कुलपिता और भविष्यवक्ता

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अध्याय 47—गिबोनियों के साथ मेल

यह अध्याय यहोशू 9 और 19 पर आधारित है

शेकेम से इज़राइली गिलगाल में अपनी छावनी में लौटे। यहाँ पर कुछ ही समय पश्चात एक अदभुत प्रतिनिधि-मण्डल उनसे भेंट करने आया और उसके सदस्य इज़राइलियों के साथ सन्धि करने के इच्छुक थे । प्रतिनिधियोंको देख कर लग रहा था कि वे दूर के देशसे आए थेऔर उनके रूप-रंग से इस बात की पुष्टि हो गई। उनके वस्त्रपुरानेऔर फटेहुए थे,सामग्री मेंफफ्दी लगी थी और मदिरा की मश्कें फटी और जोड़ लगी हुई थी, मानों यात्रा के दौरान जल्दी-जल्दी उनकी मरम्मत की गई हो। PPHin 516.1

उन्होंने कहा कि फिलिस्तीन की सीमा के परे उनके दूर के देश में उनके सह देशवासियों ने परमेश्वर द्वारा उसके लोगों के लिये किये गए आश्चर्यकर्मा के बारे में सुना था और उन्‍होंने इन्हे इज़राइल के साथ वाचा बाँधने को भेजा था। इब्रियों को विशेष रूप से चेतावनी दी गईं थी कि वे कनान के मूर्तिपूजकों के साथ किसी तरह की वाचा नहीं बाँधे और अगुवों के मन में इन आगन्तुकों के शब्दों की सच्चाई के सन्दर्भ में आंशका हुई। उन्होंने कहा,” क्‍या पता तुम हमारे ही मध्य में रहते हो।” इस पर प्रतिनिधियों ने कहा, “हम तेरे दास है।” लेकिन जब यहोशू ने उनसे प्रत्यक्ष प्रश्न किया, “तुम कौन हो? और कहाँ से आए हो”? तो उन्होंने अपना पहला कथन दोहरा दिया और अपनी सत्यनिष्ठा के प्रमाण में कहा, “जिस दिन हम तुम्हारे पास चलने को निकले थे उस दिन तो हमने अपने-अपने घर से यह रोटी गरम और ताजी ली थी, परन्तु अब देखो, यह सूख गई है और इसमें फफूंदी लग गईं है। फिर ये जो मदिरा की मटके हम ने भर ली थी, तब तो नयी थी, परन्तु देखो अब ये फट गई हैं, और हमारे ये वस्त्र और जूते बड़ी लम्बी यात्रा के कारण पुराने हो गए है। PPHin 516.2

यह प्रस्तुति सफल रही। इब्रियों ने “यहोवा से बिना सलाह लिये उनसे यह वाचा बाँधी कि उन्हें जीवित छोड़ेगे, और मण्डली के प्रधानों ने उनसे शपथ खाई ।” इस प्रकार वाचा बाँधी गईं। तीन दिन पश्चात सच्चाईकापता लगा। “उन्होंनेसुना किवेउनकेपड़ोस के रहने वाले लोग थे और उनके ही मध्य में बसे थे।” यह जानते हुए कि इब्रियों का प्रतिकार करना असम्भव था, अपने जीवन सुरक्षित रखने के लिये गिबोनियों ने छल का सहारा लिया। PPHin 516.3

जब इज़राइलियों को उन पर प्रयोग किये गए छल का पता चला, वे घृणा और कोध से भर गए। और यह कोध और भी बढ़ गया जब तीन दिन की यात्रा के पश्चात वे प्रदेश के बीच गिबोनियों के शहरों में पहुँचे। “सारी मण्डली के लोग प्रधानों के विरूद्ध कुड़कड़ाने” लेकिन गिबोनी वाचा को तोड़ने के लिये तैयार नहीं हुए, जबकि उन्होंने वह धोखे से बाँधी थी, क्‍योंकि प्रधानों ने “उनके साथइजराईल के परमेश्वर यहोवा की शपथ खाई थी।” “इसलिये इज़राइलियों ने उनको नहीं मारा।” गिबोनियों ने मूर्तिपूजा का परित्याग करने की और यहोवा की आराधना करने की प्रतिज्ञा की थी, और उनके द्वारा मूर्तिपूर्जक कनानियों को जीवित छोड़ देना परमेश्वर की उनका विनाश कर देने की आज्ञा की अवमानना नहीं था। इस प्रकार अपनी शपथ द्वारा वे पाप न करने के लिये प्रतिज्ञाबद्ध थे। हालाँकि वाचा धोखे से बाँधी गई थी, उसे अमान्य नहीं ठहराया जा सकता था। लाभ, प्रतिशोध या स्वार्थ का कोई भी विचार या तक वाचा या शपथ की पवित्रता को किसी भी तरह प्रभावित नहीं कर सकता। नीतिवचन 12:22में लिखा है, “ऐसे होठों से यहोवा घृणा करता है, जो झूठ बोलते है।” वह जो “यहोवा के पर्वत पर चढ़ सकता हे” और “उसके पवित्र स्थान में खड़ा रह सकता है“वह वही है, “जो शपथ खाकर बदलता नहीं चाहे हानि उठानी पड़े।:-भजन संहिता 24:3, 15:4। PPHin 517.1

गिबोनियों को जीवित रहने की अनुमति दी गईं, लेकिन उन्हें दासोचित कार्य करने के लिये, वेदी के लिये सेवकों के रूप में नियुक्त किया गया। “यहोशू ने उसी दिन उनको मण्डली के लिये और परमेश्वर की वेदी के लिये, लकड़हारे और पानी भरने वाले नियुकत किया ।” उन्होंने धन्यवाद के साथ यह शर्ते स्वीकार की, यह जानते हुए कि वे दोषी थे और किसी भी शर्त पर वे जीवन प्राप्त करने में प्रसन्‍न थे। उन्होंने यहोशू से कहा, “अब हम तेरे वश में है, जैसा बर्ताव तुझे भला लगे और ठीक जान पड़े, वैसे ही व्यवहार हमारे साथ कर ।” कई सदियों तक उनके वंशज वेदी की धर्म-कियाओं के साथ जुड़े रहे। PPHin 517.2

गिबोनियों का राज्य क्षेत्र चार शहरों से बना था। लोग राजा के शासन के अधीन नहीं थे, वरन्‌ पुरनियों या प्रधानों द्वारा शासित थे। गिबोन उनका सबसे महत्वपूर्ण शहर, “बड़ा नगर, वरन्‌ राजनगर के तुल्य था” और “उसके सब निवासी शूरवीर थे।” उस डर को, इज़राईलियों ने कनान के निवासियों के मन में बैठा दिया था, विस्मयकारी प्रमाण है कि ऐसे नगर के लोगों ने अपने प्राण बचाने के लिये ऐसे अपमानजनक साधन का सहारा लिया। PPHin 517.3

लेकिन, यदि गिबोनियों ने इज़राइलियों के साथ सच्चाई से समझौता किया होता, तो उनके लिये अधिक अच्छा होता। यहोवा को समर्पण करने से उनके जीवन तो सरंक्षित हो गए, लेकिन उनके छल के कारण उन्हें दासत्व और अपमान को सहना पड़ा। PPHin 518.1

परमेश्वर ने प्रयोजन रखा था कि जो भी अधर्म का त्याग करेगाऔर स्वयं को इज़राइल के साथ जोड़ेगा, वह वाचा से जुड़ी आशीषों का भागीदार होगा। वे इस पद में सम्मिलित थे, “वे परदेसी जो तेरे मध्य रहते है” और कुछ चीज़ो को छोड़ यह वर्ग भी इज़राइल के समान वहीं विशेषाधिकार और समान सुविधाओं का आनन्द लेता। PPHin 518.2

“यदि कोई परदेसी तुम्हारे साथ रहे, तो उसको दुख न देना, जो परदेसी तुम्हारे साथ रहे वह तुम्हारे लिये देशी के समान हो, और उससे अपने ही समान प्रेम रखना ।”-लैवव्यवस्था 19:33,34। फसह के पर्व और बलि की भेंट से सम्बन्धित यह आदेश दिया गया, “मण्डली के लिये, अर्थात तुम्हारे और तुम्हारे साथ रहने वाले परदेसी दोनो के लिये एक ही विधि हो,......जैसे तुम हो वैसे ही परदेसी भी यहोवा के लिये ठहराता है ।”-गिनती 15:15। PPHin 518.3

यदि गिबोनियों ने छल का सहारा नहीं लिया होता तो, ऐसा था वह आधार जिस पर उन्हें ग्रहण किया जाता। ‘राजनगर', “जहॉँक सभी पुरूष श्रवीर थे”, के नागरिकों के लिये यह कम अपमानजनक नहीं था कि उन्हें और उनके सभी पीढ़ियों को लकड़हारे और पानी भरने वाले बनाया गया। लेकिन धोखे के प्रयोजन के लिये उन्होंने दरिद्रता का वेष धारण किया, और वह उनपर चिरस्थायी दासत्व के चिन्ह के रूप में बाँध दिया गया था। इस प्रकार अब से लेकर आगे की सभी पीढ़ियों के लिये उनकी दासत्व की अवस्था परमेश्वर की झूठ के लिये घृणा की साक्ष्य होगी। PPHin 518.4

गिबोन का इज़राइलियों के सम्मुख समर्पण ने कनान के राजाओं को भय और उत्साहीनता से भर दिया। घुसपैठियों के साथसमझौता करने वालों से प्रतिशोध लेने के लिये तत्काल कदम उठाया गया। यरूशलेम के राजा अदोनीसेदेक के नेतृत्व में, कनानी राजाओं में से पाँच राजाओं ने गिबोन के विरूद्ध संधि की। उनकी गतिविधियाँ तेज थी। गिबोन बचाव के लिये तैयार नहीं थे, इसलिये उन्होंने गिलगाल में यहोशू के पास सन्देश भेजा, अपने दासों की ओर से तू अपना हाथ न हटाना, शीघ्र हमारे पास आकर हमें बचा ले, और हमारी सहायता कर, क्‍योंकि पहाड़ पर रहने वाले एमोरियों के सब राजा हमारे विरूद्ध इकटठे हुए हुए है। “यह खतरा केवल गिबोन के निवासियों के लिये ही नहीं, वरन्‌ इज़राइल के लिये भी धमकी था। मध्य और दक्षिणी फिलिस्तिन जाने के लिये मार्गा पर इस नगर का अधिकार था, और देश पर विजय प्राप्त करने के लिये इसको अधिकार में रखना आवश्यक था। PPHin 518.5

यहोशू ने गिबोन की सहायता के लिये जाने की तत्काल तैयारी की। घिरे हुए नगर के निवासियों को डर था कि उनके द्वारा प्रयोग किये गए छल के कारण यहोशू उनके निवेदन को अस्वीकार कर देगा, लेकिन उन्होंने इज़राइल के नियन्त्रण में होना स्वीकार कर लिया था और परमेश्वर की आराधना करने से सहमत हो गए थे, इसलिये उसे लगा कि उनकी सुरक्षा करना उसका कर्त॑व्य है। इस बार वह ईश्वर के परामर्श बिना आगे नहीं बढ़ा और परमेश्वर ने इस कार्य के लिये उसे प्रोत्साहित किया। ईश्वरीय सन्देश था, “उनसे मत डर, क्‍योंकि मैंने उनको तेरे हाथ में कर दिया है, उनमें से एक भी पुरूष तेरे सामने टिक न सकंगा ।” “तब यहोशू सारे योद्धाओं और सब शूरवीरों को संग लेकर गिलगल से चल पड़ा। PPHin 519.1

सारी रात चलकर वह प्रातः: काल को अपनी सेना गिबोन के सम्मुख ले आया। संघ के राजाओं ने अपनी सेनाओं को नगर के आस-पास एकशत्रित किया ही था कि यहोशू एकाएक उनपर टूट पड़ा ।इस चढ़ाई का परिणाम यह हुआ कि आक्रमणकारी पूरी तरह से घबरा गए। वह विशाल सेना यहोशू के सामने से, पहाड़ी रास्ते से होकर बेथोरोन को भाग गई, और ऊँचाई पर पहुँचकर, तेजी से वृष्टि हुई। “यहोवा ने आकाश से बड़े-बड़े पत्थर उन पर बरसाए......जो ओलो से मारे गए उनकी गिनती इज़राइलियों की तलवार से मारे हुओं से अधिक थी। PPHin 519.2

किले समान पर्वतों में शरण पाने के उद्देश्य से ऐमारी बिना सोचे समझे भागते रहे, और टीले के ऊपर नीचे देखते हुए, यहोशू को लगा कि उसके काम की कार्यसिद्धि के लिये दिन बहुत छोटा था। यदि उन्हें पूर्ण रूप से बाहर नहीं किया गया, तो उनके शत्रु फिर से शक्ति जुटाकर, नये सिरे से संघर्ष प्रारम्भ कर देंगे। “उस दिन यहोशू ने यहोवा से इज़राइलियों के देखते इस प्रकार कहा, हे सूर्य, तू गिबोन पर, और हे चन्द्रमा, तू अय्यालोन की तराई के ऊपर थमा रह । और सूर्य उस समय तक थमा रहा, और चन्द्रमा उस समय तक ठहरा रहा, जब तक उस जाति के लोगों ने अपने ठहरा रहा, और लगभग चार पहर तक न डूबा। PPHin 519.3

सांझ होने से पहले, यहोशू से की गई परमेश्वर की प्रतिज्ञा परिपूर्ण हुई। शत्रु की समस्त सेना उसके हाथ में दे दी गईं। उस दिन की घटनाएँ इतनी लम्बी थी कि वे इज़राइल को हमेशा याद रही। “न तो उससे पहले कोई ऐसा दिन हुआ और न उसके बाद, जिसमें यहोवा ने किसी पुरूष की सुनी हो, क्योंकि यहोवा तो इज़राइल की ओर से लड़ता है।” तेरे उड़ने वाले तीरों के चलने की ज्योति से, और तेरे चमकीले भाले की झलक के प्रकाश से सूर्य और चन्द्रमा अपने-अपने स्थान पर ठहर गए। तू कोध में आकर पृथ्वी पर चल निकला, तूने अन्य जाति को कोध से नष्ट किया। तू अपनी प्रजा के उद्धार के लिये निकला ।ह्बक्कक 3:11-13 PPHin 520.1

यहोशू की प्रार्थना को परमेश्वर के आत्मा ने प्रेरित किया, ताकि इज़राइल के परमेश्वर की सामर्थ्य का फिर से प्रमाण दिया जा सके। इस प्रकार विनतीने महान अगुवे की ओर से घमण्ड नहीं दिखाया। यहोशू से प्रतिज्ञा की गई थी कि परमेश्वर ही इज़राइल के शत्रुओं को पराजित करेगा, लेकिन फिर भी उसने इतना उत्साहपूर्वक प्रयत्न किया मानो सफलता केवल इज़राइल की सेनाओं पर निर्भर थी। उसने वह सब किया तो मानवीय शक्ति के वश में था, और फिर विश्वास से ईश्वरीय सहायता के लिये प्रार्थना की। ईश्वरीय सामर्थ्य के साथ मानवीय प्रयत्न का मेल ही सफलता का रहस्य है। जो सबसे श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करते हैं वह वे लोग होते है जो पूरी तरह सर्वशक्तिमान पर निर्भर करते है। जिस व्यक्ति ने आदेश दिया, “हे सूर्य, तू गिबोन पर, और हे चन्द्रमा, तू अय्यालोन की तराई के ऊपर थमा रह”, यह वही था जो गिलगल की छावनी में घण्टों तक पृथ्वी पर दण्डवत कर प्रार्थना करता था। प्रार्थना करने वाले मनुष्य सामर्थ्यवान होते है। PPHin 520.2

यह प्रभावशाली आश्चर्यकर्म प्रमाणित करता है कि सृष्टि सृष्टिकर्ता के नियन्त्रण में है। शैतान इस नैतिक संसार में ईश्वरीय साधन को मनुष्य से छुपाना चाहता है, पहले महान उद्देश्य की अथक प्रक्रिया को अदृश्य रखना चाहता था। इस आश्चर्यकर्म में जो भी प्रकृति के परमेश्वर से श्रेष्ठ समझता है वह तिरस्कृत है। PPHin 520.3

परमेश्वर, अपनी इच्छा से उसके शत्रुओं की शक्ति को पराजित करने के लिये प्रकृति की शक्तियों को बुलाता है- “अग्नि और ओले, हिम और कोहरा, और उसका वचन मानने वाली प्रचण्ड बयार ।’-भजन संहिता 148:8। जब अधर्मी ऐमोरी उसके उद्देश्यों का प्रतिरोध करने के लिये अड़ गए, परमेश्वर ने हस्तक्षेप किया, उसने इज़राइल के शत्रुओं पर “आकाश से बड़े-बड़े पत्थर’ बरसाए। हमें पृथ्वी के इतिहास के अन्तिम दृश्यों में एक महान युद्ध के घटित होने के बारे में कहा गया है जब, “यहोवा ने अपने शस्त्रों का घर खोलकर, अपने कोध प्रकट करने का सामान निकाला ।”-यिर्मयाह 50:25। उसने पूछा, “क्या तू कभी हिम के भण्डार में गया? या कभी ओलो के भण्डार को तूने देखा है, जिसकी मैंने संकट के समय और युद्ध और लड़ाई के दिन के लिये रख छोड़ा है - अय्यूब 38:22,23। PPHin 521.1

भविष्यद्वक्ता होने वाले विनाश का वर्णन करता है जो तब होगा जब, “मन्दिर के सिंहासन से यह प्रभावशाली स्वर” घोषणा करेगा, “हो चुका”। वो कहता है, “आकाश से मनुष्यों पर मन-मन भर के बड़े ओले गिरे।”-प्रकाशितवाक्य 16:17,21। PPHin 521.2