कुलपिता और भविष्यवक्ता

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अध्याय 28—सिने में मूर्तिपूजा

यह अध्याय निर्गमन 32—34 पर आधारित है

मूसा की अनुपस्थिति इज़राइल के लिये प्रतीक्षा और असमंजस का समय था। लोगों को यह पता था कि वह यहोशू के साथ पहाड़ पर चढ़ा था, और बादल की गहरी स्याही, जो तराई से देखी जा सकती थी, में प्रवेश हुआ था, और वह बादल जो पहाड़ की चोटी पर टिका था, समय-समय पर ईश्वरीय उपस्थिति के प्रकाश से प्रकाशमान हो रहा था। वे उत्सुकता से उसके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे थे। मिस्र में वे ईश्वर के देहधारी प्रतिरूप के अभ्यस्त थे, इसलिये एक अदृश्य अस्तित्व में विश्वास करना कठिन था, और अपने विश्वास को जीवित रखने के लिये वे मूसा पर निर्भर करने लगे थे। अब मूसा को उनसे ले लिया गया था। दिन के बाद दिन और सप्ताह के बाद सप्ताह निकल गए, लेकिन मूसा नहीं लौटा। बादल की उपस्थिति के बावजूद, कईयों को ऐसा प्रतीत हो रहा था कि उनके अगुए ने उनको छोड़ दिया था और या वह प्रचण्ड अग्नि मे भस्म हो गया था। PPHin 316.1

प्रतीक्षा की इन घड़ियों में, उनके पास, उनके द्वारा सुनी गईं परमेश्वर की व्यवस्था पर मनन करने का और उनके हृदयों को परमेश्वर के और सम्भावित रहस्यों के उदघाटनों को ग्रहण करने का समय था। इस काम के लिये तब उनके पास बहुत समय नहीं था, और यदि वे परमेश्वर की अपेक्षाओं की स्पष्ट समझके इच्छुक होते और उसके सम्मुख अपने हृदयों को दीन करते तो वे प्रलोभन से बच सकते थे। लेकिनउन्होंने ऐसा नहीं किया, और वे शीघ्र की लापरवाह, असावधान और न्यायविरूद्ध हो गए। इस मिश्रित भीड़ के साथ ऐसा ही था। वे प्रतीज्ञा के देश-वह देश जहां दूध और शहद की नदियाँ बहती थी-के मार्ग पर जाने के लिये अधीर हो रहे थे। यह समृद्ध देश की प्रतीक्षा उन्हें आज्ञाकारिता के प्रतिबन्ध पर दी गईं थी लेकिन वे इस बात को भूल गए थे। कई एक ने मिस्र लौट जाने की सलाह दी, लेकिन चाहे वे कनान की ओर जाना हो या फिर मिस्र को लौटना हो, लोगों की यह भीड़ मूसा की और प्रतीक्षा न करने का संकल्प ले चुके थे। PPHin 316.2

अपने अगुवे की अनुपस्थिति मे असहाय सा महसूस करते हुए, वे अपने पुराने अंधविश्वासों में लौट गए। यह ‘मिश्रित भीड़’ अधीर होने और बड़बड़ाने में सबसे आगे थी और आने वाले अधर्म के लीडर हुईं। मिस्र के लोगों द्वारा ईश्वर के प्रतीक माने जाने वाले पशु बछड़ा या बैल थे, और मिस्र में इस प्रकार की मूर्तिपूजा करने वालों के परामर्श पर एक बछड़े का आकार बनाकर उसकी पूजा की गई । लोगों की यह इच्छा थी कि कोई आकति परमेश्वर का प्रतिरूप हो और मूसा के स्थान पर उनके आगे-आगे चले। परमेश्वर ने स्वयं का किसी प्रकार का प्रतिरूप नहीं दिया था और उसने इस प्रयोजन के लिये किसी भी देहधारी प्रतिरूप की मनाही की थी। मिस्र और लाल समुद्र के चमत्कारों का प्रयोजन इसलिये किया गया कि लोग परमेश्वर को एकल सच्चा परमेश्वर, इज़राइल का अदृश्य सर्वशक्तिमान सहायक मानकर उसमें विश्वास करें ।और सिने पर्वत पर उसकी महिमा के प्रदर्शन में और सेनाओं का मार्गदर्शन करने वाले आग और बादल के स्तम्भोंमें, परमेश्वर की अदृश्य प्रकटीकरण की लोगों की इच्छा को तृप्त कर दिया गया था। लेकिन ‘उपस्थिति'अर्थात परमेश्वर के बादल को अपने सम्मुख पाकर भी, उन्होंने अपने हृदयों को मूर्तिपूजा की और मोड़ लिया और उस अदृश्य परमेश्वर की महिमा को एक बैल के आकार में दर्शाया। PPHin 316.3

मूसा की अनुपस्थिति में न्याय सम्बन्धी अधिकार हारून को सौंपे गए थे और उसके तम्बू के बाहर एक विशाल मानव समूह इकट्ठा हो गया और माँग करने लगा, “अब हमारे लिये देवता बना, जो हमारे आगे-आगे चले, क्‍योंकि उस पुरूष मूसा को जो हमें मिस्र देश से निकाल ले आया है, हम नहीं जानते कि क्या हुआ? वे कहने लगे कि अब तक जो बादल उनका मार्गदर्शन करता था, वह पर्वत पर टिक गया था, और अब वह उन्हें यात्रा के लिये निर्देशित नहीं करेगा। उसके स्थान पर किसी आकृति का होना आवश्यक था और यदि, सुझाव के अनुसार, वे मिस्र लौट जाने का निर्णय लें तो इस आकृति को अपने आगे-आगे रखकर और उसको अपना देवता स्वीकार करके वे मिमस्रियों की कृपा-दृष्टि प्राप्त कर सकते थे। PPHin 317.1

इस प्रकार की संकटावस्था में एक दृढ़तापूर्ण, निर्णय लेने वाला, व अडिग साहस वाले मनुष्य की आवश्यकता थी, जिसके लिये जीवन, निजी सुरक्षा और लोकप्रिय कृपा-दृष्टि के बजाय परमेश्वर का सम्मान अधिक प्रिय था। लेकिन इज़राइल का वर्तमान अगुवा इस आचरण का नहीं था। हारून ने लोगों का थोड़ा विरोध किया, लेकिन ऐसी संकटमय स्थिति में उसकी कायरताऔर हिचकिचाहट ने उन्हें अपने संकल्प में और दृढ़ कर दिया। कोलाहल बढ़ गया। भीड़ पर जैसे एक अंधा, अविवेकपूर्ण पागलपन सा सवार हो गया। उनमें कुछ ऐसे थे, जो परमेश्वर के साथ अपनी वाचा के प्रति सत्यनिष्ठ रहे, लेकिन अधिकांश लोग अधर्म क साथ जुड़ गए। जिन्होंने प्रस्तावित आकृति बनाने को मूर्तिपूजा का नाम देकर निंदा की, उनक साथ दुर्व्यवहार किया गया और गड़बड़ी और उत्तेजना में वे अनन्त: अपने प्राण गँवा बैठे। PPHin 317.2

हारून को अपनी सुरक्षा का भय था, और परमेश्वर के सम्मान के लिये शिष्टता से खड़े रहने के बजाय, वह भीड़ की माँगों के आगे झुक गया। उसका पहला कृत्य था लोगों को निर्देश देने कि वे सब अपने कानों से सोने की बालियाँ निकालकर उसके पास लाए, इस आशा में कि घमण्ड के कारण वे इस प्रकार के त्याग के लिये सहमत नहीं होंगे। लेकिन लोगों ने स्वेच्छा से अपने आभूषण दे दिये, और उनको पिघलाकर उसने एक सोने का बछडा बनाया जो मिस्र के देवताओं की नकल था। तब लोग कहने लगे, “हे इज़राइल, तेरा ईश्वर जो तुझे मिस्र देश से छुड़ा लायाहै, वह यही है।” और हारून ने यहोवा के प्रति इस अपमान की अनुमति दे दी। उसने इससे भी अधिक निन्दनीय कार्य किया। यह देखकर कि सोने के देवता को संतोष के साथ ग्रहण किया गया, उसने उसके सामने एक वेदी बनाकर घोषणा की, “कल यहोवा के लिये पर्व होगा। सम्पूर्ण डेरे में एक समूह से दूसरे समूह तक इस सूचना को प्रसारित किया गया। “और दूसरे दिन लोगों ने भोर को उठकर होमबलि चढ़ाई और मेलबलि ले आए, फिर बैठकर खाया पिया और उठकर खेलने लगे।” “परमेश्वर के लिये पर्व” केस्वांग में वे लोलुपता और व्यभिचारी रंगरलियों में खो गए। PPHin 318.1

प्राय, हमारे समय में भी आमोद-प्रमोद की चाह, ‘(धार्मिकता के रूपः में आवृत होती है! धर्म यदि उपासना की विधियों के दौरान मनुष्य को स्वार्थपूर्ण या इन्द्रिय सन्तुष्टि के प्रति समर्पित होने की अनुमति देता है, तो जनसाधारण के लिये उतना ही मनभावना है जैसा कि इज़राइल के दिनों में था। और अभी भी दब्बू हारून हैं, जो कलीसिया में आधिकारिक पदों पर होते हुए भी अपवित्र लोगों की इच्छाओं के आगे झुक जाते है और इस प्रकार पाप में उनका समर्थन करते हैं। PPHin 318.2

इब्रियों द्वारा परमेश्वर के साथ आज्ञाकारिता की वाचा बाँधे कुछ ही दिन बीते थे। उन्होंने पर्वत के सामने भय से कॉपते हुए , प्रभु के कथनों को सुना था, “तूमुझे छोड़ दूसरों को ईश्वर करके न मानना।” कलीसिया की दृष्टि में सिने पर्वत पर परमेश्वर की महिमा अभी भी मँडरा रही थी, लेकिन उन्होंने फिर भी मुंह फेर लिया और अन्य देवताओं की माँग की। “उन्होंने हौरेब में बछड़ा बनाया, और ढली हुई मूर्ति को दण्डवत किया। जो उन्होंने अपनी महिमा अर्थात परमेश्वर को घास खाने वाले बैल की प्रतिभा से बदल डाला”-भजन संहिता 106:19,20। इससे अधिक कृतज्ञहीनता कैसे दिखाई जा सकती थी, या दुस्साहसपूर्ण अपमान किया जाता उसका जिसने स्वयं को एक सर्व-शक्तिमान राजा और दयावान पिता के रूप में प्रकट किया था! PPHin 318.3

पहाड़ पर मूसा को डेरे में अधर्म की चेतावनी दी गई और उसे अविलम्ब लौटने का निर्देश दिया गया। परमेश्वर के शब्द थे, “नीचे उतर जा, क्‍योंकि तेरी प्रजा के लोग, जिन्हें तू मिस्र देश से निकाल लाया है, वे बिगड़ गए है, और जिस मार्ग पर चलने की आज्ञा मैंने दी थी उसको झटपट छोड़कर उन्होंने एकबछड़ा ढालकर बना लिया, फिर उसको दण्डवत किया।” परमेश्वर इस आन्दोलन को प्रारम्भ में ही रोक सकता था, लेकिन उसने इसे चरम सीमा पर पहुँचने दिया जिससे कि स्व-धर्म त्यागऔर देशद्रोहकी दण्डाज्ञा में वह सबको सबक सिखा सके। PPHin 319.1

परमेश्वर और उसके लोगों के बीच वाचा को रद्द कर दिया गया और उसने मूसा से कहा, “अब मुझे मत रोक, मेरा कोप उन पर भड़क उठा है जिससे मैं उन्हें भस्म करूं, परन्तु तुझसे एक बड़ी जाति उपजाऊँगा।” इज़राइल के लोग, विशेषकर मिश्रित जनसाधारण, लगातार परमेश्वर के प्रति विद्रोह करने को तत्पर थे। वे अपने अगुवे के विरूद्ध बड़बड़ाते थे और अपने हठ और अविश्वास के कारण उसे खेद पहुँचाते, और प्रतिज्ञा के देश तक ले जाने में उनका नेतृत्व करना एक कठिन और आत्मा के लिये कष्टकर कार्य था। उनके पापों के कारण वे परमेश्वर की कृपा-दृष्टि को खो चुके थे और न्याय उनके विनाश की माँग कर रहा था। इस कारण प्रभु ने उनके विनाश का और मूसा के द्वारा एक सशक्त जाति बनाने का निर्णय लिया। PPHin 319.2

“मुझे मत रोक.......जिससे कि मैं उन्हें भस्म कर सके” परमेश्वर के यही शब्द थे। यदि परमेश्वर ने इज़राइल को नष्ट करने की ठान ली थी, तो कौन उनकी पैरवी करता? कम नहीं होंगे वे लोग जिन्होंने पापियों को उनके भाग्य पर छोड़ दिया होगा। कम नहीं है वे लोग जो परिश्रम और बोझ और त्याग को प्रसन्‍नतापूर्वक सम्मान और सुख के पद से बदल लेते है और उसका बदला बड़बडाहट और कृतज्ञहीनता से चुकाते है, भले ही यह छुटकारा स्वयं परमेश्वर ने ही क्‍यों न दिलाया हो।” PPHin 319.3

लेकिन जहाँ केवल निराशा और कोध प्रकट हो रहा था, वहॉमूसा ने आशा का आधार देखा। “मुझे मत रोक”, परमेश्वर के इन शब्दों को उसने मनाही करना नहीं समझा, बल्कि मध्यस्थता को प्रोत्साहित करना माना, जिसका तात्पर्य था कि केवल मूसा की प्रार्थनाएँ इज़राइल को बचा सकती थी, लेकिन यदि इस तरह विनती की जाए तो परमेश्वर उसके लोगों को दण्डित नहीं करेगा। मूसा “अपने परमेश्वर यहोवा को यह कहकर मनाने लगा, “हे यहोवा, तेरा कोप अपनी प्रजा पर क्‍यों भड़का है जिसे तू बड़े सामर्थ्य और बलवन्त हाथ के द्वारा मिस्र देश से निकाल लाया है? PPHin 320.1

परमेश्वर ने यह संकेत दिया था कि उसने अपने लोगों को छोड़ दिया था। उनके सन्दर्भ में उसने मूसा से कहा, “तेरे लोग, जिन्हें तू मिस्र से बाहर निकाल ले आया।” लेकिन मूसा ने दीनता से इज़राइल का नेतृत्व अस्वीकार किया । वे लोग उसके नहीं वरन्‌ परमेश्वर के थे- “तेरी प्रजा, जिन्हें तू मिम्र से निकाल लाया है........बड़े सामर्थ्य और बलवन्त हाथ के द्वारा। उसने आग्रह किया, “मिस्री लोग यह क्‍यों कहने पाएँ, “वह उनको बुरे अभिप्राय से अर्थात पहाड़ो में घात करधरती पर से मिटा डालने की मनसा से निकाल ले गया? इज़राइल के मिस्र छोड़ने के कुछ महीनों पश्चात, उनके आश्चर्यजनक छुटकारे की सूचना पड़ौसी राज्यों में फैल गई थी। अधर्मी लोगों पर भय और भर्येकर पूर्वाभास छाया हुआ था। सभी देखना चाहते थे कि इज़राइल का परमेश्वर अपने लोगों के लिये क्‍या करने वाला था। यदि उनको अभी नष्ट किया जाता, तो उनके शत्रुओं की विजय होती और परमेश्वर का अनादर होता। मित्र के लोग दावा करते कि उनके आरोपसही थे- अपने लोगों को बलि की भेंट चढ़ाने जंगल में ले जाने के बजाय परमेश्वरने उन्हीं को बलि होने दिया। उन्होंने इज़राइल के पापों के बारे में नहीं सोचा, उन लोगों का विनाश जिनको उसने प्रत्यक्ष रूप से सम्मानित किया था, उसके नाम क लिये निंदनीय होता। परमेश्वर द्वारा सम्मान-प्राप्त लोगों के काँधो पर उसके नाम को पृथ्वी पर प्रशंसा को विषय बनाने का उत्तरदायित्व कितना महान है! पाप करने से एवं परमेश्वर की दण्डाज्ञा को आमन्त्रित करके अधर्मियों द्वारा उसके नाम की निंदा होने देने से बचे रहने के लिये कितनी सावधानी बरतने की आवश्यकता है! PPHin 320.2

जब मूसा ने इज़राइल के लिये मध्यस्था की, उसकी हिचकिचाहट गहरी रूचि और प्रेम में विलीन हो गई उन लोगों के लिये, जिनके वास्ते वह परमेश्वर के हाथों में, इतना कुछ करने का साधन रहा था। परमेश्वर ने उसकी विनती को सुना और उसकी निःस्वार्थ प्रार्थना को स्वीकार किया। परमेश्वर अपने सेवक का साक्ष्य था, उसने उन भटके हुए, कतज्ञहीन लोगों के प्रति उसके प्रेम और उसकी निष्ठा को परख लिया था और शिष्टतापूर्वक मूसा इस परीक्षा में खरा उतरा था। इज़राइल में उसकी रूचि किसी स्वार्थपूर्ण उद्देश्य का परिणाम नहीं थी। उसके लिये निजी प्रतिष्ठा से बढ़कर परमेश्वर के चुने हुए लोगों की समृद्धि अधिक प्रिय थी, एक सशक्त जाति का पिता बनने के विशेषाधिकार से भी अधिक प्रिय । परमेश्वर उसकी निष्ठा, उसके हृदय की कोमलता और उसकी ईमानदारी से प्रसन्‍न हुआ और उसने मूसा के एक सत्यनिष्ठ चरवाहे के रूप में इज़राइल को प्रतिज्ञा के देश ले जाने का प्रभार सौंपा। PPHin 321.1

जब मूसा और यहोशू पर्वत से उतर कर नीचे आए, मूसा के हाथों में “साक्षी की पटियाएँ” थी, उन्होंने उत्तेजित जनसाधारण के कोलाहल और चिल्लाहट को सुना। योद्धा यहोशू का पहला विचार शत्रुओं ने आक्रमण का था। उसने कहा, “छावनीमें लड़ाई का सा शब्द सुनाईदे रहा है।” लेकिन मूसा ने शोरगुल के स्वभाव का सही अनुमान लगाया। वह आवाजें लड़ाई की नहीं वरन्‌ आनन्दोत्सव की थी।”यह सेना के लिये विजय का शोर नहीं है, यह हार से चिललाने वाली सेना का शोर भी नहीं है। मैं जो सुन रहा हूँ वह उनके गाने का शोर है।” PPHin 321.2

छावनी के निकट आने पर मूसा ने लोगों को मूर्ति के चारों ओर नाचते और गाते हुए देखा। वह मित्र के मूर्तिपूजक उत्सव का प्रतिरूप, अधर्मी मनोरंजन का दृश्य था, परमेश्वर की श्रद्धांजलि और सविधि आराधना से कितनी भिन्‍न! मूसार्भांचक्का रहगया । वह हाल ही में ईश्वरीय महिमा की उपस्थिति से आया था, और यद्यपि जो हो रहा था उसकी चेतावनी उसे दी गई थी, लेकिन इज़राइल के पतन के इस भयंकर प्रदर्शन लोगों के अपराध के प्रति घृणा दर्शाने के लिये उसने पत्थर की पटियाओं को नीचे फेंक दिया, और वे लोगों की आंखो के सामने टूट गई। इसका अभिप्राय यह था कि जैसे उन्होंने परमेश्वर के साथ अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ा था, उसी प्रकार परमेश्वर ने उनके साथ की गई प्रतिज्ञा को तोड़ दिया था। PPHin 321.3

छावनी में प्रवेश करते हुए, मूसा आमोद-प्रमोद करते लोगों की भीड़ को पार करके निकला और उसने मूर्ति को उठाकर आग में फेंक दिया। फिर उसने उसे पीसकर चूर-चूर कर दिया और पर्वत से नीचे बहने वाली धारा में बिखेर दिया और उसदेवताकी मूल्यहीनता को प्रकट किया गया जिसकी वे उपासना कर रहे थे। PPHin 322.1

महान अगुवों ने अपने दोषी भाई को बुलवाया और सख्ती से पूछा “इन लोगों ने तेरे साथ क्‍या किया कि तू ने उनको इतने बड़े पाप में फंसाया”? लोगोंके विरोध का वर्णन करके हारून ने स्वयं को बचाने का प्रयत्न किया कि यदि उसने उनकी इच्छाओं को पूरा न किया होता तो वे उसे मृत्यु के घाट उतार देते। “मेरेप्रमभु का कोप न भड़के” उसने कहा, “तू तो इन लोगों को जानता ही है कि ये सदा गलत काम करने को तैयार रहते है, उन्होंने मुझ से कहा, ‘हमारे लिये देवता बनवा जो हमारे आगे-आगे चले, क्योंकि उस पुरूष मूसा को, जो हमें मिस्र देश से छुड़ा लाया है, हम नहीं जानते कि क्‍या हुआ। तब मैंने उनसे कहा, जिस-जिस के पास सोने के आभूषण है, वे उनको उतार लाएँ। और जब उन्होंने मुझ को वह दिया, मैंने उन्हें आग में डाल दिया, तब यह बछड़ा निकल पड़ा ।” वह मूसा को विश्वास दिलाना चाहता था कि एक चमत्कार हुआ था - सोने को आग में डाला गया था और और वह अलौकिक शक्ति से बछड़े में परिवर्तित हो गया। लेकिन उसके बहाने और वाक छल से कोई लाभ नहीं हुआ। उसके साथ वहीं व्यवहार किया गया जो मुख्य आरोपी के साथ किया जाता था। PPHin 322.2

हारून को अन्य लोगों की तुलना से बहुत अधिक आशीर्वाद और सम्मान प्राप्त था और इसी तथ्य के कारण उसका पाप अत्यन्त जधन्य माना गया। वह ‘परमेश्वर का पवित्र’ (भजन संहिता 106:16)हारून था जिसने मूर्ति बनाई और भोज की घोषणा की। यह वही था जिसे मूसा के प्रवक्‍ता के तौर पर नियुक्त किया गया था, और इसके सन्दर्भ में परमेश्वर ने गवाही दी थी, “वह बोलने में निपुण है” (निर्गमन 4:14)और हारून मूर्तिपूजकों को उनके स्वर्ग को ललकारने वाले कार्य पर रोक लगाने में असफल रहा था। परमेश्वर ने जिसके द्वारा मिम्रियों और उनके देवताओं पर दण्डाज्ञा भेजी थी, उसी ने अविचलित हुए ढली हुईं आकति के सामने यह घोषणा सुनी, “हे इज़राइल तेरा ईश्वर जो मुझे मिस्र देश से छुड़ा लाया है, वह यही है।” ये वही था जो मूसा के साथ पर्वत पर था, और वहाँ उसने परमेश्वर की महिमा का दर्शन किया था, और जिसने देखा था कि महिमा के उस प्रदर्शन में ऐसा कुछ नहीं था जिसे मूर्ति में ढाला जा सके-वह हारून ही था जिसने उस महिमा को एकबछड़े के स्वरूप में बदल दिया। जिसे परमेश्वर ने, मूसा की अनुपस्थिति में लोगों का शासन सौंपा था, वह उनके अतिक्रमण स्वीकृत करते पाया गया। व्यवस्थाविवरण 9:20में लिखा है, “और यहोवा हारून से इतना कोपित हुआ कि उसने उसका भी सर्वनाश करना चाहा ।” लेकिन मूसा की सच्ची मध्यस्थता के उत्तर में उसकाप्राण नहीं लिया गया, और अपने महापाप के लिये प्रायश्चित करने और दीन होने पर उसे परमेश्वर की कृपा-दृष्टि पुनः प्राप्त हुई। PPHin 322.3

यदि हारून में सत्य के लिये खड़े रहने का, परिणामों का विचार किये बिना, साहस होता, तो वह इस अधर्म को रोक सकताथा। यदि उसने अटल रूप से परमेश्वर के प्रति अपनी स्वामिभक्ति को बरकरार रखा होता, यदि उसने लोगों को सिने के खतरों का हवाला दिया होता और उन्हें परमेश्वर के साथ, उसकी आज्ञाओं का पालन करने की उनकी पवित्र प्रतिज्ञा का स्मरण कराया होता तो इस बुराई पर रोक लगाई जा सकती थी। लेकिन लोगों की इच्छाओं के साथ उसकी सहमति ने और उस निश्चल आश्वासन ने जिससे वह उनकी योजना को कार्यान्वित करने के लिये आगे बड़ा, लोगो को पाप में इतनी दूर जाने को प्रोत्साहित किया, जितनी दूर उनके मन पहले कभी नहीं पहुँचे थे। PPHin 323.1

छावनी में लौटने पर जब मूसा ने उपद्रवियों का सामना किया, व्यवस्था की पवित्र पटियाओं को तोड़ने में उसके कोध के प्रदर्शन और उसके द्वारा लोगों की कठोर निनन्‍दा की तुलना लोगों द्वारा उसके भाई के सुखदायी वचन और गरिमापूर्ण आचरण से की और वे हारून के प्रति संवेदना जताने लगे। स्वयं को न्यायोचित ठहराने के लिये, हारून ने लोगों की माँगो के आगे समर्पण करने में अपने दोष के लिये उनको उत्तरदायी ठहराने का प्रयत्न किया, लेकिन इसके बावजूद वे उसकी भलमनसाहत और सहनशीलता की सराहाना से भर गए। लेकिन परमेश्वर वैसे नहीं देखता जैसे मनुष्य देखता है ।हारून की समर्पण कर देने वाली भावना और लोगों को सन्तुष्ट करने की अभिलाषा ने उसकी आखों को उस अपराध की जधन्यता के प्रति अन्धा कर दिया, जिसकी वह अनुमति दे रहा था। इज़राइल के पाप को अपना अधिकार देने में हारून के द्वारा की गईं कार्यवाही ने हजारों के प्राण ले लिये। कितनी भिन्‍न थी यह मूसा की कार्यवाही से जिसने परमेश्वर की दण्डाज्ञाओं का निष्ठापूर्वक पालन करते हुए यह बताया कि उसे समृद्धि या सम्मान या जीवन से अधिक प्रिय इज़राइल की खुशहाली थी। PPHin 323.2

परमेश्वर द्वारा दण्डित किये जाने वाले अपराधों में, उसकी दृष्टि में कोई भी अपराध इतना कष्टदायक नहीं है जितना कि वह अपराध जो दूसरों को बुरा करने के लिये प्रोत्साहित करता है। परमेश्वर चाहता है कि उसके सेवक अपराध को ईमानदारी से निन्दनीय ठहराकर अपनी निष्ठा को प्रमाणित करे, चाहे वह कृत्य कितना ही पीड़ाजनक हो। जिन्हें पवित्र कार्यभार से सम्मानित किया गया है वे निर्बल, आसानी से वश में आने वाले अवसरवादी नहीं हो सकते। उन्हें स्वयं की उन्नति को लक्ष्य नहीं बनाना है और ना ही अप्रिय कर्तव्यों को अस्वीकार करना है, वरन्‌ परमेश्वर के कार्य को अटल स्वाभिभक्ति क साथ करना है। PPHin 324.1

यद्यपि परमेश्वर ने इज़राइल का विनाश ना करके मूसा की प्रार्थना को स्वीकार किया, लेकिन उनके अधर्म को प्रतीकात्मक रूप से दण्डित होना था। यदि हारून द्वारा अनुमति प्राप्त लोगों की नियमहीनता और अवज्ञा को शीघ्र ही कूचला न जाता, तो वह दुष्टता को बढ़ावा देते और पूरे राज्य को असाध्य विनाश के घेरे में ले आते। इस बुराई को कठोरता से दूर करना था। छावनी के फाटक पर खड़े होकर मूसा ने लोगों से कहा, “जो कोई यहोवा की ओर है, वह मेरे पास आए ।” जो लोग अधर्म के साथ नहीं जुड़े थे, उन्हें मूसा के दाहिनी तरफ अपना स्थानलेना था ओर दोषी पर पश्चातापी थे उन्हें उसके बाई ओर स्थान लेना था। आज्ञा का पालन किया गया। यह पता चला कि लैवी के गोत्र ने मूर्तिपूजा में भाग नहीं लिया था। दूसरे गोत्रों में से बड़ी संख्या में वे थे जिन्होंने पाप तो किये थे, लेकिन अब पश्चताप प्रकट कर रहे थे। लेकिन मिश्रित जनसाधारण का एक बड़ा समूह, जिन्होंने बछड़े के निर्माण के लिये लोगों को उकसाया था, हठी होकर विद्रोह करते रहे। ‘इज़राइल के प्रभु परमेश्वर” के नाम से, मूसा ने अपने स्वयं को अलग रखा था, आज्ञा दी कि वे अपनी तलवारों से उन सब का घात करे जो अभी भी विद्रोह कर रहे थे।” और उस दिन तीन हजार के लगभग लोग मारे गए। पद, सगोत्रता या मित्रता को परे रखकर, दुष्टता के सरदारों को काट डाला गया, लेकिन जिन्होंने पश्चाताप किया और अपने आप को दीन किया उन्हें छोड़ दिया गया। PPHin 324.2

जिन्होंने दण्डाज्ञा के इस भयानक कार्य को सम्पन्न किया वे ईश्वरीय अधिकार से ऐसा कर रहे थे और स्वर्ग के राजा की दण्डाज्ञा को निष्पादित कर रहे थे। मनुष्य को सावधान रहना है कि किस प्रकार अपनी मानसिक अज्ञानता में, वह दूसरे मनुष्यों को दोषी ठहराता है और दण्डित करता है, लेकिन जब परमेश्वर उन्हें अधर्म सम्बन्धी दण्डाज्ञा का निष्पादन करने की आज्ञा देता है तो उसका आज्ञापालन अनिवार्य है। जिन्होंने इस पीड़ाजनक कृत्य को किया, उन्होंने इस प्रकार मूर्तिपूजा और विद्रोह के प्रति अपनी घृणा को प्रकट किया, और सच्चे परमेश्वर की सेवा में पूर्ण रूप से स्वयं को समर्पित किया। लैवी के गोत्र को विशेष सम्मान देकर उनकी सत्यनिष्ठा का आदर किया। PPHin 324.3

इजराइली देशद्रोह के अपराधी थे और वह भी उस राजा के विरूद्ध जिसने उन्हें बहुतायत से सुविधाएँ प्रदान की थी और जिसके प्रभुत्व का पालन करने के लिये उन्होंने स्वेच्छा सेस्वयं को प्रतिज्ञाबद्ध किया था। ईश्वरीय सत्ता को कायम रखने के लिये देशद्रोहियों का न्याय होना आवश्यक है। लेकिन यहाँ भी परमेश्वर की दया का प्रदर्शन हुआ। अपनी व्यवस्था को कायम रखते हुए, उसने सभी को विकल्प की स्वतन्त्रता और पश्चताप का अवसर प्रदान किया। केवल उन्हीं को काट डाला गया जो विद्रोह में बने हुए थे। PPHin 325.1

पड़ीसी देश के लिये, मूर्तिपूजा के प्रति परमेश्वर की अप्रसन्‍नता का साक्ष्य के तौर पर इस अपराध को दण्डित करना आवश्यक था। दोषियों को दण्डित करने से, मूसा को, परमेश्वर के साधन के रूप में, अपराध के विरूद्ध लिखित में एक गम्भीर व सार्वजनिक प्रतिवाद छोड़ना था। तदोपरान्त, यदि इज़राइली अपने पड़ौसी गोत्रों द्वारा की जाने वाली मूर्तिपूजा की निनन्‍दा करते, तो उनके शत्रु पलटकर उन्हीं पर यह आरोप लगाते कि जिन लोगों ने दावा किया कि यहोवा उनका परमेश्वर है, उन्होंने ही बछड़ा बनाकर होरेब में उसकी उपासना की। फिर, हालाँकि, वे इस अपमानजनक सत्य को स्वीकार करने के लिये विवश हो जाते, लेकिन अपराधियों के भयानक अंत की ओर संकेत करके, वे प्रमाणित कर सकते थे कि ना तो उनके पाप अनुमोदित थे और न ही उनसे छुटकारा मिला था। PPHin 325.2

न्याय के समान प्रेम की भी यहीं माँग थी कि पाप के लिये दण्डाज्ञा दी जाए। परमेश्वर अपने लोगों का अभिभावक व प्रभु है ।जो विद्रोह करने पर अड़े रहते है, वह उन्हें समाप्त कर देता है।।कैन के प्राण न लेकर, परमेश्वर ने जगत को उद्धाहरण दिया कि पाप को बिना दण्डित किये जाने देने का परिणाम क्‍या होता। उसके द्वारा दी गई शिक्षा और उसकी जीवन शैली ने उसके वंशजो पर जो प्रभाव डाला, उससे भ्रष्टाचार की ऐसी अवस्था आ गईं कि समस्त संसार का जल-प्रलय द्वारा विनाश अनिवार्य हो गया। जल-प्रलयपूर्व के वासियों का इतिहास इस बात को प्रमाणित करता है कि पापी के लिये चिरायु वरदान नहीं हैं, परमेश्वर की श्रेष्ठ सहनशीलता ने उनकी दुष्टता का दमन नहीं किया। जितने अधिक समय के लिये मनुष्य जीवित रहे, उतने ही अधिक भ्रष्ट वे होते हुए। PPHin 325.3

सिने पर अधर्म के साथ भी ऐसा ही हुआ। यदि पाप को शीत्रता से दण्डित न किया जाता तो, यही परिणाम फिर से देखने को मिलते। पृथ्वी उतनी ही भ्रष्ट हो जाती जितनी कि नूह के दिनों में थी। यदि इन अपराधियों को छोड़ दिया जाता, तो कैन के प्राण न लेने के फलस्वरूप उत्पन्न बुराईयों से अधिक बुराईयाँ जन्म लेती। यह परमेश्वर की करूणा ही थी कि लाखों पर दण्डाज्ञा भेजने की आवश्यकता को रोकने के लिये, उसने हजारों को कष्ट उठाने दिया। बहुतों को बचाने क लिये उसे कुछ को दण्ड देना था। और फिर, परमेश्वर के प्रति निष्ठा का परित्याग करके, वे ईश्वरीय सुरक्षा गवाँ चुके थे, निस्सहाय हो गए थे जिससे सम्पूर्ण राज्य शत्रुओं की शक्ति के सामने बेबस हो गया था। यदि बुराई को तत्काल दूर न किया गया होता, तो वे शीघ्र ही अपने असंख्य और सशक्त शत्रुओं का शिकार बन गए होते। यह इज़राइल की भलाई के लिये आवश्यक था, और आने वाली पीढ़ियों के लिये सबक था कि अपराध को तत्काल दण्डित करना चाहिये। स्वयं पापियों के लिये यह कम करूणा नहीं थी किउनके पापमय किया-कलापों में उनका जीवन घटा दिया जाए। यदि उनके प्राण न लिये जाते तो जिस भावना से प्रेरित होकर उसने परमेश्वर के विरूद्ध उपद्रव किया, वही भावना उनके आपसी क्लेश और घृणा में प्रकट होती, और अनन्त: उन्होंने एक दूसरे का सर्वनाश कर दिया होता। संसार के प्रति प्रेम के कारण, इज़राइल के प्रति प्रेम में, और पापियों के प्रति भी प्रेम के कारण, अपराध को शीघ्रता और भयानक कठोरता से दण्डित किया गया। PPHin 326.1

जब लोगों को उनके अपराध की घोरता को देखने के लिये जागृत किया गया, सम्पूर्ण छावनी भय से व्याप्त हो गईं। प्रत्येक अपराधी को मृत्यु के घाट उतार दिये जाने का भय होने लगा। उनकी पीड़ा पर तरस खाकरमूसा ने उनके लिये परमेश्वर से विनती करने का आश्वासन दिया। उसने कहा, “तुम लोगों ने भंयकर पाप किया है। किन्तु अब मैं यहोवा के पास ऊपर जाऊंगा, सम्भव है कि मैं तुम्हारे पाप का प्रायश्चित कर सकूँ “। वह गया और परमेश्वर के सम्मुख अपने पापों का अंगीकार करते हुए उसने कहा, “इन लोगों ने सोने का देवता बनाकर महापाप किया है। फिर भी तू उनका पाप क्षमा कर-; नहीं तो मेरे नाम को उस पुस्तक में से काट दे, जो तूने लिखी है। यहोवा ने मूसा से कहा, “जिसने मेरे विरूद्ध पाप किया है, उसी का नाम मैं अपनी पुस्तक में से काट दूँगा। अब तू जाकर उन लोगों को उस स्थान में ले चल जिसकी चची मैंने तुझे से की थी, देख, मेरा दूत तेरे आगे-आगे चलेगा। परन्तु जिस दिन मैं दण्ड देने लगूँगा उस दिन उनको इस पाप का भी दण्ड दूँगा।” PPHin 326.2

मूसा की प्रार्थना में हमारा ध्यान स्वर्गीय अभिलेखों की ओर ले जाया जाता है जिनमें सभी मनुष्यों के नाम लिखे हुए हैं और उनके अच्छे व बुरे काम निष्ठापूर्वक पंजीकृत हैं। जीवन की पुस्तक में उन सब के नाम है जिन्होंने परमेश्वरकी सेवकाई का कार्यभार ग्रहण किया। यदि इनमें से कोई भी उससे मुहँ मोड़ लेता है और जो हठीला होकर पाप में बना रहता है और अन्त में परमेश्वर के पवित्र आत्मा के प्रभाव के प्रति कठोर हो जाता है, उसका नाम न्याय होने के समय जीवन की पुस्तक में से मिटा दिया जाएगा और स्वयं विनाश के प्रति समर्पित होगा। मूसापापी के अन्त को भली-भांति जानता था, फिर भी यदि इज़राइल के लोगों को परमेश्वर द्वारा अस्वीकार किया जाना था, तो उसकी मनोकामना थी कि उनके साथ उसका नाम भी मिटा दिया जाए। वह परमेश्वर की दण्डाज्ञा को उन पर आते नहीं देख सकता था, जिन्हें इतने अनुमग्रहपूर्वक छुटकारा दिलाया गया था। मूसा का इज़राइलियों के लिये मध्यस्थता मसीह की पापियों के लिये मध्यस्थता का उदाहरण है। लेकिन परमेश्वर ने मूसा कोआज्ञा उललघंन करने वालों का अपराधबोध सहन करने की अनुमति नहीं दी जैसा कि मसीह ने सहा था। उसने कहा, “जिसने मेरे विरूद्ध पाप किया है उसका नाम मैं अपनी पुस्तक में से काट दूँगा। PPHin 327.1

अत्यन्त दुख के साथ लोगों ने अपने मरे हुओं को मिट्टी दी। तीन हज़ार लोग तलवार से मारे गए और उसके बाद छावनी में महामारी फैल गई, और अब उनके पास सन्देश आया कि उनके आगे की यात्रा में ‘पवित्र उपस्थिति! उनके साथ न होगी। यहोवा ने घोषणा की, “में तुम्हारे साथ नहीं जाऊंगा, तुम लोग बड़े हठी हो, यदि मैं तुम्हारे साथ गया तो ऐसा न हो कि मैं मार्ग में तुम्हारा अन्त कर दूँ।” और उन्हें आज्ञा दी गई, “अब अपने गहनों को शरीर से अलग कर दो, ताकि में जान सके कि तुम्हारे साथ क्‍या करना है।” पूरी छावनी में शोक मनाया गया। पश्चताप और दीनता में “इज़राइल के लोगों ने होरेब पर्वत पर अपने सभी गहने उतार लिये।” PPHin 327.2

पवित्र निर्देश के अनुसार, जो तम्बू आराधना करने के लिये एक अस्थायी स्थान था, उसे “छावनी से बाहर वरन दूर” खड़ा कराया गया। यह एक और प्रमाण था कि परमेश्वर ने उनके बीच से अपनी उपस्थितिको हटा लिया था। वह स्वयं को मूसा पर प्रकट करता लेकिन ऐसे लोगों पर नहीं। इस आक्षेप को व्यग्रता से अनुभूति हुई और अन्तरात्मा से प्रताड़ित जन-समूह को यह बहुत बड़ी आपदा का पूर्वाभास प्रतीत हुआ। क्‍या मूसा को परमेश्वर ने छावनी से इसलिये अलग नहीं किया कि वह उन्हें पूरी तरह से नष्ट कर दे? लेकिन उन्हें पूरी तरह बिना आशा के नहीं छोड़ा गया। तम्बू को छावनी के बाहर खड़ा किया गया, लेकिन मूसा उसे ‘कलीसिया का तम्बूकहता था। जो भी वास्तव में पश्चतापी थे, और परमेश्वर के पास लौटने के इच्छुक थे, उन्हें निर्देश दिया गया कि वे मिलाप वाले तम्बू के पास जाकर अपने पापों का अंगीकार करें और उससे दया की याचना करें। जब वे छावनी में लौट आते थे तब मूसातम्बू के भीतर प्रवेश करता । अत्यन्त दुखदायी उत्सुकता से वे किसी चिन्ह की बाट जोहते जो उन्हें बता सके कि उनके पक्ष में की गई मूसा की मध्यस्थता स्वीकार की गई। यदि परमेश्वर मूसा से भेंट करना स्वीकार कर लेता तो वे पूरी तरह नष्ट न किये जाने की आशा कर सकते थे। जब बादल का स्तम्भ नीचे उतरा, और तम्बू के द्वार पर आकर ठहरा तो लोग प्रसन्नता से रो पड़े और उन्होंने ” उठकर अपने अपने डेरे के द्वारा पर से दण्डवत किया। PPHin 328.1

मूसा उन लोगों के अन्धेपन और भ्रष्टता को भली-भांति जानता था, जिन्हे उसकी देखरेख में रखा गया था, वह कठिनाईयों को भी जानता था जिनका उसे सामना करना था। लेकिन उसे अनुभव हो गया था लोगो को नियन्त्रण में करने के लिये उसे परमेश्वर की सहायता की आवश्यकता थी। उसने परमेश्वर की उपस्थिति के आश्वासन के लिये और परमेश्वर की इच्छा के स्पष्ट अभिव्यक्ति के लिये विनती की, “सुन तू मुझसे कहता है, ‘इन लोगों को ले चल, परन्तु यह नहीं बताया कि तू मेरे संग किसको भेजेगा। तब भी तू ने कहा, ‘तेरा नाम मेरे चित्त में बसा है, और तुझ पर मेरे अनुग्रह की दृष्टि है। और अब यदि मुझ पर तेरे अनुग्रह की दृष्टि हो,तो मुझे बता दे कि तेरा निर्णय क्‍या है, जिससे जब मैं तेरा ज्ञान पारऊँ तब तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर बनी रहे। फिर यह भी ध्यान रख कि यह जाति तेरी प्रजा है।” PPHin 328.2

उसे उत्तर मिला, “मैं स्वयं तेरे साथ चलूँगा और तुझे विश्राम दूँगा। लेकिन मूसा अभी भी सन्तुष्ट नहीं हुआ। उसके मन में, परमेश्वर द्वारा इज़राइल को कठोर और अपश्चतापी ही रहने देने से, भंयकर परिणामों की अनुभूति हावी हो रही थी। उसके लिये यह असहनीय था कि उसके हित को उसके भाई बन्धुओं के हित से अलग कर दिया जाए, और उसने प्रार्थना की कि लोगों को परमेश्वर की कृपा-दृष्टि पुनः प्राप्त हो जाए, और उसकी उपस्थिति का प्रतीक उनकी यात्रा में अगुवाई करता रहे। उसने कहा, “यदि तू आप न चले, तो हमें यहाँ से आगे न ले जा। यह कैसे जाना जाए कि तेरे अनुग्रह की दृष्टि मुझ पर और अपनी प्रजा पर है? क्‍या इससे नहीं कि तू हमारे संग-संग चले? जिससे मैं और तेरी प्रजा के लोग पृथ्वी भर के सब लोगों से अलग ठहरे। PPHin 328.3

प्रभु ने मूसा से कहा, “मैं यह काम भी, जिसकी चर्चा तूने की है, करूँगा, क्योंकि मेरे अनुग्रह की दृष्टि तुझ पर है और तेरा नाम मेरे चित्त में बसा है।” नबी ने फिर भी विनती करना नहीं छोड़ा। प्रत्येक प्रार्थना सुनी गई थी लेकिन मूसा परमेश्वर की कृपा-दृष्टि के श्रेष्ठतर प्रतीकों का प्यासा था। उसने अब वह निवेदन किया जो अब तक किसी मनुष्य ने नहीं किया था, “कृपया, मुझे अपनी महिमा दिखा। PPHin 329.1

परमेश्वर ने उसके निवेदन को, दुस्साहसपूर्ण मानकर, निन्दा नहीं की, बल्कि ये अनुग्रहपूर्ण शब्द कहे, “में तेरे सम्मुख होकर चलते हुए तुझे अपनी सारी भलाई दिखाऊंगा।” परमेश्वर की अनावृत महिमा का, कोई भी मनुष्य अपनी नश्वर अवस्था में दर्शन करके जीवित नहीं रह सकता, लेकिन मूसा को आश्वस्त किया गया कि वह उतनी पवित्र महिमा को देख पाएगा जितनी वह सहन कर सकता था। उसे फिर से पर्वत के शिखर पर बुलाया गया, फिर उस हाथ ने जिसने जगत की सृष्टि की, उस हाथ ने जो, ‘पर्वतों को अचानक हटा देता है, और उन्हें पता भी नहीं चलता’ (अय्युब 9:5) विश्वास के महापुरूष, मिट्टी के इस मानव को उठाकर चटटान की एक दरार में रख दिया, और परमेश्वर का तेज उसके सामने से होकर निकल गया। PPHin 329.2

यह अनुभव-अन्य सब प्रतिज्ञाओं से बढ़कर,कि परमेश्वर की उपस्थिति उसके साथ होगी-मूसा के लिये, उसके सामने जो काम था, उसमें सफलता प्राप्त करने का आश्वासन था, और एक सामरिक मार्गदर्शक या नीतिज्ञ के रूप में उसकी समस्त उपलब्;धियों से या मिस्र में प्राप्त सारी शिक्षा से कही अधिक महत्वपूर्ण था। परमेश्वर की स्थाई उपस्थिति का स्थान कोई भी सांसारिक शक्ति या कौशल या ज्ञान नहीं ले सकता। PPHin 329.3

आज्ञा उल्‍लघंन करने वालों के लिये परमेश्वर के हाथों में पड़ जाना एक भयावह अनुभव होता है, लेकिन मूसा सनातन परमेश्वर की उपस्थिति में अकेला खड़ा रहा, और वह डरा हुआ नहीं था, क्‍योंकि उसका चित्त उसके सृष्टिकर्ता की इच्छा के अनुकूल था। भजन संहिता 66:48में कहा गया है, “यदि में मन में अनर्थ की बात सोचता तो प्रभु मेरी न सुनता।” लेकिन “यहोवा के भेद को वही जानते हैं जो उससे डरते हैं, और वह अपनी वाचा उन पर प्रगट करेगा।” भजन संहिता 25:14 PPHin 330.1

प्रभु ने स्वयं घोषणा की, “यहोवा, यहोवा, ईश्वर दयालु और अनुग्रहकारी, कोप करने में धीरजवान, और अति करूणामय और सत्य, हजारों पीढ़ियों तक निरन्तर करूणा करने वाला, अधर्म और अपराध और पाप को क्षमा करने वाला है, परन्तु दोषी को वह किसी प्रकार निर्दोष न ठहराएगा ।” PPHin 330.2

“तब मूसा ने तुरन्त प्थ्वी की ओर झुककर दण्डवत किया।” उसने फिर से विनती की कि परमेश्वर उसके लोगों के पापों को क्षमा करे और उन्हें अपनी मीरास का भागीदार बनाए। उसकी प्रार्थना स्वीकार की गईं। परमेश्वर ने उदारतापूर्वक इज़राइल पर अपनी कृपा-दृष्टि पुनः रखने की प्रतिज्ञा की और उनके लिये ऐसे चमत्कार करेगा जैसे कि पहले ‘पृथ्वी पर और सब जातियों में’ कभी नहीं हुए। PPHin 330.3

चालीस दिन और चालीस रात मूसा पहाड़ में रहा, और पहली बार की तरह, इस समय के दौरान भी उसे आश्चर्यजनक तरह से जीवित रखा गया। उसके साथ अन्य किसी मनुष्य को ऊपर जाने की अनुमति नहीं दी गईं, और ना ही उसकी अनुपस्थिति में किसी को पहाड़ के पास जाने की अनुमति थी। परमेश्वर की आज्ञानुसार, उसने पत्थर की दो पटियाएँ तैयार की थी, और उन्हें अपने साथ पहाड़ पर ले गया था, और प्रभु ने दोबारा “पत्थर की पटियाओं पर वाचा के वचन, दस आज्ञाएँ लिखी ।” (परिशिष्ट नोट 5 देखिये) PPHin 330.4

उस लम्बे समय के दौरान जो मूसा ने परमेश्वर के साथ संपर्क में बिताए, उसकी मुखाक॒ति में ईश्वरीय उपस्थिति का तेज प्रतिबिम्बित होता था, जब मूसा पहाड़ से उतर रहा था, वहनहींजानता था किउसका चेहरा एक तेज प्रकाश से कॉतिमान था। एसे हीप्रकाश नेस्तिफनुसके चेहरे को उज्जवल किया था जब उसे न्यायियों के सम्मुख लाया गया, और “तब सब लोगों ने जो सभा में बैठे थे, उस पर दृष्टि गड़ाई तो उसका मुख स्वर्गदूत का सा देखा।” हारून और अन्य लोग मूसा से पीछे हट गए, और “वे उसके पास आने से डर रहे थे।” उनकी हिचकिचाहट और भय को देखकर, लेकिन कारण से अनभिज्ञ, उसने उन्हें पास आने को कहा। उसने परमेश्वर की सुलह सम्बन्धी प्रण उनके सामने रखा और उन्हें परमेश्वर की कृपा-दृष्टि पुन:प्राप्त होने का आश्वासन दिया। उन्होंने उसकी वाणी में विनती और प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं पाया और आखिर में एक ने उसके पास आने का साहस किया। श्रद्धा और भय के कारण बिना कुछ कहे, उसने मूसा के चेहरे की ओर संकेत किया और फिर स्वर्ग की ओर। महान अगुवे ने उसके अभिप्राय को समझ लिया। अपने सचेतन अपराधबोध में, ईश्वरीय अप्रसन्‍नता के आभास के कारण वे उस अलौकिक प्रकाश को सह न सके, जो, यदि वे परमेश्वर के प्रति आज्ञाकारी होते, उन्हें आनन्द से भरपूर कर सकता था। अपराध में डर होता है। जिसमें पाप नहीं होता वे स्वर्ग से प्रवाहित प्रकाश से छुपने की इच्छा नहीं करते। PPHin 330.5

मूसा को उन्हें बहुत कुछ बताना था, और उनके डर पर दया करके, उसने अपने चेहरे पर एक आवरण डाल लिया, और जब वह यहोवा से बात करने के बाद छावनी में लौटता तब वह ऐसा ही करता था। PPHin 331.1

इस तेजस्विता से परमेश्वर, मसीह के माध्यम से प्रकट की गईं सुसमाचार की महिमा और इज़राइल अपनी व्यवस्था की उत्तम और पवित्र प्रतिष्ठा की छाप छोड़ना चाहता था। जब मूसा पर्वत पर था, परमेश्वर ने उसे केवल वे पत्थर की पटियाएं, जिन पर व्यवस्था लिखी थी, ही नहीं दी वरन्‌ उसे उद्धार की योजना भी बताई। उसने देखा कि यहूदी काल के सभी चिन्हों और प्रतिरूपों के द्वारा मसीह के बलिदान को दर्शाया गया था, और वह कलवरी से प्रवाहित अलौकिक प्रकाश ही था जो परमेश्वर की व्यवस्था की महिमा से थोड़ा सा भी कम नहीं था, जिसने मूसा के चेहरे को इतना तेजस्व बनाया। वहईश्वरीय प्रकाश उस दंडोन्मुक्ति की महिमा का प्रतीक था जिसका प्रत्यक्षमध्यस्थ मूसा था, जो उस एकल सच्चे रक्षक का प्रतिनिधि था। PPHin 331.2

मूसा के चेहरे पर प्रतिबिम्बित महिमा, परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करने वाले लोगों के लिये मसीह की मध्यस्थता के माध्यम से प्राप्त होने वाली आशीषों का उदाहरण है। वह प्रमाणित करती है कि परमेश्वर के साथ जितना घनिष्ठ हमारा सम्बन्ध होगा, और उसकी अपेक्षाओं का ज्ञान जितना स्पष्ट होगा, उतनी ही सम्पूर्णता से हम ईश्वरीय स्वरूप के सदृश होंगे और अधिक तत्परता से हम पवित्र स्वभाव के भागीदार हो सकेंगे। PPHin 331.3

मूसा मसीह का प्रतिरूप था। जैसे इज़राइल के मध्यस्थ ने अपने चेहरे को ढांक लिया, क्‍योंकि लोग उसकी महिमा को देख पाने को सहन नही कर सकते थे, इसी प्रकार मसीह ने उस ईश्वरीय मध्यस्थ ने पृथ्वी पर आने पर अपने ईश्वरत्व को मनुष्यत्व में ढॉँक लिया। यदि वह स्वर्ग की धवलता में आवृत होकर आता तो वह मनुष्यों के पास उनकी पापमय अवस्था में नहीं पहुँच सकता था। वे उसकी उपस्थिति के तेज को सहन नहीं कर सकते थे। इस कारण उसने स्वयं को दीन किया और उसे “पापमय शरीर की समानता” में बनाया गया, ताकि वह पतित जाति तक पहुँच सके, और उन्हें उठा सकें। PPHin 332.1