कलीसिया के लिए परामर्श

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साक्षियों से अनभिज्ञ रहना कोई बहाना नहीं

अनेक उस प्रकाश के बिल्कुल विपरीत चल रहे हैं जिसे परमेश्वर ने अपने लोगों को दिया है क्योंकि वे उन पुस्तकों को नहीं पढ़ते जिन से सावधानी,ताड़ना तथा चितावनी का प्रकाश और ज्ञान प्राप्त होता है.संसार की चिंताओं वेशभूषा के प्रति स्नेह और धर्म के अभाव ने ध्यान को उस प्रकाश से हटा दिया जिसे परमेश्वर ने अनुग्रह करके दिया है,जब कि पुस्तकें और पत्रिकाएं जिनमें गलतियों भरी पड़ी हैं सारे देश में फैल रही हैं. हर कहीं अविश्वास और नास्तिकता फैल रही है. बहुमूल्य प्रकाश जो परमेश्वर के सिंहासन से चमक रहा है दीवट के नीचे छिपाया जा रहा हैं.परमेश्वर इस उपेक्षा के लिए अपने लोगों को उत्तर दायी ठहरायेगा.प्रकाश की प्रत्येक किरण के लिए जो उसने हमारे मार्ग पर चमकाई है हिसाब देना होगा चाहे उसका हमने धार्मिक बातों की उन्नति के लिए सदोपयोग किया है अथवा उसका तिरस्कार किया क्योंकि प्रकृति का अनुकरण अधिक रुचिकर प्रतीत हुआ. ककेप 144.6

साक्षियों का प्रत्येक सब्बत मानने वाले परिवार में प्रयोग होना चाहिए और भाइयों को उन का मूल्य जानना और उनसे उन्हें पढ़ने का अनुरोध करना चाहिए.इन पुस्तकों को कम तादाद में रखने का प्रबंध अच्छा न था कि प्रत्येक मंडली में केवल एक ही सेट रखा गया जाय. उनको प्रत्येक परिवार के वाचनालय (लायब्रेरी में रखना चाहिए और उन्हें बार-बार पढ़ना चाहिए. उनको ऐसी जगह में रखना चाहिए जहां उन्हें बहुत से लोग पढ़ सके. ककेप 145.1

मुझे बतलाया गया कि चेतावनी, प्रोत्साहन और ताड़ना की साक्षियों में अविश्वास ने उनकी आँखों को ऐसा बन्द कर दिया है कि वे अपनी असली हालत से अनभिज्ञ है. वे सोचते हैं कि परमेश्वर की आत्मा की ताड़ना सम्बंधी साक्षी अनावश्यक है अथवा यह ऐसे लोगों को परमेश्वर के अनुग्रह और आत्मिक विवेक की अत्यन्त आवश्यकता है ताकि वे अपने आत्मिक ज्ञान की कमी को मालूम कर सकें, ककेप 145.2

बहुत से लोग जो सत्य से गिर गये हैं अपने ऐसे रवैये के लिए वे यह कारण बतलाते हैं कि साक्षियों में कोई विश्वास नहीं हैं. अब प्रश्न यह है,क्या वे अपनी प्रतिमा को जिसे परमेश्वर दोषी ठहराता है त्याग देगे अथवा वे अपनी कुटिल कार्य विधि के पोषण में लगे रहेंगे और उस प्रकाश का तिरस्कार करेंगे जिसे परमेश्वर ने उन बातों को निन्दा करते हुये दिया है जो उन्हें अति प्रिय है?अब जो उनको प्रश्न तय कर लेना चाहिए सो यह है; क्या मैं अपने का इन्कार करके साक्षियों को जो मेरे पापों को दर्शाते हैं परमेश्वर दत्त जैसे स्वीकार करें या साक्षियों को अस्वीकार करें क्योंकि वे मेरे पापों की निंदा करती हैं. ककेप 145.3