कुलपिता और भविष्यवक्ता
अध्याय 8—जलप्रलय के बाद
जलप्रलय के जल का स्तर सबसे ऊंचे पर्वतों से पन्द्रह हाथ ऊपर चला गया। जब पांच महीनों तक जहाज डांवाडोल होता रहा और प्रकट रूप से हवा और लहरों की दया पर टिका रहा,कई बार जहाज के भीतर परिवार को लगा कि वे मारे जाएंगे । यह एक तनावपूर्ण कठिन परीक्षा थी, लेकिन नूह का विश्वास अटल था, क्योंकि वह आश्वस्त था कि जहाज के कर्ण के ऊपर ईश्वर का हाथ था। PPHin 96.1
जैसे-जैसे जल का स्तर घटने लगा, परमेश्वर ने जहाज को उसकी साभथ्य में संरक्षित पर्वत श्रंखला के बीच सुरक्षित स्थान की ओर बहने दिया। यह पर्वत एक दूसरे से कुछ दूरी पर थे और जहाज इस शांत बन्दरगाह में तैरता रहा। अब वह अपार समुद्र पर चालित नहीं था। इससे तूफान के सताए थके हुए जलयात्रियों को बहुत आराम मिला। PPHin 96.2
नूह और उसका परिवार जल स्तर के घटने की उत्सुकतावश प्रतीक्षा कर रहे थे, क्योंकि वे भूमि पर फिर से जाने के लिये इच्छुक थे। पर्वत-शिखरों के दृष्टिगोचार होने के चालीस दिन पश्चात् उन्होंने एक कौए को बाहर भेजा, जो कि सुगन्ध को जल्दी पकड़ता है, ताकि यह पता चल सके कि भूमि सूख गई थी या नहीं। जब इस पक्षी को पानी के अलावा कुछ न मिला तो वह जहाज के इर्द-गिर्द ही उड़ता रहा। सात दिन बाद एक कबूतरी को भेज गया और वह बैठने का स्थान न पाकर लौट आयी। सात दिन पश्चात् नूह ने फिर से कबूतरी को भेजा ।जब वह शाम को अपनी चोंच में जैतून का पत्ता लिये लौटी तो वहां प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। तब “नूह ने जहाज की छत खोलकर क्या देखा कि धरती सूख गयी है।” फिर भी नूहजहाज के भीतर धेर्यवान होकर रूका रहा। जैसे उसने परमेश्वर के आज्ञा देने पर प्रवेश किया था, वैसे ही उसने प्रस्थान के लिये उसके विशेष निर्देशों की प्रतीक्षा की । PPHin 96.3
आखिरकार स्वर्ग से एक स्वर्गदूत उतरा, उसने विशाल द्वार को खोला और कुलपिता और उसके घराने को, प्रत्येक जीवित प्राणी को साथ लिए, बाहर आने को कहा। स्वतन्त्रता की प्रसन्नता में नूह उसे नहीं भूला। जिसकी अनुग्रहकारी देख-रेख में वे बचाए गए थे। जहाज से बाहर आने के पश्चात उसका पहला कार्य था कि उसने वेदी खड़ी करके उस पर प्रत्येक प्रकार के शुद्ध पशु-पक्षियों की होमबलि चढ़ाई और इस तरह महान बलिदान रूपी मसीह में विश्वास और मुक्ति के लिये परमेश्वर के प्रति अपनी कृतज्ञता दिखाई। यह बलि परमेश्वर को सुखद लगी और उसके प्रतिफल में ना केवल कुलपिता नूह और उसके परिवार को वरन धरती पर सभी रहने वालों को आशीष मिली। “यहोवा ने सुखदायक सुगन्ध पाकर सोचा, मनुष्य के कारण में फिर कभी भूमि को श्राप न दूंगा।” अब से जब तक पृथ्वी बनी रहेगी, तब तक बोने और काटने के समय, ठण्ड और तपन, धूपकाल और शीतकाल, दिन और रात निरन्तर होते चले जाएंगे। यहॉ पर आने वाली पीढ़ियों के लिये सन्देश है। नूह ने उजाड़ धरती पर कदम रखा था, लेकिन फिर भी स्वयं के लिये घर बनाने से पहले उसने परमेश्वर के लिये वेदी बनाई। गाय-बैलों के रूप में पशुधन भी उसके पास कम था और बड़े यत्न से बचाया गया था।फिर भी उसने प्रसन्नतापूर्वक उसका एक भाग परमेश्वर को अर्पित किया और सब कुछ परमेश्वर का होने की स्वीकृति दी। इस विधि से परमेश्वर को स्वेच्छा से दान देना हमारा सर्वप्रथम दायित्व होना चाहिये। उसके काम के लिये उपहारों और भक्ति के कार्यों के माध्यम से हमें उसकी दया और उसके प्रेम की हर अभिव्यक्ति के प्रति कृतज्ञ होना चाहिये । PPHin 96.4
इस कारण कि दूसरे जलप्रलय के भय से मनुष्य उमड़ते बादलों और बरसते हुए जल से दूसरे जल-प्रलय के भय से निरन्तर भयभीत न हो, परमेश्वर ने वाचा द्वारा नूह के परिवार को प्रोत्साहित किया, “मैं तुम्हारे साथ अपनी यह वाचा बांधता हूँ कि सब प्राणी फिर जलप्रलय से नष्ट नहीं होंगे और पृथ्वी का नाश करने के लिये फिर जलप्रलय नहीं होगा।” मैंने बादल में अपना धनुष रखा है, वह मेरे और पृथ्वी के बीच में वाचा का चिन्ह होगा। और जब मैं पृथ्वी पर बादल फैलाऊं तब बादल में धनुष दिखाई देगा। में उसे देख कर यह सदा की वाचा स्मरण करूंगा, जो परमेश्वर के और पृथ्वी पर सब जीवित शरीरधारी प्राणियों के बीच बन्धी है।’ PPHin 97.1
कितनी महान है पापमय प्राणियों के लिये उसकी कृपालुता और संवेदना कि उसने मनुष्य के साथ अपनी वाचा के चिन्ह के रूप में बादलों में धनुष को रखा। परमेश्वर घोषणा करता है कि जब वह धनुष को देखेगा वह अपनी वाचा का स्मरण करेगा। इसका यह तात्पर्य नहीं कि परमेश्वर कभी भूल जाएगा, बल्कि यह कि वह हमसे हमारी भाषा में बात करता है जिससे कि हम उसे भली-भांति समझ सके। उसका उद्देश्य था कि आने वाली पीढ़ियों की संतानें, स्वर्ग में आर से पार फैलाव वाले अति सुन्दर वृतखण्ड को देख उसका मतलब पूछे और उनके माता-पिता उन्हें जल प्रलय की कथा सुनाए और उनसे कहें कि परम प्रधान ने धनुष को मोड़कर बादलों में इस आश्वासन के तौर पर रखा था कि पृथ्वी पर जलप्रलय फिर कभी नहीं होगा। इस तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक वह मनुष्य के प्रति आलौकिक प्रेम की गवाही देगा और परमेश्वर में उसके विश्वास को दृढ़ करेगा [स्वर्ग में एक धनुष का आकार सिंहासन के और मसीह के सिर के चारों ओर घेरा बनाए हुए है। यहजकल 1:28 में भविष्यद्वक्ता कहता है, “जैसे वर्षा के दिन बादल में धनुष दिखाई पड़ता है, वैसे ही चारों ओर का प्रकाश दिखाई देता था ।”प्रकाशित वाक्य 4:2,3में लिखा है, “एक सिंहासन स्वर्ग में रखा है और उस सिंहासन पर कोई बैठा है, उस सिंहासन के चारों ओर मरकत सा एक मेघदूत दिखाई देता है। जब मनुष्य अपनी अति दुष्टता के कारण ईश्वरीय न्याय का पात्र बनता है, तब उद्धारकर्ता उसके पक्ष में पिता से विनती करते हुए पश्चतापी पापी के प्रति परमेश्वर की दया के प्रतीक के रूप में, बादलों में धनुष, सिंहासन के चारों ओर और उसके सिर पर मेघ-धनुष की ओर संकेत करता है। PPHin 97.2
परमेश्वर ने स्वयं अपने अनुग्रह की प्रतिज्ञाओं में से सबसे उत्कृष्ट प्रतिज्ञा को नूह को दिए गए जलप्रलय सम्बन्धित आश्वासन के साथ जोड़ा है, “जैसे मैं ने शपथ खाई थी कि नूह के समय के जलप्रलय से पथ्वी फिर न डूबेगी, वैसे ही मैंने यह भी शपथ खाई है कि फिर कभी तुझ पर कोध न करूंगा और न तुझको धमकी दूँगा। चाहे पहाड़ हट जाएं और पहाड़ियाँ टल जाएं, तब भी मेरी करूणा तुझ पर से कभी न हटेगी और मेरी शान्तिदायक वाचा न टलेगी, यहोवा, जो तुझपर दया करता है, उसका यही वचन है”-यगयाह 54:9,10 ।जब नूह ने शिकार प्रबल हिंसक पशुओं को अपने साथ जहाज में से बाहर निकलते देखा तो उसे लगा कि उसका परिवार, जिसमें केवल आठ सदस्य थे, जन्तुओं का शिकार हो जाएगा ।लेकिन परमेश्वर ने अपने दास के पास एक स्वर्गदूत को इस भरोसा दिलाने वाले संदेश के साथ भेजा, “तुम्हारा डर और भय पृथ्वी के सब पशुओं और आकाश के सब पक्षियों और भूमि पर के सब रेंगने वाले जन्तुओं और समुद्र की सब मछलियों पर बना रहेगा, ये सब तुम्हारे वश में कर दिये जाते हैं। सब चलने वाले जंतु तुम्हारा आहार होंगे, जैसे तुम को हरे-हरे छोटे पेड़ दिये थे, वैसे ही अब सब कुछ देता हूँ। इस समय से पहले परमेश्वर ने मनुष्य को मांसाहारी आहार खाने की अनुमति नहीं दी थी। वह चाहता था कि वह वंश पूर्णरूप से धरती की उपज पर निर्भर हो, लेकिन जब हर हरा पौधा नष्ट हो गया था, उसने उन्हें जहाज में बचाए गए शुद्ध पशुओं का मांस खाने की अनुमति दे दी। PPHin 98.1
जलप्रलय के समय पृथ्वी की समस्त सतह में बदलाव आया। पाप के परिणाम स्वरूप उस पर तीसरा भयंकर शाप था। जल का स्तर नीचे आने पर, पहाड़ और पहाड़ियाँ गन्दे समुद्र से घिर गए। सब जगह मनुष्यों और जीव-जन्तुओं के मृत शव बिखरे हुए थे। परमेश्वर को यह स्वीकार नहीं था कि ये वहीं पर सड़कर वायु को प्रदूषित करें। उसने पृथ्वी को एक विशाल कब्रिस्तान बना दिया। समुद्र समान जल को सुखाने के उद्देश्य से प्रवाहित की गई तेज हवा ने उसमें ऐसी तीव्र गति उत्पन्न की कि कहीं-कहीं वह पहाड़ों के शिखर भी बहा ले गया और मृतकों के शवों पर वृक्षों चट्टानों और मिट्टी का ढेर लगा दिया। इसी माध्यम द्वारा जलप्रलय पूर्व संसार को धनवान बनाने और विभूषित करने वाले, वासियों में पूजनीय माने जाने वाले सोना और चांदी, श्रेष्ठठमलकड़ी और अनमोल रत्न मनुष्य की दृष्टि और खोज से संगुप्त कर दिये गए; जल की प्रबल प्रक्रिया ने इस निधि के ऊपर मिट्टी और चटटनों का ढेर लगा दिया और कही-कहीं इनके ऊपर पहाड़ भी उठा दिए। परमेश्वर ने देखा कि वह पापी मनुष्य को जितना अधिक धनवान और संपन्न बनाएगा, उतना ही उसके होते हुए भी, वह अपने मार्गों को भ्रष्ट कर देगा। जिसके कारण बहुतायत से देने वाले की प्रशंसा होनी चाहिये थी, उस निधि की पूजा-अर्चना की गई और परमेश्वर का तिरस्कार और अनादर किया गया। PPHin 99.1
धरती पर अवर्णनीय निर्जनता और अव्यवस्था का दृश्य था। वे पर्वत जो कभी पूर्ण समरूपता के कारण सुन्दर थे, अबक्षतिग्रस्त और उबड़-खाबड़ हो गए। धरती की सतह पर पत्थर, पहाड़ से निकली चट्टानें और खुरदरे पत्थर बिखरे हुए थे। कई स्थानों से पहाड़ और पर्वत अदृश्य हो गए थे और उनके वहां होने का कोई चिन्ह नहीं था, और समतल भूमि के स्थान पर पर्वत-श्रंखला उभर आई थीं। यह परिवर्तन कहीं कहीं स्पष्ट दिखाई देते थे।शाप का सबसे अधिक प्रभाव धरती पर वहां दिखाई पड़ा जहां सोने, चांदी और अनमोल रत्नों की बहुमूल्य निधि का भण्डार था। उन देशों में, जहां जनसंख्या नहीं थी, जहां अपराध बहुत कम था, शाप का प्रभाव कम पड़ा इस समय घने जंगल दब गए। उस समय से ये कोयले में परिवर्तित हो गए जो वर्तमान में कोयले की खानें हैं और जहां अधिक मात्रा में खनिज तेल पाया जाता है। यही कोयला और खनिज तेल प्राय: प्रज्वलित होकर धरती की सतह के नीच जल जाते है, इस तरह चट्टानें गरम हो जाती हैं, चूना पत्थर जल जाता है और लोहा पिघल जाता है। चूने पर पानी की प्रतिक्रिया से अत्याधिक तपन को दुगना कर देती है जिसके कारण भूचाल आते है, ज्वालामुखी फटते है और कई अग्नि-सम्बन्धित घटनाएँ घटती है। जब आग और पानी चटटानों के बहिर्गत भाग और कच्चे धातु के सम्पर्क में आते है, तो भूमिगत भारी विस्फोट होते हैं जिनकी आवाज अवरूद्ध गर्जन की तरह होती है। वातावरण गरम और घुटन-भरा हो जाता है। इसके बाद ज्वालामुखी फट पड़ते है, और यदि तपे हुए पदार्था को बाहर निकलने का पर्याप्त निकास नहीं मिलता तो स्वयं धरती कांपने लगती है, और उसमें समुद्र की लहरों के सामन उठ जाती है जिसमें कभी-कभी सम्पूर्ण नगर, गांव और ज्वलंत पर्वत निगल लिये जाते है। यह आश्चर्यजनक दृश्य तात्कालिक विनाश के चिन्हों के तौर पर, मसीह के द्वितीय आगमन के ठीक पहले और ज्यादा देखने को मिलेंगे । PPHin 99.2
धरती का आंतरिक भाग परमेश्वर का शत्त्रागार है, जहां से प्राचीन जगत के विनाश हेतु उपयोग में आने वाले शस्त्रों को निकाला जाता था। धरती से प्रवाहित जल और स्वर्ग से छोडे गए पानी ने मिलकर धरती को निर्जन बनाने का कार्य सम्पन्न किया। जलप्रलय के उपरान्त अग्नि और पानी अत्यन्त दुष्टतापूर्ण नगरों के विनाश के लिये परमेश्वर के माध्यम रहें है। यह न्याय इसलिये किया जाता है ताकि जो परमेश्वर की व्यवस्था का अनादर करते है और उसके प्रभुत्व का तिरस्कारकरते है, उनहें उसकी सामर्थ्य के आगे समर्पण करने और उसकी न्यायसंगत प्रभुता को ग्रहण करने के लिये प्रभावित किया जा सके । ज्वलंत पर्वतों से पिघले हुए खनिज पदार्थ की प्रचण्ड धारा और आग व उसकी लपटों को, निर्जल हुई नदियों को, अपरिहार्य जनपूर्ण नगरों को, व्यापक विनाश और निर्जनता को देखकर सबसे साहसी हृदय भी भयभीत हो गया और अविश्वासी और ईश-निन्दक भी परमेश्वर की अनन्त सामर्थ्य का अंगीकार करने के लिये विवश हो गये। PPHin 100.1
प्राचीनकालीन भविष्यद्बक्ताओं का इन दृश्यों के सन्दर्भ में यह कहना था,“भला होता कि तू आकाश को फाड़कर झाड़-झंकाड़ को जला देती या जल कोउबालती, उसी रीति जाति-जाति के लोग तेरे प्रताप से कांप उठे । जब तूने ऐसेभयानक काम किये जो हमारी आशा से भी बढ़कर थे, तब तू उतर आया, पहाड़ तेरे प्रताप से कांप उठे। “यगरियाह 64:1-3 PPHin 100.2
नहूम 1:3,4 में लिखा है, “यहोवा बवण्डर और आंधी में होकर चलता है, और बादल उसके पांवो की धूल है। उसके धड़कने से महानद सूख जाते है, और समुद्र भी निर्जल हो जाता है।’ PPHin 101.1
मसीह के द्वितीय आगमन के समय इससे भी अधिक भयावह प्रदर्शन, जैसे संसार ने अभी तक नहीं देखे, देखने को मिलेंगे। नूहम 1:5,6में लिखा है, “उसके स्पर्श से पहाड़ कांप उठते है और पहाड़ियाँ गल जाती है, उसके प्रताप से पृथ्वी वरन सारा संसार अपने सब रहने वालों समेत थरथरा उठता है। उसके कोध का सामना कौन कर सकता है? भजन संहिता 144:5,6में लिखा है, “हे यहोवा अपने स्वर्ग को नीचा करके उतर आ, पहाड़ों को छू तब उनसे धुँआ उठेगा। बिजली कड़कड़ाकर उनको तितर-बितर कर दे, अपने तीर चलाकर उनको घरा दे ।” PPHin 101.2
“और मैं ऊपर आकाश में अद्भुत काम और नीचे धरती पर चिन्ह, अर्थात ल॒हू और आग और धुएं का बादल दिखाऊंगा”-प्रेरितों के काम 2:19 [प्रकाशतिवाक्य 16:18,20,21 में लिखा है “फिर बिजलियाँ चमकी और शब्द और गर्जन हुए, और एक ऐसा बड़ा भूकम्प आया कि जब से मनुष्य की उत्पत्ति प्थ्वी पर हुईं, तब से ऐसा बड़ा भूकम्प कभी न आया था। और हर एक टापू अपनी जगह से टल गया, और पहाड़ों का पता न चला। आकाश से मनुष्यों पर मन-मन भर के बड़े ओले गिरे और इसलिये कि यह विपत्ति बहुत ही भारी थी, लोगों ने ओलों को विपत्ति के कारण परमेश्वर की निंदा की ।” PPHin 101.3
स्वर्ग से प्रवाहित बिजली और धरती की आग के साथ मिल जाने पर, पर्वत भट॒टी के समान भभक उठेंगे, और लावा की भयंकर नदियां उगलेंगे, जिससे बगीचे और खेत, गावं और शहर नष्ट हो जाएंगे ।खौलते हुए तरल पिंड नदियों में गिरकर पानी में उबाल ले आएंगे, जिससे अवर्णनीय उग्रता के साथ विशाल चटटानें उछलेंगी और समस्त धरती पर अपने टूटे-फटे अंश फैला देंगी। नदियां निर्जल हो जाएंगी। पृथ्वी कंपकृपाने लगेगी और हर जगह भूकम्प और विस्फोट होंगे । PPHin 101.4
इस तरह परमेश्वर पृथ्वी पर से दुष्टों का विनाश कर देगा। लेकिन इस गड़बड़ी के बीच धर्मी सुरक्षित रखे जाएंगे जैसे नूह को जहाज में सुरक्षित रखा गया था। परमेश्वर उनका शरणस्थान होगा औरउसके चरणों तले वे विश्वस्त होंगे। भजन संहिता 91:9,10 में लिखा है, “हे यहोवा, तू मेरा शरणस्थान ठहरा है, तूने जो परम प्रधान को अपना धाम मान लिया है, इसलिये कोई विपत्ति तुझपर न पड़ेगी, न कोई दुख तेरे निकट आएगा।” “क्योंकि वह तो मुझे विपत्ति के दिन में अपने मण्डप में छिपा रखेगा“भजन संहिता 27:5। परमेश्वर की प्रतिज्ञा है, “उसने जो मुझसे स्नेह किया है, इसलिये मैं उसको छुड़ाऊंगा, मैं उसको ऊंचे स्थान पर रखूँगा, क्योंकि उसने मेरे नाम को जान लिया हें”भजन संहिता 91:14 । PPHin 101.5