कुलपिता और भविष्यवक्ता

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अध्याय 50—दश्वांश और दान

इब्री अर्थव्यवस्था मे लोगों की आय का दसवाँ भाग परमेश्वर की आराधना के लिये अलग किया जाता था। मूसा ने इज़राइल के लिए धोषणा की “फिर भूमि का उपज का दश्वाश ,चाहे वह भूमि का बीज हो, चाहे वृक्ष का फल: वह यहोवा का ही है वह यहोवा के लिए पवित्र ठहरे।” और “गाय बैल और भेड़-बकरियों का दश्वांश अर्थात दस दस के पीछे एक एक पशु यहोवा के लिए पवित्र ठहरे।” लैवव्यवस्था 27:30,32। PPHin 539.1

लेकिन दश्वांश की प्रणाली इब्रियों के साथ प्रारम्भ नहीं हुईं। प्राचीनतम समय से परमेश्वर ने दश्वाश को स्वयं के लिये ठहराया और उसकी माँग को मान्यता और सम्मान दिया गया। अब्राहम ने सर्वोच्च परमेश्वर के याजक मलिकिसिदक को दश्वांश दिया-उत्पत्ति 14:20। बेथेल मे एक पलायक और निर्वासित याकूब ने परमेश्वर से प्रतिज्ञा की, “जो कुछ तू मुझे दे, उसका दश्वांश मैं अवश्य ही तुझे दिया करूँगा।”-उत्पत्ति 28:22। जब इज़राईलियों को एक राष्ट्र के रूप में स्थापित किया जाना था, दश्वाश देने की विधि को, ईश्वर द्वारा अभिषिक्त नियम के रूप में दोहराया गया, जिसका पालन करने पर उनकी समृद्धि निर्भर करती थी। PPHin 539.2

दश्वांश और दान की प्रणाली का उद्देश्य मनुष्य के मनों को एक सत्य से प्रभावित करना था, कि परमेश्वर उसके सृजन किये गए हुओं को प्राप्त प्रत्येक आशीष का स्रोत हे, और उसकी उदारता के उत्तम उपहारों के लिये उसके प्रति मनुष्य की कृतज्ञता देय है। PPHin 539.3

“वह सब को जीवन और खास और सब क॒छ देता है।”-प्रेरितों के काम 17:25 । भजन संहिता में लिखा है, “वन के सारे जीव-जन्तु और हजारों पहाड़ो के पशु मेरे है। हग्गै 2:8में लिखा है, “चाँदी तो मेरी है, और सोना भी मेरा ही है ।“व्यवस्थाविवरण 8:18में लिखा है, “वही है जो तुझे सम्पत्ति प्राप्त करने की सामर्थ्य देता है।” परमेश्वर ने निर्देश दिया कि इस बात की अभिस्वीकृति के लिये कि सब कुछ उसी से आता है, उसकी बहुतायत का कुछ भाग भेंट और दान के रूप में उसे लौटाया जाए ताकि उसकी आराधना को कायम रखा जा सके। PPHin 539.4

“दश्वांश.........परमेश्वर का है।” यहां अभिव्यक्ति का वही तरीका प्रयोग किया गया है जो विश्राम दिन के नियम के लिये किया गया था। निर्गमन 20:10 में लिखा है, “सातवाँ दिन तेरे परमेश्वर यहोवा के लिये विश्राम दिन है।’ परमेश्वर ने मनुष्य के समय और उसके साधनों का एक निर्दिष्ट भाग अपने लिये आरक्षित किया, और कोई भी मनुष्य बिना अपराध के, अपने लाभ के लिये दोनों में से किसी को भी उपयोग नही कर सकता है। PPHin 540.1

दश्वांश को केवल लैवियों के द्वारा प्रयोग में लाने को समर्पित होना था, लेवी वह गोत्र था जिसे मिलापवाले तम्बू की सेवा-टहल के लिये अलग किया गया था। लेकिन यह किसी भी तरह धार्मिक प्रयोजनों के लिये योगदान की सीमा नहीं थी। मिलापवाले तम्बू का, और तत्पश्चातमन्दिर, का पूरी तरह स्वैच्छिक दान से निर्माण किया गया; और आवश्यक मरम्मत और अन्य खर्चा के लिये साधन जुटाने के लिये मूसा ने निर्देश दिया, कि जितनी बार लोगों की गिनती की जाए, प्रत्येक मनुष्यपवित्रस्थान की विधिके लिये आधे शेकेलका योगदानदे । नहेम्याह के समय में इस कार्य के लिये वर्ष में एक बार योगदान किया जाता था। निर्गमन 3:12-16, 2 राजा 12:4,5, योगदान 24:4-13, नहेम्याह 10:132-33 देखे ।/समय-समय पर परमेश्वर के लिये पाप बलि और धन्यवाद की भेंट लाते थे।यह वार्षिक उत्सवों के समय भारी संख्या में चढ़ाई जाती थी। और दरिद्रों के लिये सबसे उदार प्रावधान रखा जाता था। दश्वांश के आरक्षित किये जाने से पहले भी परमेश्वर के अधिकारों को स्वीकार किया जाता था। भूमि की प्रत्येक उपज का पहला फल उसके लिये पवित्र ठहराया जाता था। भेड़ के कतरे जाने पर प्राप्त पहला ऊन, गेहूँ के गाहने के समय का पहला गेहूँ तेल और मदिरा का पहला भाग, परमेश्वर के लिये अलग किया जाता था, इसी प्रकार सभी पशुओं के पहलौठों को अलग किया जाता था, और पहलौठे पुत्र के लिये उद्धार का मूल्य चुकाया जाता था। पहले फल को पवित्र स्थान पर प्रभु के सम्मुख चढ़ाया जाता था, और फिर याजमकों के प्रयोग के लिये समर्पित कर दिया जाता था। PPHin 540.2

इस प्रकार प्रजा को लगातार स्मरण कराया जाता था कि परमेश्वर उनके खेतों, भेड़-बकरियों और मवेशियों का वास्तविक स्वामी था, वही बीज बोने और कटाई के समय धूप और वर्षा भेजता था, और उनके पास जो कुछ भी था उसी की सृष्टि का था, और उसने उन्हें अपने द्वारा सृजित वस्तुओं का भण्डारी बनाया था। PPHin 540.3

जब इजराइली पुरूष, खेतों, फलोद्यानों और अंगूरों के बाग के पहले फलों से लदे हुए, पवित्र स्थान पर एकत्रित हुए परमेश्वर की अच्छाई की सार्वजनिक स्वीकृति दी गई। जब याजक ने भेंट स्वीकार की, भेंटकर्ताने ,मानो यहोवा की उपस्थिति में बोल रहा हो, कहा, “मेरा मूलपुरूष एक आरामी मनुष्य था जो मरने पर था” और उसने इज़राइल का मिस्र में पड़ाव का और उस कष्ट का वर्णन किया जिसे परमेश्वर ने “बढ़ाई हुई भुजा से अति भयानक चिन्ह और चमत्कार दिखा कर” निवारण किया। और उसने कहा, “हमें इस स्थान पर पहुँचाकर यह देश जिस में दूध और मधु की धाराएँ बहती हैं हमे दे दिया है। अब हे यहोवा, देख, जो भूमि तू ने मुझे दी है उसकी पहली उपज मैं तेरे पास ले आया हूँ। व्यवस्थाविवरण 26:5, 8-11। PPHin 541.1

धार्मिक और परोपकारी प्रयोजन के लिये इब्रियों से उनकी आय के एक चौथाई भाग के योगदान की अपेक्षा की जाती थी। ऐसा प्रतीत हो सकता है कि मनुष्य के संसाधनों पर अधिक कर उन्हें दरिद्रता में पहुँचा देंगे, लेकिन इसके विपरीत, इन अधिनियमों का निष्ठापूर्ण अनुपालन उनकी समृद्धि की एक शर्त थी। उनकी आज्ञाकारिता की शर्त पर परमेश्वर ने उनसे प्रतिज्ञा की,'में तुम्हारे लिये नाश करने वाले को ऐसे घुड़कूंगा कि वह तुम्हारी भूमि की उपज नष्ट न करेगा; और तुम्हारी दाखलताओं के फल कच्चे न गिरेंगे, अन्य जातियों केलोगतुम्हे धन्य कहेंगेःक्योंकितुम्हारादेश मनोहर देश होगा,सेनाओं के यहोवा का यही वचन है [--मलाकी 3:11। PPHin 541.2

परमेश्वर के कार्य के लिये उपयोग होने वाली स्वैच्छिक भेंट को स्वार्थी होकर दबा कर रखने के परिणामों का प्रभावशाली उदाहरण हाग्गे भविष्यद्वक्ता केदिनों में दिया गया। बाबुल के दासत्व से लौटने के पश्चात यहूदियों ने परमेश्वर के मन्दिर के पुनर्निर्माण का दायित्व लिया, लेकिन शत्रुओं के कड़े विरोध के कारण उन्होंने इस कार्य को बन्द कर दिया, और एक भयंकर सूखे ने उन्हें वास्तविक दरिद्रता की स्थिति में पहुँचा दिया, जिससे उन्हें विश्वास हो गया कि मन्दिर के भवन को पूरा करना असम्भव था। उन्होंने कहा, “यहोवा का भवन बनाने का भवन बनाने का समय नहीं आया है।” लेकिन परमेश्वर के भविष्यद्वक्ता द्वारा उन्हें सन्देश भेजा गया, “क्या तुम्हारे लिये अपने छतवाले घरों में रहने का समय है, जबकि यह भवन उजाड़ पड़ा है? इसलिये अब सेनाओं का यहोवा यों कहता है, अपने चाल-चलन पर ध्यान दो। तुमने बोया बहुत, परन्तु थोड़ा काटा; तुम खाते हो, परन्तु तुम्हारा पेट नहीं भरता; तुम पीते हो, परन्तु तुम्हारी प्यास नहीं बुझती; मजदूरी कमाता है, वह अपनी मजदूरी की कमाई को छेदवाली थैली में रखता है।” हग्गै 1:2-6। और फिर कारण दिया गया, “तुमने बहुत उपज की आशा रखी, परन्तु देखो थोड़ी ही है, और जब तुम उसे घर ले आए, तब मैंने उसको उड़ा दिया, ऐसा क्‍यों हुआ? क्या इसलिये नहीं कि मेरा भवन उजाड़ पड़ा है और तुम में से प्रत्येक अपने-अपने घर को दौड़ा चला जाता है? इस कारण आकाश से ओस गिरना और पृथ्वी से अन्न उपजना दोनों बन्द है। मेरी आज्ञा से पृथ्वी और पहाड़ी पर, और अन्न और नए दाखमधु पर और ताजे तेल पर, और जो कुछ भूमि से उपजता है उसपर,और मनुष्यों और घरेलू पशुओं पर, और उनके परिश्रम की सारी कमाई पर भी अकाल पड़ा है।”हग्गै 1:9-11 “जब कोईऔर जब कोई दाखरस के क॒ण्ड के पास इस आशा से जाता कि पचास बर्तन भर निकाले, तब बीस ही निकलते थे। मैंने तुम्हारी सारी खेती को लू और फफूदी और ओलों से मारा। हग्गै 2:16,17। PPHin 541.3

इन चेतावनियों से जागरूक होकर, लोगों ने परमेश्वर के भवन का निर्माण फिर से आरम्भ किया। और फिर परमेश्वर का आदेश उन तक पहुँचाना,“अब सोच विचार करो, कि आज से पहले अर्थात जिस दिन यहोवा के मन्दिर की नींव डाली गई, उस दिन से नवें महीने के इसी चौबीसवें दिन तक क्‍या दशा थी....... परन्तु आज के दिन से मैं तुम को आशीष देता रहूंगा ।”-हग्गै 2:18,19। PPHin 542.1

नीतिवचन 11:24 में बुद्धिमान पुरूष कहता है, “ऐसे हैं, जो छितरा देते हैं, तौमभी उनकी बढ़ौतरी होती है, और ऐसे भी हैं जो यथार्थ से कम देते हैं, और इस से उनकी घटी होती है।” यही पाठ नये नियम में प्रेरित पौलुस ने सिखाया, “जो थोड़ा बोता है, वह थोड़ा काटेगा भी, और जो बहुत बोता है, वह बहुत काटेगा ।” परमेश्वर तुम्हे बहुतायत से अनुग्रह दे सकता है, जिससे हर बात में और हर समय, सब कुछ, जो तुम्हारी लिये आवश्यक हो, तुम्हारे पास रहे, और हर एक भले काम के लिये तुम्हारे पास बहुत कुछ हो ।” - 2 कुरिन्थियों 9:6,8। PPHin 542.2

परमेश्वर चाहता था कि इज़राइल, उसकी प्रजा सभी पृथ्वी वासियों के लिये प्रकाशवाहक बने। उसकी सार्वजनिक आराधना को कायम रखने में वे जीवित परमेश्वर की प्रभुता और अस्तित्व के प्रमाण को प्रकट कर रहे थे। परमेश्वर के प्रति उनके प्रेम और उनकी स्वामिभक्ति की अभिव्यक्ति के तौर पर इस आराधना को कायम रखना उनका विशेषाधिकार था। परमेश्वर ने यह नियत किया है कि पृथ्वी पर प्रकाश और सत्य का प्रचार उन लोगों की भेंट और प्रयत्नों पर निर्भर करे जो स्वर्गीय उपहार के भागीदार है। वह स्वर्गदूतों को उसकी सच्चाई के प्रतिनिधि बना सकता था; वह अपनी इच्छा को ज्ञात करा सकता था, जिसे उसने अपने ही स्वर में, सिने से व्यवस्था को घोषित किया था; लेकिन अपने अनन्त प्रेम और बुद्धिमता में उसने मनुष्य को इस कार्य के लिये चुनकर, उसके साथ सहकरमी होने के लिये बुलाया। PPHin 542.3

इज़राइल के दिनों में धर्म-किया की विधियों को कायम रखने के लिये स्वैच्छिक भेंट और दश्वांश की आवश्यकता होती थी। क्या इस युग में लोगों को कम देना चाहिये? जो सिद्धान्त मसीह ने दिया है, वह यह है कि हमारी भेंट हमे प्राप्त प्रकाश ओर विशेषाधिकारों के अनुपात में होना चाहिये। लूका 12:48में लिखा है, “जिसे बहुत दिया गया है, उससे बहुत माँगा जाएगा।” अपने अनुयायियों को भेजते हुए, उद्धारकर्ता ने कहा, “तुमने बिना कुछ दिए पाया है, इसलिये बिना कुछ लिये मुक्त भाव से बाँटो।”-मत्ती 10:8। जैसे हमारी आशीषों और विशेषाधिकारों में वृद्धि होती है- इन सबसे श्रेष्ठहमारे सम्मुख परमेश्वर के तेजस्वी पुत्र का अतुल्य बलिदान है- क्‍या हमें उद्धार के सन्देश की दूसरों तक पहुँचाने के लिये और अधिक भरपूर उपहारों द्वारा अभिव्यक्त नहीं करना चाहिये? जब सुसमाचार प्रचार का काम फैलता है तो उसे जारी रखने के लिये पहले से अधिक प्रयोजनों की आवश्यकता पड़ती है। इस कारण इब्री अर्थव्यवस्था के समय की तुलना में दश्वांश और भेंट के नियम को और भी आग्रहपूर्ण आवश्यकता बना देते हैं। यदि अपने खजानों को मसीह विरोधी और अपवित्र तरीके अपनाकर भरने के बजाय, उसके लोग अपनी स्वैच्छिक भेंटो से परमेश्वर के कार्य को कायम रखें तो परमेश्वर सम्मानित होगा और मसीह के लिये कई आत्माओं को जीता जा सकेगा। PPHin 543.1

पवित्र स्थान के निर्माण के लिये साधन जुटाने की मूसा की योजना बहुत सफल रही। आग्रह की आवश्यकता नहीं पड़ी। ना ही उसने वह तरीके अपनाए जो वर्तमान में कलीसियाएँ प्रायः अपनाती हैं। उसने कोई महापर्व नहीं मनाया। उसने लोगों को लोकप्रिय मनोरंजन, नृत्य, या रंगरलियों के दृश्यों के लिये आमन्त्रित नहीं किया, ना ही परमेश्वर के पवित्र स्थान के निर्माण हेतु साधन जुटाने के लिये लोटरी या इस श्रेणी के भ्रष्ट साधन को जारी किया। परमेश्वर ने मूसा को निर्देश दिया कि वह इज़राईलियों को अपनी भेंट लाने को आमन्त्रित करे। उसे उन सभी की भेंट स्वीकार करनी थी, जो हार्दिकता व स्वेच्छा से दे। और भेंटे इतनी बहुतायत से आईं कि मूसा ने लोगों को और लाने से मना किया, क्योंकि उनके द्वारा आवश्यकता से अधिक प्रदान कर दिया गया था। PPHin 543.2

परमेश्वर ने मनुष्य को उसके भण्डारी बनाया है। जो सम्पत्ति उसने उनके हाथों में दी है, यह वो साधन है जो उसने सुसमाचार फैलाने के लिये मुहैया कराया है। जो स्वयं को निष्ठावान भण्डारी प्रमाणित करते है, परमेश्वर उन्हें अधिक महत्वपूर्ण दायित्व सौंपता है। परमेश्वर कहता है, “जो मेरा आदर करे, मैं उनका आदर करूँगा ।”-1 शमूएल 12:30 ।'परमेश्वर हर्ष से देने वाले से प्रेम रखता है”, और जब उसके लोग उसके लिये “न कृढ़क॒ढ़ करके और न दबाव से” वरन्‌ आभारपूर्ण हृदयों से अपने भेंट और उपहार लाएँ, तो उसकी प्रतिज्ञा के अनुसार उसकी आशीष उनपर होगी। मलाकी 3:10 में लिखा है, “सारे दश्वांश भण्डार में ले आओ कि मेरे भवन में भोजनवस्तु रहे, और सेनाओं का यहोवा यह कहता है कि ऐसा करके मुझे परखो कि मैं आकाश के झरोखे तुम्हारे लिये खोलकर तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशीषों की वर्षा करता हूँ कि नहीं ।”-मलाकी 3:10। PPHin 544.1