के परपोतों तक को देखने पाया, और मनश्शे के पोते, जो माकीर के पुत्र थे, वे उत्पन्न हुए और युसुफ ने उन्हें गोद में लिया ।” उसने अपने लोगों की वृद्धि और समृद्धि को देखा और सभी वर्षों के दौरान प्रतिज्ञा के देश में इज़राइल के परमेश्वर द्वारा पुनःस्थापना में उस विश्वास अटल रहा। PPHin 238.3

जब उसने देखा कि उसका अन्त निकट था, उसने अपने परिजनों को अपने पास बुलाया। फिरौन के देश में वह सम्मान प्राप्त था, पर मिस्र उसके लिये उसके प्रवास का स्थान था; उसका अन्तिम कृत्य था यह प्रकट करना कि उसका स्थान-विशेष इज़राइल के साथ था। उसके अन्तिम शब्द थे, “परमेश्वर निश्चय तुम्हारी सुधि लेगा, और तुम्हें इस देश से निकालकर उस देश में पहुँचा देगा, जिसके देने की उसने अब्राहम, इसहाक और याकूब से शपथ खाई थी।” और उसने इज़राइलियों से शपथ ली कि वे उसकी हडिडयों को वहां से अपने साथ कनान देश को ले जाएँगे। “इस प्रकार युसुफ एक सौ दस वर्ष का होकर मर गया, और उसके शव में सुगन्धद्रव भरे गए, और वह शव मिस्र में एक सन्दूक में रखा गया।” इसके बाद की परिश्रम से भरी सदियों के दौरान, युसुफ के मृत्युपूर्व शब्दों के स्मरण पत्र, उसका ताबूत (शवघार), इज़राइल को यह विश्वास दिलाता रहा कि मिस्र में वे केवल अस्थायी निवासी है, और उन्हें प्रतिज्ञा के देश पर अपनी आशाएं केन्द्रित करने की आज्ञा देता रहा, क्‍योंकि छुटकारे का समय के आना निश्चित था। PPHin 238.4