कलीसिया के लिए परामर्श

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जो वाचा परमेश्वर से बांधी जाय वह लागू तथा पवित्र है

प्रत्येक अपने स्वयं का पंच हैं और दान देने का अधिकार रखता है जैसा वह अपने मन में ठाने.परन्तु ऐसे भी लोग हैं जो हनन्याह और सफीरा के पाप के दोषी हैं. वे सोचते हैं कि यदि वे दशमांश का एक भाग अपने लिए रोक लें तो भाई लोगों को कभी भी पता न लगेगा.ऐसा ही उस अपराधी दम्पति ने सोचा था जिनका उदाहरण हमारे सामने चितावनी के रुप में प्रकट किया गया है. इस मामले में परमेश्वर प्रमाणित करता है कि वह ह्दयों को जांचता है. मनुष्य के इरादे व अभिप्राय उससे छिपे नहीं रह सकते.उसने हर युग के मसीहियों को एक सार्वकालिक चितावनी दी है कि उस पाप से सावधान रहें जिसकी ओर मनुष्यों के मन निरंतर झुक जाते हैं. ककेप 80.1

जब दान के सम्बन्ध में मौखिक अथवा लिखी प्रतिज्ञा भाइयों के सामने की जाती है तो वे परमेश्वर और हमारे बीच बंधी वाचा के प्रत्यक्ष साक्षी बन जाते हैं. प्रतिज्ञा मनुष्य से नहीं किन्तु परमेश्वर से की जाती है और वह पड़ोसी को दी गई एक लिखी हुंड़ी की भांति है. कोई भी व्यवस्थानुसार पट्टा मसीही पुरुष पर रुपये की अदायगी के लिए नहीं है जितना परमेश्वर से की गई प्रतिज्ञा. ककेप 80.2

जो मनुष्य अपने बंधु से ऐसी प्रतिज्ञा बांधता है कभी उससे मुक्त होने की विनती नहीं करता. सारी कृपाओं के दाता से बांधी गई वाचा तो और भी महत्वपूर्ण होनी चाहिए तो फिर क्यों मुक्त होने की चेष्टा करें? तब क्या मनुष्य अपनी प्रतिज्ञा को इस लिए हल्की समझे कि परमेश्वर से की गई हैं? इस लिए कि उस का प्रण न्यायधीश के विचारधीन नहीं लाया जायगा तो क्या वह पक्का नहीं है? क्या वह पुरुष जो स्वीकार करता है कि उसका यीशु मसीह की असीम बलिदान के लोहु से उद्धार हुआ है ‘‘ परमेश्वर को लूटना?’’क्या उसकी प्रतिज्ञाएं और उसके काम स्वर्गीय न्यायलय की तराजू में नहीं तोले जायंगे? ककेप 80.3

कलीसिया अपने सदस्यों की लिखी प्रतिज्ञाओं का उत्तरदायी है.यदि वे मालूम करें कि अमुक भाई अपनी प्रतिज्ञाओं को पूरा करने में अवहेलना कर रहा है तो वे उसके संग दयाशीलता परन्तु स्पष्टता से परिश्रम करें. यदि वह ऐसी हालत के अधीन हैं जिससे उसके संग दयाशीलता परन्तु स्पष्टता से परिश्रम करें.यदि वह ऐसी हालत के अधीन है जिससे उसको अपनी प्रतिज्ञा रखना असंभव है और वह एक योग्य सदस्य और सुहदय तो मंडली को दयाशीलता के साथ उसकी सहायता करनी चाहिये. इस प्रकार वे कठिनाई को सरल बनाकर स्वयं आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं. ककेप 80.4