कुलपिता और भविष्यवक्ता
अध्याय 67—प्राचीन व आधुनिक जादू-टोना
एन्दोर की स्त्री से शाऊल की भेंट का पवित्र-शास्त्र में किया गया वर्णन, बाईबल के विद्यार्थियों के लिये दुविधा का स्रोत रहा है। कुछ का मानना है कि शाऊल के साथ साक्षात्कार के समय शमूएल वास्तव में उपस्थित था, लेकिन बाईबल स्वयं एक विपरीत निष्कर्ष के लिये पर्याप्त आधार भी देती है। यदि, जैसा कि कई दावा करते है, शमूएल स्वर्ग में था, उसे वहाँ से परमेश्वर की शक्ति या शैतान की शक्ति के द्वारा बुलाया गया होगा। कोई भी एकक्षण के लिये भी यह विश्वास नहीं करेगा कि एक परित्यक्त स्त्री के मंत्रोच्चार का मान रखने के लिये शैतान के पास परमेश्वर के भविष्यवक्ता को स्वर्ग से बुलाने की शक्ति थी। ना ही हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि परमेश्वर ने उसे उस डायन की गुफा में बुलाया था, क्योंकि प्रभु ने शाऊल के साथ स्वप्न द्वारा, उरीम द्वारा या भविष्यवक्ताओं द्वारा संपर्क करने से मना कर दिया था।1 शमूएल 28:6। यह परमेश्वर के व्यक्तिगत रूप से संपर्क के निर्धारित माध्यम थे, और वह शैतान के कर्मक के माध्यम से सन्देश पहुँचाने के लिये इनकी उपेक्षा नहीं करता। PPHin 714.1
सन्देश स्वयं ही उसकी उत्पत्ति का पर्याप्त प्रमाण है। इसका लक्ष्य शाऊल को प्रायश्चित के लिये विवश करना नहीं, वरन् उसे विनाश की और ले जाना था, और यह कार्य परमेश्वर का नहीं, वरन् शैतान का था। उसके अतिरिक्त पवित्र शास्त्र कहता है कि अपना भविष्य जानने या सलाह लेने के लिये शाऊल के उस ओझा स्त्री से भेंट करने के कारण ही परमेश्वर ने उसे अस्वीकार किया और नष्ट होने के लिये त्याग दिया, “यों शाऊल उस विश्वासघात के कारण मर गया, जो उसने यहोवा से किया था, क्योंकि उसने यहोवा का वचन टाल दिया था, फिर उसने ओझा से पूछकर सम्मति ली थी उसने यहोवा से न पूछा था: इसलिये यहोवा ने उसे मारकर राज्य को यिशेै के पुत्र दाऊद को दे दिया। यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि शाऊल ने सिद्ध प्रेत से पूछा, परमेश्वर से नहीं ।”-1इतिहास 10:13,14। उसने परमेश्वर के भविष्यवक्ता से सम्पर्क नहीं किया, वरन् भूत-सिद्धि करने वाली स्त्री के माध्यम से शैतान ने संपर्क किया। शैतान वास्तविक शमूएल को प्रस्तुत करने में असमर्थ था, लेकिन उसने निश्चय ही एक प्रतिरूप प्रस्तुत किया जिसने उसके छल के लक्ष्य को सार्थक किया। PPHin 714.2
प्राचीन काल के भूत सिद्धि और जादू-टोना के सभी प्रकार मृतकों के साथ संपर्क में विश्वास पर आधारित थे। जो प्रेम-विद्या की कला का अभ्यास करते थे, वे मृतकों की आत्माओं के साथ संपर्क का और उनसे भविष्य का ज्ञान प्राप्त करने का दावा करते थे। PPHin 714.3
मृतकों से सम्मति लेने की परम्परा का वर्णन यशायाह की भविष्यद्वाणी में किया गया है: जब लोग तुम से कहे, “ओझाओं और सिद्ध प्रेतों से जाकर पूछो जो धीमी आवाज में फसफसाकर बोलते है, क्या प्रजा को अपने परमेश्वर ही के पास जाकर नहीं पूछना चाहिये? क्या जीवितों के लिये मुर्दों से पूछना चाहिये?’ - यशायाह 8:19। PPHin 715.1
मृतकों के साथ संपर्क में यही विश्वास अधर्मी मूर्तिपूजा के कोने का पत्थर बना। ऐसा विश्वास प्रचलित था कि दिवंगत शूरवीरों की देवत्वारोपित आत्माएँ ही मूर्तिपूजकों के देवी-देवता थे। इस प्रकार मूर्तिपूजकों का धर्म मृतकों की आराधना थी। यह पवित्र-शास्त्र से प्रमाणित है। बेतपोर में इज़राइल के पाप के वर्णन में कहा गया है, “इज़राइली शित्तीम में रहते थे, और वे लोग मोआबी लड़कियों के साथ कुकर्म करने लगे। और जब उन स्त्रियों ने उन्हें अपने देवताओं के यज्ञों में आने का निमन्त्रण दिया, तब इज़राइलियों ने वहाँ भोजन भी किया और उनके देवताओं को दण्डवत किया। और इज़राइली बालपोर देवता की पूजा करने लगे ।”-गिनती 25:1-3। भजन लिखने वाला हमें चढ़ावे में चढाए हुए बलिदानों से सम्बन्धित देवताओं के बारे में बताता है, “वे बालपोर देवता को पूजने लगे और मुर्दों को चढ़ाए हुए पशुओं का मास खाने लगे। - भजन संहिता 10:28; अर्थात बलि मृतकों के लिये चढ़ाई जाती थी। PPHin 715.2
मृतकों के देवत्वारोपयण और मृतकों के साथ तथाकथित संपर्क का देवपूजा अर्थात मूर्तिपूजा की लगभग प्रत्येक प्रणाली में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। माना जाता था, कि देवी-देवता अपनी इच्छा मनुष्यों को बताते थे और सलाह माँगे जाने पर सलाह भी देते थे। रोम और यूनान के प्रसिद्ध देववाणी करने वालों की यहीं विशेषता थी। PPHin 715.3
मृतको के साथ संपर्क में विश्वास, आज भी, तथाकथित मसीही देशों में भी किया जाता है। अध्यात्मवाद के नाम में, दिवंगतों की आत्मा होने का दावा करने वालों के साथ संपर्क करने का अभ्यास व्यापक हो गया है। यह उनकी सहानुभूति को गिरफ्त में लेने के योग्य होता है जिन्होंने अपने प्रियजनों को कब्र में उतारा है। मायामय प्राणी कभी-कभी लोगों पर उनके दिवंगत मित्रों के रूप में प्रकट होते है, और अपने जीवन से सम्बन्धित घटनाओं का वर्णन करते है और वह कार्य करते है जो वह जीवित होने के समय करते थे। इस प्रकार वे मनुष्य को विश्वास दिलाते है कि उनके मृत मित्र स्वर्गदूत हैं, जो उनके ऊपर मण्डरा रहे हैं और उनसे संपर्क कर रहे हैं। जो इस प्रकार तथाकथित दिवंगतों की आत्माओं को मूर्तियों के समान मान्यता दी जाती है और कई लोगों के लिये उनके कहे शब्दों का परमेश्वर के वचन से अधिक महत्व होता है। PPHin 715.4
लेकिन, फिर भी, कई हैं जो अध्यात्मवाद को मात्र पाखंड मानते है। जिन प्रदर्शों के आधार पर वह अपने अलौकिक स्वभाव के दावे का समर्थन करता है उन प्रदर्शनों का कारण माध्यम की ओर से छलावा माना जाता है।यह सच है कि चालबाजी के परिणामों को प्रायः वास्तविक प्रदर्शन के तौर पर टाल दिया जाता है, यह भी सच है कि अलौकिक शक्ति के महत्वपूर्ण प्रमाण रहे हैं। और कई जो अध्यात्मवाद को सयानेपन या मानुषिक निपुणता के परिणामस्वरूप अस्वीकार करते है, इसके दावों को स्वीकार करने के लिये विवश हो जाते हैं जब वे उन प्रदर्शनों का सामना करते है जिन्हें वह अपनी निपुणता से नहींसमझा पाते। PPHin 716.1
आधुनिक अध्यात्मवाद और प्राचीन अभिचार और मूर्ति-पूजा के रूप-सब का महत्वपूर्ण सिद्धान्त मृतकों के साथ संपर्क है और यह उस झूठ पर आधारित है जिससे शैतान ने हवा को अदन की वाटिका में भरमाया था, “तुम निश्चय न मरोगे, वरन् परमेश्वर स्वयं जानता है कि जिस दिन तुम उसका फल खाओगे....... तुम परमेश्वर के तुल्य हो जाओगे।” - उत्पत्ति 3:4,5। ये झूठ पर आधारित है और उसी को स्थायी बना रहे है और वे झूठ के पिता के समान है। PPHin 716.2
इब्रियों के लिये किसी भी तरह से मृतकों के साथ पांखडी संपर्क करना स्पष्ट रूप से निषेध था। परमेश्वर ने यह द्वार प्रभावशाली ढंग से बन्द कर दिया जब उसने कहा, “मरे हुए कुछ भी नहीं जानते......और अब जो कुछ सूर्य के नीचे किया जाता है उसमें सदा के लिये उनका कोई और भाग न होगा ।”-सभोपदक 9:5,6। भजन संहिता 146:4 में लिखा है, “उसका भी प्राण निकलेगा, वह भी मिट्टी में मिल जाएगा, उसी दिन उसकी सब कल्पनाएं नष्ट हो जाएगी।” और प्रभु ने इज़राइल से कहा, “जो प्राणी ओझाओं या भूत साधने वालों की ओर मुड़ कर, उनके पीछे चलकर व्यभिचारी बने, तो मैं उस प्राण के विरूद्ध होकर उसे उसके लोगों के बीच में नष्ट करूँगा ।”-लैवव्यवस्था 20:6। PPHin 716.3
“सिद्ध प्रेत” मृतकों की आत्माएँ नहीं थी, वरन् वे शैतान के सन्देशवाहक, दुष्ट दूत थे। जैसा कि हमने देखा प्राचीन मूर्तिपूजा, जिसके अन्तर्गत मृतकों की पूजा और उनके साथ पांखडी संपर्क आते हैं, बाईबल द्वारा प्रेत-पूजा घोषित की गई है। प्रेरित पौलुस अपने भाई-बन्धुओं को उनके अधर्मी पड़ोसियों द्वारा की जा रही मूर्तिपूजा में किसी भी प्रकार से सम्मिलित होने के विरूद्ध चेतावनी में कहता है, “अन्यजाति जो बलिदान करते है, वे परमेश्वर के लिये नहीं परन्तु दुष्टात्माओं के लिये बलिदान करते हैं, और मैं नहीं चाहता कि तुम दुष्टात्माओं के सहभागी हो” 1 कुरिन्थियों 10:20। इज़राइल की बात करते हुए, भजन लिखने वाला कहता है, “उन्होंने अपने बेटे बेटियों को पिशाचों के लिये बलिदान किया” और अगे पद में वह समझाता है कि “उन्होंने उन्हें कनान की मूर्तियों पर बलि किया।” (भजन संहिता 106:37,38) मृतक पुरूषों की तथाकथित आराधना में वे यथार्थ में पिशाचों की पूजा कर रहे थे। PPHin 717.1
आधुनिक अध्यात्मवाद, इसी नींव पर टिका हुआ, प्रेम पूजा और भूतसिद्धि का नये रूप में पुनः प्रचलन है, जिसे आदि से परमेश्वर ने तिरस्कृत और निषिद्ध ठहराया था। पवित्र शास्त्र में यह भविष्यद्वाणी द्वारा घोषित किया गया है कि “आने वाले समयों में कितने लोग भरमानेवाली आत्माओं, और दुष्टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाकर विश्वास से बहक जाएँगे ।’-1 तीमुथियुस 4:1। थिस्सलुनीकियों को अपने दूसरे पत्र में, पौलुस, अध्यात्मवाद में शैतान की विशेष कार्यवाही की ओर संकेत करता है, जो घटना के तौर पर मसीह के दूसरे आगमन से ठीक पहले घटित होने वाली थी। मसीह के दूसरे आगमन की बात करते हुए, वह 2 थिस्सलुनीकियों 2:9 में कहता है कि “उसका आना शैतान के कार्य के अनुसार संपूर्ण सामर्थ्यऔर चिन्ह और झूठे आश्चर्य कर्म के साथ” है। और, अन्तिम समय में कलीसिया पर मैंडराने वाले खतरों का वर्णन करते हुए वह कहता है कि जिस प्रकार झूठे भविष्यद्बक्ता थे जो इज़राइल को पाप में ले गए, उसी प्रकार झूठे उपदेशक होंगे जो, “नाश करने वाले पांखड का उदघाटन छुप-छुपकर करेंगे और उस स्वामी का, जिसने उन्हें मोल लिया है, इन्कार करेंगेऔर बहुत से उन के समान लुचपन करेंगे -2 पतरस 2:1,2। यहाँ प्रेरित ने अध्यात्म-विद्या के शिक्षकों की एक महत्वपूर्ण विशेषता की ओर संकेत किया है। वे मसीह को परमेश्वर का पुत्र मानने से इन्कार करते है। ऐसे शिक्षकों के बारे में यहुन्ना, जिससे यीशु प्रेम करता था, कहता है, “झूठा कौन है? केवल वह जो यीशु के मसीह होने से इन्कार करता है और मसीह का विरोधी वही है, जो पिता का और पुत्र का इन्कार करता है। जो कोई पुत्र का इन्कार करता है उसके पास पिता भी नहीं-1 यहुन्ना 2:22,23। मसीह को अस्वीकार कर, अध्यात्मवाद पिता और पुत्र दोनों को अस्वीकार करता है, और बाईबल इसे मसीह विरोधी का रूप बताती है। PPHin 717.2
एन्दोर की स्त्री के द्वारा की गई शाऊल के विनाश की भविष्यद्वाणी के माध्यम से, शैतान इज़राइल के लोगों को भरमाने के लिये योजनाबद्ध था। उसे आशा थी कि उन्हें ओझा में विश्वास करने की प्रेरणा मिलेगी और वे भी उससे सम्मति लेने जाएँगे। इस प्रकार वे परमेश्वर को अपना परामर्शदाता न मानकर उससे मुहँ मोड़कर स्वयं को शैतान के मार्ग-दर्शन में सौंप देंगे। वह लालच जिसके द्वार अध्यात्मवाद जनसाधारण को आकर्षित करता है, वह उसकी वो शक्ति है जो भविष्य से पर्दा उठाकर, मनुष्य पर वह प्रकट करती है, जिसे परमेश्वर ने छुपाया है। परमेश्वर ने अपने वचन में हमारे सम्मुख अपने वचन में भविष्य की महान घटनाओं को खोला है- वह सब जो हमारी जानकारी में होना आवश्यक है- और उसने संकट के समय के लिये हमारे पैरों के लिये एक विश्वसनीय मार्गदर्शक दिया है; लेकिन शैतानका उद्देश्य है परमेश्वर में मनुष्य के विश्वास को नष्ट करना, उन्हें अपने जीवन की दशा से असमन्तुष्ट बनाना, उन्हें उस ज्ञान को खोजने को प्रेरित करना जिसे परमेश्वर ने अपनी समझ से उनसे छुपा कर रखा है, और उनसे उसका तिरस्कार करवाना जो परमेश्वर ने अपने पवित्र वचन में प्रकाशित किया हैं। PPHin 718.1
घटनाकम का निर्धारित परिणाम न जान पाने पर, कई लोग व्याकल हो जाते हैं। वे अनिश्चितता को सहन नहीं कर पाते हैं, और अपनी अधीरता में वे एक कर परमेश्वर के उद्धार को देखने से इन्कार कर देते है। ग्रहीत बुराईयाँ उन्हें लगभग विचलित कर देती है। वे अपनी विद्रोही भावनाओं के प्रभाव में आ जाते है, और आवेशपूर्ण व्यथा में इधर-उधर भागकर उसे जानने की कोशिश करते है जो अभी प्रकट नहीं किया गया है। यदि वे परमेश्वर में विश्वास रख, प्रार्थना में जागरूक रहे, उन्हें ईश्वरीय ढाढ़स मिलगा। परमेश्वर के संपर्क मं आने से उनकी आत्मा को शान्ति प्राप्त होगी। बोझ से दबे हुओं और थके हुओं को यीशु के पास जाने से विश्राम मिलेगा, लेकिन जब वे उन साधनों की उपेक्षा करते है जिन्हें परमेश्वर ने उनकी सुविधा के लिये ठहराए हैं, और परमेश्वर द्वारा गुप्त रखी गईं बातों को जानने की आशा में अन्य स्रोतों के पास जाते हैं, वे शाऊल वाली गलती करते है और केवल बुराई का ज्ञान प्राप्त करते है। PPHin 718.2
परमेश्वर इस कार्य प्रणाली से प्रसन्न नहीं होता, और उसमें यह स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है। भविष्य पर से पर्दा हटाने का धेर्यहीन उतावलापन परमेश्वर में हमारे विश्वास की कमी को दर्शाता है और मन को शैतान के सुझावों के लिये खुला छोड़ देता है। शैतान मनुष्यों को सुझावों के लिये सिद्ध प्रेतों के धारकों के पास ले जाता है; और बीते समय की गुप्त बातें बताकर, वह भविष्यवाणी करने की उसकी शक्ति में विश्वास को प्रेरित करता है। दीर्घकाल के दौरान प्राप्त किये हुए अनुभव के द्वारा वह ध्येय से निष्कर्ष निकालकर, मनुष्य के जीवन की भविष्यकालीन घटनाओं को अत्यन्त सूक्ष्मता से प्रभावित कर सकता है और उनकी भविष्यवाणी कर सकता है। इस प्रकार वह असहाय, पथभ्रष्ट प्राणियों को धोखा देकर, अपनी शक्ति के अधीन करके और अपनी इच्छानुसार बन्दी बना सकता है। PPHin 719.1
परमेश्वर ने अपने भविष्यवक्ता के माध्यम से हमें चेतावनी दी है “जब लेग तुम से कहे, ‘ओझाओं और जावू-टोना करने वालों के पास जाकर पूछो जो धीमी आवाज में फसफसाते है, तब तुम यह कहना, ‘क्या प्रजा को अपने परमेश्वर ही के पास जाकर नहीं पूछना चाहिये? क्या जीवतों के लिये मुर्दा से पूछना चाहिये”? व्यवस्था औरचितौनी की ही चर्चा किया करो। यदि वे लोग इन वचनों के अनुसार न बोले तो निश्चय ही उनमें प्रकाश नहीं है-यशायाह 8:19,20। PPHin 719.2
क्या वे जिनके पास सामर्थ्य और बुद्धिमत्ता में अनंत, पवित्र परमेश्वर होता है, जादू-टोना करने वालों के पास जाते है, जिनका ज्ञान हमारे प्रभु के शत्रु के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध से आता है? परमेश्वर स्वयं उनके लोगों का प्रकाश है, वह उन्हें विश्वास के द्वारा अपनी आखों को उन उत्तम वस्तुओं पर केन्द्रित करने को कहता है जो मनुष्य की दृष्टि से छिपी है। धर्म का सूर्य उनके हृदयों में अपनी उज्जवल किरणें भेजता है और उनमें प्रकाश के स्रोत को छोड़ शैतान के दूतों की ओर मुड़ने की कोई इच्छा नहीं रहती। PPHin 719.3
शाऊल के लिये दुष्टात्मा का सन्देश, पाप की निंदा और प्रतिशोध की भविष्यवाणी तो था, लेकिन वह उसने सुधार लाने के लिये नहीं, वरन् उसे निराशा और विनाश की ओर ले जाने के लिये था। चापलूसी के द्वारा मनुष्य को विनाश की ओर आकर्षेत करना प्रलोभनकर्ता के उद्देश्य के लिये सबसे लाभदायक होता है। प्राचीन काल में पैशाचिक देवताओं की शिक्षा ने सबसे घिनौने दुराचार को प्रोत्साहित किया। वे ईश्वरीय सिद्धान्त जो पाप का तिरस्कार करते थे और धार्मिकता को महत्व देते थे उन्हे परे रख दिया गया; सत्य को हल्के में लिया जाने लगा; अशुद्धता की ना केवल अनुमति दी गईं, वरन् उसकी आज्ञा दे दी गई। अध्यात्मवाद के अनुसार ना तो मृत्यु है, ना पाप, ना दण्डाज्ञा और ना ही प्रतिशोध, और यह कि “मनुष्य अपतित उपदेवता” है, अभिलाषा सबसे श्रेष्ठ नियम है, और मनुष्य स्वयें के प्रति उत्तरदायी हैं। श्रद्धा, शुद्धता और सत्य को सुरक्षा प्रदान करने वाले, परमेश्वर द्वारा निर्मित अवरोधी को तोड़ दिया गया है जिसके कारण कई लोग पाप में दुस्साहसी हो गए है। क्या ऐसी शिक्षा एक ऐसे सूत्र का सुझाव नहीं देती जो पिशाचों की आराधना की शिक्षा के समान है? PPHin 719.4
परमेश्वर ने इज़राइल के सम्मुख, कनानियों की अपविध्न्ता में, दुष्टात्माओं के साथ संपर्क करने के परिणामों को प्रस्तुत किया: उनमें स्वभाविक प्रेम का अभाव था, वे मूर्तिपूजक, व्यभिचारी, हत्यारे और प्रत्येक भ्रष्ट विचार और घृणित प्रथा के कारण घृणित थे। मनुष्य अपने हृदयों को नहीं जानते, क्योंकि “मन तो सब वस्तुओं से अधिक धोखा देने वाला होता है और खतरनाक रूप से दुष्ट है।'यिर्मयाह 17:9 लेकिन परमेश्वर मनुष्य के दुष्ट स्वभाव की प्रवृति को समझता है। उस समय, जैसे कि अभी, शैतान विद्रोह के अनुकल स्थितियाँ उत्पन्न करने की प्रतीक्षा में था, ताकि इज़राइल के लोग स्वयं को परमेश्वर के लिये कनानियों की भाँति घृणास्पद बना ले। मनुष्य का शत्रु हमारे अन्दर पाप के अनियन्त्रित प्रवाह के लिये मार्ग को खोलने के लिये तत्पर रहता है, क्योंकि वह हमारा विनाश चाहता है और हमें परमेश्वर के सम्मुख तिरस्कृत हुआ देखना चाहता है। PPHin 720.1
शैतान कनान प्रदेश पर अपना अधिकार जमाए रखना चाहता था, और जब कनान को इज़राइलियों को निवास-स्थान बना दिया गया, और परमेश्वर की व्यवस्था प्रदेश की व्यवस्था बना दी गई। वह इज़राइल से एक निमर्म और विद्वेषपूर्ण घृणा के साथ बैर रखने लगा। दुष्टात्माओं के माध्यम से पराए देवताओं का परिचय कराया गया और आज्ञा-उल्लंघन के कारण, चुने हुए लोग अनन्तः प्रतिज्ञा के देश से तितर-बितर हो गए। यही इतिहास शैतान हमारे दिनों में भी दोहराना चाह रहा है। परमेश्वर अपने लोगों को संसार की घृणित चीजों से बाहर ला रहा है, जिससे कि वे उसकी व्यवस्था का पालन करे, और इस कारण “हमारे भाई के आरोपी” का कोध सीमा पार कर चुका है और वह “बड़े कोध के साथ तुम्हारे पास उतर आया है क्योंकि वह जानता है कि उसका थोड़ा ही समय बाकी है”-प्रकाशित वाक्य 12:10,12। प्रतिज्ञा के देश का प्रतिरूप हमारे सामने है, और शैतान का दृढ़ सकल्प है कि वह परमेश्वर के लोगों को नष्ट कर और उन्हें उनकी धरोहर से अलग कर दे। “जागते रहो और प्रार्थना करते रहो कि तुम परीक्षा में न पड़ो”-मरकुस 14:38-इस उपदेश की आवश्यकता आज से अधिक पहले कभी न थी। PPHin 720.2
प्राचील इज़राइल के लिये परमेश्वर का सन्देश आज के युग के लोगों को भी सम्बोधित करता है, “ओझाओं और भूत साधने वालों की ओर न फिरना और उनके कारण अशुद्ध न हो जाना” “क्योंकि जितने ऐसे काम करते है वे सब यहोवा के सम्मुख घृणित है।” - लैवव्यवस्था 19:31, व्यवस्था विवरण 18:12। PPHin 721.1