कुलपिता और भविष्यवक्ता

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अध्याय 36—निर्जन प्रदेश में

लगभग चालीस वर्षो तक इज़राइली मरूधर की गुमनामी में खो गए। मूसा कहता है, “हमारे कादेशबर्न को छोड़ने से लेकर जेरेद नदी पर होने तक अड़तीस वर्ष बीत गए, उस बीच में यहोवा की शपथ के अनुसार उस पीढ़ी के सब योद्धा छावनी में से नष्ट हो गए। और जब तक वे नष्ट न हुए तब यहोवा का हाथ उन्हें छावनी में से मिटा डालने के लिये उनके विरूद्ध बढ़ा ही रहा।”- व्यवस्थाविवरण 2:14,15 PPHin 411.1

इन वर्षो के दौरान लोगों को लगातार स्मरण कराया गया कि वे परमेश्वर द्वारा ताड़े जा रहे थे। कादेश में विद्रोह करके उन्होंने परमेश्वर का तिरस्कार किया था, और इस समय के लिये परमेश्वर ने उन्हें अस्वीकार कर दिया था। वे उसकी वाचा के प्रति अनिष्ठावान प्रमाणित हुए थे, इसलिये उन्हें वाचा का चिन्ह, खतना की विधि, नहीं मिलनी थी। दासत्व के देश लौट जाने की उनकी अभिलाषा ने उन्हें स्वतन्त्रता के अयोग्य ठहरा दिया था, और दास्तव से छुटकारे का स्मरण करने के लिये स्थापित फसह का पर्व नहीं मनाया जाना था। PPHin 411.2

लेकिन मिलाप वाले तम्बू की धर्मक्रिया होते रहना इस बात का प्रमाण था कि परमेश्वर ने अपने लोगों को पूरी तरह नहीं छोड़ दिया था। वह अभी भी उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहा था। उनके भ्रमण के इतिहास को दोहराते हुए मूसा ने कहा, “तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे हाथों के सब कामों के विषय तुम्हे आशीष देता आया है। इस विशाल जंगल में तुम्हारा चलना-फिरना वह जानता है, इन चालीस वर्षों में तुम्हारा परमेश्वर यहोवा तुम्हारे संग-संग रहा है, और तुम को कुछ घटी नहीं हुई।” नेहम्याह द्वारा उल्लिखित लैवी का भजन, निर्वासन और बहिष्कार के वर्षो के दौरान भी परमेश्वर के इज़राइल के लिये दायित्व को विस्तारपूर्वक चित्रित करता है, “तब भी तूने, जो अति दयालु है, उनको जंगल में न त्याग, न तो दिन को अगुवाई करने वाला बादल उन पर से हटा, और रात को उजियाला देने वाला और उनका मार्ग दिखाने वाला आग का खम्भा। वरन्‌ तू ने उन्हें समझाने के लिये अपने आत्मा को, जो भला है, दे दिया और अपना मनन्‍ना उन्हें खिलाना न छोड़ा, और उनकी प्यास बुझाने को पानी देता रहा। चालीस वर्षो तक तू जंगल में उनका ऐसा पालन पोषण करता रहा कि उनको कुछ घटी नहीं हुई, न तो उनके वस्त्र पुराने हुऔर न उनके पाँवो में सूजन हुईं। - नेहम्याह 9:19-21। PPHin 411.3

निर्जन प्रदेश में भटकना, केवल कुड़कड़ाने वालों और विद्रोहियों के लिये दण्डाज्ञा के तौर पर नियुकत नहीं की गई, वरन्‌ वह उभरती हुई पीढ़ी के लिये, प्रतिज्ञा के देश में प्रवेश करने की तैयारी के रूप में, अनुशासन की तरह थी। मूसा ने उनसे कहा, “जैसा कोई अपने बेटे को ताड़ना देता है वैसे ही तेरा परमेश्वर यहोवातुझ को ताड़ना देता है” “कि वह तुझे नम्न बनाए, और तेरी परीक्षा लेकर यह जान ले कि तेरे मन में क्‍या है कि तू उसकी आज्ञाओं का पालन करेगा या नहीं। उसने तुझ को भूखा भी होने दिया, फिर वह मन्‍ना, जिसे न तू और न तेरे पुरखे ही जानते थे, वही तुझ को खिलाया, इसलिये कि वह तुझ को सिखाए कि मनुष्य केवल रोटी ही से नहीं जीवित रहता, परन्तु जो जो वचन यहोवा के मुहँ से निकलते है उन ही से वह जीवित रहता है।” व्यवस्थाविवरण 8:5,2,3 PPHin 411.4

“उसने उसको जंगल में, और सुनसान गरजनेवालों से भरी हुई मरूभूमि में पाया, उसने उसका मार्गदर्शन किया, उसे निर्देश दिए और उसकी अपनी आंख की पुतली के समान सुधि रखी।” “उनके सारे संकट में उस ने भी कष्ट उठाया, और उसके सम्मुख रहने वाले दूत ने उनका उद्धार किया, प्रेम और कोमलता से उसने आप ही उनको छुड़ाया, उसने उन्हें उठाया और प्राचीनकाल से सदा उन्हें लिये फिरा। - व्यवस्थाविवरण 32:40, यशायाह 63:9 । PPHin 412.1

फिर भी बीहड़ में व्यतीत किए गए उनके जीवन के एकमात्र उल्लेख, परमेश्वर के प्रति विद्रोह के दृष्टाँत है। कोरह का विद्रोह चौदह हज़ार इज़राइलियों के विनाश में प्रमाणित हुआ। ईश्वरीय सत्ता के प्रति तिरस्कार की भावना दिखाने वाली और भी अलग-अलग घटनाएँ थी। PPHin 412.2

एक बार एक इज़राइली स्त्री और एक मिस्री के पुत्र ने, जो भिन्न जातियों केलोग मिस्र से इज़राइलियों के साथआये थे, अपने पड़ाव का स्थान छोड़ कर, इज़राइलियों के डेरे से घुसकर, अपना तम्बू वहाँ तानने के अधिकार की माँग करने लगा। पवित्र आज्ञा के अनुसार तीसरी पीढ़ी तक एक मिस्री के वंशजों को मण्डली से अलग कर दिया गया था, इसलिये वह अपना तम्बू इज़राइलियों के भाग में नहीं तान सकता था। उसके और एक इज़राइली के बीच विवाद छिड़ गया, और जब इस विषय को न्यायियों के समक्ष रखा गया तो निर्णय अपराधी के विरूद्ध दिया गया। PPHin 412.3

इस निर्णय से कोधित होकर, उसने न्यायी को शापित ठहराया और आवेग की अति में परमेश्वर के नाम का अपमान किया। उसे तत्काल मूसा के सम्मुख लाया गया। आदेश दे दिया गया था, “जो अपने पिता या माता को श्राप दे वह भी निश्चय मार डाला जाए।-निर्गमन 21:17 लेकिन इस विषय के प्रत्युत्तर के लिये कोई प्रयोजन नहीं बनाया गया था। यह अपराध इतना गंभीर था कि परमेश्वर के विशेष निर्देशन की आवश्यकता महसूस हुईं। परमेश्वर की इच्छा भली-भाँति ज्ञात होने तक उसे निगरानी में रखा गया। स्वयं परमेश्वर ने दण्डाज्ञा सुनाई, पवित्र निर्देश द्वारा ईश-निन्दा करने वाले को छावनी से बाहर ले जाकर पथराव द्वारा मार दिया गया। जो इस अपराध के साक्षी थे, उन्होंने अपने हाथ अपराधी के सिर पर रखे, और इस प्रकार उस परलगाये गए आरोप की सच्चाई को प्रमाणित किया। फिर उन्होंने पहले पत्थर मारे और इसके तत्पश्चात पास खड़े लोग दण्डाज्ञा कियान्वन में सम्मिलित हुए। PPHin 412.4

इसके बाद इसी प्रकार के अपराधों के निर्णय के लिये घोषणा की गई “और तू इज़राइलियों से कह कि जो कोई भी अपने परमेश्वर को श्राप दे उसे अपने पाप का भार उठाना पड़ेगा। यहोवा के नाम की निन्दा करने वाला निश्चय मार डाला जाए, सारी मण्डली के लोग निश्चय उस पर पथराव करें, चाहे देशी हो चाहे परदेशी, यदि कोई उस नाम की निन्दा करे तो वह मार डाला जाए ।-लैवव्यवस्था 24:15,16। PPHin 413.1

ऐसे भी लोग है जो आवेग की अति में बोले गए शब्दों के लिये इतनी कठोर दण्डाज्ञा देने में परमेश्वर के प्रेम और उसकी न्‍्यायपरता पर आपत्ति करेंगे। लेकिन प्रेम और न्याय दोनों की यह माँग है कि परमेश्वर के विरूद्ध द्वेष से प्रोत्साहित कथनों को महापाप की श्रेणी में रखा जाए। पहले अपराधी को दिया गया दण्ड दूसरों के लिये इस बात की चेतावनी होगा कि परमेश्वर का नाम आदर के साथ लिया जाए। लेकिन यदि इस व्यक्ति के पाप को दण्डित नहीं किया जाता तो दूसरे नीतिम्रष्ट हो जाते और इसके फलस्वरूप कई लोगों के जीवन बलिदान हो जाते। PPHin 413.2

जो मिली-जुली जातियाँ मिस्र से इज़राइलियों के साथ आई थी वे लगातार प्रलोभन और मुसीबत का स्रोत थीं। वे मूर्तिपूजा का त्याग कर सच्चे परमेश्वर की आराधनाका दावा तो करते थे, लेकिन उनकी प्रारम्भिक शिक्षा और प्रशिक्षण में उनके चरित्र और आचरण को ढाल दिया था और वे परमेश्वर का निरादर करने और मूर्तिपूजा से भ्रष्ट हो चुके थे। अधिकतर कलह उत्पन्न कराने वाले वहीं होते थे और वही सबसे पहले शिकायत करते थे; परमेश्वर के प्रति बड़बड़ाहट और अपनी मूर्तिपूजक रीतियों से उन्होंने छावनी को प्रभावित कर दिया। PPHin 413.3

निर्जन प्रदेश में लौटने के तत्पश्चात ही, सबत के उल्लंघन की घटना हुई, ऐसी परिस्थितियों में जिन्होंने उसे असाधारण पाप बना दिया। प्रभु की इस घोषणा ने कि वह इज़राइल का उत्तराधिकार समाप्त कर देगा, विद्रोह की भावना को उत्पन्न किया। कनान से बहिष्कृत होने पर कोधित और परमेश्वर की व्यवस्था को ललकारने के लिये दृढ़ संकल्प लिये एक व्यक्ति ने सबत के दिन लकड़िया इकट्ठा करने के लिये बाहर जाकर चौथी आज्ञा का खुले रूप से उल्लंघन करने का प्रयत्न किया। निर्जन प्रदेश में पड़ाव डालने के समय सप्ताह के सातवें दिन अग्नि प्रज्वलित करना निषिद्ध था। यह निषेधाज्ञा कनान प्रदेश पर लागू नहीं होनी थी, क्योंकि वहां की अतिविषम जलवायु के कारण आग का जलना एक आवश्यकता थी, लेकिन बीहड़ में गर्माहट के लिये आग की आवश्यकतानहीं थी। उस मनुष्य का कृत्य चौथी आज्ञा का स्वैच्छिक व जानबूझकर किया गया उल्लंघन था- एक पाप, विचारहीनता था अज्ञानता नहीं, वरन्‌ पूर्व विचारित। PPHin 413.4

उसे रंगे हाथों पकड़ा गया और मूसा के सम्मुख लाया गया। यह घोषित कर दिया गया था कि सबत के उल्लघंन को मृत्यु से दण्डित किया जाएगा, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं था कि दण्ड किस प्रकार दिया जाएगा। इस मामले को मूसा द्वारा प्रभु के सम्मुख लाया गया और निर्देश दिया गया, “वह मनुष्य निश्चय मार डाला जाए, सारी मण्डली के लोग छावनी के बाहर उस पर पथराव करें ।”-गिनती 15:35 । ईश-निंदा और सबत-उल्लंघन के पाप का दण्ड एक समान था, क्‍योंकि यह परमेश्वर की सत्ता के विरूद्ध घृणा की अभिव्यक्ति के बराबर था। PPHin 414.1

हमारे समय में भी कई लोग सृष्टि के सबत को यहूदी संस्थापन मान कर अस्वीकार कर देते है, और आग्रह करते हैं कि यदि इसका पालन किया जाना है, तो इसके उल्लघंन के लिये मृत्यु दण्ड दिया जाना चाहिये, लेकिन हम देखते हैं कि ईश-निन्दा के लिये भी सबत-उल्लघंन के समान दण्ड दिया गया। तो क्‍या हम यह निष्कर्ष निकाले कि तीसरी आज्ञा भी यहूदियों पर ही लागू होती है? लेकिन मृत्यु-दण्ड से प्राप्त युक्ति तीसरी, पाँचची और लगभग दसों आज्ञाओं व चौथी आज्ञा पर बराबरी से लागू होती है। हालांकि परमेश्वर भले ही अभी अपनी व्यवस्था के उल्लंघन को सांसारिक दंड से दण्डित न करे, लेकिन उसकावचन कहता है कि पाप का दण्ड मृत्यु है, और दण्डाज्ञा के निर्णायक कियान्वन में यह स्पष्ट हो जाएगा कि जो उसकी पवित्र आज्ञाओं का उल्‍लघंन करते हैं उनके हिस्से में मृत्यु आती है। PPHin 414.2

निर्जन प्रदेश में पूरे चालीस वर्षो के दौरान, लोगों को प्रत्येक सप्ताह मन्‍ना के द्वारा सबत के पवित्र कर्तव्य का स्मरण कराया जाता था, लेकिन यह भी उन्हें आज्ञाकारिता की ओर नहीं ले गया। उल्लंघन करने की चेष्ठा नहीं की थी जैसा कि पहले किया गया था और जिसके लिये प्रतीकात्मक दण्डाज्ञा दी गई थी, फिर भी चौथी आज्ञा के पालन करने में गम्भीरता नहीं थी। अपने नबी द्वारा परमेश्वर कहता है, “मेरे विश्रामदिनों को अति अपवित्र किया। (यहेजकल 20:43) और इसकी गणना प्रतिज्ञा के देश से पहली पीढ़ी के बहिष्करण के कारणों में की गई है। फिर भी उनकी संतानों ने सबक नहीं सीखा। चालीस वर्षो में भटकने के दौरान सबत का उन्होंने इतना तिरस्कार किया, कि परमेश्वर ने भले ही उन्हें कनान में प्रवेश करने से नहीं रोका, लेकिन उसने घोषणा की कि प्रतिज्ञा के देश में उनके बस जाने के बाद उन्हें अधर्मियों के बीच तितर-बितर कर दिया जाए। PPHin 414.3

कादेश से इज़राइली निर्जन प्रदेश में लौट आए थे, और उनके पड़ाव का समय समाप्त होने के पश्चात्‌, “सारीइज़राइली मण्डली के लोग सिने नामक जंगल में आ गए और कादेश में रहने लगे ।”-गिनती 20:1 PPHin 415.1

यहाँ मरियम मृत्यु को प्राप्त हुई और उसे गाढ़ा गया। लाल समुद्र के छोर पर हर्षोल्लास के दृश्य से, जब इज़राइल यहोवा की विजय का उत्सव मनाने के लिये नाचते-गाते आगे को गए, निर्जन प्रदेश मे कब्र तक, जहाँ जीवन भर का भटकना समाप्त हुआ- यही उन हजारों लोगों का अन्त था जो मिस्र से ऊँची आशाएँ लेकर आए थे। पाप ने उनके होठों से आशीष का प्याला छीन लिया था। क्या अगली पीढ़ी सब सीखने वाली थी? PPHin 415.2

“इतने पर भी वे और अधिक पाप करते गए, और परमेश्वर के आश्चर्यकमों की प्रतीति नहीं की........जब वह उन्हें घात करने लगता, तब वे उसको पूछते थे, और लोटकर परमेश्वर को यत्न से खोजते थे। उनको स्मरण होता था कि परमेश्वर उनकी चट्टान था और परमप्रधान परमेश्वर उनका छुड़ानेवाला था ।”-भजन संहिता 78:32-35 फिर भी वे परमेश्वर की ओर नेक प्रयोजन से नहीं मुड़े। हालांकि जब उन्हें उनके शत्रुओं द्वारा पीड़ित किया गया, उन्होंने परमेश्वर से सहायता माँगी जो उनके छुटकारे का एकमात्र स्रोत था, लेकिन “उनका हृदय उसके साथ नहीं था, न वे उसकी वाचा के विषय सच्चे थे। परन्तु वह जो दयालु है, वह उनके अधर्म को ढॉपता, और उन्हें नष्ट नहीं करता, वह बार-बार अपने कोध को ठण्डा करता है...... उसको स्मरण रहा कि ये नश्वर है, यह वायु के समान है जो चली जाती है और लौट कर नहीं आती ।” भजन संहिता 78:37-39। PPHin 415.3