मसीही सेवकाई

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अध्याय — 8
मसीही सेना संगठित करना

संगठन बेहद जरूरी

समय कम है और हमें अपनी सेना तैयार करना चाहिये, एक बहुत बड़ा काम को अंजाम देने के लिये। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 9:27) ChsHin 95.1

छोटे समूहों का गठन, एक मसीही प्रयास का आधार मेरे सामने पेष किया गया है, उसके द्वारा जो कभी गलती नहीं करता। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 7:21, 22) ChsHin 95.2

हर एक कलीसिया में कइ मजबूत संगठित समूह हों, उन कामगारों के जो कलीसिया की भलाई के लिये परिश्रम करें। (द रिव्यू एण्ड हैरल्ड- 29 सितम्बर, 1891) ChsHin 95.3

हर एक षहर में एक प्रभु की सेवा का एक संगठित समूह होना चाहिये जो अनुशासन से पूर्ण हो, एक या दो नहीं किन्तु कम से कम बीस-बीस लोगों का एक समूह हो जो काम करने को तैयार रहें। (द जनरल कॉन्फ्रेंस डेली बुलेटिन- 30 जनवरी 1893) ChsHin 95.4

हमारी कलीसिया में ऐसे संगठित लोगों का समूह बनाया जाये, जिसमें अलग-अलग समूह के लोग एक जुट होकर मछुआरों की तरह मछलियाँ पकड़ने का परिश्रम करें तथा आत्माओं को प्रभु के खत्ते में इकट्ठा करें। उन्हें संसार के भ्रश्ट लोगों में से लोगों को चुन कर प्रभु यीशु के प्रेम से षद्ध होने और बचाये जाने के लिये ले आयें। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 7:21) ChsHin 95.5

प्रभु यीशु की कलीसिया पष्थ्वी पर सुसमाचार प्रचार करने के उद्देष्य से स्थापित की गई थी इसलिये प्रभु का मकसद था कि पूरी कलीसिया अपनी सारी ताकत कम या अधिक, गरीब या अमीर सब लोगों तक प्रभु को सच्चाई का संदेश पहुँचा सके। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 6:29) ChsHin 95.6

यदि कलीसिया में अधिक सदस्य है तो उन्हें अलग-अलग समूह में विभाजित कर कलीसिया के काम के लिये ही नहीं बल्कि अविष्वासियों को सुसमाचार सुनाने के लिये तैयार करें। एक के बदले दो या तीन लोग हों जो सच्चाई जानते हैं, उन्हें एक साथ मिलकर काम करना चाहिये। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 7:22) ChsHin 96.1

यदि अनुशासन और व्यवस्था युद्ध क्षेत्र में सफलता पूर्वक कामयाब होने के लिये जरूरी है तो ठीक इसी तरह जिस संघर्श में हम मसीही संलग्न हैं, जिसमें हमें सफल होना है जो ज्यादा महत्वपूर्ण और अपने आप में ज्यादा जरूरी है। जिसमें विरोधी ताकत उतनी ही प्रभावशाली तरीके से युद्ध क्षेत्र में तैनात हैं। यह संघर्श जिसमें हम सब संलग्न हैं क्योंकि उसमें परमेश्वर की अनंत काल की रूचि दांव पर लगी है, उसे जीतना अवश्य है। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 1:649) ChsHin 96.2

परमेश्वर नियम एवं व्यवस्था का परमेश्वर है। सभी वस्तुयें परमेश्वर की व्यवस्था नियम एवं क्रम अनुसार है। सम्पूर्ण जवाबदारी एवं आज्ञाकारिता स्वर्गीय सेना द्वारा चलाई जाती है। सफलता केवल सही योजना क्रम तथा उसके अनुसार होने वाले कार्यों पर निर्भर है। परमेश्वर आज भी सभी से नियम एवं क्रमबद्धता से कार्य करना चाहता है, जैसे वह इजराइल के समय में किया करता था। जितने भी आज प्रभु के लिये काम करना चाहते हैं उनमें कार्य के प्रति समझदारी, सावधानी रखने और कोई काम जल्दबाजी में नहीं करना है। वह अपना काम सही तरीके एवं भरोंसे से करवा लेगा। और उस काम पर उसकी छाप लगी होगी, यह बताने के लिये कि प्रभु यही चाहता है। (पेट्रीयाक्स एण्ड प्रोफेट्स- 376) ChsHin 96.3

कलीसिया में सभी काम सुनिश्चित योजना अनुसार होना चाहिये तथा सदस्यों को पता होना चाहिये कि प्रभु की सच्चाई की रौशनी लोगों तक कैसे पहुंचाई जा सके और इस तरह वे अपना विश्वास भी मजबूत कर सकें और अपना ज्ञान भी बड़ा सकें। जैसे ही वे अपना विश्वास जो उन्होंने प्रभु से पाया है, दूसरों में बांटते हैं, उनका भरोसा और अधिक बढ़ जाता है और वे पक्के हो जाते है। एक सक्रिय कलीसिया ही जीवित कलीसिया है, हमें भी जीवित पत्थर की तरह रचा गया है और हर एक चट्टान को अपने विश्वास की ज्योति चमकाना है। हर एक मसीही की एक किमती पत्थर से तुलना की गई है जो परमेश्वर की महिमा की ज्योति ग्रहण करता और फिर दूसरों पर चमकाता है। (टेस्टमनीज फॉर द चर्च- 6:435) ChsHin 96.4