कलीसिया के लिए परामर्श

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“जितने अपनी इच्छा से देना चाहें’‘

परमेश्वर ने कुछ अपने कार्य वृद्धि के लिए एक ही साधन नियुक्त किया है और वह साधन यह है कि वह मनुष्य को धन-संपति के वरदान से भरपूर करता है. वह उनको धूप और बारिश देता हैं वह वनस्पति को उगाता है:वह रुपया-पैसा पैदा करने के लिए स्वास्थ्य और योग्यता देता है.हमारी संपूर्ण आशीषे उसी के उदार हाथ से प्राप्त होती है.वह चाहता है कि बदले में पुरुष, स्त्री दशमांश तथा भेटों का एक अंश देकर धन्यबलि ; स्वेच्छाबलि, पापबलि द्वारा अपनी कृतज्ञता को प्रकट करें. ककेप 73.2

तंबू तथा मंदिर के बनाने में यहूदियों को उदारता उस दानशीलता का उदाहरण प्रकट करती है जिसकी तुलना किसी समय के मसीही ने नहीं की है. वे हाल ही में मिश्र के चिरकालीन दासत्व से मुक्त किए गए थे और अब जंगल में भ्रमणाहारी जैसे थे थे, और अभी-अभी वे उस मिश्री से बाल-बाल बचे ही थे जो उनका उस झपट की यात्रा में पीछा कर रही थी. कि परमेश्वर का वचन मूसा को पहुंचा इस्राएलियों से यह कहना कि मेरे लिए भेंट ली जाए; जितने अपनी इच्छा से देना चाहें उन्ही सभी से मेरी भेंट लेना.’‘ (निर्गमन 25:2) ककेप 73.3

उसके लोगों के पास सामान्य-सी सम्पति थी जिसकी वृद्धि की कोई आशा भी नहीं नज़र आती थी परन्तु उनके सामने एक लक्ष्य था-परमेश्वर के लिए तम्बू बनाने का. परमेश्वर की आज्ञा थी और उनका कर्तव्य था कि उसका पालन करें. उन्होंने किसी वस्तु से अपना हाथ नहीं खींचा. सभों ने स्वेच्छा से दिया, अपनी बढ़ती में से थोड़ा सा भाग नहीं, परन्तु अपनी संपति का अधिकतर भाग अर्पण किया. उन्होंने उसे खुशी से और दिल से परमेश्वर को अर्पित किया और ऐसा करने से उसको प्रसन्न किया. क्या वह सब उसी का न था?जो कुछ उनके पास थी उसी ने न दिया था? उसने उसकी माँग की क्या उनका कर्तव्य न था कि अपने महाजन को उसका एक अदा करें? ककेप 73.4

इसमें कोई विवशता की आवश्यकता न थीं, लोग जरुरत से भी ज्यादा आये और लोगों से विनय की गई कि और न लायें क्योंकि उनके पास आवश्यकता से अधिक आ चुका था. फिर मंदिर बनाने के समय रुपये पैसे की मांग का खुले ह्दय से स्वागत किया गया, लोगों ने प्रसन्नता से दिया.उनको बड़ा आनन्द हुआ कि परमेश्वर के लिए बनाया जा रहा है इसलिए इस लक्ष्य को प्राप्ति के लिए काफी से भी अधिक दान दिया. ककेप 73.5

क्या मसीही जी डींग मारते हैं उनके पास यहूदियों से भी विशाल सत्य है उनसे कम दान दें? क्या वे लोग जो अंत के समस में रहते हैं यहूदियों के आधे दान से भी कम दान से सन्तुष्ट रहेंगे? ककेप 73.6

परमेश्वर ने प्रकाश और सत्य के फैलाने का काम उन लोगों के स्वेच्छापूर्वक दान पर निर्भर रखा है. जो स्वर्गीय वरदानों के भागी हैं. धर्माध्यक्ष और मिशनरी को छोड़ तुलनात्मक रुप में थोड़े ही लोगों को यात्रा करनी पड़ती है परन्तु अनगिनित लोगों को तो सत्य को फैलाने में अपने रुपये पैसे का सहयोग देना पड़ेगा. ककेप 73.7

अच्छा,कोई कहता है कि मांगे तो आती ही रहती हैं;मैं तो देते-देते थक गया हूँ. क्या आप थक गये हैं? फिर तो मैं आप से यह प्रश्न करूँगी क्या आप आशीषों को परमेश्वर के उदार हाथ से पाते-पाते थक गये हैं? जब तक वह आप को आशीर्वाद देना रोक न दे तब तक आप प्रतिज्ञाबद्ध हैं कि उसको वह भाग लौटावें जो उसका है.वह इस लिए आपको आशीर्वाद देता है कि आप भी दूसरों को आशीर्वाद दे सकें. जब आप लेते-लेते थक जाएं तभी आप भली भांति कह सकेंगे कि मैं देने की इतनी बुलाहट व मांगों थक गया हूँ. परमेश्वर को हक है कि वह उसका जो हम प्राप्त करते हैं कि एक अंश अपने लिए मांगे. जब परमेश्वर का भाग परमेश्वर को लौटा दिया जाता है तो बचे हुये भाग पर उसका आशीर्वाद ठहरता है; परन्तु जब वह रोक दिया जाता है तो सम्पूर्ण भाग कभी न कभी श्रापित हो जाएगा. परमेश्वर के हक को प्रथम स्थान देना चाहिए और दूसरे काम को द्वितीय. ककेप 74.1