कुलपिता और भविष्यवक्ता
अध्याय 14—सदोम का विनाश
यह अध्याय उत्पत्ति 19 पर आधारित है
सदोम, यर्दन घाटी के नगरों में सबसे सुन्दर उस मैदान में स्थित था जो सौंदर्य और उर्वरता में परमेश्वर की वाटिका जैसा था। यहाँ पर उष्णकटिबन्ध की प्रचुर वनस्पति फलती-फलती थी । और यहां खजूर, जेतून और दाखलता का घर था, और यहाँ साल भर फल अपनी सुगन्ध बिखेरते थे। मैदानों भरपूर उपज के आवतृथे और ने ढका हुआ था और भेडों और गाय-बैलों ने मैदानकों ढांक रखा था। कला और व्यापार ने इस समभूमि को समृद्ध बनाने में योगदान दिया। पूरब के खजाने वहां के महलों को सुसज्जित करते थे, और रेगिस्तान के कारवां वहाँ के व्यापार के बाजारों की आपूर्ति करने के लिये बहुमूल्य वस्तुओं के भण्डार लाते थे। कुछ ही श्रम और चिंतन करने से जीवन की हर आवश्यकता की आपूर्ति हो जाती थी और पूरा साल उत्सव की एक पारी प्रतीत होता था। PPHin 151.1
हर तरफ प्रचुरता के प्रभाव ने घमण्ड और भोग-विलास को बढ़ावा दिया। जिस हृदय ने कभी अभाव या कष्ट की पीड़ा नहीं सहन की हो उसे आलस्य और धन कठोर बना देता है। मनोरंजन के प्रेम को धन और खाली समय बढ़ावा देता है और लोग कामुक विलासिता में डूब जाते है। यहेजकेल 16:49,50 में लिखा है, “देख तेरी बहन सदोम का अधर्म यह था, कि वह अपनी पुत्रियों सहित घमण्ड करती, पेट भर-भर के खाती और सुख-चैन से रहती थी, और दीन दरिद्र को न सम्भालती थी। अतः: वह गर्व करके मेरे सामने घृणित काम करने लगी, और यह देखकर मैंने उन्हें दूर कर दिया।” धन और खाली समय से अधिक, मनुष्य को और किसी चीज की अभिलाषा नहीं होती । PPHin 151.2
लेकिन इनसे ही वे पाप उत्पन्न हुए जिनके कारण शहरों का सर्वनाश हुआ। उनके बेकार, आलसी जीवन ने उन्हें शैतान के प्रलोभनों का शिकार बनाया और उन्होंने परमेश्वर की छवि को विकृत कर दिया और वे पवित्र बनने के बजाए शैतानी बन गए। आलस्य मनुष्य के लिये सबसे बड़ा शाप है, क्योंकि अपराध और बुराई इसके पीछे आती है। यह विवेक को असमर्थ बनाता है, समझ को पथ भ्रष्ट कर देता है और आत्मा को हीन बना देता है। शैतान घात लगाए बैठा रहता है, असावधानी को नष्ट करने के लिये तैयार, जिनका खाली समय उसे आकर्षक स्वांग की आड़ में भड़काने का अवसर देता है। मनुष्य के आलस भरे समय में वह ज्यादा सफल होता है। PPHin 151.3
सदोम में आमोद-प्रमोद और धूमधाम, भोजपान और मादकता का वातावरण था। सबसे घिनौने और असभ्य मनोविकार असंयमित थे। लोग खुले आम परमेश्वर और उसकी आज्ञा की अवहेलना करते थे और हिंसक कत्यों में आनन्दित होते थे। हालांकि उनके सामने जलप्रलय पूर्व जगत का उदाहरण था, और उन्हें ज्ञात था कि किस तरह परमेश्वर का क्रोध उसके विनाश द्वारा प्रकट हुआ था, फिर भी उन्होंने दुष्टता का वही मार्ग चुना। PPHin 152.1
लूत के सदोम में स्थानान्तरित होने के समय, भ्रष्टाचार सार्वजनिक नहीं हुआ था और दयावान परमेश्वर ने नैतिक अन्धकार के बीच प्रकाश की किरणों को आने दिया था। जब अब्राहम ने एलाम वासियों से बन्धकों को मुक्त कराया लोगों का ध्यान सच्चे विश्वास की ओर गया। सदोम वासियों के लिये अब्राहम परदेशी नहीं था और अदृश परमेश्वर की आराधना उनके लिये हास्यास्पद था, लेकिन उच्चतर शक्तियों पर उसकी विजय, और उसके कैदियों और लूट सम्बन्धित उदार व्यवहार ने लोगों में अचरज और उत्साह उत्पन्न किया। उसके कोशल और साहसको सराहा गया और कोई भी इस बात को नकार नहीं सका कि उसे एक पवित्र सामर्थ्य ने विजेता बनाया था। उसकी भद्र और निःस्वार्थी भावना, जो सदोम के स्वार्थी निवासियों के लिये अपरिचित थी, उस धर्म की श्रेष्ठा का एक और प्रमाण थी, जिसका उसने साहस और निष्ठा से सम्मान किया था । PPHin 152.2
अब्राहम को आशीष देते समय मलिकिसिदक ने यहोवा को उसकी सामर्थ्य का स्रोत और उसकी विजय का कर्ता माना था, “परमप्रधान ईश्वर की ओर से, जो आकाश और पृथ्वी का अधिकारी है, तू धन्य हो, और धन्य है, परमप्रधान ईश्वर, जिसने तेरे द्रोहियों को तेरे वश में किया”-उत्पत्ति 14:19,20 । परमेश्वर उन लोगों से अपनेईश्वरीय व्यवधान द्वारा बात कर रहा था, लेकिन पहले की तरह अब भी प्रकाश की अन्तिम किरण को बहिष्कृत कर दिया गया। PPHin 152.3
ओर अब सदोम की अन्तिम रात होने को थी। प्रतिशोध के बादलों की परछाई उस शहर पर पड़ चुकी थी। लेकिन मनुष्य ने उसे नहीं देखा। स्वर्गदूत विनाश के अभियान के साथ निकट आ रहे थे। अन्तिम दिन भी अन्य दिनों के समान था। सुन्दरता और सुरक्षा के दृश्य पर शाम हो चली। अतुल्य सौन्दर्य के प्राकतिक दृश्य डूबते हुए सूरज की किरणों में नहाए हुए थे। संध्याकाल की ठंडक ने नगर वासियों का आहवान किया और आमोद-प्रमोद प्रेमी झुण्ड समय का आनंद लेने को तत्पर इधर-उधर घूम रहे थे। PPHin 152.4
धुंधले प्रकाश में दो अपरिचित नगर के द्वार के निकट आए। वह देखने में यात्री लग रहे थे जो रात को रूकना चाहते थे। कोई भी सोच नहीं सकता था कि यह सीधे-साधे यात्री पवित्र दण्डाज्ञा के शक्तिशाली अग्रदूत थे और उस बेपरवाह, विलासी भीड़ ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि उसी रात उन आलौकिक सन्देशवाहकों के साथ दुर्व्यवहार करने में वह अपने अपराध बोध की चरमावस्था पर पहुँच जाएंगे जो उस अभिमानी शहर के विनाश का कारण होगा। लेकिन एक मनुष्य था जिसने इन अनजान मनुष्यों पर ध्यान दिया और उन्हें अपने घर में आमन्त्रित किया। लूत को उनका वास्तविक चरित्र नहीं मालूम था, लेकिन अतिथि-सत्कार और शिष्टता उसके स्वभाव में थे, यह उसके धर्म का हिस्सा थे- वह सीख जो उसे अब्राहम के उदाहरण से मिली थी। यदि उसने कृतज्ञता की भावना को विकसित नहीं किया होता तो उसे भी शेष सदोम के साथ नष्ट होने के लिये छोड़ दिया जाता। कई घरानोंने अपरिचितों पर अपने घरों के द्वार बन्द करके परमेश्वर के दूतों को अन्दर नहीं आने दिया जो उनके लिये आशीष शान्ति और आशा लेकर आते। PPHin 153.1
जीवन का प्रत्येक कर्म, चाहे कितना भी अमहत्वपूर्ण हो, अच्छा या बुरा होता है। सबसे निम्न कर्तव्यों में निष्ठा या उपेक्षा या तो जीवन के लिये सबसे समृद्धिपूर्ण आशीर्वाद या सबसे बड़े संकट के लिये द्वार खोलती है। छोटी-छोटी बातों से चरित्र की परख होती है। वे दैनिक आत्म-समर्पण के अकृत्रिम कार्य जिन्हें प्रसन्नतापूर्वक स्वेच्छा से किया जाता है, परमेश्वर की मुस्कराहट का कारण है। हमें स्वयं के लिये नहीं वरन् दूसरों के लिये जीना चाहिये। स्वयं को भूलने से, एक स्नेहमय, उपकारी भावना को संजोने में हम अपने जीवन को आशीष बना सकते है। थोड़ा सा ध्यान, साधारण शिष्टाचार जीवन के सुख का सार बनाने में बहुत दूर तक जाते है, और इनकी उपेक्षा मानवीय दुदर्शा को बढ़ाती है। PPHin 153.2
सदोम में उन अपरिचितों का शोषण होने की सम्भावना को देख, लूत ने उनकी सुरक्षा को अपना कर्तव्य समझा और उनके जलपान का प्रबन्ध अपने घर में किया। यात्रियों के आगमन के समय वह द्वार पर ही बैठा था और उन्हें देखकर उनसे भेंट करने को उठा और शिष्टतापूर्ण अभिवादन करते हुए बोला, “हे मेरे प्रभुओं, अपने दास के घर में पधारिये, और रात भर विश्राम कीजिये, लेकिन उसके अतिथि सत्कार को स्वीकार न करते हुए वे बोले, “नहीं, हम चौक ही में रात बिताएंगे।” उनके इस उत्तर में दोहरा लक्ष्य था-लूत की नेकनीयती की परख करना और सदोम के पुरूषों के चरित्र के बारे में अनजान प्रतीत होना, जैसे कि उनका मानना था कि चौक में रात बिताना सुरक्षित था। उनके उत्तर नेलूत को, उन्हें भीड़ की दया पर न छोड़ने के लिये, और दृढ संकल्पी बना दिया । वो तब तक आग्रह करता रहा, जब तक कि वे मान न गए और उसके साथ उसके घर न चले गए। PPHin 153.3
उन दो अनजान व्यक्तियों को टेढ़े-मेढ़े मार्ग से अपने घर लाने में वह अपने आशय को द्वार पर खड़े कामचोरों से छुपाना चाहता था, लेकिन उनकी हिचकिचाहट और विलम्ब और उसके हठी आग्रह के कारण वे नजर में आ गए और इससे पहले कि वह रात की नींद ले पाते, लूत के घर के बाहर नौजवान व वृद्ध पुरूषों का बहुत बड़ा झुण्ड एकत्रित हो गया। अनजान व्यक्ति सदोम की विशेषताओं के बारे में पूछ-ताछ कर रहे थे, और लूत ने उन्हें उस रात बाहर जाने का दुस्साहस न करने की सलाह दी, जब उन अनजान व्यक्तियों को उनके हवाले कर दिये जाने के लिये भीड़ का हो हल्ला और हंसी उड़ाने की आवाजें सुनाई दी। PPHin 154.1
यह जानते हुए कि यदि उन्हें हिंसा के लिये उकसाया गया, तो वे उसके घर में आसानी से घुस आएंगे, लूत ने बाहर जाकर समझाने बुझाने के प्रभाव को परखना चाहा। उसने कहा, “हे मेरे भाईयों, ऐसी बुराई न करो”। ‘भाईयो’ शब्द के प्रयोग उसका तात्पर्य पड़ीसियों से था और वह उनसे समझौता करने की और उनके दुष्टतापूर्ण उद्देश्य के लिये उन्हें लज्जित करने की आशा कर रहा था। लेकिन उसके शब्दों ने आग में घी डालने का काम किया। उनका क्रोध तूफान की गड़ग़ड़ाहट जैसा प्रतीत होने लगा। स्वयं को उनके ऊपर न्यायाधीश जैसे मानने में उन्होंने लूत का तिरस्कार किया और उसे धमकी दी कि वह उसके साथ परेदेशियों के साथ किये जाने वाले व्यवहार से भी दुष्टतर व्यवहार उसके साथ करेंगे। वे उस पर कद पड़े और यदि परमेश्वर के दूतों ने उसे नहीं बचाया होता तो वे उसके टुकड़े-टुकड़े कर देते। तब उन अतिथियों ने हाथ बढ़ाकर उसे घर के अन्दर अपने पास खींच लिया और किवाड़ को बन्द कर दिया। उसके बाद की घटनाओं से उन अतिथियों का जिनका उसने सत्कार किया था, चरित्र उजागर हो गया। “उन्होंने क्या छोटे, क्या बड़े, सब पुरूषों को जो घर के द्वार पर थे, अन्धा कर दिया, अतः: वे द्वार को टटोलते-टटोलते थक गए।” यदि उन पर दोगुना अन्धापन न छाया होता तो उनके हृदय की कठोरता के कारणवश, परमेश्वर की मार ने उन्हें डरने, और बुराई से बचने को बाध्य किया होता। उस रात भी वही सब पाप हुए जो अब तक होते आए थे, लेकिन अनुम्रह, जिसका अभी तक तिरस्कार किया गया था, का आग्रह समाप्त हो गया। सदोम के वासियों ने परमेश्वर की सहिष्णुता की सीमा को लांघ लिया था- “परमेश्वर के धैर्य और क्रोध के बीच की अदृश्य सीमा।” सिद्दिम की घाटी में उसके प्रतिशोध की ज्वाला भड़कने वाली थी। PPHin 154.2
स्वर्गदूतों ने लूत को अपने अभियान से अवगत कराया, “हम यह स्थान नष्ट करने पर हैं, इसलिये कि इसकी चिललाहट यहोवा के सम्मुख बढ़ गई है, और यहाोवाने हमें इसका सर्वनाश करने के लिये भेजा है”।। जिन परदेशियों को लूत ने सुरक्षा प्रदान की थी, उन्होंने अब उसे और उसके साथ उस दुष्टतापूर्ण नगर से भाग लेने को तैयार परिवार के सदस्यों की सुरक्षा का वचन दिया। भीड़ अब थक कर जा चुकी थी और लूत अपने बच्चों को चेतावनी देने गया। उसने स्वर्गदूत के शब्द दोहराए, “उठो, इस स्थान से निकल चलो, क्योंकि यहोवा इस नगर को नष्ट करने पर है” पर वह उनकी दृष्टि में ठटूठा करने वाला जान पड़ा। जिसे वह उसका अंधविश्वासी भय समझते थे, उस पर वे हंसने लगे। उसकी पुत्रियाँ अपने पतियों के प्रभाव में थी। वे जहां भी थे समृद्ध थे। उन्हें संकट का कोई संकेत नहीं मिल रहा था। सब क॒छ पहले के समान ही था। उनके पास धन सम्पत्ति थी और सुन्दरतापूर्ण सदोम के सर्वनाश की सम्भावना में वे विश्वास नहीं कर पा रहे थे। PPHin 155.1
दुःखी होकर लूत अपने घर लौट आया और अपनी असफलता की कहानी सुनाई। तब स्वर्गदूतों ने उसे उठ जाने को और अपनी पत्नी और दोनों पुत्रियों को, जो अभी भी उसके घर में थी, नगर छोड़ने को कहा। लेकिन लूत विलम्ब करता रहा। हालांकि वह प्रतिदिन होने वाली हिंसक घटनाओं से दुखित था, लेकिन उस दुष्टतापूर्ण शहर में प्रचलित नीचतापूर्ण और घृणित दुष्टता की उसे वास्तविक समझ नहीं थी। पाप पर रोक लगाने के लिये परमेश्वर की दण्डाज्ञा की विवश्ता को वह समझ नहीं पाया। उसकी सनन््ताने सदोम से जुड़ी रही, और उसकी पत्नी उनके बिना जाने को तैयार न थी। जो धरतीपर उसे प्रिय थे, उन्हें छोड़कर जाने का दर्द उसकी सहनशक्ति के बाहर था। सम्पूर्ण जीवन के परिश्रम से प्राप्त की गई धन-सम्पत्ति और भव्य आरामदेह घर को छोड़ कर एक निराश्रित पथिक के रूप में जाना कठिन था। कष्ट से पथराया हुआ, प्रस्थान के लिये अप्रसन्न, लूत विलम्ब करता रहा। परमेश्वर के दूतों की सहायता के बिना वे सदोम के सर्वनाश में नष्ट हो जाते। उन्होंने लूत का और उसकी पत्नी और दोनों पुत्रियों का हाथ पकड़ा और उनको निकालकर नगर के बाहर कर दिया। PPHin 155.2
यहाँ उन्हें स्वर्गदूतों ने छोड़ा, और सर्वनाश के कार्य को सम्पन्न करने के लिये सदोम की और मुड़े। एक और जिससे अब्राहम ने विनती की थी लूत के पास आया। तराईं के सारे नगरों के लोगों को मिलाकर दस लोग भी धर्मी नहीं पाए गये, लेकिन कुलपिता की प्रार्थना के उत्तर में, परमेश्वर का भय मानने वाला एक व्यक्ति सर्वनाश होने से बचाया गया। आज्ञा आश्चर्यजनिक उग्रता से दी गई, “अपना प्राण लेकर भाग जा, पीछे की ओर न ताकना और तराई भर में न ठहराना, उस पहाड़ पर भाग जाना, नहीं तो तू भी भस्म हो जाएगा।” हिचकिचाहट या विलम्ब अब घातक हो सकता था। उस भव्य नगर पर एक टकटकी दृष्टि, सुन्दर घर को छोड़ने के दुःख में क्षण भर का विलम्ब उनकी जान ले सकता था। पवित्र दण्डाज्ञा का तूफान केवल इसलिये थमा हुआ था कि यह दीन पलायक अपनी निकासी कर सके । PPHin 156.1
लेकिन असमंजम में और भयभीत लूत ने विनती की वह ऐसा नहीं कर सकता था इस डर से कि कोई विपित्त उस पर आ पड़ेगी और वह मर जाएगा। उस दुष्टतापूर्ण नगर ने अविश्वास के बीच रहते हुए उसका विश्वास घट गया था। स्वर्ग का राजकुमार उसके साथ था, फिर भी वह अपने प्राणों के लिये इस प्रकार विनती करता रहा मानो, जिस परमेश्वर ने उसके प्रति इतना प्रेम और दया दिखाई थी वह उसको नहीं बचाएगा। उसे स्वयं पवित्र सन्देशवाहक पर निर्भर करना चाहिये था और बिना प्रश्न किए नि:सन्देह अपनी इच्छा और अपने प्राणों को परमप्रधान के हाथों में दे देना चाहिये था, “देख वह नगर निकट है कि मैं वहां भाग सकता हूँ, और वह छोटा भी है। मुझे वहीं भाग जाने दे, (क्या वह नगर छोटा नहीं हैं) और मेरा प्राण बच जाएगा।” यह बेला नामक नगर था, जिसका बाद में सोअर नाम पड़ा। यह सदोम से कुछ ही दूरी पर था और उसी तरह भ्रष्ट और विनाश का पात्र था। लेकिन लूत ने सोअर को नष्ट न करने की विनती की, यह आग्रह करते हुए कि यह उसका छोटा सा निवेदन था और उसकी इच्छा मान ली गईं। परमेश्वर ने उसे आश्वस्त किया, “मैंने इस विषय में तेरी विनती स्वीकार की है, कि जिस नगर की चर्चा तूने की है, उसको मैं नष्ट न करूंगा ।” “कितना महान है, पापी प्राणियों के प्रति परमेश्वर का अनुग्रह । PPHin 156.2
फिर से लूत को जल्दी करने की आज्ञा दी गई क्योंकि ज्वलंत तूफान को केवल कुछ और समय तक रोका जा सकता था। लेकिन एक निराश्रित ने शापित नगर की ओर दृष्टि फेरकर पीछे की ओर देखा और वह परमेश्वर की दण्डाज्ञा का स्मारक बन गईं। यदि स्वयं लूत ने स्वर्गदूत कीचेतावनी को बिना हिचकिचाए मान लिया होता, और निष्ठापूर्वक पहाड़ों की ओर, बिना विनती और आपत्ति के, भाग गया होता तो उसकी पत्नी भी अपने आप को बचा पाती। उसके उदाहरण के प्रभाव ने उसे बचा लिया होता उस पाप से जिसके कारण उसका विनाश निश्चित हुआ। लेकिन लूत की हिचकिचाहट और विलम्ब के कारण उसने ईश्वरीय चेतावनी को गम्भीरता से नहीं लिया। उसका शरीर तो तराई पर था, लेकिन उसका हृदय सदोम से जुड़ा था और वह उसी के साथ नष्ट हो गई। उसने परमेश्वर का विरोध किया क्योंकि विनाश के सन्दर्भ में परमेश्वर की दण्डाज्ञा उसकी धन सम्पत्ति और उसकी संतानों से सम्बन्धित थी । हालाँकि दुष्ट नगर से बाहर बुलाए जाने की कृपा की वह पात्र थी, लेकिन उसे लगा कि उसके साथ दुर्व्यवहार किया गया था, क्योंकि जिस धन-दौलत को संचय करने में कई वर्ष लग गए थे, उसी का छोड़ देना पड़ रहा था। धन्यवाद के साथ मुक्ति को स्वीकार करने के बजाय उसने ध्रष्टतापूर्वक पवित्र चेतावनी का तिरस्कार करने वालों के जीवन की इच्छा करते हुए पीछे मुड़ कर देखा। उसके पाप ने उसे जीवित रहने के अयोग्य ठहराया, क्योंकि उस जीवन के संरक्षण के प्रति उसने अकृतज्ञता दिखाई । PPHin 157.1
हमारे उद्धार के लिये परमेश्वर की अनुग्रहकारी योजनाओं को हलके में लेने से सावधान रहना चाहिए। कई मसीही कहते हैं, “जब तक मेरे बच्चे और मेरे साथी मेरे साथ ही बचाएं जाते मुझे स्वयं को बचाए जाने में कोई दिलचस्पी नहीं उन्हें लगता है कि उनकी, जो उन्हें इतने प्रिय है, उपस्थिति के अभाव में स्वर्ग, स्वर्ग समान नहीं लगेगा। लेकिन क्या ऐसी भावना रखने वालों को, उसकी अच्छाई और अनुग्रह को देखते हुए, परमेश्वर के साथ अपने सम्बन्ध की सही समझ है? क्या वे भूल गए कि वे अपने सृष्टिकर्ता और उद्धारकर्ता की सेवा के प्रति आदर और निष्ठा और प्रेम के पक्के बन्धन में बन्धे हुए हैं। अनुग्रह का आमन्त्रण सब के लिये है, लेकिन क्योंकि हमारे मित्र उद्धारकर्ता के आग्रहपूर्ण प्रेम को स्वीकार नहीं करते, क्या हम भी मुहँ फेर लें? आत्माओं का बचाया जाना महत्वपूर्ण है। मसीह ने हमारे उद्धार के लिये भारी रकम चुकाई है और जो भी इस महान त्याग का और आत्मा के मोल का मान करता है, दूसरों की तरह वह परमेश्वर के अनुग्रह को तिरस्कार नहीं करेगा। इस सत्य से, कि अन्य लोग उसके न्यायपूर्ण दावों को अनेदखा कर रहे हैं, हमारे अन्दर यत्न की धुन जागृत होनी चाहिये, जिससे कि उन सभी को, जिन्हें हम प्रभावित कर सकते हैं, उसके प्रेम का अंगीकार करा सके । PPHin 157.2
“लूत के सोअर के निकट पहुँचते ही सूर्य पृथ्वी पर उदय हुआ।” प्रात: काल की स्वर्णिम किरणे, तराई के नगरों में केवल शान्ति और समृद्धि का संकेत दे रही थी। सड़को पर सक्रिय जीवन की हलचल शुरू हो गई थी, लोग अपने-अपने रास्ते जा रहे थे और दिन के मनोरंजन या व्यापार के लिये प्रयत्नशील थे। लूत के दामाद क्षीण-बुद्धि वृद्ध पुरूष की चेतावनी और शंका का ठटठा कर रहे थे।बादल रहित आकाश से बिजली की गड़गड़ाहट सा एक अनपैक्षित व अचानक तुफान आ गया। यहोवा ने समृद्ध तराई व नगरों पर आकाश से गन्धक और आग बरसाई, जिसमें, वहां के महल और मन्दिर, भव्य भवन, वाटिकाएं और अंगूर के बाग और प्रसन्नचित, आमोद-प्रमोद प्रेमी जिन्होंने बीती रात ही स्वर्ग के सन्देशवाहकों का अपमान किया था, सब भस्म हो गए। अग्निकाण्ड का धुआ एक विशाल भट्टी के धुए की तरह उठने लगा। सिद्दिम की घाटी निर्जन हो चली जिसका पुनःस्थापित होना या जनपूर्ण होना असम्भव था। यह आज्ञा उल्लंघन के लिये परमेश्वर की दण्डाज्ञा की निश्चित्ता का सब पीढ़ियो के लिये साक्ष्य था। जिन लपटों ने तराई के नगरों को भस्म किया, उन्होंने अपनी चेतावनी का प्रकाश हमारे समय तक भेजा है। हमें यह भयावह और महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाया जाता है कि परमेश्वर की दया पापी को बहुत देर तक सहन करती है लेकिन पापी के पाप करने की एक सीमा होती है। उस सीमा पर पहुँचने पर कृपा का प्रस्ताव समाप्त कर दिया जाता है और न्याय की परिचर्या का प्रारम्भ होता है। PPHin 158.1
जगत का मुक्तिदाता घोषित करता है कि इससे भी बड़े पाप हैं जिनके लिये सदोम और अमोरा का विनाश किया गया। जो लोग पापियों को पश्चाताप के लिये बुला रहे, सुसमाचार के आमंत्रण को सुनकर भी अनसुना कर देते हैं, वे परमेश्वर के सामने सिद््दिम की तराई के वासियों से भी ज्यादा दोषी है। उससे भे बड़ा पाप उनका है जो परमेश्वर को जानने का और उसकी आज्ञाओं का पालन करने का दावा करते है, लेकिन अपने दैनिकजीवन और अपने चाल-चलन से परमेश्वर को नकारते है। उद्धारकर्ता की चेतावनी के प्रकाश में, सदोम की नियति एक औपचारिक प्रबोधन है केवल उन्हीं के लिये नहीं जो पाप को बढ़ाने के दोषी हैं, वरन् उस सब के लिये जो स्वर्ग द्वारा भेजे गऐ प्रकाश और विशेषाधिकारों के साथ खेल रहे हैं। PPHin 158.2
प्रकाततवाक्य 2:4,5 में लिखा है, जो सच्चे साक्ष्यों ने इफिसियों की कलीसिया से कहा, “पर मुझे तरे विरूद्ध यह कहना है कि तूने अपना पहला सा प्रेम छोड़ दिया है। इसलिये स्मरण कर कि तू कहाँ से गिरा है, और मन फिरा और पहले की तरह काम कर ।” एक सांसारिक अभिभावक को अपने दुखी हठधर्मी पुत्र को क्षमा करने के लिये हृदय को विवश करने वाली से और अधिक संवेदनशील करूणा के साथ उचद्धारकर्ता प्रेम और क्षमा के अपने प्रस्ताव की प्रतिक्रिया की बाट जोहता है। वह भटके हुओं से कहता है, “तुम मेरी ओर फिरो, तब मैं भी तुम्हारी ओर फिरूगा”-मलाकी 3:7। लेकिन यदि गलती करने वाला करूणामयी मधुर प्रेम से बुलाती हुई आवाज की लगातार अवहेलन करता है, तो वह अंधेरे में छोड़ दिया जाएगा। जो हृदय परमेश्वर के अनुग्रह को तुच्छ समझता है, वह पाप के कारण कठोर हो जाता है और परमेश्वर के अनुग्रह के प्रभाव को ग्रहण करने योग्य नहीं रहता। उनका विनाश बहुत ही भयावह होगा जिनके लिये प्रार्थनापूर्वक उद्धारकर्ता अन्तत: घोषणा करेगा, यह ‘मूरतों का संगी हो गया है, इसलिये उसको रहने दो”-होगी 4:17। न्याय का दिन तराई के नगरवासियो की तुलना में उनके लिये अधिक असहनीय होगा जिन्होंने मसीह के प्रेम को जानते हुए भी उसे पीठ दिखाकर पापी संसार के आमोद-प्रमोद को चुना। PPHin 159.1
तुम में से जो दया के प्रस्ताव को तुच्छ मान रहे हो, स्वर्ग की पुस्तकों में तुम्हारे विरूद्ध लम्बी सूची के बारे में सोचो, क्योंकि व्यक्तियों, परिवारों और राज्यों की अधार्मिकता का लेखा-जोखा रखा जाता है। परमेश्वर तब तक सहन करेगा, जब तक हिसाब चालू है और पश्चाताप और क्षमा का अवसर प्रदान करता है, लेकिन एक समय आएगा जब हिसाब पूरा हो जाएगा, जब प्राणी का निर्णय हो चुका होगा। जब उसके चयन से उसकी नियति निश्चित हो जाएगी फिर न्याय के निष्पादन का संकेत दे दिया जाएगा। PPHin 159.2
आज के धार्मिक जगत की स्थिति में खतरे का संकेत है। परमेश्वर की करूणा को हलके में लिया गया है। जनसाधारण ने मनुष्यों की विधियों को धर्मोपदेश करके सिखाते हुए यहोवा की व्यवस्था को खोखला कर दिया है। (मत्ती 15:9) हमारे देश की कई कलीसियों में अधर्म का प्रचलन है, बाईबिल को नकारने का अधर्म नहीं जो कि बहुत साधारण है, वरन मसीहत के वेष में ढका अधर्म जो बाईबिल को परमेश्वर का प्रकाशितवाक्य होने के विश्वास को खोखला कर देता है। जोश से भरी भक्ति और प्राणाधार धर्मनिष्ठता का स्थान निराधार रीतिवाद ने ले लिया है। इसके परिणामस्वरूप धर्मत्याग और भोगवाद प्रचलित है। मसीह ने घोषणा की, “और जैसा लूत के दिनो में हुआ था, मनुष्य के पुत्र के प्रगट होने के दिन भी ऐसा ही होगा” लूका 17:28-30 प्रासंगिक घटनाओं का देनिक आलेख उसके वचन का पूरे होने की साक्षी देता है। संसार विनाश के लिये तैयार हो रहा है। परमेश्वर की दण्डाज्ञा जल्द ही उंडेली जाएगी और पाप और पापी भस्म हो जाएंगे । PPHin 159.3
लूका 21:34-36में उद्धारकर्ता ने कहा है, “इसलिये सावधान रहो, ऐसा न हो कि तुम्हारे मन खुमार, और मतवालेपन, और इस जीवन की चिन्ताओं से सुस्त ही जायें, और वह दिन तुम पर फन्दे के समान अचानक आ पड़े क्योंकि वह सारी पृथ्वी के सब रहने वालों पर इसी प्रकार आ पड़ेगा। इसलिये जागते रहो और हर समय प्रार्थना करते रहो कि तुम इन सब आने वाली घटनाओं से बचने और मनुष्य के पुत्र के सामने खड़े होने के योग्य बनो ।” PPHin 160.1
सदोम के विनाश से पूर्व, परमेश्वर ने लूत को सन्देश भेजा, “अपना प्राण लेकर भाग जा, पीछे की ओर न ताकना, और तराई भर में भी नहीं ठहरना, उस पहाड़ पर भाग जाना, नहीं तो तू भी भस्म हो जाएगा ।” यरूशलेम के विनाश से पहले यही चेतावनीपूर्ण आवाज मसीह के चेलों द्वारा सुनी गई, “जब तुम यरूशलेम को सेनाओं से घिरा हुआ देखो, तो जान लेना कि उसका उजड़ जाना निकट है। तब जो यहूदिया में हो वे पहाड़ो पर भाग जाएँ ।”-लूका 21:20,21 । उन्हें अपनी धन-सम्पत्ति में से कुछ बचाकर ले जाने में देर करने के बजाय वहाँ से भाग जाने के अवसर कापूरा लाभ उठाना चाहिये। PPHin 160.2
वहाँ से बाहर निकलना था, दुष्टों से सोचा-समझा सन्धि-विच्छेद था, वह जीवन को बचाने का उपाय था। जैसा कि नूह के दिनों में था, वैसा ही लूत के साथ हुआ, वैसा ही यरूशलेम के विनाश से पूर्व चेलों के साथ हुआ और अन्तिम दिनों में भी ऐसा ही होगा। फिर से परमेश्वर की वाणी सुनाई दी जिसमें चेतावनी का सन्देश था और जो लोगों को प्रचलित दुष्टता से अलग होने को कह रह रही थी । PPHin 160.3
अन्तिम समय में धार्मिक जगत में भ्रष्टाचार और अधर्म की अवस्था के होने का वर्णन भविष्यवक्ता यहुन्ना के बाबुल के स्वप्नदर्शन में प्रस्तुत किया गया है- “वह बड़ा नगर है जो पृथ्वी के राजाओं पर राजकरता है।”- प्रकातिवाक्य 17:18 । विनाश से पूर्व स्वर्ग से आवाज दी जाएगी, “हे मेरे लोगो, उसमेंसे निकल आओ कि तुम उसके पापों के भागी न हो, और उसकी विपत्ततयों में से कोई तुम पर न आ पड़े।” प्रकातिवाक्य 18:4 [लूत और नूह के दिनों के समान, पाप और पापियों का स्पष्ट रूप से अलग होना अनिवार्य है। परमेश्वर और संसार के बीच कोई समझौता नहीं हो सकता, ना ही सांसारिक निधि की प्राप्ति के लिये पीछे मुड़ा जा सकता है। मत्ती6:24 में लिखा है, “कोई मनुष्य दो स्वामियों की सेवा नहीं कर सकता । PPHin 161.1
सिद्दिम के तराई वासियों के समान, लोग समृद्धि और शान्ति का स्वप्न देख रहे हैं। परमेश्वर केदूतों द्वारा चेतावनी दी जाती है, “अपना प्राण लेकर भाग जा, लेकिन अन्य आवाजें यह कहते सुनाई देती हैं, “उत्तेजित न हो, चौंकने का कोई कारण नहीं।” जनसाधारण चिल्लाते है, “शान्ति और सुरक्षा,” जबकि स्वर्ग यह घोषणा करता है कि पापी का जल्द ही विनाश होने को है। विनाश के पूर्व की रात तराई के नगर खा पी रहे थे और परमेश्वर के सन्देशवाहकों की चेतावनी को उपहास में उडा रहे थे, लेकिन वह ठठठेबाज लपटों में भस्म हो गए, उसी रात सदोम के बेपरवाह व दुष्ट निवासियों के लिये दया का द्वार हमेशा के लिये बन्द हो गया। परमेश्वर हमेशा तिरस्कार नहीं होने देगा और ना ही स्वयं को हल्के में लेने देगा। यग्ञायाह 13:9में लिखा है “देखो, यहोवा का वह दिन रोष और क्रोध और निर्दयता के साथ आता है कि वह पृथ्वी को उजाड़ डाले और पापियों को उसमें से नष्ट करे। जगत के अधिकांश लोग परमेश्वर के अनुग्रह को अस्वीकार करते है और शीघ्रगामी असाध्य विनाश से पराजित होंगे। जो चेतावनी को गम्भीरता से लेते है वे “परमप्रधान के गुप्त स्थान में वास करेंगे, और “सर्वशक्तिमान की छाया में ठिकाना पाएंगे ।” उसकी सच्चाई उनके लिये ढाल और कवच होगा। उनके लिए प्रतिज्ञा है, “मैं उसको दीर्घायु से तृप्त करूंगा, और अपने किये हुए उद्धार का दर्शन दिखाऊंगा।” भजन संहिता 91:1,4,16 PPHin 161.2
लूत सोअर में कुछ ही समय क लिये रहा। सदोम की तरह यहां दुष्टता प्रचलित थी क्योंकि नगर के विनाश होने की संभावना के कारण वहां बसने से डरा हुआ था। कुछ ही समय पश्चात सोअर भस्म हो गया, जैसा कि परमेश्वर ने सोचा था। लूत पहाड़ो की ओर जाकर उस सब से वंचित जिसके लिये उसने अपने परिवार को उस दुष्ट नगर से प्रभावित होने देने का दुस्साहस किया था, एक गुफा में जाकर रहने लगा। लेकिन सदोम के श्राप ने वहां भी उसका पीछा नहीं छोड़ा । उसकी पुत्रियों का पापमय आचरण उस घृणित स्थान की बुरी संगति का परिणाम था। उसका नैतिक भ्रष्टाचार उनके चरित्र के साथ इस तरह घुल-मिल गया था कि वह अच्छाई और बुराई के बीच का अंतर नहीं समझ पायी। मोआबी और एमोनी, जो लूत के वंशज थे, वे पापी और मूर्तिपूजक, परमेश्वर के विद्रोही और उसके लोगों के शत्रु थे। PPHin 161.3
लूत का जीवन अब्राहम के जीवन से कितना अलग था। एक बार वह साथी थे, अपने तीर्थ यात्री तम्बुओं में पास-पास रहते हुए एक ही वेदी पर आराधना करते थे लेकिन अब एक दूसरे से कितने दूर हो गए थे। लूत में आमोद-प्रमोद और लाभ के लिये सदोम को चुना था। अब्राहम की वेदी और जीवित परमेश्वर को चढ़ाए जाने वाली बलि की भेटों को छोड़कर, उसने अपनी संतानों को भ्रष्ट और मूर्तिपूजा करने वालों के साथ मेल-जोल बढ़ाने की अनुमति दी, लेकिन अपने हृदय में उसने परमेश्वर के भय को बनाए रखा, क्योंकि पवित्र शास्त्र में उसे, ‘भला’ व्यक्ति कहा गया है, प्रतिदिन कानों में पड़ने वाला अधर्मी वार्तालाप और जिस हिंसा और अपराध को रोकने में वह असमर्थ था, उसकी धर्मी आत्मा को दुःखी कर देता था आखिर में, ‘आग से निकाली हुईं लकड़ी’ के समान उसे बचा लिया गया, (जकर्याह 3:2), लेकिन अपनी धन-सम्पत्ति से वंचित, पत्नी और संतानों के वियोग में, गुफाओं में जगंली-जन्तुओं समान रहते हुए, वह वृद्धावस्था में अप्रसिद्ध था। उसने जगत को धर्मी पुरूषों का वंश नहीं वरन दो मूर्तिपूजक राज्य दिये जो परमेश्वर के साथ शत्रुता करते थे और उसके लोगों के साथ युद्धरत थे। उनकी दुष्टता का कटोरा भरने पर उनका विनाश निश्चित था। एक गलत कदम का परिणाम कितना भयानक था। PPHin 162.1
बुद्धिमान पुरूष कहता है, “धनी होने के लिये परिश्रम न करना, अपनी समझ का भरोसा छोड़ना ।” “लालची अपने घराने को दुःख देता है, परन्तु घूस से घृणा करने वाला जीवित रहता है ।”-नीतिवचन 23:4, 15:27। प्रेरित पौलुस कहता है, “जो धनी होना चाहते है, वे ऐसी परीक्षा और फंदे और बहुत सी व्यर्थ और हानिकारक लालसाओं में फंसते है, जो मनुष्यों को बिगाड़ देती है और विनाश के समुद्र में डुबा देती है।” 1 तीमुथियुस 6:9 PPHin 162.2
जब लूत ने सदोम में प्रवेश किया वह अपने आप को पाप से मुक्त रखना चाहता था और अपने घराने का संचालन स्वयं करना चाहता था। लेकिन वह असफल रहा। उसके आस-पास भ्रष्टाचारी प्रभावों ने उसके विश्वास को प्रभावित किया और उसकी सन्तानों का सदोम वासियों के साथ सम्बन्ध के कारण उसकी भी रूधि उनके साथ जुड़ गई। परिणाम हमारे सामने है। PPHin 163.1
कई अभी भी यही गलती कर रहे है। घर के चयन में वे अपने परिवारों के आस-पास के नैतिक व सामाजिक वातावरण को देखने के बजाय प्राप्त होने वाले सांसारिक सुविधाओं को प्राथमिकता देते है। वे अधिक समृद्धि की प्राप्ति की आशा में किसी समृद्ध नगर में स्थानान्तरित हो जाते हैं या किसी उपजाऊ और सुन्दर नगर को चुनते है, लेकिन उनके बच्चे प्रलोभनों से घिर जाते हैं, और वे प्रायः ऐसी मण्डलियाँ बना लेते हैं जो अच्छे चरित्र के निर्माण और धार्मिकता के विकास के प्रतिकल होती है। धर्मभ्रष्टता, अविश्वास और धार्मिक विषयों के प्रति उदासीनता के वातावरण में अभिभावकों के प्रभाव का प्रतिकार करने की प्रवृति होती है। नौजवानों के सम्मुख ईश्वरीय व पैतृक प्रभुत्व के प्रति अतिक्रमण के कई उदाहरण है, कई नास्तिकों और अविश्वासियों केमोह में पड़ जाते है और परमेश्वर के शत्रुओं के सांचे में ढल जाते है। PPHin 163.2
घर के चयन में परमेश्वर चाहता है कि हम सर्वप्रथम अपने और अपने परिवारों के चारो तरफ के नैतिक व धार्मिक वातावरण पर ध्यान दें। हम कई बार तनावपूर्ण स्थितियों में पड़ सकते है क्योंकि हमें मनचाहा वातावरण नहीं मिलता, और जब भी हमारा कर्तव्य हमें बुलाता है, यदि हम मसीह के अनुग्रह में विश्वास रखकर सतक रहे और प्रार्थना करते रह परमेश्वर हमें शुद्ध रहने में सुयोग्य बनाएगा। लेकिन हमें अनावश्यक स्वयं को मसीही चरित्र निर्माण के लिये हानिकारक तत्वों के सामने नहीं लाना चाहिये। जब हम स्वेच्छा से स्वयं को अविश्वास और सांसारिकता के वातावरण में रख देते हैं, हम परमेश्वर को अप्रसन्न करते हैं और पवित्र दूतों को अपने घरों से बाहर कर देते है। PPHin 163.3
जो लोग सनातन लाभ के बदले अपनी संतान के लिये सांसारिक धन-सम्पत्ति और यश प्राप्त करते हैं, अन्त में इस लाभ से हानि उठाते है। लूत की तरह, कई अपने बच्चों को बर्बाद हुआ पाते हैं और अपनी आत्मा को भी मुश्किल से बचा पाते है। उनके जीवनभर का श्रम व्यर्थ हो जाता है और उनका जीवन एक दुखद असफलता। यदि उन्होंने वास्तविक बुद्धिमता से काम लिया होता, तो उनकी संतान के पास सांसारिक समृद्धि तो कम होती पर अनश्वर विरासत का अधिकार को सुरक्षित कर लिया होता। PPHin 163.4
जो विरासत परमेश्वर ने अपने लोगों के लिये प्रतिज्ञाबद्ध की है, वह इस संसार में नहीं है। अब्राहम के पास इस धरती पर कोई अधिकृत क्षेत्र नहीं था, “उसको कुछ मीरास वरन पैर रखने भर की भी उसमें जगह न दी।” उसके पासबहुत धन-सम्पत्ति थी, लेकिन उसका प्रयोग उसने परमेश्वर की महिमा और अपने परिजनों के भले के लिये किया, लेकिन वो इस संसार का अपना घर नहीं मानता था। परमेश्वर ने उसे मूर्तिपूजक देशवासियों को छोड़ने के लिये बुलाया था और चिरस्थायी सम्पत्ति के रूप में कनान का प्रदेश प्रतिज्ञाबद्ध किया था ।जब अब्राहम ने अपने मृतकों को गाड़ने के लिये स्थान चाहा, तो उसे कनानियों से खरीदनी पड़ी। प्रतिश्रुत देश में, मकपेला की गुफा में पत्थर काट कर बनायी गईं गुम्बद उसकी एकमात्र सम्पत्ति थी। PPHin 164.1
लेकिन परमेश्वर का वचन ना ही असफल हुआ था और ना ही यहूदियों के द्वारा कनान के कब्जा करने पर परिपूर्णता पर पहुँचा था। गलतियों 3:16में लिखा है, “अतः प्रतिज्ञाएं अब्राहम को और उसके वंश को दी गई ।” परमेश्वर की प्रतिज्ञा के परिपूर्ण होने में बहुत विलम्ब हो सकता है क्योंकि, “प्रभु के यहां एक दिन हजार वर्ष के बराबर है, और हजार वर्ष एक दिन के बराबर है।” 2 पतरस 3:8 । देर होती प्रतीत हो सकती है, लेकिन निर्धारित समय पर, “इसके पूरे होने का समय वेग से आता है, इनमें धोखा न होगा ।”-हबक्कूक 2:3 ।केवल कनान का प्रदेश ही नहीं, सम्पूर्ण पृथ्वी अब्राहम और उसके वंश के उपहार में सम्मिलित थी। रोमियों 4:13में प्रेरित कहता है, “यह प्रतिज्ञा कि वह जगत का वारिस होगा, न अब्राहम को न उसके वंश को व्यवस्था के द्वारा दी गई थी, परन्तु विश्वास की धार्मिकता के द्वारा मिली। और बाईबिल की शिक्षा यही है कि अब्राहम को दिए हुए वचन मसीह के द्वारा परिपूर्ण होंगे। जो भी मसीह के है, “वे अब्राहम के वंश और प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस है”- “एक अविनाशी, निर्मल और अजर मीरास के लिये” पाप के श्राप से मुक्त धरती। गलतियों 3:29, 1 पतरस 1:4 । “तब राज्य और प्रभुता और धरती पर के राज्य की महिमा, परमप्रधान ही की प्रजा अर्थात उसके पवित्र लोगों को दी जाएगी” और “नग्न लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे। दानिय्येल 7:27, भजन संहिता 37:11 PPHin 164.2
परमेश्वर ने अब्राहम को अनश्वर विरासत की झलक दिखलाई और वह इसी आशा से सन्तुष्ट था। इब्रानियों 11:9, 10मेंलिखा है, “विश्वास ही से उसने प्रतिज्ञा किये हुए देश में, पराए देश में परदेशी के समान रहकर इसहाक और याकूब समेत, जो उसके साथ उसी प्रतिज्ञा के वारिस थे, तम्बुओं में वास किया, क्योंकि वह उस स्थिर नींववाले नगर की बाट जोहता था, जिसको रचनेवाला और बनानेवाला परमेश्वर है।” इब्रानियों 11:9,10 PPHin 165.1
अब्राहम के वंश के बारे में लिखा है, “ये सब विश्वास ही की दशा में मरे, और उन्होंने प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं नहीं पाई, पर उन्हें दूर से देखकर आनन्दित हुए और मान लिया कि हम पृथ्वी पर परदेशी और बाहरी है।” इब्रानियों 11:13 । हमें यहाँ, “एक उत्तम अर्थात स्वर्गीय देश” (इब्रानियों 11:46)की प्राप्ति के लिये तीर्थयात्री और परदेसी के समान रहना होगा। अब्राहम की संतान उस शहर की अपेक्षा कर रहे होंगे जिसका वह अभिलाषी था, “जिसका निर्माण करने वाला परमेश्वर है।” PPHin 165.2