कलीसिया के लिए परामर्श

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परमेश्वर के साथ सहकारी बनने का सौभाग्य

परमेश्वर अपने काम को संभालने के लिए मनुष्य पर निर्भर नहीं करता.वह अपने खजाने को भरपूर रखने के लिए धन सीधे स्वर्ग से भेज देता यदि दृष्टि से उसने इसे मनुष्य के लिए उत्युत्तम समझा होता. वह ऐसी युक्ति निकाल सकता जिसके द्वारा सत्य के प्रचार करने के हेतु स्वर्गदूत जगत के भेजे जा सकते. वह सत्य का आकाशों ही पर लिख डालता और उसके द्वारा अपनी मांगों को जीवित अक्षरों में जगत पर घोषित करता. परमेश्वर किसी व्यक्ति के सोना चांदी पर आश्रय नहीं रखता. वह कहता है, क्योंकि वन के सारे जीव जन्तु और हजारों पहाड़ों के जानवर मेरे ही हैं...यदि मैं भूखा होता तो तुझ से न कहता क्योंकि जगत और जो कुछ उसमें है वह मेरा है’‘ (भजन संहिता 50:10,12)परमेश्वर के काम की उन्नति के हितार्थ जो कुछ आवश्यक है उसकी उसने जानबूझ कर हमारी भलाई के लिए रखा है. उसने अपना सहकारी बना कर हमें सम्मनित किया है. परमेश्वर ने ऐसा ठहराया है कि मानव के सहयोग की आवश्यकता पड़े कि वे अपनी दयाशीलता को व्यवहार में लाते रहें. ककेप 75.2

नैतिक व्यवस्था सब्बत के मानने की आज्ञा देती है जो एक बोझ नहीं सिवाय उस समय के जब उस व्यवस्था का उलंघन किया जाए और उसको तोड़ने के कारण दंड के भागी हो जाएं.दशमांश का नियम उन लोगों के लिए कोई भार नहीं था जो उस योजना से विमुख नहीं हुए थे. जो नियम इब्रानियों को दिया गया था उसका अविष्कारक द्वारा न तो खंडन ही हुआ न शिथिल ही किया गया बजाय उसके उसके अब अप्रचलित होने से उसका और पूर्णता से तथा विस्तृत रुप से उसी प्रकार पालन करना चाहिए जिस प्रकार त्राण केवल मसीह के द्वारा मसीही युग में अधिक स्पष्टता से प्रकाशित करना चाहिए. ककेप 75.3

मसीह की मृत्यु के बाद जब सुसमाचार फैलने लगी तो युद्ध को प्रचलित रखने के लिए बड़े-बड़े सामान की आवश्यकता हुई. इस कारण दान देने का नियम इब्रानी शासन के समय ही अधिक अनिवार्य बन गया. आज परमेश्वर उनसे भी बड़े-बड़े दानों की मांग करता है कम की नहीं जो दुनिया के किसी काल में लिये गये हो.मसीह ने जो सिद्धांत कायम किया सो यह है कि हमारे दान व भेंट उस प्रकाश तथा उन वरदानों के अनुसार हों जो हम ने प्राप्त किये है. उसने कहा है, जिसे अधिक दिया गया है उससे अधिक मांगा जायगा.’’(लूका 12:48) ककेप 75.4

परमेश्वर के वचन से एक मशाल तेजी के साथ चमक रही है अतः अब खोये हुये अवसरों की ओर से जागृति होनी चाहिये.जब सब लोग परमेश्वर का हक दशमांश और भेटों को अदा करने में विश्वासयोग्य होंगे तो लोगों के लिये इस समय के संदेश और सुनने की राह खुल जायगी. यदि परमेश्वर के लोगों के हृदय मसीह के प्रेम से भरे होते,यदि प्रत्येक मंडली का सदस्य आत्म बलिदान की भावना से पूर्ण रीति से प्रभावित होता यदि सब के सब अधिपति पूर्ण उत्साह प्रगट करते तो मिशन के काम के लिये स्वदेश में हो या विदेश में धन की कोई कमी न होती. हमारी पूंजी में कई गुणा वृद्धि होती. उपयोगिता के हजारों द्वार खुल जाते और प्रवेश करने को आमंत्रण मिलता. यदि परमेश्वर के मनोरथ का उसके लोगों द्वारा संसार को दया का संदेश पहुंचाने में पालन किया जाता तो मसीह कभी के पृथ्वी पर आ गया होता पवित्र जनों का परमेश्वर के नगर में स्वागत हो चुकता. ककेप 76.1