कुलपिता और भविष्यवक्ता

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अध्याय 48—कनान का विभाजन

यह अध्याय यहोशू 10:40-43, 11, 14—22 पर आधारित है

बेथोरोन में विजय के तत्पश्चात दक्षिणी कनान को अधीकृत किया गया। “यहोशू ने उस सारे देश को, अर्थात पहाड़ी देश, दक्षिण के देश और तराई के देश......इन सब राजाओं को उनके देशों समेत यहोशू ने एक ही समय में ले लिया, क्‍योंकि इज़राइल का परमेश्वर यहोवा इज़राइलियों की ओर से लड़ा। और यहोशू्‌ सब इज़राइलियों समेत गिलगाल की छावनी में लौट आया।” PPHin 522.1

इज़राइलियों को मिली सफलता से घबराकर, उत्तरी फिलिस्तीन के गोत्रों ने उनके विरूद्ध संधि कर ली। इस संघ का मुखिया था हासोर का राजा याबीन, हासोर मेरोम तालाब के पश्चिम में स्थित था। “और वे अपनी सेना समेत मिलकर निकल आए।” यह सेना उन सभी सेनाओं से विशाल थी जिसका सामना इज़राइलियों ने कनान में इससे पहले कभी किया हो, “सेना, जो समुद्र के किनारे की बालू के किनकों के समान बहुत थी, और उनके साथ बहुत से घोड़े और रथ भी थे। और जब ये सब राजा सम्मति करके इकट्ठे हुए और इज़राइलियों से लड़ने को मेरोम नामक ताल के पास आकर एक संग छावनी डाली। PPHin 522.2

मेरोम नामक ताल के पास पहुँचकर यहोशू संघ की छावनी पर टूट पड़ा और उनको पूरी तरह पराजित कर दिया। “और यहोवा ने उनको इज़राइलियों के हाथ में कर दिया, इसलिये उन्होंने उन्हें मार दिया, और उनका पीछा किया, और उनमें से किसी को जीवित नहीं छोड़ा। रथ और घोड़े जो कनानियों का गौरव और अभिमान थे, इज़राइल द्वारा गृहीत नहीं किये जाने थे। परमेश्वर की आज्ञा केअनुसार उनके घोड़ो को लंगड़ा कर दिया गया और रथों को जला दिया गया जिससे वह युद्ध में प्रयोग किये जाने योग्य नहीं रहे। इज़राइलियों को रथों या घोड़ो में नहीं, वरन्‌ “परमेश्वर उनके प्रभु के नाम में” विश्वास रखना था। PPHin 522.3

एक-एक करके नगरों को ले लिया गया, और संघ के गढ़ हासोर को भस्म कर दिया गया। युद्ध कई वर्षा तक चलता रहा लेकिन अन्त में यहोशू कनान प्रदेश का स्वामी हुआ। “और देश को लड़ाई से शान्ति मिली। PPHin 522.4

यद्यपि कनानियों को शक्तिहीन कर दिया गया था, लेकिन वे पूरी तरह निर्वासित नहीं हुए थे। परिचय में पलिश्ती अभी भी समुद्र तट पर एक उपजाऊ तराई पर अधिकार जमाए हुए थे, और उत्तर में सीदोनियों का अधिकत क्षेत्र था। दक्षिण में, मिद्र की ओर का देश अभी भी इज़राइल के शत्रुओं के अधिकार में था। PPHin 523.1

फिर भी यहोशू युद्ध को जारी नहीं रखना चाहता था। इज़राइल की कमान को तजने से पूर्व इस महान अगुवे को एक और काम करना था। सम्पूर्ण ढेरा, दोनो भाग, जो जीत लिया गया था और जो अभी भी अनधीकृत था, गोत्रों में बांटा जाना था। और अपनी धरोहर पर पूर्ण रूप से अधिकार करना प्रत्येक गोत्र का कर्तव्य था। लोगो द्वारा परमेश्वर की प्रति निष्ठावान होने की पुष्टि होने पर, वह उनके शत्रुओं को उसके सामने से हटा देगा, और परमेश्वर ने उन्हें आश्वासन दिया कि यदि वे उसकी वाचा के प्रति सत्यनिष्ठ हुए तो वह उन्हें इससे भी बड़ा अधिकार क्षेत्र देगा। PPHin 523.2

यहोशू को, महायाजक एलियाजर और गोत्रों के मुखियाओं के साथ, देश का बँटवारा सौपा गया, प्रत्येक गोत्र का क्षेत्र परचियों द्वारा निर्धारित किया जाना था और उसी ने बँटवारे पर ध्यान देने के लिये प्रत्येक गोत्र से एक-एकप्रधान नियुक्त किया था। लैवि का कुल, जो पवित्र स्थान की सेवा टहल के लिये समर्पित थे, उनकी गिनती इस आवंटन में नहीं की गई, वरन्‌ देश के विभिन्‍न भागों से अड़तालीस शहर धरोहर के रूप में लैवियों को सौंपे गए। PPHin 523.3

भू-खण्ड का बँटवारा होने से पहले, कालेब, अपने गोत्र के प्रधानों के साथ, एक विशेष माँग को लेकर आगे आया। यहोशू को छोड़कर, अब कालेब इज़राइल में सबसे वृद्ध पुरूष था। गुप्तचरों में से केवल कालेब और यहोशू ही थे जो प्रतिज्ञा के देश से शुभ समाचार लाए थे और जिन्होंने परमेश्वर के नाम में उस पर चढ़ाई करके उसेअधिकत करने को प्रोत्साहित किया। अपनी सत्यनिष्ठा के प्रतिफल के रूप में, कालेब ने यहोशू की उस समय की गई प्रतिज्ञा का स्मरण करवाया, “तूने पूरी रीति से मेरे परमेश्वर यहोवा की बातों का अनुकरण किया है, इस कारण निःसन्देह जिस भूमि पर तू अपने पाँव घर आया है वह सदा के लिये तेरा और तेरे वंश का भाग होगी।” इसलिये उसने निवेदन प्रस्तुत किया कि उसे हेब्रोन का आधिपत्य दिया जाए। यहाँ कई वर्षो तक अब्राहम, इसहाक और याकूब का घर था और यहीं मकपेला की गुफा में उन्हें मिट्टी दी गईं थी। हेब्रोन अनाकवंशियों को केन्द्र था, जिनके डरावने रूप रंग ने गुप्तचरों को बुरी तरह भयभीत कर दिया था, और उनके द्वारा समस्त इज़राइल के साहस को नष्ट कर दिया था। अन्य स्थानों से हटकर, कालेब ने परमेश्वर की सामर्थ्य में विश्वास रखते हुए, अपनी धरोहर के लिये इस स्थान को चुना। PPHin 523.4

“जब यहोवा ने मूसा से यह वचन कहा था, उस समय से मुझे पैंतालीस वर्ष तक जीवित रखा है ।जितना बल मूसा के भेजने के दिन मुझ में था उतना बल अभी तक मुझ में है, युद्ध करने या भीतर बाहर आने जाने के लिये जितनी उस समय मुझ में सामर्थ्य थी उतनी हो अब भी मुझ में सामर्थ्य है। इसलिये अब वह पहाड़ी मुझे दे जिसकी चर्चा यहोवा ने उस दिन की थी, तूने तो उस दिन सुना होगा कि उसमें अनाकवंशी रहते है, और बड़े-बड़े गढ़ वाले नगर भी है, यदि ऐसा है तो यहोवा मेरे संग रहे, और उसके कहने के अनुसार में उन्हें उनके देश से निकाल दूँ।” यहूदा के विशिष्ट व्यक्तियों ने इस निदेवन का समर्थन किया । देश के बँटवारे के लिये नियुक्त, कालेब ने स्वयं अपनी माँग को प्रस्तुत करने में इन पुरूषों को अपने साथ लिया, ताकि ऐसा प्रतीत न हो कि उसने स्वार्थपूर्ण लाभ के लिये अपने अधिकार का प्रयोग किया। PPHin 524.1

उसकी माँग को तत्काल स्वीकृति प्रदान की गई। इस शक्तिशाली गढ़ की विजय किसीऔर के सुपुद करना सुरक्षित नहीं था। तब यहोशू ने उसको आशीर्वाद दिया और हेब्रोन को यपुन्ने के पुत्र कालेब का भाग कर दिया” “क्यों वह पूरी रीति से इज़राइल के परमेश्वर यहोवा का अनुगामी था।” कालेब का विश्वास अभी भी वैसा ही था जैसा तब था जब उसकी साक्षी ने गुप्तचरों की झूठी सूचना का खंडन किया था। उसने परमेश्वर की प्रतिज्ञा में विश्वास किया कि वह उसके लोगों को कनान का स्वामित्व देगा और इसमें वह परमेश्वर का पूर्ण रूप से अनुगामी रहा था। अपने लोगों के कष्ट औरउनकी निराशाओं में भागीदार होते हुए, उसने भीड़ में अपने लोगों के साथ लम्बे समय तक भटकने को सहन किया था, और फिर भी शिकायत न की, वरन्‌ परमेश्वर की करूणा की प्रशंसा की जब उसने उसको बीहड़ में सुरक्षित रखा, जबकि उसके भाई मारे गए। कनान, प्रवेश के समय से युद्ध के वर्षो के दौरान सभी कठिनाईयों संकटों और बीहड़ में भटकने के दौरान आई विपत्तियों के मध्य, परमेश्वर ने उसे सुरक्षित रखा, और अब चालीस वर्ष बाद भी उसकी शक्ति ज्यों की त्यों थी। उसने वह भू-खण्ड नहीं माँगा जिस पर विजय प्राप्त कर ली गईं थी, वरन्‌ वह प्रदेश माँगा जिसका दमन करना गुप्तचरों ने असम्भव सोचा था। परमेश्वर की सहायता से वह अपने गढ़ को ही दैत्यों से छीनने वाला था जिनकी शक्ति ने इज़राइल के विश्वास को हिला कर रख दिया था। कालेब का निवेदन किसी ख्याति या प्रशंसा से प्रेरित नहीं था। यह साहसी अनुभवी योद्धा लोगों को वह उदाहरण देना चाहता था जिससे परमेश्वर का आदर हो, और अभी गोत्रो को प्रोत्साहित करना चाहता था कि वे उस देश को जिसे उनके पूर्वजो ने दुर्जय माना था, पूर्णतया अधिकृत करें। PPHin 524.2

कालेब ने उस मीरास को प्राप्त किया, जिसमें उसका हृदय चालीस वर्षों से लगा था, और इस विश्वास से कि परमेश्वर उसके साथ था, उसने वहाँ से “अनाक के तीन पुत्रों को भगा दिया।” अपने और अपने घराने के लिये धरोहर सुरक्षितकरके, उसका उत्साह कम नहीं हुआ, वह अपनी धरोहर का ही आनन्द उठाने में सन्तुष्ट नहीं हुआ, वरन्‌ परमेश्वर की महिमा और देश की भलाई के लिये और देशों पर विजय प्राप्त करने का कठोर प्रयत्न किया। PPHin 525.1

कायर और विरोधी बीहड़ में नष्ट हो गए थे, लेकिन धर्मी गुप्तचरों ने एश्कोल के अंगूर खाए। प्रत्येक को उसके विश्वास के अनुसार दिया गया। अविश्वासियों ने अपनी आशकांओं को परिपूर्ण होते देखा। परमेश्वर की प्रतिज्ञा के बावजूद, उन्होंने घोषणा की कि कनान का उत्तराधिकारी होना असम्भव था, और वह उन्हें नहीं मिला। लेकिन जिन्होंने आने वाली कठिनाईयों पर सर्वशक्तिमान सहायक के बल से अधिक ध्यान न देकर, परमेश्वर पर विश्वास किया, उन्होंने उस समृद्ध देश में प्रवेश किया। विश्वास के द्वारा ही इन वृद्ध सूरमाओं ने “राज्य जीते.....तलवार की धार से बच निकले, निर्बलता में बलवन्त हुए, युद्ध में वीर निकले, विदेशियों का फोजों को मार भगाया।”-इब्रानियों 11:33,34। वह विजय जिससे संसार पर जय प्राप्त होती है हमारा विश्वास है।’ -1 यहुन्ना 5:4 PPHin 525.2

देश के विभाजन से सम्बन्धित एक अन्य अनुरोध ने उसभावनाको प्रकट कियाजो कालेब की माँग की भावना से बहुत भिन्‍न था। यहयुसुफ के बच्चों,अर्थात एप्रेैम के गोत्र, और मनश्शे के आधे गोत्र द्वारा प्रस्तुत किया गया। बहुसंख्य होने के आधार पर, इन गोत्रों ने भू-खण्ड के दुगने भाग की माँग की। जो भाग उनके लिये मनोनीत था, वह देश में सबसे उन्‍नत था, और शारोन की उपजाऊ तराई उसी का भाग थी। लेकिन तराई के कई मुख्य नगर अभी भी कनानियों के अधिकार में थे, और उनके अधिकार क्षेत्र को जीतने के लिये खतरों और श्रम से वे हिचकिचा रहे थे और वे जीते हुए प्रदेश में सेअधिकार क्षेत्र का अतिरिक्त भाग चाहते थे। एप्रैम का गोत्र, इज़राइल में सभी गोत्रो से बड़ा था और यहोशू इसी गोत्र का सदस्य था और इसलिये उसके सदस्य स्वाभाविक रूप से स्वयं को विशेष महत्व का अधिकार मानते थे। “हम तो गिनती से बहुत है, फिर तूने हमारे भगा के लिये चिट॒ठी डालकर क्यों एक ही अंश दिया है? लेकिन कठोर अगुवे से कठोर न्याय के अलावा और किसी निर्णय की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी।’ PPHin 525.3

उसका उत्तर था, “यदि तुम गिनती में बहुत हो, और एप्रेम का पहाड़ी देश तुम्हारे लिये छोटा है, तो परिज्जियों और रपाईयों का देश है जो जंगल में है, उसमे जाकर पेड़ो को काट डालो।” PPHin 526.1

उनके उत्तर में शिकायत का वास्तविक कारण प्रकट हुआ। उनमें कनानियों को मार भगाने के लिये विश्वास और साहस का अभाव था। उन्‍होंने कहा, “वह पहाड़ी देश हमारे लिये छोटा है, और उन सभों के पास लोहे के रथ है। PPHin 526.2

इज़राइल के परमेश्वर का सामर्थ्य उसके लोगों को प्रतिज्ञा द्वारा प्राप्त था और यदि एप्रैमी कालेब के विश्वास जैसे विश्वास और साहस के स्वामी होते तो कोई भी शत्रु उनके सम्मुख खड़े नहीं रह सकते थे। खतरों और कठिनाईयों से बच कर निकल जाने की उनकी प्रकट इच्छा को यहोशू ने दृढ़ता से लिया, “तुम लोग गिनती में बहुत हो, और तुम सामर्थ्यवान भीहो, चाहे कनानी सामर्थी हो, और उनके पास लोहे के रथ भी हो, तो भी तुम उन्हें वहां से निकाल सकोगे।” इस प्रकार उनके तक उन्हीं पर पलट दिये गए। संख्या में बहुत होने के कारण, जैसा कि उन्होंने कहा, वे अपने भाईयों के समान, अपना रास्ता निकालने में पूर्णतया सक्षम थे। परमेश्वर की सहायता के होते हुए, उन्हें लोहे के रथों से डरने की आवश्यकता नहीं थी। PPHin 526.3

अभी तक गिलगल देश का मुख्यालय और मिलापवाले तम्बू अर्थात पवित्रमण्डपका स्थानरहा था। लेकिन अब पवित्र मण्डप को उसके स्थायी स्थान पर स्थानान्तरित करना था। यह स्थान था शीलो, जो एप्रैम के भाग में एक छोटा सा नगर था। यह देश के मध्य में था, और सभी गोत्रों की आसान पहुँच में था। यहाँ देश का भाग पूर्णतया अधिकृत कर लिया गया था, जिससे कि उपासकों को सताया न जाए। फिर इज़राइलियों की सारी मण्डली ने शीलो में इकट॒ठा होकर वहाँ मिलापवाले तम्बू को खड़ा किया। “जो गोत्र अभी भी वहाँ डेरा डाले थे गिलगल से मिलापवाले तम्बू के हटाए जाने पर उसके पीछे हो लिये, और उन्होंने शीलो के पास अपने तम्बू खड़े किए।यहाँ पर ये गोत्र तब तक रहे जब तक वे अपने-अपने अधिकार क्षेत्रों में बँट न गए। PPHin 526.4

शीलो में सन्दूक तीन सौ वर्ष तक रहा, जब तक कि एली के कुल के पापों के कारण, यह पीलश्तियों के हाथो में पड़ गया और शीलो नष्ट हो गया। PPHin 527.1

सन्दूक फिर कभी यहाँ के मिलापवाले तम्बू में लोटाकर नहीं लाया गया, पवित्र स्थान की विधि यरूशलेम के मन्दिर में स्थानान्तरित की दी गई, और शीलो महत्वहीन हो गया। जहाँ यह पहले था वहाँ अब केवल अवशेष हैं। बहुत समय तक इसका प्रयोग यरूशेलेम के लिये चेतावनी के रूप में किया गया। “मेरा जो स्थान शीलो में था जहाँ मैंने पहले अपने नाम का निवास ठहराया था, वहाँ जाकर देखो कि मैंने अपनी प्रजा इज़राइल की बुराई के कारण उसकी क्‍या दशा कर दी है?......इसलिये यह भवन जो मेरा कहलाता है, जिस पर तुम भरोसा रखते हो, और यह स्थान जो मैंने तुमको और तुम्हारे पूर्वजों को दिया था, इसकी दशा मैं शीलो की सी कर दूंगा। - यिर्मयाह 7:12-14। PPHin 527.2

“जब देश का बॉटा जाना सीमाओं के अनुसार पूरा हो गया”, और सभी गोत्रों को उनकी धरोहर आवंटित कर दी गई, तब यहोशू ने अपनी माँग प्रस्तुत की । जैसे कि कालेब को दी गई थी, उसी प्रकार यहोशू को भी मीरास की एक विशेष प्रतिज्ञा दी गई थी, किंतु उसने सिवाय एक नगर के, किसी विस्तृत प्रात की माँग नहीं की। “उन्होंने उसको उसका माँगा हुआ नगर दिया......और वह उस नगर को बसाकर उसमें रहने लगा।” इस नगर का नाम तिम्नत्सेरह पड़ा जिसका अर्थ है, “बचा हुआ भाग”- और जो विजेता की निःस्वार्थ भावना और शिष्ट आचरण का स्थायी साक्षी था, वह विजेता जिसने विजय से प्राप्त लूट को सबसे पहले लेने के बजाय अपनी माँग को तब तक टाले रखा, जब तक कि उसके लोगों में सबसे दीन व्यक्ति की माँग पूरी नहीं हुई। PPHin 527.3

लैवियों को आवंटित शहरों में से छः: शहर, यरदन के दोनों किनारो पर तीन--तीन शहरों को शरण के नगरों के रूप में चुना गया। इन शहरों का चयन मूसा के आदेश से किया गया था, ताकि “जो कोई किसी को भूल से मारकर खूनी ठहरा हो वह वहाँ भाग जाए। वे नगर तुम्हारे निमित्त पलटा लेने वाले से शरण लेने के काम आएँगे, कि जब तक खूनी न्याय के लिये मण्डली के सामने खड़ा न हो तब तक वह मार न डाला जाए। यह करूणामयी प्रयोजन निजी प्रतिशोध की प्राचीन परम्परा के कारण आवश्यक था, क्योंकि इस परम्परा के अनुसार हत्यारे का दण्ड उसके सबसे निकटतम परिजन या मृतक के अगले उत्तराधिकारी पर डाल दिया जाता था। जिन मामलों में दोष स्पष्ट रूप से प्रमाणित होता था, उनमें न्यायियों के द्वारा सुनवाई केलिये रूकने की आवश्यकता नहीं होती थी। प्रतिशोध अपराधी का कहीं भी पीछा कर सकता था, और जहाँ भी अपराधी मिले उसे मृत्यु के घाट उतार सकता था। परमेश्वर ने इस परम्परा को उस समय उन्मूलन करना उपयुक्त नहीं समझा, लेकिन उसने अनजाने में प्राण लेने वालों की सुरक्षा निश्चित करने का प्रावधान रखा। PPHin 527.4

शरण के शहरों का इस तरह वितरण किया गया कि देश के प्रत्येक भाग से आधे दिन की यात्रा की दूरी पर था। वहाँ तक ले जाने वाली सड़कों को हमेशा अच्छी स्थिति में रखा जाना था, पूरे रास्ते बड़े और साधारण अक्षरों में ‘शरण’ शब्द धारण किये हुए मार्गपट्ट खड़े किये जाने थे, ताकि भागने वाले को क्षणभर का भी विलम्ब न हो। चाहे इब्री, चाहे अपरिचित या पलायक, सभी इस प्रावधान का लाभ उठा सकते थे। लेकिन जहाँ निर्दोष को उतावलेपन में मारा नहीं जाना था, वहीं दोषी को दण्ड से मुक्ति नहीं देनी थी। पलायकों की उचित अधिकारियों द्वारा सुनवाई की जानी थी, और केवल सुविचारित हत्या का दोषी न पाए जाने पर ही उसे शरण के शहर में सुरक्षा प्रदान की जानी थी। सुरक्षा के हकदारों को चुने हुए शरण-स्थान की सीमाओं के अन्दर रहने की शर्त पर ही सुरक्षा प्राप्त होती थी। यदि कोई निर्धारित सीमाओं को लाँघ जाए, और लहू के प्रतिशोधी द्वारा पाया जाए, तो उसे परमेश्वर के प्रावधान का अनादर करने का दण्ड उसका प्राण होगा। लेकिन महायाजक की मृत्यु हो जाने पर, शरण के नगरों के सभी शरणार्थियों को अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में लौट जाने की स्वतन्त्रता थी [हत्या की सुनवाई में आरोपी को एक साक्ष्य के आधार पर दण्डित नहीं किया जा सकता था, भले ही उसके विरोधमें संयोगवश प्रमाण बहुत ठोस हो। परमेश्वर का निर्देश था, “जो कोई किसी मनुष्य को मार डाले, वह साक्षियों के कहने पर मार डाला जाए, परन्तु एक ही साक्ष्य की साक्षी से कोई न मारा जाए।” इज़राइल के लिये यह निर्देश मसीह ने मूसा को दिये थे। जब वह पृथ्वीपर व्यक्ति रूप से अपने अनुयायियों के साथ था, उन्हें यह सिखाते समय कि दोषियों के साथ किस प्रकार का व्यवहार किया जाए, महान गुरू ने इस सीख को दोहराया कि एक व्यक्ति की साक्षी के आधार पर दण्ड या मुक्ति ना दी जाए। एक ही व्यक्ति के विचार और दृष्टिकोण विवादास्पद प्रश्नों का समाधान नहीं कर सकते। इन सभी मामलों में दो या दो से अधिक का सहयोगी होना अनिवार्य था, उन्हें एकसाथ उत्तरादायित्व को निभाना है, “कि हर एक बात दो या तीन गवाहों के मुहँ से निश्चित की जाए।”-मत्ती 8:16। PPHin 528.1

यदि वह, जिसे हत्या के लिये सुना गया हो दोषी प्रमाणित हो तो कोई भी प्रायश्चित या फिरौनी उसे नहीं बचा सकते थे, “जो कोई मनुष्य का लहू बहाएगा, उसका लहू मनुष्य ही से बहाया जाएगा ।।”-उत्पत्ति 9:6। “जो खूनी प्राणदण्ड के योग्य ठहरे उससे प्राणदण्ड के बदले में जुर्माना न लेना, वह अवश्य मार डाला जाए।” परमेश्वर की आज्ञा थी, “उसको मार डालने के लिये मेरी वेदी के पास से भी अलग ले जाना,” “जिस देश में जब खून किया जाए तब केवल खूनी के लहू बहाने ही से उस देश का प्रायश्चित हो सकता है।”-गिनती 35:31, निर्गमन 21:24, गिनती 35:33 (राष्ट्र की सुरक्षा और पवित्रता की माँग थी कि हत्या के पाप को कठोर दण्ड दिया जाए। मानव का प्राण, जो केवल परमेश्वर द्वारा देय है, गंभीरता से सुरक्षित रखा जाना चाहिये। PPHin 529.1

परमेश्वर के प्राचीन लोगों के लिये नियुक्त शरण-स्थान मसीह द्वारा प्रदान की गईं शरण का प्रतीक थे। जिस दयावान उद्धारकर्ता ने शरण के इन सांसारिक शहरों को नियुक्त किया, उसी ने अपना लहू बहाकर परमेश्वर की आज्ञा के उललंघनकर्ताओं के लिये एक निश्चित विश्राम-स्थल का प्रबन्ध किया जिसमें वे दूसरी मृत्यु से सुरक्षा के लिये भाग सकते थे। जो भी क्षमा के लिये उसके पास जाता है, उसे कोई भी शक्ति उसके हाथों से नहीं ले सकती। “अतः अब जो मसीह यीशु में है, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं।” “फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा? मसीह ही है जो मर गया, लेकिन मुर्दों में से जी भी उठा, और परमेश्वर के दाहिनी ओर है, और हमारे लिये निवेदन भी करता है” ताकि “दूढता से हमारा ढाढ़स बँध जाए, जो शरण लेने के लिये इसलिये छोड़े हैं कि जो आशा उनक सामने है प्राप्त कर सके।”-रोमियों 8:1,34, इब्रानियों 6:18। PPHin 529.2

शरण के नगर को दौड़ने वाला विलम्ब नहीं कर सकता था परिवार और व्यवसाय पीछे छोड़ दिये गए। अपने प्रियों को अलविदा कहने के लिये समय नहीं था। उसका जीवन दाँव पर लगा था, और प्रत्येक अन्य रूचि को उस एक लक्ष्य पर नन्‍यौछावर करना था- सुरक्षा के स्थान पर पहुँचना। थकान को भुला दिया गया, कठिनाईयों पर ध्यान नहीं दिया गया। पलायक ने गति धीमी करने का दुस्साहस नहीं कियाजब तक कि वह उस शहर की सीमा के अन्दर न पहुँच गया। PPHin 529.3

पाप को हमेशा की मृत्यु से सामना कराया जाता है। जब तक कि वह मसीह में छुपने का स्थान नहीं दूँढ लेता, और जिस प्रकार टालना और बेपरवाही पलायक को उसके जीवित रहने के एक अवसर से वंचित कर सकते हैं, उसी प्रकार विलम्ब और उदासीनता आत्मा के विनाश का कारण हो सकते हैं। महान शत्रु, शैतान परमेश्वर की पवित्र व्यवस्था के प्रत्येक उल्लंघन करने वाले के मार्ग में होताहै, जो खतरे से अनभिज्ञ होता है औरअनन्त शरण स्थान में शरण नहीं लेता वह विनाशक का शिकार हो जाएगा। PPHin 530.1

जो कैदी किसी भी समय शरण के नगर से बाहर चला जाता था, उसे लहू के प्रतिशोधी के लिये छोड़ दिया जाता था। इस प्रकार लोगों को उनके सुरक्षा के लिये परमेश्वर द्वारा बनाए गए कि पाप की क्षमा के लिये पापी मसीह में विश्वास करें, उसे विश्वास और आज्ञाकारिता द्वारा उसमें बना रहा है। PPHin 530.2

“क्योंकि सच्चाई की पहचान प्राप्त करने के बाद यदि हम जान-बूझकर पाप करते रहें, तो पापों के लिये फिर कोई बलिदान बाकी नहीं। हाँ, दण्ड का एक भयानक बाट जोहना और आग का ज्वलन बाकी है, जो विरोधियों को भस्म कर देगा।”- इब्रानियों 10:26,27 । PPHin 530.3

इज़राइल के दो गोत्र गाद और रूबेन, और मनश्शे का आधा गोत्र, यरदन पार करने से पहले ही अपनी मीरास प्राप्त कर चुके थे। खेतीहरों को अपने मवेशियों और भेड़-बकरियों के लिये विस्तृत चरागाह प्रदान करते हुए, गिलियाद और बाशानके घने जंगल और ऊंचाई पर तराई दी गईं, जिसमें वह आकर्षण थे जो कनान में नहीं थे, और यहाँ बसने के इच्छुक इन ढाई गोत्रों ने यरदन पार अपने भाईयों का साथ देने के लिये हथियारबन्ध पुरूषों का अपनी ओर से बराबर का भाग जुटाने की और उनका लड़ाई में साथ देने की प्रतिज्ञा की थी, जब तक कि वे अपने निज भाग में प्रवेश नहीं कर लेते। इस कर्तव्य का उन्‍्होंनें निष्ठापूर्वक पालन किया। “रूबेन, गादी और मनश्शे के आधे गोत्र के लोग....... युद्ध के हथियारों से लैस संग्राम करने के लिये यहोवा के सामने पार उतरकर, यरीहो की तराई में पहुँचे।” यहोशू 4:12,13 । वर्षों तक उन्होंनेअपने भाईयों के पक्ष में वीरता से युद्ध किया था। अब समय आ गया था कि वे अपने निज भाग के देश में जाएँ। जैसे उन्होंने संग्रामों में अपने भाईयों के साथ एका किया था, वैसे ही वे युद्ध से प्राप्त सामग्री में भागीदार बने, और वे “बहुत से पशु और चांदी सोना, पीतल, लोहा और बहुत से वस्त्र और बहुत धन सम्पत्ति” लिये हुए लौटे, जिस सब को उन्होंने उनके परिवारों और भेड़ बकरियों के साथ पीछे रहने वालों के साथ बांटा। PPHin 530.4

जब यहोशू और अन्य अगुवों के मन अभी चिन्तायुक्‍कत पूर्वाभास से उत्पीड़ित थे, उन्हें एक अद्भुत समाचार मिला। यरदन के किनारे उस स्थान के पास जहां से इज़राईली चमत्कारी रूप से पार हुए थे, उन ढाई गोत्रों ने एक महान वेदी को खड़ा किया था, जो शीलो की मेलबलि की वेदी के समान थी। उस धर्म स्थान पर अन्य आराधना का संस्थापन, परमेश्वर के नियमानुसार, प्रतिबन्धित था, और मृत्युदण्ड के योग्य था। यदि इस वेदी का ऐसा लक्ष्य था, तो इसे बने रहने देने की अनुमति देने से, लोगसच्चे विश्वास से दूर हो जाते। PPHin 531.1

प्रजा के प्रतिनिधि शीलो में एकत्रित हुए, ओर कोध और उत्साह के आवेग में उन्होंने अपराधियों पर चढ़ाई करने का प्रस्ताव रखा। लेकिन, अधिक सावधानी से चलने वालों के कहने पर, यह निर्णय लिया गया कि युद्ध से पहले उन ढाई गोत्रों के पास उनसे उनके आचरण का स्पष्टीकरण प्राप्त करने के लिये एक प्रतिनिधि मंडल को भेजा जाए। प्रत्येक गोत्र में से एक-एक यानि प्रधानों को चुना गया। पिनीहास, जिसमें पोर के विषय में अपनी लगन से स्वयं को विशिष्ट प्रमाणित किया था, उनका मुखिया बना। PPHin 531.2

इतने गम्भीर सन्देहास्पद कृत्य को, बिना स्पष्टीकरण दिए, करने में ढाई गोत्रों ने गलती की थी। प्रतिनिधियों ने यह मानते हुए कि उनके भाई दोषी थे, उनकी कड़ी निंदा की। उन्होंने उन पर परमेश्वर के प्रति विरोध करने का आरोप लगाया और उन्हें स्मरण करने को कहा कि किस तरह बालपोर के साथ जुड़ जाने पर, इज़राइल पर दण्डाज्ञा भेजी गई थी। पिनीहास ने गादियों और रूबेनियों से कहा कि यदि वे उस देश में बलिदान की वेदी के बिना वास करने को तैयार नहीं होंगे, तो ही वे यरदन पार अपने भाईयों के विशेषाधिकारों और निज-भाग में भागीदार हो सकेंगे। PPHin 531.3

उत्तर देते हुए आरोपितों ने स्पष्टीकरण दिया कि वेदी बलिदान के उद्देश्य से नहीं, वरन्‌ केवल एक साक्ष्य के रूप में स्थापित की गई थी, और यद्यपि वे नदी के द्वारा अलग हो गए थे, लेकिन उनका विश्वास वही था जो कनान में उनके भाईयों का था। उन्हें भय था कि आने वाले समय में उनके बच्चों को मिलाप वाले तम्बू से बाहर रखा जाएगा, मानों इज़राइल में उनका कोई भाग न हो। उस समय यह वेदी, जो शीलो में परमेश्वरकी वेदी के स्वरूप में खड़ी की गई थी, इस बात की साक्षी होगी कि इसके निर्माता भी जीवित परमेश्वर के आराध्य थे। PPHin 531.4

अत्यन्त प्रसन्‍नता के साथ प्रतिनिधियों ने इस स्पष्टीकरण को ग्रहण किया, और यह समाचार लेकर वे तुरन्त उनके पास लौटे, जिन्होंने उन्हे भेजा था। युद्ध करने के सभी विचारों को त्याग दिया गया और प्रजा ने मिलकर आनन्द मनाया और परमेश्वर की स्तूति की। PPHin 532.1

गादियों और रूबेनियों ने अब वेदी पर एक शिलालेख रखा जो उसके निर्माण के उद्देश्य की ओर संकेत करता था और उन्होंने कहा, “यह हमारे बीच साक्षी है कि परमेश्चर ही यहोवा है।” इस प्रकार उन्होंने प्रयत्न किय कि भविष्य में कोई मिथ्या-बोध न हो और प्रत्याशित प्रलोभन का कारण दू हो जाए। PPHin 532.2

कितनी बार, उनमें भी जो नेक इरादों से प्रेरित होते है, छोटी सी गलतफहमी के कारण गम्भीर कठिनाईयाँ उत्पन्न हो जाती है, और कृतज्ञता और सहनशीलता के अभाव के परिणाम कितने गम्भीर और घातक हो सकते है। दसों गोत्रो ने स्मरण किया कि किस प्रकार, आकान के मामले में, परमेश्वर ने उनके बीच विद्यमान पापों को खोज निकालने में सकता के अभाव की निंदा की थी। अब उन्होंने तत्परता और गम्भीरता से कार्य करने का दृढ़ संकल्प किया, लेकिन पहली गलती को दूर करने के लिये दूसरी ओर वे ज्यादती कर बैठे। इस विषय में तथ्यों को जानने के लिये शिष्टापूर्वक जाँच-पड़ताल करने के बजाय, उन्होंने अपने भाईयों की निंदा की और दोष लगाया। यदि गादियों और रूबेनियों ने उसी भावना से प्रत्युत्तर दिया होता तो उसका परिणाम युद्ध भी हो सकता था। एक ओर तो पाप के सम्बन्ध मेंढीलेपन को दूर रखना है, पर दूसरी ओर निराधार सन्देह और कठोर दण्डाज्ञा से किनारा करना भी उतना ही आवश्यक है। PPHin 532.3

कई लोग अपने व्यवहार के संदर्भ में थोड़े सी उलाहना के प्रति अति संवेदनशील होते है, लेकिन उनके साथ, जिन्हें वे गलत समझते है, उनका व्यवहार बहुत कठोर होता है। दोषारोपण और निन्दा से कभी भी किसीको अनुचित स्थिति से सुमार्ग पर नहीं लाया गया, इसके विपरीत इस प्रकार कई सही मार्ग से दूर हो जाते है और दोषसिद्ध के प्रति उनके हृदय कठोर हो जाते है। दया की भावना और एक विनम्र, सहिष्णु आचरण पापी को बचा सकता है। PPHin 532.4

रूबेनियों और उनके साथियों द्वारा दर्शायी गईं बुद्धिमत्ता अनुसरण करने योग्य है। निष्ठापूर्वक सच्चे धर्म के मनोरथ को बढ़ावा देने के प्रयत्न में उन्हें गलत समझा गया और उनकी बड़ी निन्‍दा की गई, लेकिन उन्होंने कोई प्रतिरोध प्रकट नहीं किया। अपने बचाव का प्रयत्न करने से पहले उन्होंने विनम्रता और धेर्य के साथ अपने भाईयों द्वारा लगाए आरोपों को सुना, और फिर अपने उद्देश्य को विस्तारपूर्वक समझाया और अपनी दोषहीनता प्रकट की। इस प्रकार जो कठिनाई गम्भीर परिणाम की चुनौती दे रही थी वह मैत्रीपूर्ण ढंग से शान्त हो गई। PPHin 533.1

गलत आरोप लगाए जाने पर भी, जो सही होते है वे शान्त और विचारशील रह सकते है। परमेश्वर उस सब से परिचित होता है जो मनुष्य द्वारा गलत समझजाता है या गलत रूप में बताया जाता है और हम इसे परमेश्वर के हाथ में छोड़ सकते है। जैसे उसने आकान के पाप को दूँढ निकाला, इसी प्रकार जो अपना विश्वास उसमें रखते हैं, उनके ध्येय का वह समर्थन करता है। जो मसीह के आत्मा से प्रेरित होते है, वे उस प्रेम के धनी होती है, जो चिरसहिष्णु और दयावान होता है। PPHin 533.2

यह परमेश्वर की इच्छा है कि उसके लोगों के बीच में भाई समान प्रेम और एकता बनी रहे। कूस पर चढ़ाए जाने से पूर्व, मसीह की प्रार्थना थी कि उसके अनुयायी एक हो, जैसा वह अपने पिता के साथ एक है, ताकि जगत यह विश्वास कर सके कि परमेश्वर ने उसे भेजा है। यह सबसे अधिक मर्मभेदी और अत्युत्तम प्रार्थना प्रत्येक युग में पहुँची, क्योंकि उसने कहा, “मैं केवल इन्ही के लिये विनती नहीं करता, परन्तु उनके लिये भी जो इनके वचन के द्वारा मुझ पर विश्वास करेंगे।” यहुन्ना 17:20 । हमें सत्य के एक भी सिद्धान्त का त्याग नहीं करना है, वरन्‌ हमारा लक्ष्य यह होना चाहिये कि हम एकता की इस स्थिति पर पहुँचे। यही हमारे अनुयायी होने का प्रमाण है। यीशु ने कहा, “यदि आपस में प्रेम रखोगे, तो इस से सब जानेंगे कि तुम मेरे चेले हो ।”-यहुन्ना 13:35 । प्रेरित पतरस कलीसिया को प्रबोधित करता है, “अतः सब के सब एकमन और कृपामय और भाईचारे की प्रति रखने वाले, और करूणामय और नग्न बनो, बुराई के बदले बुराई मत करो और न गाली के बदले गाली दो, पर इसके विपरीत आशीष ही दो, क्योंकि तुम आशीष के वारिस होने के लिये बुलाए गए हो।” - 1 पतरस 3:8,9 । PPHin 533.3