मसीही सेवकाई

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अध्याय — 1
परमेश्वर की सेवा की बुलाहट

मानवीय माध्यमों पर आश्रित

पाप में गिरी हुई मानव जाति को बचाने के लिये परमेश्वर, मनुश्यों में से ही अपना प्रतिनिधि होने के लिए चुनता है, जो मनुश्य जाति को बचाने के लिये तत्पर होते हैं। वह स्वर्गदूतों को नहीं चुनता जो ‘पाप’ में गिरे ही नहीं । यीशु मसीह ने मानव रूप लिया ताकि वह मानव-जाति को बचा लें। पूरे संसार को बचाने के लिये एक स्वर्गीय-मानवीय उद्धारकृकृकृकृ की जरूरत थी। प्रभु यीशु जो आसानी से मिलने वाला प्रभु है, उसके बारे में लोगों को बताने के लिए स्त्री व पुरूशों को यह काम सौंपा गया है। (द एक्ट ऑफ अपॉसल्स, 134) उस अद्भुत दष्श्य के बारे में सोचो जहाँ स्वर्ग का वह सिंहासन जो चुने हुये बारह गोत्रों से घिरा हुआ है, वह मनुश्यों को उनके काम के आधार पर अलग-अलग करने को तैयार है। मनुश्य जो स्वयं अपना उद्धार करने में असमर्थ, अयोग्य व निर्बल है। उस के लिए प्रभु अपनी आत्मिक सामर्थ और वचन जो सत्य है के द्वारा वह काम किया है, जो मनुश्य को उद्धार तक पहुँचाने और उसे उद्धार पाने के योग्य बनाता है। (द एक्ट्स ऑफ द अपॉसल्स-18) ChsHin 9.1

“पुरूशों को जोपा भेजो और शिमौन को बुलवा भेजो” इस प्रकार के बुलावे से परमेश्वर ने इस बात का सबूत सुसमाचार प्रचार करने तथा अपनी संगठित कलीसिया के लिये दिया। करनेलियुस को क्रस की कहानी सुनाने के लिये किसी स्वर्गदूत को नियुक्त नहीं किया गया था। बल्कि एक व्यक्ति को जो सेना में अधिकारी (शतपति) था, उसे चुना गया कि वह यीशु मसीह के क्रूस पर बलिदान होने तथा फिर ही उठने की बातों को बताता है। (द एक्ट ऑफ अपॉसल्स- 134) ChsHin 9.2

“एक स्वर्गदूत को फिलीप्पुस के पास भेजा गया था कि वह दूथियोपियन को सकुसमाचार प्रचार करें। यह काम वह स्वर्गदूत खुद भी कर सकता था, किन्तु परमेश्वर का काम करने का तरीका यह नहीं है। यह उसकी ही योजना है कि एक मनुश्य ही दूसरे मनुश्य को जीविते परमेश्वर के बारे में गवाही दें। (द एक्ट ऑफ अपॉसल्स- 109) ChsHin 10.1

प्रेरित ने कहा, “हमारे पास ये धन मिट्टी के बर्तनों में है, कि प्रभु की सामर्थ हम में प्रगट हो न की हमारी अपनी सामर्थ। परमेश्वर अपने सुसमाचार का प्रचार स्वर्गदूतों के द्वारा सारे जगत में करवा सकता था, किन्तु ऐसा करना परमेश्वर की योजना में षामिल नहीं है। वह मनुश्य को ही चुनता है कि वह स्वयं ही इस काम को करे, जो खुद ही इस पापी संसार में घिरा हुआ है। वह एक मानव को ही अपना काम करने के लिए ठहराता है। इसलिये प्रेरित लिखता है। ChsHin 10.2

“कि सुसमाचार का धन मिट्टी के बर्तनों में है।” ChsHin 10.3

यह सुसमाचार का वचन रूपी बेशकिमती धन मानव रूपी मिट्टी से बने बर्तन में रखा है कि मनुश्यों के द्वारा ही उसकी आशिश पूरे संसार में पहुँचने पाए। इन्हीं मनुश्यों के द्वारा परमेश्वर की महिमा पूरे जगत के अंध कार में ज्योति के रूप में चमके। इस उद्धार सेवकाई से वे संसार के पापी और जरूरत मंद लोगों को पुभु यीशु के क्रूस की ओर लायें जो उन्हें पाप से छुटकारा और सारी वस्तुयें देता है, जिनकी उन्हें जरूरत है। और इन सब कामों के द्वारा से केवल एक सर्वोच्च परमेश्वर की महिमा, तारिफ और प्रशंसा करें। जो सर्वोपरि है और पूरी कायनात में एक ही परमेश्वर है। (द एक्ट ऑफ अपॉसल्स- 330) ChsHin 10.4

प्रभु यीशु मसीह का यह उद्देश्य था कि उसके स्वर्ग में उठा लिये जाने के बाद भी उसके चेले उसके प्रचार कार्य को जारी रखें जो उसने प्रारंभ किया था। क्या एक मनुश्य दूसरे मनुश्य को जो अंधकार में बैठा है, उसे सुसमाचार की रौशनी में लाने के लिये अपनी विशेष रूचि नहीं दिखायेगा ? कुछ लोग हैं जो इस काम को पष्थ्वी के छोर तक पहुँचाने में अपनी इच्छा से लगे हुए हैं। वे वचन की रोशनी हरेक व्यक्ति को देना चाहते हैं, किन्तु परमेश्वर चाहता है कि हर एक व्यक्ति जो खुद सच्चाई से प्रेम करता है। उसके खातिर सच्चाई को हर एक व्यक्ति तक पहुँचाने का काम करे। यदि हम सुसमाचार फैलाने के काम को अपनी इच्छा से करने के लिये अपनी इच्छा से चाहे उसके लिये कैसा भी बलिदान देने के लिये तैयार है। ताकि जो आत्मायें मरने पर है उन्हें बचाया जा सके। यदि हम यह नहीं करते है तो हम कैसे इस योग्य ठहराये जायेंगे, कि परमेश्वर के राज्य में प्रवेश कर सके? (टेस्टमनीज फॉर द चर्च 9:103) ChsHin 10.5

परमेश्वर अपनी समझ से उन लोगों को आपस में मिलाता है, जो सच्चाई की खोज में एक दूसरे से जुड़े रहते हैं, क्योंकि वे सत्य जानते हैं। ये सब परमेश्वर की योजना है कि जिन्हें सत्य की ज्योति प्राप्त हो गई है, वे उन लोगों को बाँटे जो अभी भी सत्य से अंजान हैं और अंधकार में है। मानवता, जिसे सब तरह की भरपूरी जो ज्ञान/बुद्धि ईश्वर के सर्वोच्च भण्डार से मिली है, उसे ही प्रचार काम करने के लिये ठहराया है, एक कार्यशील साधन जिसके द्वारा सुसमाचार की जीवन बदल देने वाली षक्ति लोगों के मन और हृदयों को बदल कर रख देती है।(द एक्ट ऑफ अपॉसल्स- 134) ChsHin 11.1

परमेश्वर हमारी सहायता के बिना भी लोगों को बचाने और पापियों को पाप से छुटकारा देने का काम कर सकता है, किन्तु केवल इसलिये कि वह चाहता है कि हम मनुश्यों में मसीह का चरित्र, उसके भलाई के काम करने की आदत हो, इसलिये हम उसके इस काम को मिलकर करें। मसीह हर एक आत्मा के बचाये जाने पर खश होता है, हम भी उस खशी में षामिल हो, वह खुशी जो यीशु ने अपनी जान देकर प्राप्त की, आत्माओं को बचाने की खुशी। हम न केवल उसकी खुशी, उसके बलिदान में, बल्कि उसके उद्धार दिलाने के काम में भागीदार हो। (द डिज़ायर ऑफ एजेज- 142) ChsHin 11.2

उसके राज्य के प्रतिनिधि होने के लिए परमेश्वर स्वर्गदूतों को नहीं चुनता, जो कभी पाप में गिरे ही नहीं। वह उन मनुश्यों को चुनता है जिनमें बुरे लोगों को बुराई से छुड़ाकर भलाई और सच्चाई का मार्ग दिखाने का जज्बा हो। मसीह यीशु इसीलिए संसार में मानव-रूप लेकर आये ताकि वह मनुश्यों तक पहुँच सके। उनकी कमजोरियों को जाने और उनको दूर करें। स्वर्गीय को मानवीय रूप लेना अवश्य था। क्योंकि दोनो रूप संसार को उद्धार दिलाने के लिये जरूरी थे। स्वर्गीय को सांसारिक होना अवश्य था, ताकि परमेश्वर और मनुश्य के बीच में बातचीत का सिलसिला जारी रहे, और इसीलिये मसीह का मानवीय रूप मनुश्य की पहुँच परमेश्वर पिता तक होने का जरिया है। यीशु हमारा मध्यस्थ है। (द डिजायर ऑफ एजेज- 296) ChsHin 11.3

बड़ी उत्सुकता से स्वर्गदूत हमारे सहयोग की प्रतिक्षा करते हैं कि कब एक मनुश्य दूसरे मनुश्य से बातचीत करे, उसे सच्चाई बताये। क्योंकि जब हम यीशु को पूर्णरूप से समर्पित होते हैं तब स्वर्ग में खुशियाँ मनाई जाती है। स्वर्गदत परमेश्वर की प्रशंसा में खशी से झम उठते है, ताकि वे हमारी आवाज से आवाज मिलाकर परमेश्वर के प्रेम को दर्शा सकें। (द डिजायर ऑफ एजे.- 297) ChsHin 12.1

हमें परमेश्वर के साथ उसके मजदूर होना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर अपना काम बिना मानवीय सहयोग के पूरा नहीं करेगा। यह मनुश्यों का ही काम हैं कि इस काम को पूरा करने की ठान लें। (द रिव्यू एण्ड हैरल्ड — 01 मार्च 1887) ChsHin 12.2