कुलपिता और भविष्यवक्ता
अध्याय 7—जल प्रलय
यह अध्याय उत्पत्ति 6 और 7 पर आधारित है
नूह के दिनों में पृथ्वी आदम के अपराध और कैन द्वारा किये गए वध के परिणाम स्वरूप दोहरी तरह शापित थी। लेकिन फिर भी प्रकृति के स्वभाव में अधिक परिवर्तन नहीं आया था। क्षय क प्रत्यक्ष संकेत थे, लेकिन प्रथ्वी अभी भी विधाता के उपहारों से समृद्ध और सुहावनी थी। पहाड़, दाखलता की फल से लदी शाखाओं को सहारा देते, अत्यन्त सुन्दर वृक्षों का मुकुट पहने थे। फैली हुए, हरी घास का आवरण पहने वाटिका समान समतल भूमि, सैकड़ो तरह के फलों की महक से भरपूर थी। धरती पर लगने वाले फल अगणनीय व विविधतापूर्ण थे। उस समय के पेड़ आकार, सुन्दरता और सही अनुपात में अतुल्य थे। उनकी लकड़ी सूक्ष्म कणों वाली थी, पर पत्थर समान कठोर तत्व से बनी थी। सोना, चांदी और बहुमूल्य पत्थरों का भण्डार था। PPHin 81.1
मानव जाति में अभी भी लगभग वही प्रबलता थी। आदम का जीवन के वक्ष का सेवन करने के समय से अब तक कुछ ही पीढ़ियाँ निकली थी, और मनुष्य का जीवन अभी भी शताब्दियों में मापा जाता था। यदि उन चिरंजीवियों ने योजनाबद्ध करने की और योजनाओं को क्रियान्वित करने की अदभुत क्षमता से अपने आपको परमेश्वर की सेवा में समर्पित किया होता तो पृथ्वी पर विधाता का नाम प्रशंसनीय होता और उन्हें जीवन देने में उसके उद्देश्य का स्पष्टीकरण होता। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। उस समय कई असाधारण शक्ति वाले दीर्घकाय मनुष्य थे, जो ज्ञान के लिये सुप्रसिद्ध अदभुत और आकर्षक कामों में निपुण थे, पर उनका अधर्म को खुली छूट देने का अपराधबोध उनकी मानसिक क्षमता और निपुणता के तुल्य था। PPHin 81.2
परमेश्वर ने इन जलप्रलय पूर्व वासियों को कई बहुमूल्य उपहार दिये, परन्तु उन्होंने उसके वरदानों को अपनी महिमा के लिये उपयोग किया और अपनी आराधना विधाता पर केन्द्रित करने के बजाय उन वरदानों पर की, जिसके कारण वरदान शाप में बदल गए। उन्होंने सोने-चांदी, बहुमूल्य पत्थर व उत्कृष्ट लकड़ी का उपयोग अपने लिये घर बनाने में किया और वे उन घरों को अत्यधिक निपुण कार्य-कुशलता से सुसज्जित करने की चेष्टा में एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करने लगे। वे अपने अंहकारी हृदयों की मनोकामनाओं को सन्तुष्ट करने में लगे थे और वे दुष्टता और उपयोग में आनंद लेने लगे। अपने ज्ञान में परमेश्वर को महत्व ना देते हुए वे जल्द ही उसके अस्तित्व को नकारने लगे। प्रकृति के परमेश्वर के स्थान पर वे प्रकृति को पूजने लगे। उन्होंने मानवीय प्रतिभा को गौरावान्वित किया, अपनी ही हस्तकतियों की पूजा की और अपनी संतान को मूर्तिपूजा करना सिखाया। PPHin 81.3
हरे-भरे मैदानों में और घने वृक्षों की छाया में अपनी मूर्तियां के लिये वेदियाँ बनाई। विशाल वृक्ष वाटिकाएं जो सदाबहार थी, उन्हें देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के लिये समर्पित कर दिया गया। इन वाटिकाओं को सुन्दर उपवनों से सम्बद्ध कर दिया गया, जिनके छायादार मार्ग में हर तरह के फलदायी वृक्षों ने छज्जा सा बना रखा था और यहां मूर्तियों से सजावट की गई और उन सब वस्तुओं का प्रयोजन रखागयाजो मनुष्य की इन्द्रियों को लुभाते हुए, उनकी विलासमय कामनाओं को सन्तुष्ट करती है। इस तरह उन्हें मूर्तिपूजा में भाग लेने के लिये प्रलोभन दिया जाता था। PPHin 82.1
परमेश्वर को अपने ज्ञान से बाहर कर, मनुष्य स्वयं की कल्पना के प्राणियों को पूजने लगे और इस तरह भ्रष्टाचार बढ़ता गया। मूर्तिपूजा करने से उपासक पर जो प्रभाव पड़ता है उसे भजन संहिता का लेखक इस प्रकार वर्णन करता है-’ जैसी वे हें वैसे ही उनके बनाने वाले हैं, और उन पर सब भरोसा रखने वाले भी वैसे ही हो जाएंगे”-भजन संहिता 115:8। मानव-मन का यही नियम है कि देखने से हम परिवर्तित हो जाते है। जितनी उसकी सच्चाई, पवित्रता और धार्मिकता की समझ है, मनुष्य उतना ही ऊँचा उठेगा। यदि उसका विवेक मानवता के स्तर से ऊपर नहीं उठता, यदि वह असीमित बुद्धिमता और प्रेम का मनन करने हेतु विश्वास द्वारा ऊपर नहीं उठता तो मनुष्य का स्तर नीचा हो होता जाता है। झूठे देवी-देवताओं के उपासक उन्हें मानवीय गुणों और इच्छाओं के आवरण से सजाते थे, इसलिये उनके चरित्र का स्तर पापमय मानवता के स्वरूप विकृत हो गया। इसके परिणामस्वरूप वे अशुद्ध हो गए। “यहोवा ने देखा कि मनुष्यों की बुराई पृथ्वी पर बढ़ गई है, और उनके मन के विचार में जो कुछ उत्पन्न होता है वह निरन्तर बुरा ही होता है। उस समय पृथ्वी परमेश्वर की दृष्टि में बिगड़ गई थी और हिंसा से भर गईं थी ।” परमेश्वर ने मनुष्य को अपनी पवित्र आज्ञा जीवन के नियम के रूप में दी थी, लेकिन उसकी आज्ञा का उललघंन हुआ और हर बोधगम्य पाप परिणाम के रूप में सामने आया। मनुष्य की दुष्टता सार्वजनिक और निर्भीक थी, न्याय को मिट्टी में मिला दिया गया और उत्पीड़ित मनुष्यों की पुकार स्वर्ग तक पहुँची । PPHin 82.2
प्रारम्भ में किये गए ईश्वरीयप्रयोजन के विपरीत बहुर्विवाह का प्रचलन बहुत जल्दी शुरू हुआ। परमेश्वर ने आदम को एक ही पत्नी देने के संदर्भ में अपनी योजना बताई थी। लेकिन पतन के पश्चात् मनुष्य ने अपनी पापमय अभिलाषाओं का अनुसरण किया और इसके फलस्वरूप दरिद्रता और अपराध तेजी से बढ़ने लगे। वैवाहिक सम्बन्ध और सम्पत्ति के अधिकार की मान्यता समाप्त हो गई। जो भी अपने पड़ोसी की पत्नी या उसकी सम्पत्ति के लिए ललचाता वह उसे बलपूर्वक ले लेता और मनुष्य उनके हिसंक कार्यों में आनन्दित होते। उन्हें जीव-जन्तुओं के जीवन को नष्ट करने में आनंद आता और मांस के सेवन ने उन्हें इतना कर और खून का प्यासा बना दिया कि वह मनुष्य के जीवन के प्रति भी लापरवाह हो गये। PPHin 83.1
संसार अभी अपनी प्रारम्भिक अवस्था में ही था, लेकिन दुष्टता इतनी बढ़ गईं कि परमेश्वर उसे और न सह सका और उसने कहा “मैं मनुष्य को जिसकी मैंने सृष्टि की है, पृथ्वी के ऊपर से मिटा दूँगा”। उसने कहा कि उसका आत्मा अपराधी वंश में सदा विवाद न करता रहेगा। यदि वह संसार और उसकी बहुमूल्य निधि को अपने पापों से दूषित करना बन्द नहीं करेगा तो वह उसे अपनी सृष्टि में से मिटा देगा और उन सभी वस्तुओं को भी नष्ट कर देगा, जिनसे उसने संसार को प्रसन्नतापूर्वक आशीषित किया था।उसने कहा कि जीव-जन्तुओं और खाद्य-सामग्री की आपूर्ति करने वाली वनस्पति को भी नष्ट करके, सुन्दर पृथ्वी को निर्जनता और खंडहर के विशाल दृश्य में परिवर्तित कर देगा । PPHin 83.2
प्रचलित भ्रष्टाचार के बीच मतूशेलह, नूह और कई दूसरों ने सच्चे ईश्वर के ज्ञान को जीवित रखने और बढ़ती हुईं नैतिक बुराईयों को स्थगित करने का प्रयत्न किया। जलप्रलय से एक सौ बीस वर्ष पूर्व परमेश्वर ने पवित्र दूत द्वारा नूह को अपनी योजना बताई और उसे जहाज बनाने को कहा। जहाज बनाते समय,उसे प्रचार करना था कि दुष्टों के विनाश के लिए परमेश्वर पृथ्वी पर जलप्रलय लाने को था। उसे उन्हें यह भी बताना था कि जो उस सन्देश में विश्वास करेंगे और प्रायश्चित और मन परिवर्तन द्वारा उस घटना के लिये तैयारी करेंगे उन्हें क्षमा किया जाएगा और वे बचाए जाएंगे। हनोक ने जलप्रलय सम्बन्धित बातें, जो परमेश्वर ने उसे बताई थी, अपने बच्चों को दोहराई थी। मतूशेलह और उसके पुत्रों ने जो नूह के प्रचार करने के समय जो जीवित थे, जहाज बनाने में नूह की सहायता की । PPHin 83.3
परमेश्वर ने नूह को जहाज के निर्माण की हर विशिष्टता सम्बन्धी समुचित परिमाण और निर्देशन दिया। मानवीय क्षमता इतनी चिरस्थायी और मजबूत आकार की कल्पना करने में असमर्थ थी। परमेश्वर इस आकार का रूपकार था और नूह इसका राजमिस्त्री था। इसका निर्माण जहाज की काटी या पेंद जैसा था, तांकि वह पानी पर तैर सके, लेकिनकई तरह से वह लगभग घर के समान था। वह तीन मंजिल ऊँचा था, लेकिन उसमें एक ही द्वार था जो एक तरफ था। प्रकाश का प्रवेश ऊपर से था और विभिन्न कक्ष इस कम में थे कि सब जगह प्रकाश पहुँच जाता था। उसके निर्माण में सामग्री के रूप में साइप्रेस या गोफर की लकड़ी का उपयोग किया गया, क्योंकि यह सैकड़ो सालों तक सड़ती या गलतीनहीं है। इस आकार का निर्माण करना एक चिरकाल और कठिन कार्यविधि थी । हालांकि उस काल के मनुष्य अधिक प्रबल थे लेकिन फिर भी वृक्षों के बड़े आकार और लकड़ी के स्वभाव के कारण इमारती लकड़ी तैयार करने में आज से कहीं अधिक श्रम करना पड़ता था। मनुष्य की क्षमता अनुसार रचना को उत्तम बनाने का यत्न किया गया, लेकिन फिर भी जहाज अपने आप में आने वाले तूफान का सामना नहीं कर सकता था। केवल परमेश्वर ही तूफानी जलप्रलय में अपने सेवकों की सुरक्षा कर सकता था। इब्रानियों11:7 में लिखा है, “विश्वास ही से नह ने उन बातों के विषय में जो उस समय दिखाई न पड़ती थी, चेतावनी पाकर अपने घराने के बचाव के लिए जहाज बनाया और उसके द्वारा उसने संसार को दोषी ठहराया और उस धार्मिकता का वारिस हुआ, जो विश्वास से होता है।” जब नूह अपना चेतावनीपूर्ण सन्देश संसार को दे रहा था, उसके कामों ने उसकी निष्कपटता की गवाही दी। इस तरह उसका विश्वास परखा गया और प्रमाणित हुआ। उसने संसार को केवल परमेश्वर की कहीं बातों पर विश्वास करने का उदाहरण दिया ।उसने अपनी सारी सम्पत्ति का निवेश जहाज में कर दिया। जैसे ही उसने सूखी भूमि पर उस विशाल नाव का निर्माण आरम्भ किया, हर दिशा से इस एकमात्र प्रचारक के दृढ़ और उत्साहवर्धक सन्देश को सुनने और उस अद्भुत दृश्य को देखने के लिये भीड़ उमड़ी। जहाज पर किया गया हर वार मनुष्यों के लिये एक साक्षी था। PPHin 84.1
कई लोग प्रारम्भ में चेतावनी को ग्रहण करते प्रतीत हुए, लेकिन वह सच्चे पश्चाताप के साथ परमेश्वर की तरफ नहीं बड़े। वे अपने पापों को त्यागना नहीं चाहते थे। जलप्रलय से पहले जो समय दिया गया, उसमें उनके विश्वास को परखा गया और वे इस परीक्षा में खरे नहीं उतरे। प्रचलित अविश्वास से पराजित, वे इस गम्भीर सन्देश को अस्वीकार करने में अपने पुराने साथियों के साथ सम्मिलित हो गए। क॒छ दोषसिद्ध भी हुए और उन्होंने चेतावनी भरे शब्दों पर ध्यान भी दिया होता, लेकिन ताना मारने वाले और उपहास करने वाले इतने थे कि इनमें भी वह भावना उत्पन्न हो गई और वे दया के निमन्त्रण को नकार कर सबसे अधिक निर्भक और ललकारने वाले ठटठेबाजों के गुट में जुड़ गए, क्योंकि इतने निर्भीक वही हो सकते है और पाप की सीमाएं वहीं लांघ सकते है जिनके पास पहले प्रकाश रहा हो, लेकिन उन्होंने परमेश्वर के दोष सिद्ध करने वाले आत्मा का विरोध किया हो। PPHin 85.1
उस पीढ़ी के सभी लोग मूर्तिपूजक नहीं थे। कई दिखाते थे कि वे परमेश्वर के उपासक हैं। वे दावा करते थे कि उनकी मूर्तियां उसी ईश्वर का प्रतिनिधि थीं और उनके द्वारा उन्हें ईश्वरीय अस्तित्व की स्पष्ट धारणा मिलती है।यह श्रेणी नूह के प्रचार को अस्वीकार करने में सबसे आगे थी। परमेश्वर का प्रतिनिधित्व मूर्त वस्तुओं से करने के यत्न से वे उसके तेजस्व और सामर्थ्य को देखने में असमर्थ हो गए; उन्हें उसके चरित्र की पवित्रता, या उसके विधि-विधान की पवित्रता और अपरिवैतनीयता की अनुभूति होना समाप्त हो गया। पाप अब साधारण विषय था, और इसलिये वह कम पापी प्रकट होने लगे और अन्त में उन्होंने यह घोषणा कर दी कि ईश्वरीय व्यवस्था अब प्रचलन में नहीं थी। वे कहने लगे कि पाप के लिये दण्डाज्ञा देना परमेश्वर के चरित्र के प्रतिकूल है और वे इस बात से असहमत थे कि धरती पर उसका न्याय होगा। यदि उस पीढ़ी के मनुष्यों ने ईश्वरीय व्यवस्था का पालन किया होता तो परमेश्वर के दूत की चेतावनी में उन्होंने परमेश्वर की आवाज को पहचाना होता, लेकिन प्रकाश का तिरस्कार कर उनका विवेक इतना अंधा हो गया था कि वेनूह के संदेश को एक भ्रान्ति मानने लगे। PPHin 85.2
सही को बहुमत नहीं मिला। संसार परमेश्वर के न्याय और उसकी व्यवस्था के विरूद्ध खड़ा था और नह को कटटरपंथी माना गया। हवा को परमेश्वर का कहा न मानने के लिये प्रभावित करने के उद्देश्य से शैतान ने उससे कहा, “तुम अवश्य नहीं मरोगे”-उत्पत्ति 3:4। सांसारिक प्रतिष्ठित और बुद्धिमान महानुभवों ने भी यहीं कहा। उन्होंने कहा “परमेश्वर की चेतावनी डराने के उद्देश्य से दी गई है, वे कभी भी पूरी नहीं होगी। तुम्हें सतक॑ होने की आवश्यकता नहीं। संसार के विनाश की घटना उस परमेश्वर द्वारा जिसने संसार की स्वयं सृष्टि की, और स्वयं के रचित प्राणियों को दण्ड देना, कदापि सम्भव नहीं है। शान्त रहो, डरो मत, नूहएक असभ्य कटटरपंथी है।”संसार भ्रमित (जैसा कि लोग समझते थे) बूढ़े आदमी की मूर्खता की हंसी उड़ाते थे। परमेश्वर के समक्ष अपने मनों को दीन करने के बजाय, वे अवज्ञा करने और दुष्टता में ऐसे बने रहे जैसे कि परमेश्वर ने अपने दास के माध्यम से उनसे कभी बात नहीं की हो। PPHin 85.3
लेकिन नूह तूफान के बीच चट्टान के समान खड़ा रहा। तिरस्कार और उपहास से घिरे हुए, उसने अपनी पवित्र सत्यनिष्ठा और अविचल भक्ति से स्वयं को विशिष्ट बनाया। उसकी कही बातें प्रभावशाली थी क्योंकि वह परमेश्वर की वाणी थी जो उसके दास के माध्यम से मनुष्य तक पहुँचायी गईं थी। परमेश्वर की संगति ने उसमें असीमित क्षमता का स्वामी बना दिया था। एक सौ बीस वर्षो तक वह उस पीढ़ी के कानों तक उन घटनाओं से सम्बन्धित गम्भीर सन्देश पहुँचाता रहा, जिनकी कल्पना करना मानव बुद्धि के लिये असम्भव था। PPHin 86.1
जलप्रलय पूर्व के संसार ने तक रखा कि सदियों से प्रकृति के नियम निर्धारित थे। बदलती ऋतुएं अपने कमानुसार आईं थीं। इससे पहले कभी वर्षा नहीं हुई थी; धरती ओस या कोहरे सेनम होती थी। नदियों ने कभी अपनी सीमा नहीं लांघी थी, वरन् अपने जल को समुद्र में सुरक्षित पहुँचाया था। निश्चित नियमों ने जल को अपने परिक्षेत्र के ऊपर से बहने से रोक रखा था। तर्कसंगत मनुष्यों ने उसके हाथों को मान्यता न दी जिसने जल को ऐसा कहकर नियन्त्रित किया था-“यहीं तक आ और आगे न बढ़” । अय्यूब 38:11 PPHin 86.2
समय के बीतने पर जब प्रकृति में कोई प्रत्यक्ष परिवर्तन नहीं आया तो कभी-कभी डर से कापंने वाला मनुष्य का हृदय, आश्वस्त हो गया। वर्तमान के तर्कसंगत मनुष्यों के समान, उन्होंने भी तक रखा कि प्रकृति, प्रकृति के विधाता से ऊपर है और उसके नियम इतनी दृढ़ता से स्थापित है कि परमेश्वर स्वयं उन्हें नहीं बदल सकता । यह कहते हुए कि यदि नूह का सर्देश सही होता तो प्रकृति के कम में परिवर्तन आता और इस तरह उन्होंने लोगों के विचारों में नूह के संदेश को एक भ्रान्ति के रूप मे बैठा दिया। उन्होंने परमेश्वर की चेतावनी के तिरस्कार की अभिव्यक्ति,चेतावनी केपहले जैसा करने में की। वे उत्सव और लोलुपतापूर्ण भोजों में आनन्द लेते रहे, खाते रहे और मद्यपान करते रहे, बोते और निर्माण करते रहे, भविष्य में लाभ की आशा में योजनाएं बनाते रहे, और वे दुष्टता से और परमेश्वर के नियमों का निर्लज्जता से तिरस्कार करते रहे, जिससेयह प्रमाणित हुआ कि उन्हें परमेश्वर का कदापि भय नहीं था। उन्होंने दावा किया कि यदि नूहकी बातों मे सच्चाई होती तो उस विषय को प्रतिष्ठित व बुद्धिमान महापुरूष अवश्य समझते । PPHin 86.3
यदि जलप्रलय पूर्व वासियों ने चेतावनी में विश्वास किया होता तो परमेश्वर का कोध शान्त हो जाता, जैसाकि नीनवे के संदर्भ में हुआ था ।लेकिन परमेश्वर के भविष्यद्बक्ता की चेतावनियों, और अंतकरण की असहमति के प्रति अपने हठीले प्रतिरोध के कारण इस पीढ़ी की दुष्टता चरम सीमा पर पहुँच गई और विनाश के लिये परिपक्व हो गई । PPHin 87.1
उनकी परख-अवधि समाप्त होने को थी। नूह ने परमेश्वर द्वारा दिये गऐ निदशों का निष्ठापूर्वक अनुसरण किया था। परमेश्वर के निर्देशानुसार जहाज पूरी तरह से बन चुका था और मनुष्य व जीव जंतुओं की खाद्य-सामग्री के भण्डार उसमें भर दिये गए थे, और अब परमेश्वर के दास ने लोगों से अपनी अन्तिम सौम्य विनती की। अवर्णनीय इच्छा से प्रेरित होकर जो पीड़ा की सीमा तक प्रबल थी,उसने उन्हें शरणस्थान ढूंढने को कहा जब वह सम्भव था। लेकिन उन्होंने फिर अपनी असहमति प्रकट की और सबने मिलकर उसका ठटठा और उपहास किया। अकस्मात ही उपहासपूर्ण भीड़ में सन्नाटा छा गया। हर श्रेणी के जीव-जन्तु खुंखार एवं नम्र, पहाड़ों और जंगल की ओर से जहाज की और चुपचाप आते हुए दिखाई दिए। तेज हवा का स्वर सुनाई दिया और हर दिशा से, आकाश को अन्धकारमय सा बनाते हुए, पक्षी भी जहाज की ओर सही कम में आते दिखाई दिए। जन्तु-जगत ने परमेश्वर की आज्ञा को माना जबकि मनुष्य अनाज्ञाकारी था। पवित्र दूतों के निर्देशन में ‘वे जोड़े से नूह के जहाज में गए’ और शुद्ध जन्तुओं के सात-सात जोड़े झुण्ड में गए। संसार आश्चर्यचकित होकर देखता रहा व कुछ भयभीत हो गए; दार्शनिकों को इस अद्वितीय घटना को समझने के लिये बुलाया गया, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। यह ऐसा रहस्य था जिसको वे भी नहीं समझ पाए। लेकिन प्रकाश की निरंतर अवमानना करने से मनुष्य इतना कठोर हो गया था कि यह दृश्य भी क्षणभंगुर प्रभाव ही उत्पन्न कर सका । चमकते सूर्य की गरिमा और लगभग अदन जैसी सुन्दरता से ढकी पृथ्वी को निहारते हुए, उन्होंने अपनी जोशपूर्णकीड़ा से डर को दूर कर दिया और अपने हिंसक कार्यों से परमेश्वर के पहले से ही जागे हुए कोध को न्योता दिया। PPHin 87.2
परमेश्वर ने नूह को आज्ञा दी, “तू अपने सारे घराने समेत जहाज में जा क्योंकि मैंने इस समय के लोगों में से केवल तुझी को अपनी दृष्टि से धर्मी पाया है” । नह की चेतावनियों को संसार ने अस्वीकार किया, लेकिन उसके प्रभाव और निष्ठा के फलस्वरूप उसके परिवार को आशीषें प्राप्त हुई। उसकी निष्ठा और पवित्रता के पारितोषिक के रूप में परमेश्वर ने उसे और और उसके परिवार के सभी सदस्यों को बचा लिया। यह माता-पिता का निष्ठावान होने के लिये प्रोत्साहन की बात है। PPHin 88.1
अनुग्रह ने अपराध बोध से ग्रसित वंश के लिये अनुनय-विनय करना समाप्त कर दिया था। भूमि के जन्तु और आकाश के पक्षियों ने शरणस्थान में प्रवेश कर लिया था। नूह और उसका घराना भी जहाज के भीतर थे “तब यहोवा ने जहाज का द्वार बन्द कर दिया”; चौंधियाने वाली ज्योति का प्रकाश दिखाई पड़ा और स्वर्ग से एक महिमापूर्ण बादल उतरा जो उस प्रकाश से भी उज्जवल था और जहाज के प्रवेश द्वार पर मंडराने लगा। वह विशाल द्वार, जिसे भीतर गए प्राणियों द्वारा बंद किया जाना असम्भव था, अदृश्यों हाथों द्वारा बन्द कर दिया गया। नूह भीतर बंद हो गया और परमेश्वर के अनुग्रह का तिरस्कार करने वाले बाहर रह गए। PPHin 88.2
वह द्वार स्वर्ग द्वारा मुहरबन्द था, उसे परमेश्वर ने स्वयं बंद किया था और वही उसे खोल सकता था। इसी तरह जब मसीह अपराध बोध से ग्रसित मनुष्यों के लिये मध्यस्थता करना बन्द कर देगा, स्वर्ग के बादलों पर उसके आगमन से पहले अनुग्रह का द्वार बन्द कर दिया जाएगा। ईश्वरीय अनुग्रह दुष्टों को फिर बाधित नहीं करेगा और जिन्होंने अनुग्रह को स्वीकार नहीं किया उन पर शैतान का पूर्ण नियन्त्रण हो जाएगा। वे परमेश्वर के लोगों का विनाश करने के चेष्ठा करेंगे, लेकिन जैसे नूह को जहाज में बदं कर दिया गया था, उसी तरह धर्मी ईश्वरीय सामर्थ्य के संरक्षण में होंगे । PPHin 88.3
नूह और उसके परिवार के जहाज में प्रवेश होने पर सात दिन तक आने वाले तुफान का कोई संकेत नहीं दिखा। इस अवधि में उनके विश्वास को परखा गया। बाहर के संसार के लिये यह विजय का समय था। सदृश्य विलम्ब ने उनके इस विश्वास का समर्थन किया कि नूह का संदेश एक भ्रान्ति था और यह कि जलप्रलय कभी नहीं आएगा। उन गम्भीर घटनाओं के साक्षी होने के उपरान्त भी-पशुओं और पक्षियों का जहाज में प्रवेश करना, परमेश्वर के दूत द्वारा द्वार का बन्द किया जाना- वे मनोरंजन और आनन्दोत्सव में लगे रहे और ईश्वरीय सामर्थ्य के संकेतक प्रदर्शन का ठट्ठा करने में भी नहीं चूके। जहाज के चारों ओर एकत्रित होकर वे और दुस्साहसी उग्रता से भीतर गए लोगों का उपहास करने लगे जैसा उन्होंने पहले कभी नहीं किया था। PPHin 88.4
लेकिन आठवें दिन आकाश में घने बादल छा गए। मेघगर्जन होने लगा और बिजली चमकने लगी। वर्षा की बड़ी-बड़ी बूँदे गिरने लगी। संसार में ऐसा कभी नहीं हुआ था और मनुष्यों के हृदय भयभीत हो गए। अब वे गोपनीयता से पूछताछ करने लगे, “क्या ऐसा हो सकता है कि नूह सही था और पृथ्वी का सर्वनाश निश्चित है?” आकाश गहराता गया और वर्षा तेजी से पड़ने लगी। पशु भयभीत होकर घूमने लगे और उनका कर्कश स्वर जैसे उनके और मनुष्य के भाग्य का शोक मना रहा था। फिर “गहरे समुद्र के सब सोते फूट निकले और आकाश के झरोखे खुल गए” जल बादलों में से झरनों की तरह गिरता प्रतीत होने लगा। नदियों ने अपने बांध तोड़ दिए और घाटियों को डुबो दिया। अवर्णनीय शक्ति के साथ धरती से पानी के सोते फट पड़े, जिनके साथ विशाल पत्थर वातावरण में कई फीट ऊँचे उछले और गिरने पर धरती में समा गए। PPHin 89.1
लोगों ने पहले अपनी हस्तकृतियों का विनाश होते देखा। उनके वैभवशाली भवन, सुन्दर उद्यान और वृक्ष वाटिकाएं जहां उन्होंने मूर्तियाँ स्थापित की थीं, आकाश से बिजली गिरने से नष्ट हो गए और उनके टूटे-फूटे अंश दूर-दूर तक फैल गए। वे वेदियाँ जिन पर मलेबलि चढ़ाई जाती थी गिरा दी गई और इनके उपासकों को जीवित परमेश्वर की सामर्थ्य के सामने कांपने को बाध्य किया गया और उन्हें ज्ञात कराया गया कि यह सर्वनाश उनके भ्रष्टाचार और मूर्तिपूजा के कारण हुआ था। PPHin 89.2
जैसे-जैसे तूफान की प्रचण्डता बड़ी, पेड़, भवन, पत्थर और मिट्टी हर दिशा में उछाले गए। मनुष्य और जन्तुओं का भय वर्णन के बाहर था। तूफान की दहाड़ से ऊंचा उन लोगों के रोने का स्वर था जिन्होंने परमेश्वर के सामर्थ्य की अवमानना की थी। युद्धरत तत्वों के बीच रहने के लिए बाध्य, शैतान भी स्वयं के अस्तित्व के लिये भयभीत था। एक शक्तिशाली वंश पर नियन्त्रण करने के विचार से वह प्रफुल्लित था, और उसकी इच्छा थी कि वे जीवित रहकर अपनी घृणा का अभ्यास करेंगे और स्वर्ग के राजा के प्रति विद्रोह करते रहेंगे। अब वह परमेश्वर को अन्यायी और निर्दयी होने का आरोप लगाते हुए शापित करने लगा। शैतान की तरह, कई लोगों ने ईश्वर की निंदा की और यदि वे सक्षम होते तो वे परमेश्वर को उसके सिंहासन से उतार देते। अन्य भय से विचलित होकर जहाज की ओर हाथ उठाए प्रवेश के लिए विनती कर रहे थे। लेकिन अब उनकी विनती व्यर्थ थी। अंतकरण आखिरकार जागृत हुआ, यह ज्ञात करने के लिए कि परमेश्वर है जो स्वर्ग पर राज्य करता है। उन्होंने उसे बड़ी गम्भीरता से पुकारा, लेकिन अब उसके कान उनके विलाप को सुनने के लिये बन्द थे।। उस भयानक घड़ी में उन्हें ज्ञात हुआ कि परमेश्वर की आज्ञा न मानने के कारण उनका विनाश हुआ। लेकिन अभी भी दण्डाज्ञा के डर से उन्होंने अपने पाप का अंगीकार तो किया, लेकिन उन्हें यथार्थ में पछतावा नहीं थाऔर ना ही पाप से घृणा थी। यदि उन्हें न्यायमुक्त कर दिया जाता, तो वह फिर से स्वर्ग का विरोध करने में जुट जाते। इसलिये जब आग द्वारा सर्वनाश से पहले धरती पर परमेश्वर द्वारा न्याय किया जाएगा,अपश्चतापी मनुष्यों को ज्ञात कराया जाएगा कि उनका पाप कहां और क्या है-परमेश्वर की पवित्र व्यवस्था की अवज्ञा और इनका पछतावा भी उस युग के पापियों से अधिक नहीं होगा । PPHin 89.3
कईयों ने बलपूर्वक जहाज में प्रवेश होने का दुस्साहस किया, लेकिन दृढ़ता से निर्मित उस आकार ने उनके प्रयत्नों को विफल कर दिया। कई जहाज से उस मसय तक लटक रहे जब तक पानी का उफान उन्हें बहा न ले गया या जब तक कि जहाज और पेड़ो व चट्टानों के बीच टक्कर होने से उनके हाथ न छूट गए हों। एक लहर से दूसरी लहर पर उछाला गया, निर्दयी हवा की मार को झेलते हुए वह विशाल जहाज पूरी तरह से कांप रहा था। भीतर बन्द हुए जन्तुओं की चिललाहाट में भय और पीड़ा की अभिव्यक्ति थी। लेकिन युद्धरत तत्वों के बीच वह सुरक्षित तैरता रहा। शक्तिशाली स्वर्गदूतों को उसके संरक्षण के लिये नियुकत किया गया था। PPHin 90.1
तूफान के सामने अनाश्रित जन्तु मानों सहायता की आशा मे मनुष्य की तरफ दौड़े। कुछ लोगो ने स्वयं की ओर अपने बच्चों को सबल पशुओं परबांध दिया, यह जानते हुए कि हठी व शक्तिशालीहोने के कारण पशु उमड़ते जल से बचाव के लिये सबसे ऊंचे स्थान पर चढ़ जाएंगे। कुछ ने स्वयं को ऊंचे पर्वतों और पहाड़ो के शिखर पर लगे वृक्षों से बांध लिया, लेकिन मनुष्य के भार से वृक्ष जड़ से उखड़ कर लहरों पर जा गिरे। एक के बाद एक प्रत्येक स्थान, जहां सुरक्षा प्रतीत होती थी, नष्ट हो गया। जैसे-जैसे जल का स्तर बढ़ता गया, लोग शरण लेने सबसे ऊंचे पर्वतों की ओर भागे। कई बार पैर टिकाने के स्थान के लिये मनुष्य और पशु दोनों संघर्ष करते, लेकिन फिर दोनों बहा लिये जाते । PPHin 90.2
सबसे ऊंचे शिखर से मनुष्य ने एक अपार समुद्र को देखा। परमेश्वर की चेतावनियाँ अब ठट्ठा और उपहास का विषय नहीं रही। कितने इच्छुक थे अब वे उन अवसरों के जिनका उन्होंने तिरस्कार किया था, कितनी विनती की उन्होंने एक घण्टे की परख-अवधि के लिए, कृपा के एक और विशेषाधिकार के लिये, नूहके होठों से एक पुकार के लिए, लेकिन अब दया से पूर्ण मधुर वाणी उनके कानों में नहीं पहुँची। प्रेम, जो किसी भी तरह न्याय के तुल्य कम न था, की मांग थी कि पाप पर परमेश्वर के न्याय द्वारा रोक लगाई जाए। प्रतिशोध से पूर्णसमुद्र उनके अन्तिम आश्रय को भी बहा ले गया और परमेश्वर से घृणा करने वालेसमुद्रकी गहराई में नष्ट हो गए ।पतरस 3:5-7 में लिखा है, “वचन के द्वारा आकाश प्राचीन काल से विद्यमान है और पृथ्वी भी जल में से बनी और जल में स्थिर है। इसी कारण उस युग का जगत जल में डूब कर नष्ट हो गया। फिर वर्तमान काल के आकाश और पृथ्वी उसी वचन के द्वारा इसलिए रखे गए है कि जलाए जाएं और ये भक्तिहीन मनुष्यों के न्याय और नष्ट होने के दिन तक ऐसे ही रहेंगे। एक और तूफान आने वाला है। पृथ्वी एक बार फिर परमेश्वर के प्रचण्ड क्रोध द्वारा समाप्त कर दी जाएगी और पाप और पापियों को नष्ट कर दिया जाएगा। PPHin 91.1
जिन पापों के कारण जलप्रलयपूर्व संसार दंडित हुआ वही पाप आज भी विद्यमान है। मनुष्य के हृदयों में परमेश्वर का भय नहीं और उसकी व्यवस्था को उदासीनता और घृणा से देखा जाता है। उस पीढ़ी की अत्यधिक सांसारिकता वर्तमान पीढ़ी की सांसारिकता के बराबर है। मत्ती 24:38,39 में लिखा है, “क्योंकि जैसे जल-प्रलय से पहले के दिनों में, जिस दिन तक कि नूह जहाज पर न चढ़ा, उस दिन तक लोग खाते पीते थे, और उनमें विवाह होते थे। और जब तक जल-प्रलय आकर उनको बहा न ले गया, तब तक उनको कुछ भी मालूम न पड़ा, वैसे ही मनुष्य के पुत्र का आना भी होगा”। परमेश्वर ने जलप्रलय पूर्व वासियों को खाने पीने के लिये दंडित नहीं किया, उसने उनकी शारीरिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लियेबहुतायत से भूमि पर लगने वाले फल दिये थे। उनका पाप यह था कि उन्होंने इन उपहारों का सेवन तो किया, लेकिन विधाता के प्रति अकतज्ञ रहे और अपने लालच पर रोक न लगाकर, स्वयं के स्तर को नीचे गिरा लिया। उनके लिये विवाह वैध था। विवाह परमेश्वर के अनुकूल था, वह उसके द्वारा स्थापित की गईं पहली संस्था थी। उसने विवाह सम्बन्धित व्यवस्था के लिये विशेष निर्देश दिए और विवाह को पवित्रता और सुन्दरता से पूर्ण किया, लेकिन मनुष्य द्वारा इन निर्देशों को भुला दिया गया और विवाह को विकृत कर उसे वासना तृप्ति का साधन बना दिया गया। PPHin 91.2
आज भी स्थिति प्राचीन काल जैसे ही है। स्वयं में जो वैध है उसमें असंयम बरता जाता है। अनियंत्रित तरीके से प्रवृति को तृप्त किया जाता है। स्वयं को मसीह के अनुयायी कहने वाले भी पियक्कड़ों के साथ खाते पीते है और उनके नाम कलीसियों के सम्मानित लोगों की सूची में पाए जाते है। असंयम नैतिक और आत्मिक क्षमता को शक्तिहीन कर देता है और नीचे स्तर के आवेगों की तृप्ति का मार्ग तैयार करता है। अधिंकाश लोग अपनी कामुक अभिलाषाओं पर नियंत्रण रखने के नैतिक कर्तव्य से मुक्त होकर, वासना के दास बन जाते है। मनुष्य इन्द्रियों के उपभोग के लिऐ जी रहे है, केवल इस संसार और इस जीवन के लिए, समाज के हर क्षेत्र में मर्यादाहीनता दिखाई पड़ती है। भोग-विलास और प्रदर्शन के लिए सत्यनिष्ठा को त्याग दिया जाता है। धनवान बनने की जल्दी में वे न्याय को विकृत कर देते है और निर्धन पर अत्याचार करते है और आज भी दास और मनुष्य की आत्माओं को बेचा और खरीदा जाता है। धोखा, रिश्ववखोरी औरऔर चोरी का ऊँचे व निचले स्तर के लोगों में स्वतन्त्रता से अभ्यास होता है। अखबार की प्रतियाँ अत्यन्त बर्बरतापूर्ण और अकारण हत्याओं के अभिलेखों से भरी होती हैं और ऐसा प्रतीत होता है जैसे मानवता की सहज-प्रवृति ही मिटा दी गई हो। और ऐसे अत्याचारों का घटित होना इतना सामान्य हो गया है कि ना ही इनपर टिप्पणी की जाती है और ना ही किसी को आश्चर्य होता है। सभी देशों में अराजकता की भावना फैल रही है और समय-समय पर होने वाले उपद्रव संसार के भय को तो उत्तेजित करते है, लेकिन वे केवल आवेग की दबी हुईं ज्वाला और व्यवस्था के अभाव के संकेत होते है। यही यदि नियंत्रण से बाहर हो गए तो पृथ्वी कष्ट और निर्जनता से भर जाएगी। जलप्रलय पूर्व संसार का जो चित्रांकन प्रेरणा ने किया है वह यथार्थ में प्रतिनिधित्व करता है उस अवस्था का जिसकी ओर आधुनिक समाज गतिमान है। आज भी, वर्तमान सदी में, मसीहत प्रधान देशो में, वही अपराध घटित होते है जो प्राचीन काल के काले और भयानक अपराधों के समान है, जिनके कारण उस काल के पापियों को नाश किया गया था। PPHin 92.1
जलप्रलय से पूर्व परमेश्वर ने नूह को संसार को सावधान करने हेतु भेजा, ताकि वे पश्चाताप कर विनाश से बचाए जा सके। जैसे-जैसे मसीह के दूसरे आगमन का समय निकट आ रहा है, परमेश्वर अपने दासों को संसार को चेतावनी देने भेजता है ताकि वे उस महान घटना के लिये तैयार हो सकें। अधिकांश लोग परमेश्वर की आज्ञाओं के उल्लंघन यानि पाप में जी रहे हैं और दयावान परमेश्वर उन्हें व्यवस्था के पवित्र सिद्धान्तोंका पालन करने के लिये बुलाता है। वे सभी जो परमेश्वर के प्रति प्रायश्चित और मसीह में विश्वास द्वारा अपने पापों का परित्याग करते है उन्हें क्षमादान प्राप्त होता है। लेकिन बहुतों को लगता है कि पाप का परित्याग करने के लिये बहुत बड़े त्याग की आवश्यकता है। उनका जीवन परमेश्वर के सात्विक शासन के अनुरूप नहीं है, इसलिये वे उसकी चेतावनियों की उपेक्षा कर देते है और उसकी व्यवस्था के अधिकार को नकार देते हैं। PPHin 93.1
जलप्रलय पूर्व पृथ्वी की बहुत जनसंख्या में से केवल आठ प्राणियों ने नूह के माध्यम से परमेश्वर के वचन का पालन किया और विश्वास किया। एक सौ बीस वर्षों तक इस धार्मिकता के प्रचारक ने जगत को आने वाले विनाश की चेतावनी दी, लेकिन उसके सन्देश को अस्वीकृत और तिरस्कृत कर दिया गया। अनाज्ञाकारियों को दण्डित करने, व्यवस्था प्रदान करने वाले के आने से पहले, उल्लंघन करने वालों को चेतावनी दी जाती है कि वे प्रायश्चित करें और आज्ञाकारिता में लौटे, लेकिन अधिकांश लोगों के लिये यह चेतावनी व्यर्थ होगी। प्रेरित पौलुस कहता है, “अन्तिम दिनों में स्वेच्छाचारी हंसी उड़ाने वाले उपहास करते हुए आएंगे और कहेंगे, “क्या हुआ उसके फिर से आने की प्रतिज्ञा का? क्योंकि हमारे पूर्वज तो चल बसे, पर जब से सृष्टि बनी है, हर चीज वैसे की वैसी चली आ रही है””-2 पतरस 3:3,4। क्या हम यही शब्द, केवल अधर्मियों द्वारा ही नहीं, लेकिन उनके द्वारा भी जो हमारे देश के पुरोहितासनों पर विराजमान है, दोहराए गए नहीं सुनते? वे पुकार कर कहते है, “डरने का कोई कारण नहीं है।“इससे पहले कि मसीह आए समस्त संसार का रूपांतरित होना अवश्य है और धार्मिकता कोएक हजार वर्षों राज करना है, शान्ति, शान्ति! सब कुछ वैसे ही चल रहा है जैसा की प्रारम्भ से था कोई भी इन भय फैलाने वालों के भावोत्तेजक सन्देशों से व्याकुल ना हों।” लेकिन सहस्राब्दी का यह सिद्वान्त मसीह और उसके अनुयायियों की शिक्षा के अनुकूल नहीं है मसीह ने यह महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा, “मनुष्य का पुत्र जब आएगा, तो क्या वह पृथ्वी पर विश्वास पाएगा”? लूका 18:8,और ,जैसा कि हमने देखा है कि संसार के स्थिति वैसी ही होगी जैसी नूह के दिनो मे थी ।पौलूस हमें सचेत करता है कि अन्तिम समय के निकट आने पर हम दुष्टता मे बढ़त होने की अपेक्षा कर सकते है। 1 तीमुथियुस 4:1में लिखा है “परन्तु आत्मा स्पष्टता से कहता है कि आने वाले समय में कितने लोग भरमाने वाली आत्माओं, दुष्ट आत्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएंगे।” प्रेरित कहता है, “अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे”-2तीमुथियुस 3:1। और वह चौंका देने वाली पाप की एक सूची देता है जो उन लोगों मे पाए जाएंगे जो धार्मिकता का रूप धारण करते हैं। PPHin 93.2
जैसे-जैसे परख-अवधि का समय समाप्त होने पर था जलप्रलय पूर्व के मनुष्य उत्तेजक मनोरंजन और आमोद-प्रमोद मे मग्न हो गए। प्रभावशाली प्रबल पुरूष दूसरों के मन को आमोद-प्रमोद मे लीन रखने की चेष्टा करते रहते, ताकि वे अन्तिमचेतावनी से प्रभावित न हो जाएं। क्या यही बात आज भी नहीं दोहराईं जाती? परमेश्वर के दास अन्तिम समय के निकट होने का सन्देश दे रहे हैं, लेकिन संसार मनोरंजन और उपभोग में व्यस्त है। उत्तेजना का एक स्थायी दौर है जो परमेश्वर के प्रति मनुष्य की उदासीनता का कारण है और लोगो को उस सत्य से प्रभावित होने से रोकता है, जो उन्हें आने वाले विनाश से बचा सकता है।नूह के दिनों में दार्शनिकों ने कहा कि संसार का जल द्वारा विनाश होना असम्भव था; इस तरह आज वैज्ञानिक है जो यह दिखाने का प्रयत्न करते है कि जगत का आग से विनाश नहीं हो सकता, क्योंकि यह प्रकृति के नियमों के प्रतिकूल है। लेकिन प्रकृति का परमेश्वर, उसके नियमों को रचने और नियन्त्रित करने वाला अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये अपने हाथों की कृति का उपयोग कर सकता है। PPHin 94.1
जब महापुरूषों और बुद्धिजीवियों ने उन्हें संतोषजनक प्रमाण दिया कि जल से जगत का विनाश असम्भव था, जब लोगों का भय शान्त हो गया, जब सब ने नूह की भविष्यद्वाणी को भ्रमित माना और उसे कटटरपंथी समझा, तब परमेश्वर का समय आया। “गहरे समुद्र के सोते फूट निकले और आकाश के झरोखे खुल गए” और ठट्ठा करने वाले जलप्रलय के जल में अभिलुप्त हो गए। अपने अंहकारी तत्वज्ञान के होते हुए, मनुष्य ने यह बहुत बाद में जाना कि उनका विवेक उनकी मूर्खता थी, और यह कि नियम बनाने वाला प्रकृति के नियमों से महान हैऔर सर्वशक्तिमान के पास अपने उद्देश्य को पूर्ण करने के लिये साधनों का अभाव नहीं है। लूका 17:26, 30में लिखा है, “जैसा नूह केदिनों में हुआ था, वैसा ही मनुष्य के पुत्र के दिनों में भी होगा मनुष्य के पुत्र के प्रगट होने के दिन भी ऐसा ही होगा।” 2 पतरस 3:10 में लिखा है, “परन्तु प्रभु का दिन चोर के समान आएगा, उस दिन आकाश बड़ी हड़हड़ाहट के शब्द से जाता रहेगा और तत्व बहुत ही तप्त होकर पिघल जाएंगे और पृथ्वी और उस पर के काम जल जाएंगे ।” जब तत्वज्ञान के तक ने परमेश्वर के न्याय के भय को दूर कर दिया है, जब धर्म के शिक्षक शान्ति और समृद्धि के दीर्घकाल की ओर संकेत कर रहे हैं, और संसार व्यापार और मनोरंजन में रोपण करने में, निर्माण करने में, आमोद-प्रमोद में, परमेश्वर की चेतावनी का तिरस्कार करने में और उसके सन्देशवाहकों का उपहास करने में व्यस्त हैं वही समय है जब “उन पर एकाएक विनाश आ पड़ेगा और वे किसी रीति से न बचेंगे” । 1 थिस्सलुनीकियों 5:3 PPHin 94.2