कुलपिता और भविष्यवक्ता

77/80

अध्याय 70—दाऊद का भाषण

यह अध्याय 2 शमूएल 5:6-25; 6,7,9,10 पर आधारित है

जैसे ही दाऊद को इज़राइल के सिंहासन पर विराजमान किया गया, वह अपने राज्य की राजधानी के लिये एक अधिक उचित स्थान ढूंढने लगा। हेब्रोन से बीस मील दूर राज्य के भावी महानगर के लिए एक स्थान चुना गया। यहोशू के द्वारा यरदन पर से इज़राइली सेना को ले जाने से पूर्व इसका नाम सालेम था। इस स्थान के निकट अब्राहम ने परमेश्वर के प्रति अपनी स्वामिभक्ति का प्रमाण दिया था। दाऊद के अभिषेक से आठ सौ वर्ष पूर्व यह परमेश्वर के याजक मलिकिसिदक का घर था। यह देश के मध्य से और ऊंचाई पर था और पहाड़ो के वातावरण द्वारा सुरक्षित था। बिन्यामीन और यहूदा के बीच की सीमा पर होते हुए, यह एप्रैम के समीप था और अन्य गोत्र यहा आसानी से पहुँच सकते थे। PPHin 736.1

इस स्थान को सुरक्षित करने के लिये इब्रियों के लिये कनानियों के उत्तरजीवियों को निर्वासित करना आवश्यक था। कनानी सिय्योन और मोरा पर्वतों पर एक सुरक्षित स्थान में स्थित थे। इस गढ़ को यबूस कहा जाता था और इसके निवासी यबूसी कहलाते थे। सदियों से यबूस को अजेय माना जाता था, लेकिन योआब के नेतृत्व में इब्रियों ने इसका घेराव कर इसे ले लिया था। योआब को इसी साहस के लिये पारितोषिक के रूप में इज़राइल की सेनाओं को प्रधान सेनापति बनाया गया था। यबूस अब राष्ट्रीय राजधानी बन गया था, और उसके मूर्तिपूजा से जुड़े नाम को बदलकर यरूशलेम रखा गया। PPHin 736.2

भूमध्यसागर पर स्थित, सोर के समृद्ध नगर का राजा, होशम ने इज़राइल के राजा से सन्धि की और यरूशलेम में महल के निर्माण के कार्य में दाऊद की सहायता की। सोर से राजदूतों को भेजा गया और उनके साथ राजमिस्त्री और कारीगर और कीमती काठ, देवदार के वृक्ष और अन्य बहुमूल्य सामग्री भी भेजी गई। PPHin 736.3

दाऊद के शासनकाल मे इज़राइल की बढ़ती हुई ताकत, यबूस के गढ़ का अधिग्रहण और सोर के राजा हीराम के साथ सन्धि ने पलिश्तियों की शत्रुता को उकसाया और उन्होंने सशक्त सेना के साथ देश पर आक्रमण किया, वे रपाईम नाम तराई में फैल गए, जो यरूशलेम से कुछ ही दूरी पर है। दाऊद और उसके साथी सिय्योन के गढ़ में चले गए और उन्होंने ईश्वरीय निर्देश की प्रतीक्षा की। “जब दाऊद ने यहोवा से पूछा, क्‍या मैं पलिश्तियों पर चढ़ाई करूँ? क्‍या तू उन्हें मेरे हाथ में दे देगा? यहोवा ने दाऊद से कहा, चढ़ाई कर, क्‍योंकि मै निश्चय ही पलिशितयों को तेरे हाथ कर दूँगा। PPHin 736.4

दाऊद ने शत्रु पर तत्काल चढ़ाई की, उन्हें पराजित किया और उनको नष्ट कर दिया और उनसे उनकी मूर्तियाँ, जो वे अपनी विजय निश्चित करने के लिये लाए थे, ले ली। अपनी पराजय के अपमान से अत्यन्त कोधित होकर, पलिश्तियों ने एक विशाल सेना एकत्रित की और दूसरी बार चढ़ाई करके वे “रपाईम नामक तराई में फैल गए।” जब दाऊद ने यहोवा से पूछा और उस महान “मैं हूँ” अर्थात परमेश्वर ने इज़राइल की सेनाओं का निर्देशन स्वयं किया। PPHin 737.1

परमेश्वर ने दाऊद को निर्देश दिया, “चढ़ाई न कर, उनके पीछे से घूमकर तूत वृक्षों के सामने से उन पर धावा बोल। और जब तूत वृक्षों की फनगियों में से सेना के चलन की सी आहट तुझे सुनाई पड़े, तब फर्ती करनाःक्योंकि फिर यहोवा पलिश्तियों की सेना को मारने तेरे आगे-आगे जाएगा।” यदि शाऊल की तरह दाऊद ने अपना ही तरीका अपनाया होता, तो वह सफल नहीं होता। लेकिन वह परमेश्वर की आज्ञानुसार “गेबा से लेकर गेजेर तक पलिश्तियों को मारता गया। 1 इतिहास 14:16,17। PPHin 737.2

चूंकि अब दाऊद सिंहासन पर दृढ़ता से स्थापित हो गया था, और विदेशी शत्रुओं की घुसपैठ से स्वतन्त्र था, वह अपने अभिलाषित उद्देश्य की पूर्ति की ओर मुड़ा-परमेश्वर के सन्दूक को यरूशलेम ले कर आना। कई वर्षा से सन्दूक यहाँ से नौ मील दूर किरय॑त्यारीम में रहा था; लेकिन यह उचित था कि पवित्र ‘उपस्थिति’ के प्रतीक से राष्ट्र की राजधानी की शोभा बढ़ाई जाए। PPHin 737.3

दाऊद ने इज़राइल के तीस हजार प्रतिष्ठित पुरूषों को बुलाया क्‍योंकि उसका उद्देश्य था कि इस अवसर को परम आनन्द और प्रभावशाली प्रदर्शन का दृश्य बनाया जाए। लोगों ने प्रसन्‍नतापूर्वक इस बुलावे का प्रत्युत्तर दिया। पवित्र कार्य स्थान में कार्यरत अपने भाईयों के साथ महायाजक, और प्रधान और सभी गोत्रों के सम्मानीय पुरूष किर्यत्यारीम में एकत्रित हुए। दाऊद पवित्र उत्साह से दमक रहा था। सन्दूक को अबीनादाब के घर से निकाला गया और उसे एक नयी बैलगाड़ी में रखा गया और अबीनादाब के दो पुत्रों ने गाड़ी को हांका। PPHin 737.4

इज़ाराइली पुरूष उसके पीछे-पीछे प्रशंसा के गीत गाते और जयजयकार करते चले और उन्होंने वाद्य-यन्त्रों के संगीत के साथ अपनी आवाजों के सुर मिलाए, “दाऊद और इज़राइल का समस्त घराना यहोवा के आगे सब प्रकार के बाजे और वीणा, सारंगियाँ, डफ, डमरू और झांझ बजाते रहे।” इज़राइल ने विजयोल्लास का ऐसा दृश्य बहुत समय बाद देखा था। पहाड़ो और घाटियों के घुमावदार रास्तों से होता हुआ वह विशालजन-समूह प्रसन्‍नता के साथ पवित्र नगर की ओर गया। PPHin 738.1

लेकिन, जब वे नाकोन के खलिहान तक आए, तब उज्जा ने अपना हाथ परमेश्वर के सन्दूक की ओर बढ़ाकर उसे थाम लिया, क्‍योंकि बैलों ने ठोकर खाई और वह हिल गया। तब यहोवाका कोप उज्जा पर भड़क उठा, और परमेश्वर ने उसे उसके दोष के कारण ऐसा मारा कि वह वहाँ परमेश्वर के सन्दूक के पास मर गया।” आनन्द मनाती हुई भीड़ अचानक से भयभीत हो गई । दाऊद भौंचक्का रह गया और अपने हृदय में उसने परमेश्वर के न्याय पर सन्देह किया। वह पवित्र उपस्थिति के प्रतीकके तौर पर वाचा के सन्दूक का सम्मान करना चाहता था। फिर क्‍यों उस सुखद सुअवसर को दुख और विलाप के दृश्य में बदलने के लिये वह भयावह दण्डाज्ञा भेजी गई? दाऊद को लगा की सन्दूक को पास में रखना सुरक्षित नहीं होगा, इसलिये उसने निश्चय किया कि उसे वहीं रहने दिया जाए जहाँ वह था। पास ही में गतवासी ओबेदेदोम के घर में उसे रखने के लिये स्थान मिल गया। PPHin 738.2

उज्जा कि नियति एक सुस्पष्ट आज्ञा के उल्लंघन के लिये पवित्र दण्डादेश था। मूसा के माध्यम से परमेश्वर ने संदूक के परिवहन से सम्बन्धित विशेष निर्देश दिए थे। केवल हारून के वंशज, अर्थात याजक संदूक को छू सकते थे या उसे बिना आवरण के देख सकते थे। पवित्र निर्देश था, “कहाती उसके उठाने के लिये आएं, पर किसी पवित्र वस्तु को न छुऐँ, कही ऐसे न हो वे मर जाएं ।-गिनती 4:15। याजको को सन्दूक को ढॉकना था और फिर कहातियों को उसे डंडो से उठाना था; ये, डंडे संदूक के दोनो तरफ लगे कड़ो में से पिरोए हुए थे, और इन्हें कभी भी हटाया नहीं जाना था। गेशोनियों और मरारियों के प्रभार में मिलापवाले तम्बू के पर्द, पट और स्तम्भ थे। मूसा ने उन्हें दी गई वस्तुओं के परिवहन के लिये बैल और गाड़िया दी। “परन्तु कहातियों को उसने कुछ न दिया, क्‍योंकि उनके लिये पवित्र वस्तुओं की यह सेवकाई थी कि वे उसे अपने कंधो पर उठा लिया करें।-गिनती 7:9। इस प्रकार संदूक को किर्यत्यारीम से लाने में परमेश्वर के निर्देशों का प्रत्यक्ष और अक्षम्य अनादर हुआ था। PPHin 738.3

दाऊद और उसके प्रजा एक पवित्र कार्य को सम्पन्न करने के लिये एकत्रित हुए थे, और वे उसे प्रसन्‍नता और स्वेच्छा से करने में व्यस्त हुए थे, लेकिन प्रभु इस विधि को स्वीकार नहीं कर सकता था क्योंकि यह उसके निर्देशानुसार सम्पन्न नहीं की गईं थी। पलिश्तियों ने, जिन्हें परमेश्वर की व्यवस्था का ज्ञान नहीं था, इज़राइल लौटते समय सन्दूक को गाड़ी पर रखा था और परमेश्वर ने उनके द्वारा किये गए प्रयास को स्वीकार किया। लेकिन इज़राइलियों के हाथों में इन विषयों में परमेश्वर की इच्छा का स्पष्ट विवरण था, और इन निर्देशों के प्रति उनकी उपेक्षा परमेश्वर का निरादर करना था। उज्जा परिकल्पना के लिये अधिक दोषी था। परमेश्वर की व्यवस्था के उल्लंघन ने उसकी पवित्रता के आभास को उसमें कम कर दिया था और अस्वीकृति पापों को अपने ऊपर लिये, परमेश्वर द्वारा निषिद्ध होने के बावजूद उसने परमेश्वर की उपस्थिति के प्रतीक को छूने का दुस्साहस किया। परमेश्वर ना तो आंशिक आज्ञाकारिता और ना ही उसके नियमों के प्रति उदासीनता को स्वीकार करता है। उज्जा पर दण्डाज्ञा भेजने के द्वारा वह समस्त इज़राइल पर उसके नियमों पर गम्भीरतापूर्वक ध्यान देने की आवश्यकता को समझाना चाहता था। इस प्रकार उस एक मनुष्य की मृत्यु, लोगों को पश्चताप का मार्ग दिखाकर, हजारों को दण्डादेश देने की आवश्यकता को रोक सकता था। यह सोचकर कि उसका अपना मन परमेश्वर के प्रति पूर्णतया साफ नहीं था, उज्जा पर पड़ी मार को देखकर दाऊद को सन्दूक का भय था कि कहीं उसका कोई पाप उस पर दण्डाज्ञा न ले आए। लेकिन ओबेदेदोम ने, जो प्रसन्‍नता में भी कॉप रहा था, पवित्र प्रतीक का, निष्ठावानों के लिये परमेश्वर की कृपा-दृष्टि की प्रतिज्ञा के तौर पर, स्वागत किया। समस्त इज़राइल का ध्यान अब गतवासी और उसके घराने की ओर था, सब देख रहे थे कि उनके साथ सब कुछ कैसा रहेगा और “यहोवा ने ओबेदेदोम और उसके समस्त घराने को आशीष दी। PPHin 739.1

दाऊद पर परमेश्वर की फटकार ने अपना कार्य सम्पन्न किया। उसे एहसास कराया गय कि उसने पहले से ही सम्पूर्ण आज्ञाकारिता की आवश्यकता और परमेश्वर की व्यवस्था की पवित्रता को नहीं समझा था। ओबेदेदोम के घराने पर कृपा-दृष्टि दिखाने से दाऊद ने फिर से यह आशा की कि संदूक उसके और उसकी प्रजा के लिये आशीष का कारण होगी। PPHin 739.2

तीन माह पश्चात उसने सन्दूक को हटाने का एक और प्रयास करने का संकल्प किया, और इस बार उसने परमेश्वर के निर्देशों का सूक्ष्माा से पालन करने पर पूरा ध्यान दिया। राष्ट्र के माननीय पुरूषोंको बुलाया गया और गतवासी के निवास स्थान के चारों ओर एक विशाल जन-समूह एकत्रित हो गया। सन्दूक को श्रद्धापूर्वक ईश्वर द्वारा नियुक्त व्यक्तियों के कन्धों पर रखा गया, सब लोग पक्तिबद्ध हुए और कॉपते हृदयों के साथ विशाल जन-मण्डली आगे बड़ी। छः कदम चलने पर तुरही के स्वर नें रूकने का संकेत दिया। दाऊद के निर्देश द्वारा “बेल और पाला-पोसा हुआ बछड़ा” बलि चढ़ाया था। केंपन और भय का स्थान अब आनन्द ने ले लिया। राजा ने अपने राजसी वस्त्र एक तरफ रख कर सन के वस्त्र का एपोद, जो याजकों द्वारा पहना जाता है, धारण किया। ऐसा करने से वह यह नहीं जता रहा था कि उसने याजकीय कार्य ग्रहण कर लिये थे, क्योंकि एपोद कभी-कभी याजकों के अलावा अन्य लोग भी पहन लेते थे। लेकिन इस पवित्र विधि में उसने परमेश्वर के सम्मुख, अपनी प्रजा की बराबरी में स्थान लिया। उस दिन यहोवा की महिमा होनी थी। परमेश्वर को श्रद्धा का एकमात्र लक्ष्य होना था। PPHin 740.1

फिर से लम्बा कारवाँ गतिमान हुआ और वीणा और सारंगी, तुरही और झांझ का संगीत हवामें तैरने लगा और कई सुरों के साथ मिल गया। “और दाऊद यहोवा के सम्मुख नाचता रहा।” PPHin 740.2

परमेश्वर के सम्मुख श्रद्धापूर्ण आनन्द में दाऊद के नाचने के प्रसंग को आमोद-प्रमोद प्रिय लोग प्रचलित आधुनिक नृत्य को न्यायोचित ठहराने के लिये उल्लेख करते है, लेकिन ऐसे तक के लिये कोई आधार नहीं है। आज के समय में नृत्य मध्यरात्रि के मनोरंजन और मौज मस्ती से सम्बद्ध है। स्वास्थ और नीति विद्या को आमोद-प्रमोद पर बलि चढ़ा दिया गया है। नृत्यप्रेमियों के लिये परमेश्वर श्रद्धायुक्त भय और विचार का पात्र नहीं होता, उनकी सभाओं में प्रार्थना या प्रशंसा के गीत अनुचित प्रतीत होंगे। यह परख निर्णायक होनी चाहिये। वे मनोरंजन जिनमें पवित्र वस्तुओं के लिये प्रेम को निर्बल करने की और परमेश्वर के कार्या को करने में हमारे आनन्द कोकम करने की प्रवृति होती है, मसीही लोगों को नहीं अपनाने चाहिये। संदूक को स्थानान्तरित करने पर परमेश्वर के लिये सहर्ष प्रशंसा में नाच गाने और आधुनिक नृत्य में थोड़ी सी भी समानता नहीं है। एक का लक्ष्य था परमेश्वर का स्मरण और उसके पवित्र नाम की प्रशंसा लेकिन दूसरा अर्थात आधुनिक नृत्य मनुष्य को परमेश्वर को भुलाने और उसका निरादर करवाने का शैतान का माध्यम है। PPHin 740.3

विजयोल्लास से परिपूर्ण जन-समूह अपने अदृश्य राजा के पवित्र प्रतीक के पीछे-पीछे राजधानी के निकट पहुँचा। गीत की तेज आवाज ने शहरपनाहों के प्रहरियों को संकेत दिया कि पवित्र नगर के फाटक खोल दिये जाएँ- PPHin 741.1

“हे फाटकों, अपने सिर ऊँचे करो, हे सनातन के द्वारो, ऊंचे हो जाओ
क्योंकि प्रतापी राजा प्रवेश करेगा।
गायक मण्डली और साज बजाने वालों ने कहा,वह प्रतापी राजा कौन है?
दूसरे समूह ने उत्तर दिया-
परमेश्वर जो सामर्थी और पराक्रमी ह;परमेश्वर जो युद्ध में पराक्रमी है।’
फिर सेकड़ो आवाजों ने मिलकर विजय गान गाया
हे फाटकों अपने सिर ऊँचे करो
हे सनातन के द्वारों, तुम भी खुल जाओ
क्योंकि प्रतापी राजा प्रवेश करेगा ।
PPHin 741.2

फिर से वह सुखदायी प्रश्न सुनाई दिया, “वह प्रतापी राजा कौन है? और विशाल जन-समूह की ‘बहुत से जल की घरघराहट” के समान आवाज में उत्साहपूर्ण उत्तर सुनाई दिया- PPHin 741.3

“सेनाओं का यहोवा,वही प्रतापी राजा है। - भजन संहिता 24:7-10। PPHin 741.4

फिर फाटकों को पूरा खोल दिया गया, जन-समूह ने प्रवेश किया और अत्यन्त श्रद्धा के साथ सन्दूक को उस तम्बू में रख दिया गया, जिसे उसकी अगवानी के लिये खड़ा किया गया था। पवित्र तम्बू के सामने बलि की वेदी खड़ी की गई, होमबलि और मेल बलि के धुएँ, धूप के धुएँ के साथ इज़राइल के निवेदन और प्रशंसा गीत स्वर्ग को समर्पित किये गए। धर्म-किया सम्पन्न होने के पश्चात राजा ने स्वयं प्रजा को आशीर्वाद दिया। फिर अपनी राजसी बहुतायत में से उने उनके अल्पाहार के लिये भोजन और दाखरस बँटवाया। PPHin 741.5

इस धर्म किया में सभी गोत्रों का प्रतिनिधित्व हुआ था और यह दाऊद के शासनकाल का अब तक की सबसे पवित्र घटना का समारोह रहा था। शाऊल पर पवित्र प्रेरणा का आत्मा आकर ठहरा था, और अब जब डूबते हुए सूर्य की अन्तिम किरणें पवित्र तम्बू को पवित्र प्रकाश से स्नान करा रही थी उसके हृदय ने परमेश्वर का धन्यवाद किया कि उसकी उपस्थिति का प्रतीक इज़राइल के सिंहासन के इतना समीप था। PPHin 741.6

इस प्रकार विचारमय होकर, दाऊद “अपने घराने को आशीर्वाद देने के लिये” अपने महल की ओर मुड़ा। लेकिन कोई एक थी जिसने इस आनंदमयी दृश्य को दाऊद के हृदय को प्रभावित करने वाली भावना के बिल्क॒ल विपरीत भावना से देखा था। “जब यहोवा की वाचा का सन्दूक दाऊदपुर में पहुँचा तब शाऊल की बेटी मीकल ने खिड़की में से झांककर दाऊद राजा को कूदते और नाचते हुए देखा। उसने उसे अपने हृदय में तुच्छ समझा।” अत्यन्त अप्रसन्नता के कारण वह दाऊद के महल में वापसी तक प्रतीक्षा न कर सकी, वरन्‌ उससे मिलने के लिये बाहर गई और दाऊद के भद्र अभिवादन के उत्तर में उसने कट शब्दों की बौछार कर दी। उसके कथनों की व्यंगोक्ति तीव्र और कराक्ष करने वाली थी, “कितना तेजस्वी था आज इज़राइल का राजा, जिसने अपनी प्रजा की दासियों के सामने अपने वस्त्र उतार दिये, जैसे कोई मूर्ख मनुष्य बिना लज्जा के स्वयं को निर्वस्त्र करता है। PPHin 742.1

दाऊद को लगा कि मीकल ने परमेश्वर की धर्म-किया का तिरस्कार और निरादर किया था, और उसने कठोरतापूर्वक उत्तर दिया, “यहोवा, जिसे तेरे पिता और उसके समस्त घराने के बदले मुझ को चुनकर अपनी प्रजा इज़राइल का प्रधान होने को ठहरा दिया है, उसके लियेमैं ऐसे नाचा.......और में यहोवा के सम्मुख ऐसे ही नाचता रहूँगा। और में इससे भी अधिक तुच्छ बनूँगा, और अपनी दृष्टि में नीच ठहरूँगा, और जिन दासियों की तू ने चर्चा की है वे भी मेरा आदरमान करेंगी।” दाऊद की फटकार के साथ प्रभु की झिड़की भी जुड़ गई, अपने अभिमान और उदण्डता के कारण ‘मरने के दिन तक मीकल के कोई संतान न हुई।” PPHin 742.2

सन्दूक के स्थानान्तरण के उपलक्ष में किये गए पवित्र समारोहों का प्रजा पर गहरा प्रभाव पडा और पवित्र स्थान की धर्म किया में उनकी गहरी रूचि उत्पन्न हुई और यहोवा के लिये उनका उत्साह पुनः जागृत हुआ। गीत गाने की धर्म किया धार्मिक आराधना का यथाविधि भाग बन गया, और दाऊद ने ना केवल मिलापवाले तम्बू की धर्म किया में याजकों के उपयोग के लिये, वरन्‌ वार्षिक पर्वा पर राष्ट्र वेदी पर आने वाले यात्रियों के द्वारा गाए जाने के लिये, भजन लिखे। इस तरह डाला गया प्रभाव व्यापक था, और वह राष्ट्र को मूर्तिपूजकों से स्वतन्त्र कराने में प्रमाणित हुआ। पड़ोसी जन-जातियाँ इज़राइल की समृद्धि देखकर, इज़राइल के परमेश्वर, जिसने अपने लोगों के लिये इतने महान कार्य किये थे, के पक्ष में विचार करने लगे। PPHin 742.3

मूसा द्वारा निर्मित पवित्र-मण्डप, सन्दूक को छोड़कर पवित्र विधि से सम्बन्धित सभी वस्तुएँ अभी गीबा में ही थी। दाऊद इज़राइल को राज्य का धार्मिक केन्द्र बनाना चाहता था। उसने स्वयं के लिये महल का निर्माण कराया था, और उसे लगा था कि यह उचित नहीं था कि परमेश्वर का सन्दूक एक तम्बू में रहे। उसने ऐसा भव्य मन्दिर के निर्माण का निश्चय किया, जो कि राजा यहोवा की ‘स्थाई उपस्थिति” के रूप में दिये गए सम्मान के लिये इज़राइल के आभार की अभिव्यक्ति करता हो। उसने अपना उद्दश्य नातान भविष्यद्बक्ता को बताया औश्र उससे प्रोत्साहक प्रत्युत्तर मिला, “जो क॒छ तेरे मन में हो उसे कर क्योंकि यहोवा तेरे संग हैं। PPHin 743.1

उसी रात को यहोवा का यह वचन नातान के पास पहुँचा जिसमें राजा के लिये सन्देश था। दाऊद को परमेश्वर के लिये भवन निर्माण करने के विशेषाधिकार से वंचित किया जाना था लेकिन उसे उसके वंशजो को, और इज़राइल के राज्य को ईश्वर की कृपा-दृष्टि का आश्वासन दिया गया, “मैने तो तुझे भेड़शाला से, और भेड़ बकरियों के पीछे पीछे फिरने से, इस मंशा से बुला लिया कि तू मेरी प्रजा इज़राइल का प्रधान हो जाए। और जहाँ कहीं तू आया गया, वहाँ वहाँ में तेरे संग रहा, और तेरे समस्त शत्रुओं का तेरे सामने से नाश किया है, फिर मैं तेरे नाम को पृथ्वी पर के बड़े-बड़े लोगो के नामों के समान महान कर दूँगा। और में अपनी प्रजा इज़राइल के लिये एक स्थान ठहराऊंगा और उसको स्थिर करूँगा, कि वह अपने ही स्थान में वासी रहेगी और कभी चलायमान न होगी, और कटिल लोग उसे फिर दुख न देने पाएँगे, जैसा कि वे पहले करते थे। PPHin 743.2

जैसे कि दाऊद की अभिलाषा थी कि वह परमेश्वर के लिए एक घर बनाए, यह प्रतिज्ञा दी गई, “यहोवा तुझे यह भी बताता है कि वह तेरा घर बनाए रखेगा.....में तेरे निज वंश को तेरे पीछे खड़ा करके उसके राज्य को स्थिर करूँगा।” PPHin 743.3

दाऊद को मन्दिर बनाने के अनुमति न मिलने के कारण घोषित किया गया, “तूने लहू बहुत बहाया और बड़े-बड़े युद्ध किये है, इसलिये तू मेरे नाम का भवन न बनाने पाएगा......देख, तुझ से एक पुत्र उत्पन्न होगा, जो शान्तिप्रिय पुरूष होगा, और मैं उसको चारों ओर के शत्रुओं से शान्ति दूँगा, उसका नाम सुलेमान होगा (शांतिप्रिय) और मैं उसके दिनों में इज़राइल को शान्ति और चेन दूँगा। वही तेरे नाम का भवन बनाएगा।” 1 इतिहास 22:8-10। PPHin 743.4

यद्यपि उसके हार्दिक उद्देश्य से उसे वंचित कर दिया गया था, दाऊद ने संदेश को धन्यवाद सहित ग्रहण किया, “हे प्रभु यहोवा, क्‍या कहूँ, मैं कोन हूँ, और मेरा घराना क्‍या है, जो तूने मुझे यहां तक पहुँचा दिया है? तोभी, हे प्रभु यहोवा, यह तेरी दृष्टि में छोटी सी बात हुईं, लेकिन तूने अपने दास के घराने के विषय में आगे के बहुत दिनों तक की चर्चा की है, “और फिर अपने परमेश्वर के साथ अपनी वाचा को दोहराया। PPHin 744.1

दाऊद जानता था जिस काम को करने का उसके मन में प्रयोजन था, वह उसकी सरकार के लिये गर्व की बात होती और उसके नाम को भी सम्मान मिलता, परन्तु वह अपन इच्छा को प्रभु की इच्छा के आगे समर्पित करने को तैयार था। ऐसे आभारयुकत समर्पण की अभिव्यक्ति मसीही लोगों में भी देखने को मिलती है। कितनी बार आयु के कारण दुर्बल होने के बाद भी अपने हृदय में ठाने हुए किसी महान कार्य को सम्पन्न करने की आशा को थामे रहते है, जबकि वे उस कार्य को करने के लिये अयोग्य होते है! परमेश्वर उनसे बात करता है, जैसे उसका भविष्यद्बक्ता दाऊद से करता था, और बताता है कि जिस कार्य के लिये वे इतने अभिलाषी है वह उनके सुपुर्द नहीं किया गया है। यह उनका दायितव है कि उस कार्य को सम्पन्न करने के लिये दूसरों के लिये मार्ग तैयार करें। लेकिन पवित्र निर्देश के आगे धन्यवाद के साथ समर्पण करने के बजाय, वे ऐसे मैदान छोड़ देते है मानों उनका तिरस्कार किया गया हो और उन्हें अस्वीकार कर दिया गया हो, और उन्हें ऐसा लगने लगता है कि यदि वे इस कार्य को, जिसको करने की उनकी हार्दिक इच्छा थी, नहीं कर पाए तो वे कुछ भी नहीं कर सकते। कई लोग उन उत्तरदायित्वों को किसी न किसी तरह पकड़े रहते है जिनका वहन करने में वे असमर्थ है, और व्यर्थ में उस कार्य को सम्पन्न करने का प्रयास करते है जिसके लिये वे अयोग्य है, जबकि वह, जो वे कर सकते है, उपेक्षित पड़ा रहता है। और उनकी ओर से सहयोग के अभाव में अधिक महत्वपूर्ण कार्य या तो बाधित होता है या असफल हो जाता है। PPHin 744.2

योनातन के साथ अपनी वाचा में दाऊद ने प्रतिज्ञा की थी कि जब उसे अपने शत्रुओं की ओर से शान्ति मिल जाएगी, तब वह शाऊल के घराने पर कृपा करेगा। अपनी समृद्धि के समय में, अपनी वाचा को याद रखते हुए, राजा ने पूछताछ की, “क्या शाऊल के घराने में से कोई अब तक बचा है, जिसको मैं योनातन के कारण प्रीति दिखाऊे?” उसे योनातन का पुत्र मपीबोशेत बताया गया, जो बचपन से ही लँगड़ा था। यितज्रेल में पलिश्तियों द्वारा शाऊल की पराजय के समय, बालक मपीबोशेत के दाईं ने उसे लेकर भागने के प्रयास में उसे गिरा दिया और वह जीवनभर के लिये अर्पैंग हो गया। दाऊद ने नौजवान को अपने दरबार में बुलाया और उसपर कृपा दिखाते हुए उसका स्वागत किया। उसने शाऊल की निजी सम्पत्ति उसको लौटा दी जिससे वह अपने घराने का भरण-पोषण कर सके, लेकिन योनातन के पुत्र को प्रतिदिन राजा की मेज पर उसका अतिथि बनके भोजन करना था। दाऊद के शत्रुओं से प्राप्त जानकारी के अनुसार, मपीबोशेत में कई वर्षों से पूर्वधारणा का संचार किया गयाथा कि दाऊद अनाधिकारग्राही था, लेकिन दाऊद द्वारा उसके उदार और विनयपूर्ण स्वागत ने और उसकी निरन्तर दयालुता ने नौजवान का हृदय जीत लिया, और उसके दाऊद के साथ सम्बन्ध घनिष्ठ हो गए, और पिता योनातन की तरह, उसे लगा कि उसकी और परमेश्वर द्वारा चुने हुए राजा की रूचि में समानता थी। PPHin 745.1

इज़राइल के सिंहासन पर दाऊद के स्थापित होने के पश्चात्‌, राज्य में लम्बे समय तक शान्ति बनी रही। राज्य की एकता और शक्ति को देखते हुए, आस पास की जन-जातियों ने खुल कर शत्रुता दिखाना उचित नहीं समझा, अपने राज्य के पुन:निर्माण और संगठन में व्यस्त होते हुए, आकमक युद्ध से सम्भल कर रहा। अन्त में, उसने पलिश्तियों और मोआबियों पर अर्थात इज़राइल के पुराने शत्रुओं पर चढ़ाई की और दोनो को पराजित कर उन्हें सहयोगी राज्य बनाने में सफल हुआ। PPHin 745.2

फिर दाऊद के साम्राज्य के विरूद्ध पड़ोसी राष्ट्रों का एक विशाल गठबंधन गठित हुआ जिसके परिणामस्वरूप उसके शासन-काल के सबसे महत्वपूर्ण युद्ध और पराकम और उसकी सत्ता के सबसे विस्तृत राज्यारोहण घटित हुए। यह प्रतिरोधी गठबंधन जो दाऊद की बढ़ती हुईं शक्ति के प्रति इर्ष्या के कारण उत्पन्न हुआ था, दाऊद द्वारा पूर्णतया अनुत्तेजित था। जिन परिस्थितियों के कारण इसका गठन हुआ वह यह थी: PPHin 745.3

अम्मोनियों के राजा, नाहाश की मृत्यु का समाचार यरूशलेम पहुँचा-नाहाश ने दाऊद पर तब दया की थी जब वह शाऊल के कोध के कारण पलायक हो गया था। अब दाऊद ने उसके संकट के समय में उस पर की गई कृपा के लिये आभार व्यक्त करने के लिये, अम्मोनी राजा के पुत्र व उत्तराधिकारी हानून के पास दूतों को सांत्वना संदेश के साथ भेजा, “जैसे हानून के पिता नाहाश ने मुझ को प्रीति दिखाई थी, वैसे ही मैं भी हानून को प्रीति दिखलाऊंगा।” PPHin 746.1

लेकिन उसके भद्र व्यवहार को गलत समझा गया। अम्मोनी सच्चे परमेश्वर से घृणा करते थे और इज़राइल के कटटर शत्रु थे। दाऊद को नाहाश दिखाई गईं दयालुता पूर्णतया इज़राइल के राजा शाऊल के प्रति शत्रुता से प्रेरित थी। दाऊद के सन्देश का हानून के सलाहकारों द्वारा गलत अर्थ लगाया गया। वे “अपने स्वामी हानून से कहने लगे, दाऊद ने जो तेरे पास शान्तिदूत भेजे हैं, वह क्या तेरी समझ में तेरे पिता का आदर करने के विचार से भेजे है? क्या दाऊद ने अपने कर्मचारियों को तेरे पास इस विचार से तो न भेजा कि इस नगर में जाँच पड़ताल करके और इसका भेद लेकर इसको उलट दे? पचास वर्ष पहले भी हाकिमों के परामर्श से नाहाश ने याबेश-गिलाद के लोगों के सम्मुख वह निर्दयी शर्त रखी थी, जब वे अम्मोनियों द्वारा घेर लिये गए थे और वे शान्ति के लिये विनती करने गए थे। नाहाश ने उनकी सीधी आंख फोड़ देने के विशेषाधिकार की माँग की थी। अम्मोनियों को अभी भी स्पष्ट रूप से स्मरण था कि किस तरह इज़राइल के राजा ने उनके षड़यन्त्र को निष्फल किया था और उन लोगों को बचाया था जिन्हें वह वश में कर अपाहिज बनाना चाहते थे। अभी भी वह इज़राइल के प्रति उसी घृणा से उकसाये हुए थे। जिस उदार भावना ने दाऊद के सन्देश को प्रेरित किया था वह उनके विचारों में भी नहीं थी। जब शैतान मनुष्य के मन को नियन्त्रित करता है, वह इर्ष्या और सन्देह उत्पन्न करता है जो अच्छे से अच्छे अभिप्रायों का भी गलत अर्थ निकालता है। अपने हाकिमों की बात मानकर, हानून ने दाऊद के दूतों को भेदिये समझा, और उन्हें अपमान और तिरस्कार से लाद दिया। PPHin 746.2

अम्मोनियों को बिना किसी रोकथाम के अपने मन के पापी प्रयोजनों को पूरा करने की अनुमति दे दी गई थी, जिससे कि दाऊद पर उनका वास्तविक चरित्र प्रकट हो। यह परमेश्वर की इच्छा नहीं थी इज़राइल उन धोखेबाज, मूर्तिपूजकों के साथ सन्धि करे। PPHin 746.3

प्राचीन समय में, वर्तमान की तरह, राजदूत का कार्यभार पवित्र माना जाता था। राष्ट्रों की सार्वदेशिक नियम के अनुसार वह व्यक्तिगत हिंसा या अपमान से सुरक्षित था। राजदूत अपने स्वामी के प्रतिनिधि के रूप में खड़ा था और उसके प्रति किसी भी प्रकार का अपमान तत्पर प्रतिशोध माँगता था। अम्मोनी जानते थे कि इज़राइल के किये गए अपमान का प्रतिशोध अवश्य लिया जाएगा, इसलिये उन्होंने युद्ध की तैयारी की। “जब अम्मोनियों ने देखा कि वे दाऊद को घिनौने लगते है, तब हानून और अम्मोनियों ने एक हजार किक्कार (पचहत्तरहजारपौंड) चांदी, अरम्नहरेम और अरम्माका और सोबा को भेजी कि रथ और घुड़सवार किराये पर बुलाए। इस प्रकार उन्होंने बत्तीस हजार रथ किराए पर बुलाए....... और अम्मोनी अपने अपने नगर में से इकट॒ठे होकर लड़ने को आए ।’-1 इतिहास 19:67 । PPHin 747.1

यह सन्धि यथार्थ मे दुर्जय थी। परात महानद और भूमध्यसागर के बीच के क्षेत्र के निवासियों ने अम्मोनियों के साथ सन्धि की थी। कनान का पूर्वी और उत्तरी भाग सशस्त्र शत्रुओं से घिरा हुआ था, जो इज़राइल के राज्य को कुचल डालने के लिये एकजुट हो गए थे। PPHin 747.2

इब्रियों ने अपने देश पर आक्रमण होने की प्रतीक्षा नहीं की। योआब के नेतृत्व में, उन्होंने यरदन को पार किया और अम्मोनी राजधानी की ओर बढ़े । जैसे-जैसे इब्री कप्तान ने अपनी सेना को मैदान में उतारा, उसने उन्हें संघर्ष के लिये प्रेरित करने के लिये कहा, “तू हियाव बाँध और हम सब अपने लोगों और अपने परमेश्वर के नगरों के निमित्त पूरूषार्थ करें, और यहोवा जैसा उसको अच्छा लगेगा, वैसा करेगा।” इतिहास 19:13। पहली मुठभेड़ में ही संघ की संयुक्त सेनाएँ पराजित हो गई। लेकिन वे संघर्ष में हार मानने को तैयार नहीं थे, और अगले वर्ष युद्ध फिर आरम्भ हो गया। अराम के राजा ने अपनी सेना को इकट्ठा किया और एक विशाल सेना के साथ इज़राइल को चुनौती दी। यह जानते हुए कि इस संघर्ष के परिणाम पर बहुत कुछ निर्भर करता था, दाऊद व्यक्तिगत रूप से मैदान में उतरा और परमेश्वर के आशीवार्द से संयुक्त सेना को इतनी बुरी तरह से पराजित किया कि लेबनान से फरात महानद तक, अरामियों ने ना केवल लड़ाई बन्द कर दी, वरन्‌ वह इज़राइल का सहयोगी राष्ट्र बन गए। अम्मोनियों के विरूद्ध दाऊद ने युद्ध की गति बढ़ाई और उनके गढ़ गिर पड़े और सम्पूर्ण क्षेत्र दाऊद के अधीन हो गया। PPHin 747.3

जो खतरे राष्ट्र को विनाश की चुनौती दे रहे थे, परमेश्वर की दया-दृष्टि से वह साधन बने जिसने इज़राइल अभूतपूर्व महानता को प्राप्त हुआ। अपने महत्वपूर्ण छुटकारों को स्मरण कर दाऊद गाता है:- PPHin 748.1

यहोवा परमेश्वर जीवित है, मेरी चटटान धन्य है,
और मेरे मुक्तिदाता परमेश्वर की बड़ाई हो
धन्य है मेरा पलटा लेने वाला ईश्वर,
जिसने देश-देश के लोगो को मेरे वश में कर दिया है,
और मुझे मेरे शत्रुओं से छड़ाया है,
तू मुझ को मेरे विरोधियों से ऊँचा करता,
और उपद्रवी से बचाता है
इस कारण मैं जाति-जाति के सामने तेरा धन्यवाद करूँगा
और तेरे नाम का भजन गाऊंगा।
वह अपने ठहराए हुए राजा का बड़ा उद्धार करता है,
वह अपने अभिषिक्त दाऊद पर और उसके वंश पर
युगानुयुग करूणा करता रहेगा।
PPHin 748.2

-भजन संहिता 18:46-50।

दाऊद के भजनों में आरम्भ से अन्त तक लोगों के मनों में यही विचार डाला गया कि यहोवा उनकी शक्ति और छुटकारा दिलाने वाला है:- PPHin 748.3

“कोई ऐसा राजा नहीं जो सेना की बहुतायत के कारण बच सके
वीर अपनी बड़ी शक्ति के कारण दूर नहीं जाता
बच निकलने के लिये घोड़ा व्यर्थ है,
वह अपने बड़े बल के द्वारा किसी को नहीं बचा सकता।”
PPHin 748.4

- भजन संहिता 33:16,17।

हे परमेश्वर, तू ही हमारा महाराजा है
तू याकूब के उद्धार की आज्ञा देता है
तेरे सहारे से हम अपने द्रोहियों को ढकेलकर गिरा देंगे,
तेरे नाम के प्रताप से हम अपने विरोधियों को रौंदेगे
क्योंकि मैं अपने धनुष पर भरोसा न रखूँगा,
और न अपनी तलवार के बल से बचूँगा।
PPHin 748.5

परन्तु तू ह ने हम को द्रोहियों से बचाया है,
और हमारे बैरियों को निराश और लज्जित किया है।”
PPHin 749.1

- भजन संहिता 44:4-7 ।

किसी को रथो का, और किसी को घोड़ो का, भरोसा है,
परन्तु हम तो अपने परमेश्वर यहोवा ही का नाम लेंगे।
PPHin 749.2

- भजन संहिता 20:7।

विस्तार में अब इज़राइल का राज्य अब्राहम को दी गई प्रतिज्ञा के सम्पूर्ण होनेतक पहुँच गया था, यही प्रतिज्ञा के बाद से मूसा को दोहराई गई थी। “मिस्र के महानद से लेकर परात नामक महानद तक जितना देश हे, मैंने तेरे वंश को दिया हे ।”-उत्पत्ति 15:18 । इज़राइल एक पराक्रमी राष्ट्र बन गया था और पड़ोसी देश उसका आदर करते थे और उससे डरते थे। अपने ही राज्य में दाऊद की शक्ति बहुत बढ़ गईं थी। उसे लोगों का प्रेम ओर स्वामिभक्ति इतनी प्राप्त थी कि किसी भी युग में, बहुत कम राजाओं को प्राप्त हुई होगी। उसने परमेश्वर का आदर किया था, और परमेश्वर अब उसका सम्मान कर रहा था। PPHin 749.3

लेकिन समृद्धि के बीच में खतरा छुपा बैठा था। अपनी सबसे महान बाहरी विजय के समय में वह सबसे बड़े खतरे में था, जिसमें उसे सबसे अधिक अपमानजनक पराजय मिली। PPHin 749.4