कुलपिता और भविष्यवक्ता
अध्याय 20—मिस्र में युसुफ
यह अध्याय उत्पत्ति 39—41 पर आधारित है
इसी दौरान, युसुफ उसके बन्दीकर्ता व्यापारियों के साथ मिस्र के मार्ग पर था। जब कारवाँ कनान देश की सीमाओं की और दक्षिण में जा रहा था युसुफ दूर से उन पहाड़ों को पहचान सकता था जिनके बीच उसके प्रिय पिता के तम्बू थे। अपने पिता के अकेलेपन व मनोव्यथा के बारे में सोच कर वह बहुत रोया। फिर से दोतान का दृश्य उसके सामने आ खड़ा हुआ। उसने अपने कोधित भाईयों को देखा और उसे लगा मानों उनकी डरावनी दृष्टि उसी पर है। उसकी पीड़ाभरी विनतियों के उत्तर में दिए गए डंक मारने वाले अपमानजनक शब्द उसके कानों में गूंज रहे थे। कंपकँपाते हृदय से भविष्य की ओर देखने लगा। परिस्थितियों में क्या बदलाव आया था-एक लाड़-प्यार में पले हुए पुत्र से एक घृणित और असहाय दास! अकेला और मित्रहीन जहां वह जा रहा था उस देश में उसके हिस्से में क्या आने वाला था? कुछ समय के लिये युसुफ ने स्वयं को असहनीय शोक और भय को समर्पित कर दिया। PPHin 209.1
लेकिन, परमेश्वर की पूर्व दृष्टि में, यह अनुभव भी युसुफ के लिये आशीष था। कुछ ही घण्टों में वो सीख गया जो उसे कई वर्ष भी नहीं सिखा सकते थे। अपने प्रेम की तरह दृढ़ और नम्र पिता की एक पक्षीयता अपने प्रेम की तरह दृढ़ और नम्र था, एक पक्षीयता और प्यार के कारण युसुफ को बहुत कष्ट उठाना पड़ा। उसकी अविवेकपूर्ण प्राथमिकता युसुफ के भाईयों को कोधित कर उन्हें निर्दयी कृत्य के लिये उकसाया जिसके कारण उसे अपने घर से अलग होना पड़ा। उसका प्रभाव उसके चरित्र में भी स्पष्ट रूप से प्रकट थे। उन गलतियों को प्रोत्साहन दिया गया था जिनको सुधारना अब अनिवार्य था। वह आत्म-निर्भर और श्रमसाध्य बन रहा था। वह अपने पिता की नग्रतापूर्ण देखभाल का अभ्यस्थ था और अब एक दास और अपरिचितके कष्टपूर्ण व उपेक्षित जीवन में आने वाली कठिनाईयों का सामना करने में असमर्थ था। PPHin 209.2
फिर उसके विचार उसके पिता के परमेश्वर पर केन्द्रित हुए। उसके बचपन में उसे परमेश्वर का भय मानना और उससे प्रेम करना सिखाया गया था। प्रायः अपने पिता के तम्बू में उसने घर से भागे हुए पलायक और निराश्रय याकूब के स्वप्नदर्शन की कहानी को सुना था। उसे याकूब को दी गईं परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं और किस प्रकार वे पूरी हुई, इस बारे में बताया गया था उसके यह भी बताया गया था कि किस प्रकार आवश्यकता की घड़ी में, परमेश्वर के स्वर्गवृत उसे निर्देश, सांत्वना व सुरक्षा प्रदान करने आए थे। उसने मनुष्य के लिये एक उद्धारकर्ता का प्रयोजन करने में परमेश्वर के प्रेम के बारे में सीखा था। अब यह बहुमूल्य पाठ विस्तृत रूप में उसकेसामने आए। युसुफ को विश्वास था कि उसके पूर्वजों का परमेश्वर उसका भी परमेश्वर होगा। उसी समय और उसी स्थान पर उसने स्वयं को पूर्णतया परमेश्वर को समर्पित किया और प्रार्थना की कि इज़राइल का रक्षक उसके प्रवास के देश में भी उसके साथ हो। PPHin 209.3
स्वयं को परमेश्वर के प्रति सच्चा प्रमाणित करने के संकल्प से वह आत्मविभोर हो उठा-उसने निश्चय किया किसी भी परिस्थिति में उसका आचरण ऐसा होगा जैसा स्वर्ग के राजा की प्रजा का होना चाहिए। उसने परमेश्वर की पूरे मन से सेवा करने का, अपने भाग्य में आने वाली परीक्षाओं का धैर्यपूर्वक सामना करने का, और प्रत्येक कर्तव्य का निष्ठापूर्वक पालन करने का संकल्प किया। एक दिन का अनुभव युसुफ के जीवन में नया मोड़ ले आया। उसकी भयानक विपत्ति ने उसे एक लाड़ले से एक आत्म-सम्पन्न, साहसी विचारपूर्ण पुरूष में परिवर्तित कर दिया। PPHin 210.1
मिस्र पहुंचने पर युसुफ को पोतिफर को बेच दिया गया, जो राजा केसुरक्षा दल का कप्तान था और जिसकी सेवा में युसुफ दस वर्ष तक रहा। यहांउसे असाधारण प्रलोभनों का सामना करने पड़ा। वह मूर्तिपूजा के बीच था।राजसी गौरव के आंडम्बर से परिपूर्ण देवी-देवताओं की आराधना को उस समयके उच्चतम सभ्य जातियों की संस्कृति और बाहुल्य का समर्थन प्राप्त था। फिरभी युसुफ ने अपनी सादगी और परमेश्वर के प्रति निष्ठा को बचाए रखा। उसकेचारों ओर पाप के दृश्य और स्वर थे लेकिन वह उनसे अप्रभावित रहा। वहनिषिद्ध विषयों पर अपने मन के मनन करने की अनुमति नहीं देता था। PPHin 210.2
मिस्रवासियों की कृपा-दृष्टि प्राप्त करने की अभिलाषा में वह अपने सिद्धान्तों कोनहीं छुपाता था। ऐसा करने पर वह प्रलोभन में पड़ जाता, लेकिन वह अपनेपूर्वजों के धर्म से लज्जित नहीं था, और उसने इस तथ्य को छुपाने का कोईप्रयत्न नहीं किया कि वह यहोवा का आराध्य था। PPHin 210.3
“पर यहोवा युसुफ के संग-संग रहा और उस पर करूणा की.......... औरयुसफ के स्वामी ने देखा कि यहोवा उसके संग रहता है, और जो काम वह करता है उसको यहोवा उसके हाथ से सफल कर देता है।” युसुफ में पोतिफर का विश्वास बढ़ता गया और उसने युसुफ को अपनी सेवा टहल करने के लिये नियुक्त किया और फिर उसने उसको अपने घर का अधिकारी बनाकरसब कुछ उसके हाथ में सौंप दिया। “उसने अपना सब कुछ युसुफ के हाथ में छोड़ दिया यहां तक कि अपने खाने की रोटी को छोड़, वह अपनी सम्पत्ति का हाल कुछ न जानता था। PPHin 210.4
युसुफ की देख-रेख मे हर चीज में उल्लेखनीय समृद्धि कोई प्रयत्यक्ष चमत्कार का परिणाम नहीं थी, लेकिन उसका परिश्रम, देख-रेख और बल को ईश्वरीय आशीष से अभिषिकक्त किया गया। युसुफ ने अपनी सफलताका श्रेय परमेश्वर की कृपा-दृष्टि को दिया और उसके मूर्तिपूजक स्वामी ने भी इसको युसुफ की अद्वितीय समृद्धि का रहस्य स्वीकार किया। लेकिन निरन्तर, सुनिर्देशित प्रयत्न के अभाव में सफलता असंभव थी। अपने दास की निष्ठा से परमेश्वर की महिमा हुई। उसका उद्देश्य था कि निर्मलता और धार्मिकता में परमेश्वर में विश्वास रखने वाले मूर्तिपूजकों से बिल्क॒ल भिन्न प्रकट हों और इस तरह मूर्तिपूजा के अंधकार के बीच आलौकिक अनुग्रह का प्रकाश चमके। PPHin 211.1
युसुफ की विनम्रता और निष्ठा ने मुख्य कप्तान का हृदय जीत लिया और वह उसे दास नहीं वरन् बेटे के समान मानने लगा। नौजवान का संपर्क ज्ञानी और विशिष्ट पुरूषों से कराया गया और उसने भाषा, विज्ञान और प्रशासन का ज्ञान प्राप्त किया- वह शिक्षा जो मिस्र के भावी मुख्यमंत्री के लिये अनिवार्य थी। PPHin 211.2
लेकिन युसुफ के विश्वास और निष्ठा को अग्नि समान परीक्षाओं द्वारा परखा जाना था। उसके स्वामी की पत्नी ने नौजवान युसुफ को परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन करने के लिये ललचाने का प्रयत्न किया। इससे पहले वह मूर्तिपूजकों के देश में प्रचलित भ्रष्टाचार से अछता रहा था, लेकिन यह प्रलोभन, इतना आकस्मिक, इतना प्रभावशाली, इतना सम्मोहक था कि इसका सामना किस तरह किया जाए? युसुफ भली भांति जानता था कि प्रतिशोध का परिणाम क्या होगा। एक तरफ थे छिपाव, कृपा-दृष्टि और उपहार, और दूसरी तरफ थे अपमान, कैद और संभवत: मृत्यु भी। उसका सम्पूर्ण भावी जीवन उस क्षण के निर्णय पर निर्भर था। क्या सिद्धान्त विजयी होगा? क्या युसुफ अभी भी परमेश्वर के प्रति सत्यवान होगा? अनिर्वचनीय उत्सुकता के साथ स्वर्गदूत इस दृश्य को देखते रहे। PPHin 211.3
युसुफ का उत्तर धार्मिक सिद्धांत की शक्ति को दर्शाता है। वह अपने सांसारिक स्वामी के विश्वास को छलने के लिये तैयार न था और किसी भी परिस्थिति में वह अपने स्वर्गीय स्वामी के प्रति सत्यवान होने को तत्पर था। परमेश्वर और पवित्र स्वर्गदूतों की निरीक्षण करती आंखो के सामने भी कईं लोग अपने सहजनों की उपस्थिति में अपराधी नहीं ठहरने की स्थिति में मौक का फायदा उठा लेते है, लेकिन युसुफ ने सबसे पहले परमेश्वर का ध्यान किया। “मैं ऐसी बड़ी दुष्टता करके परमेश्वर का अपराधी क्यूँ बनूँ”? उसने कहा। PPHin 212.1
यदि हम इस स्वाभाविक धारणा का संजोए रखे कि परमेश्वर हमारे प्रत्येक क॒त्य और कथन को देखता और सुनता है और हमारे शब्दों और कामों का उल्लेख रखता है और हमें इन सब का सामना करना हे तो हम पाप करने से डरेंगे । नौजवान याद रखें कि वे कहीं भी हो और कुछ भी करें, वे परमेश्वर की उपस्थिति में हैं। हमारे आचरण का कोई भी अंश अवलोकन से नहीं बच सकता । हम अपने उपायों को ‘सर्वोच्च’ से नहीं छुपा सकते। मनुष्य द्वारा बनाए गए नियमों का कठोर होते हुए भी नि:संकोच उल्लंघन किया जाता है क्योंकि वे दृष्टि में नहीं आते। लेकिन परमेश्वर की व्यवस्था के साथ ऐसा नहीं होता। अपराधी के लिये काली से काली मध्यरात्रि भी आवरण नहीं होती। वह भले ही स्वयं को अकेला सोचे, लेकिन प्रत्येक कार्य का एक अदृश्य साक्षी है। उनके हृदय के अभिप्राय तक ईश्वरीय निरीक्षण के पात्र होते है। प्रत्येक कृत्य, प्रत्येक शब्द, प्रत्यूके॑ विचार इतनी स्पष्टता से अंकित किया जाता है मानो समस्त जगत में एक ही मनुष्य हो और स्वर्ग का ध्यान उसी पर केन्द्रित हो ।युसुफ ने अपनी निष्ठा के लिये कष्ट उठाया क्योंकि उसको ललचाने वाली ने उस पर क॒कर्म का आरोप लगाकर उसे कैदखाने में डलवाकर अपने प्रतिशोध को पूरा किया। यदि पोतिफर ने अपनी पत्नी द्वारा युसुफ पर लगाए आरोप को सच मान लिया होता, तो नौजवान इब्री ने अपने प्राण गँवा दिये होते, लेकिन उसके आचरण की शालीनता और ईमानदारी उसकी निष्कपटता का प्रमाण थे, और फिर भी अपने स्वामी के घर की प्रतिष्ठा को बचाए रखने के लिये उसे अपमान और अधीनता को सहन करना पड़ा। PPHin 212.2
प्रारम्भ में दरोगा द्वारा युसुफ के साथ कठोर व्यवहार किया। भजन संहिता 105:18,19में भजनकर्ता कहता है, “उसके पैरों में बेड़ियाँ डालकर उसे दुःख दिया, वह लोहे की सॉकलों में जकड़ा गया, जब तक कि उसकी बात पूरी न हुई तब तक यहोवा का वचन उसे कसौटी पर कसता रहा ।” लेकिन बन्दीगृह के अन्धकार में भी युसुफ का वास्तविक चरित्र चमकता रहा। वह अपने विश्वास और धैर्य में स्थिर रहा, उसके वर्षों के निष्ठावान सेवा की भुगतान निष्ठुरता से किया गया, लेकिन इससे वह उदास या अविश्वसनीय नहीं बना। उसके पास वह शान्ति थी जो जागरूक निष्कपटता से आती है और अपने विषय में उसे परमेश्वर पर विश्वास था। वह अपने पर हुए अत्याचारों पर विचारशील नहीं हुआ, बल्कि दूसरों के कष्ट निवारण में अपने कष्टों को भूल गया। कैदखाने में भी उसके पास करने के लिये काम था। परमेश्वर उसे महानतम उपयोगिता के लिये यातना की पाठशाला में तैयार कर रहा था। कैदखाने में उत्पीड़न और निरंक॒ुशता के परिणामों को देखकर उसने न्याय, सहानुभूति व कृपा के सबक सीखे जिन्होंने उसे संवेदना और बुद्धिमता से शक्ति का अभ्यास करने को तैयार किया। PPHin 212.3
युसुफ ने धीरे-धीरे बन्दीगृह के दरोगा का विश्वास जीता और अनन्त: उसे अन्य कैदियों को, जो कारागार में थे, प्रभार सौंप दिया गया। जो भूमिका उसने बन्दीगृह में निभायी-- उसकेनैतिक जीवन की निष्ठा और पीड़ितो के लिये उसकी संवेदना ने उसकी भावी समृद्धि और सम्मान के लिये मार्ग खोल दिया। प्रकाश की प्रत्येक किरण जो हम दूसरों पर बिखेरते है वह हम पर ही प्रतिबिम्बित होती है। खेदयुक्त को बोला गया प्रत्येक संवेदनशील शब्द, उत्पीड़ित के छुटकारे के लिये प्रत्येक कार्य, निर्धन को दी गयी, प्रत्येक सौगात यदि सही नीयत से प्रेरित हो तो वह देने वाले के लिये आशीष का कारण होंगे। PPHin 213.1
फिरौन के प्रधान पिलानेहार और प्रधान पकानेहार को किसी अपराध के लिये बन्दीगृह में डाल दिया गया और उन्हें युसुफ के हाथ में सौंप दिया गया। एक दिन, उन्हें उदास देखकर उसने नम्रतापूर्वक उनसे उनकी उदासी का कारण पूछा और उन्हें बताया गया कि उन दोनों ने एक असाधारण स्वप्न देखा था जिसकी महत्ता को जानने के लिये वे उत्सुक थे। युसुफ ने उनसे कहा, “क्या स्पष्टीकरण करना परमेश्वर का काम नहीं? मुझे अपना-अपना स्वप्न बताओं ।” दोनों ने अपने-अपने स्वप्न का वर्णन किया और युसुफ ने उनका मतलब समझाया: अब से तीन दिन के अन्दर फिरौन फिर से पिलानेहार को उसके पद पर नियुक्त करेगा, और वह पहले के सामन फिरौन का पिलानेहारा होकर उसका कटोरा उसके हाथ में फिर से दिया करेगा। लेकिन पकानेहारे को फिरौन की आज्ञा से मृत्यु के घाट उतार दिया जाएगा। ये दोनों घटनाएं वैसी ही घटित हुईं जैसे इनके बारे में भविष्यद्वाणी की गई थी। PPHin 213.2
फिरोन का पिलानेहार युसुफ के प्रति, अपने स्वप्न के उत्साहवर्धक स्पष्टीकरण के लिये और दया-दृष्टि के कई काया के लिये अत्य॑न्त कतज्ञ था और इसके बदले में युसुफ ने अपने अन्यायपूर्ण दासत्व का मर्ममेदी ढंग से वर्णन करते हुए उससे विनती की वह फिरौन से उसकी चर्चा करे। उसने कहा, “तब तेरा भला हो जाए जब मेरा स्मरण करना, और मुझ पर कृपा करके फिरौन से मेरी चर्चा चलाना, औरइस घर से मुझे छुड़वा देना। क्योंकि सचमुच इब्रियों के देश से मुझे चुरा कर लाया गया है, और यहाँ भी मैंने कोई ऐसा काम नहीं किया, जिसके कारण में इस कारागार में डाला जाऊं।” प्रधान पकानेहार ने देखा कि स्वप्न प्रत्येक विवरण में पूरा हुआ था, लेकिन राजसी पद पर पुन: स्थापित होने पर, उसने अपने हितकारी के बारे में एक बार भी न सोचा। युसुफ दो वर्ष और बन्दी बन कर रहा। जो आशा उसके हृदय में जागृत हईं थी धीमे-धीमे समाप्त हो गई और अन्य सब परीक्षाओं के साथ कतज्ञहीनता का पीड़ादायक डंक भी जुड़ गया। PPHin 214.1
लेकिन एक ईश्वरीयहाथ बन्दीग्रह के फाटकों को खोलने वाला था। मिस्र के राजा ने एक ही रात में दो स्वप्न देखे जो उसी घटना की ओर संकेत कर रहे थे और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे किसी घोर संकट का पूर्वाभास करा रहे थे। वह उनकी महत्ता नहीं जान पाया और वे उसके मन को व्याकूल करते रहे । उसके राज्य के ज्योतिषी और पण्डित कोई भी स्पष्टीकरण नहीं दे पाए। फिरोन की उलझन और व्यथा बढ़ गई और उसका महल भय से भर गया। उस सामान्य घबराहट ने प्रधान पिलानेहारे को उसके स्वप्न की परिस्थितियों का स्मरण कराया, इसक साथ ही उसके युसुफ की याद आई और वह अपनी कृतज्ञता और भुलक्कड़पन के लिये पश्चताप से भर गया। उसने तुरन्त फिरौन को सूचित किया कि किस तरह एक डइब्री बन्दी ने उसके और प्रधान पकानेहारे के स्वप्न का स्पष्टीकरण किया था और किस तरह वे भविष्यद्वाणियाँपूरी हुई थी। PPHin 214.2
फिरोन के लिये अपने राज्य के ज्योतिषियों और पण्डितों से हटकर एक परदेशी और दास से परामर्श लेना अपमानजनक था लेकिन अपने मन को शान्त करने के लिये वह छोटी से छोटी सेवा को स्वीकार करने के लिये तैयार था। युसुफ को तुरन्त बुलाया गया, उसने अपनेबन्दीग्रह के वस्त्र उतारे, अपना मुण्डन करवाया क्योंकि उसके कारावास और अपमान की अवधि में उसके बाल बहुत लम्बे हो गए थे। फिर वह फिरौन की उपस्थिति में लाया गया। PPHin 214.3
फिरोन ने युसुफ से कहा, “मैंने एक स्वप्न देखा है, और उसके फल का बतानेवाला कोई भी नहीं, और मैंने तेरे विषय में सुना है कि तू स्वप्न सुनते ही उसका फल बता देता है।” युसुफ ने फिरौन से कहा, “में तो कुछ नहीं जानता, परमेश्वर ही फिरीन के लिये शुभ वचन देगा।” युसुफ का फिरौन को दिया हुआ उत्तर उसकी दीनता और उसके विश्वास को दर्शाता है। वह शालीनता से स्वयं में उत्तम बुद्धिमता के होने के सम्मान को नकार देता है। “में तो कुछ नहीं जानता” केवल परमेश्वर ही इन रहस्यों को समझा सकता है। PPHin 215.1
फिर फिरौन ने अपना स्वप्न युसुफ को बताया, “मैंने देखा कि मैं नील नदी के किनारे खड़ा हूँ। फिर क्या देखा कि नदी में से सात मोटी और सुन्दर गायें निकलकर चरागाह की घास चरने लगीं। फिर क्या देखा कि उनके पीछे सात और गायें निकली, जो दुबली और बहुत कुरूप ओर दुर्बल है, मैंने सारे मिस्र में ऐसी कुडौल गायें कभी नहीं देखी। इन दुर्बल और कुडौल गायों ने उन पहली सातों मोटी गायों को खा लिया और जब वे उनको खा गईं तब यह मालूम नहीं होता था कि वे उनको खा गई हैं, क्योंकि वे पहले के समान जैसी की तैसी कुडौल रही । तब में जाग उठा। फिर मैंने दूसरा स्वप्न देखा, कि एक ही डंठल में सात अच्छी-अच्छी और अन्न से भरी हुईं बालें निकली। फिर क्या देखता हूँ कि उनके पीछे और सात बालें छछी-छछी और पतली और पुरवाई से मुरझाई हुई निकली। और इन पतली बालों ने उन सात अच्छी बालों को निगल लिया। इसे मैंने ज्योतिषियों को बताया, पर इसका समझानेहारा कोई नहीं मिला। PPHin 215.2
तब युसुफ ने फिरौन से कहा, “फिरौन का स्वप्न एक ही है, परमेश्वर जो काम करना चाहता है, उसको उसने फिरौन पर प्रगट किया है। सात वर्ष बहुतायत की उपज के होंगे। खेत और बगीचे पहले से बहुतायत से उपज देंगे । उनके पश्चात सात वर्ष अकाल के आएंगे।” “और सारे मिस्र के लोग इस सारी उपज को भूल जाएंगे और अकाल से देश का नाश होगा।” स्वप्न का दोहराया जाना उसके पूरे होने की निश्चितृता और शीघ्रता का प्रमाण था। और वह कहता रहा, “इसलिये अब फिरीन किसी समझदार और बुद्धिमान पुरूष को दूँढ करके उसे मिस्र देश पर प्रधानमंत्री ठहराए। फिरौन यह करे कि देश पर अधिकारियों को नियुक्त करे और जब तक सुकाल के सात वर्ष रहें तब तक वह मिस्र देश की उपज का पंचमाश लिया करे। और वे इन अच्छे वर्षों में सब प्रकार की भोजन वस्तु इकटठा करें, और नगर-नगर में भण्डार घर भोजन के लिये, फिरौन के वश में करक उसकी रक्षा करें। वह भोजनवस्तु अकाल के उन सात वर्षों के लिये, जो मिस्र देश में आएँगे, देश के भोजन के लिये रखी रहे, जिससे देश का उस अकाल से सत्यनाश न हो जाए।” PPHin 215.3
यह स्पष्टीकरण इतना तकसँंगत और अनुरूप था, और जो नीति सुझाई गईं इतनी ठोस और समझदारीपूर्ण थी कि उसके औचित्य पर सन्देह नहीं किया जा सकता था। लेकिन योजना को क्रियान्वित करने के लिये किसको नियुक्त किया जाना था? इस चयन की बुद्धिमता पर राज्य का संरक्षण निर्भर था। PPHin 216.1
फिरौन परेशान था। कुछ समय तक नियुक्ति के विषय पर सोच-विचार किया गया। प्रधान पिलानेहारे के माध्यम से फिरौन बन्दीग्रह के शासन प्रबन्ध में युसुफ द्वारा दिखाई गई बुद्धिमत्ता और समझदारी के बारे में जाना था। यह प्रमाणित था कि वह उत्कृष्ट प्रशासकीय योग्यताका स्वामी था। पिलानेहारे ने अब आत्मग्लानि से भरपूर, अपने हितकारी की हार्दिक प्रशंसा के द्वारा अपनी पुरानी कतज्ञहीनता का प्रायश्चित करने का प्रयत्न किया और फिरौन द्वारा की गईं पूछताछ में उसकी जानकारी को सही ठहराया। पूरे राज्य में केवल युसुफ ही राज्य पर मँडराने वाले संकट और उससे निपटने के उपायों का संकेत देने की कियात्मक बुद्धि में प्रतिभा सम्पन्न था। फिरौन को विश्वास हो गया था कि उसके द्वारा प्रस्तावित योजनाओं को क्रियान्वित करने के लिये वही गुण-सम्पन्न था। यह स्पष्ट था कि वह ईश्वरीय शक्ति उसके साथ थी और फिरौन के अधिकारीगण में इस आपदा में राज्य के प्रशासन को संचालित करने के लिये कोई भी इतना योग्य नहीं था। उसके इब्री और दास होने के तथ्य को यदि उसके प्रमाणित विवेक और ठोस न्यायप्रियता के विरूद्ध तोला जाए तो वह तथ्य महत्वहीन था। “क्या हम को ऐसा पुरूष, जैसा यह है जिसमें परमेश्वर का आत्मा रहता है, मिल सकता है?” फिरोन ने अपने कर्मचारियों से कहा। PPHin 216.2
नियुक्ति पर निर्णय हो गया और युसुफ को यह आश्चर्यजनक उद्घोषणा की गई, “परमेश्वर ने जो तुझे इतना ज्ञान दिया है कि तेरे तुल्य कोई समझदार और बुद्धिमान नहीं, इस कारण तू मेरे घर का अधिकारी होगा, और तेरी आज्ञा के अनुसार मेरी सारी प्रजा चलेगी, केवल राजगद्दी के विषय में में तुझ से बड़ा ठहरूंगा ।” फिर फिरौन ने अपने हाथ से अंगूँठी निकालकर युसुफ के हाथ में पहना दी और उसके गले में सोने की चेन डाल दी और उसको बढ़िया मलमल के वस्त्र पहिनवा दिये और उसके अपने दूसरेस्थ पर चढ़वाया और लोग उसके आगे यह प्रचार करते चले कि घुटने टेककर दण्डवत करो।” PPHin 216.3
“उसने उसको अपने भवन का प्रबन्ध और अपनी पूरी सम्पत्ति का अधिकारी ठहराया कि वह उसके हाकिमों को अपनी इच्छा के अनुसार कैद करे और पुरनियों को ज्ञान सिखाए” भजन संहिता 105:21,22। कारागार से उठाकर युसुफ को मिस्र देश का अधिपति बनाया गया। यह एक अति सम्मानीय पद था, लेकिन यह कठिनाईयों और खतरों से भरा था। कोई भी ऊंचाई पर बिना खतरे के खड़ा नहीं रह सकता। आंधी तराई के तुच्छ फूलों को नुकसान नहीं पहुँचाती लेकिन पहाड़ों की चोटियों पर विशाल वृक्षों को जड़ से उखाड़ देती है। इसी प्रकार जिन्होंने अपने दीनता भरे जीवन में अपनी निष्ठा को कायम रखा, उन्हें भी सांसारिक सफलता और सम्मान पर आक्रमण करने वाले प्रलोभनों द्वारा गड्डे में खींचा जा सकता है। लेकिन युसुफ दरिद्रता और सम्पन्नता की परीक्षा में एक समान खरा उतरा। कारागार के कक्ष में और फिरीन की उपस्थिति में खड़े होने के समय भी उसके द्वारा परमेश्वर के प्रति एक समान निष्ठा दिखाई गई। वह अभी एक मूर्तिपूजक देश में परदेशी था, जो परमेश्वर के भक्तों से, अपने परिजनों से बिछड़ गया था, लेकिन उसे पूरा विश्वास था कि परमेश्वर का हाथ उसका मार्गदर्शन करता था, और सर्वदा परमेश्वर पर निर्भर रहकर उसने अपने पद से सम्बन्धित कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन किया। युसुफ के माध्यम से फिरौन और मिस्र के प्रतिष्ठित मनुष्यों का ध्यान सच्चे परमेश्वर की ओर गया, और हालाँकि वे मूर्तिपूजा से जुड़े रहे लेकिन उन्होंने यहोवा के उपासकों के चरित्र और जीवन में प्रदर्शित सिद्धान्तों का सम्मान करना सीखा। PPHin 217.1
बुद्धिमता, धार्मिकता व चरित्र की दृढ़ता का ऐसा कीर्तिमान स्थापित करने में युसुफ कैसे कामयाब हुआ? अपने प्रारम्भिक वर्षा में उसने प्रवृति से अधिक कर्तव्य पर ध्यान दिया था, और उसकी नौजवानी की निष्ठा, सरल विश्वास व नग्न स्वभाव उसकी प्रौढ़ अवस्था में फलवन्त हुए । एक पवित्र और सादगी भरे जीवन ने विवेक सम्बन्धी व शारीरिक योग्यताओं के सशक्त विकास में योगदान दिया। परमेश्वर के कामों द्वारा उसके साथ संपर्क से और विश्वास के उत्तराधिकारियों को सुपुर्द किये गए सर्वश्रेष्ठ सत्यों के चिंतन ने उसके आध्यात्मिक स्वभाव को उन्नत और उदात्त किया और उसके विवेक को उदार और प्रबल किया जो अन्य कोई शिक्षा नहीं कर सकती थी। प्रत्येक स्थान पर छोटे से बड़े कामों में कर्तव्य-निष्ठा उसकी प्रत्येक योग्यता को उच्चतर सेवा के लिये प्रशिक्षित कर रही थी। जो सृष्टिकर्ता की इच्छा के अनुसार जीवन व्यतीत करता है, उसमें चरित्र का सबसे सच्चा और सबसे उत्कृष्ट विकास होता है। अय्यूब 28:28 में लिखा है, “प्रभु का भय मानना यही बुद्धि है और बुराई से दूर रहना वही समझ है।” PPHin 217.2
बहुत कम है जिन्हें चरित्र के विकास पर जीवन की छोटी-छोटी बातों के प्रभाव का आभास होता है। जिसका सम्बन्ध हम से है छोटा नहीं होता। विभिन्न परिस्थितियाँ जिनका हम दिन-प्रतिदिन सामना करते हैं, हमारी निष्ठा को परखने के लिये और हमें उच्चतम दायित्व के लिये योग्य बनाने के लिये बनाई गई है। सामान्य जीवन के व्यवहार में सिद्धान्तों का पालन करने से हमारा मन प्रवृति और भोग से ऊपर उठकर कर्तव्य पालन करने का अभ्यस्थ हो जाता है। इस प्रकार अनुशासित किया गया विवेक हवा में कंपकृपाती घास की तरह सही और गलतके बीच नहीं झूलता। वे कर्तव्य के प्रति निष्ठावान होते है क्योंकि उन्होंने स्वयं को सत्यवादिता और कर्तव्य परायणता के अभ्यास में प्रशिक्षित किया है। सबसे तुच्छ बातों में ईमानदारी के द्वारा वह महत्वपूर्ण विषयों में ईमानदार होने की शक्ति प्राप्त करते है। PPHin 218.1
एक धर्मी चरित्र का मूल्य ओपीर के क॒न्दन से भी अधिक है। इसके अभाव में कोई भी सम्मानीय प्रतिष्ठा नहीं पा सकता। लेकिन चरित्र मीरास में नहीं मिलता। इसे खरीदा नहीं जा सकता। नैतिक विशिष्टता और उत्कृष्ट बौद्धिक आचरण संयोग का परिणाम नहीं है। उत्तम बहुमूल्य योग्यताओं को उन्नत न किया जाए, तो उनका कोई महत्व नहीं। उत्कृष्ट चरित्र की रचना जीवनभर का कार्य है और अथक और निरन्तर प्रयत्न का परिणाम है। परमेश्वर अवसर प्रदान करता हैं, सफलता उसके उपयोग पर निर्भर करती है। PPHin 218.2