कलीसिया के लिए परामर्श

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विलम्ब में खतरा

रात के दर्शनों के दर्मियान एक प्रभावशाली हदय मेरे सामने से गुजरा.मैं ने आग का एक भारी गोला कुछ सुन्दर हवेलियों के बीच पड़ते देखा जिसके कारण वे तुरन्त नाश हो गईं. मैं ने किसी को कहते सुना, ” हम जानते तो थे कि परमेश्वर का कोप पृथ्वी पर भड़केगा परन्तु यह किस को मालूम था कि इतना शीघ्र भड़क उठेगा.’‘ दूसरों ने दुख भरी आवाज़ से कहा, ‘आपको तो मालूम था फिर उसको क्यों नहीं बतलाया? हमको तो मालूम भी न था.’’चारों और मैं ने ऐसी निन्दा के शब्द सुने. ककेप 63.4

मैं बड़ी परेशानी में उठी.फिर सो गई और ऐसा प्रतीत हुआ कि मैं एक बड़े सम्मेलन में हैं. एक अधिकारी किसी सभी में व्याख्यान दे रहा था जिसके सामने जगत का नाश फैला हुआ था. उसने कहा कि नकशा अंगूरी बाग़ का है जिसको जोतना चाहिये. जब प्रकाश स्वर्ग से किसी व्यक्ति पर चमकता है तो उसका कर्तव्य है कि वह उस प्रकाश को दूसरों पर चमकावे. अनेक जगहों में बत्ती जलनी चाहिये थी और इन बत्तियों से और बत्तियाँ जलनी चाहिये थी. ककेप 63.5

ये शब्द दुहराये गये:” तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाय तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जायगा? फिर वह किसी काम का नहीं केवल इसके बाहर फेंका जाये और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाय. तुम जगत की ज्योति हो; जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता और लोग दिया जला कर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उस से घर से सब लोगों को प्रकाश पहुंचता है. उसी प्रकार तुम्हारा उजाला मनुष्यों के सामने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की जो स्वर्ग में है बड़ाई करें?’‘ (मत्ती 5:13-16) ककेप 64.1

प्रत्येक दिन जो गुजर जाता है हमें अन्त के निकट लाता है? क्या वह हमें परमेश्वर केभी निकट लाता हैं? क्या हम जागते हुये प्रार्थना करते हैं? जिनकी संगति में हम दिन प्रतिदिन रहते उनको हमारी सहायता और मार्ग दर्शक की आवश्यकता है.शायद उनकी मानसिक दशा ऐसी है कि पवित्र आत्मा कीओर से एक सामयिक शब्द सोने पर सुहागा और बहते हुए को तिनके का सहारा जैसा काम करे.शायद इन में से कुछ लोग ऐसे स्थान में हों जहाँ हम उन तक कभी पहुंच न सकें. इन सहयात्रियों पर हमारा क्या प्रभाव पड़ रहा है? उन को मसीह के लिये जीतने का क्या प्रयत्न कर रहे हैं? ककेप 64.2

जब स्वर्गदूत चारों हवाओं को थामे हुए है तो हमें अपनी समस्त योग्यता से काम करना चाहिये.हमें अपना सन्देश अविलम्ब पेश करना चाहिये हमें स्वर्ग मण्डल की और इस अधर्म युग के मनुष्यों को प्रमाण देना हैं कि हमारा धर्म एक ऐसा विश्वास और सामर्थ्य है जिसका कर्ता मसीह है और उसका वचन ईश्वरीय वाणी है. मानव जाति का भार तराजू में हैं. वे ये तो परमेश्वर की प्रजा बनेगी या शैतान की तानाशाही की प्रजा बनेगी.सबको उस आशा को थामे रहना चाहिये जो उसके सामने सुसमाचार में रखी गई हैं. पर बिना उपदेशके के वे क्यों कर सुन सकते हैं. मानव परिवार को शिष्टाचार की नवीनता व चालचलन की तैयारी कीआवश्यकता है कि परमेश्वर की उपस्थति में खरोध कड़ा रह सके. सैद्धान्तिक गलतियों के कारण कुछ लोग नाश होने को हैं और ऐसा अनुमान किया जाता है कि यह गलतियां सुसमाचार का विरती है.कौन अपने को पूर्ण रीति से समर्पण करेगा कि परमेश्वर के संग काम करने वाला बने. ककेप 64.3

हमारी मण्डली के अधिकांश लोग आज अपने अपराधों और पापों में मुर्दा हैं वे कबज़ों पर घूमने वाले दरवाजे की तरह आते जाते हैं. वर्षों से वे सन्तोष के साथ गम्भीरतम् आत्मा उभारने वाले सत्यों को सुनते आ रहे हैं परन्तु उन्हें व्यवहार में कभी नहीं लाये इस लिये वे सत्य की अनमोलता के प्रति बेसुध हैं. चितावनी व झिड़की की उभारने वाली साक्षियां उनको पश्चाताप की ओर नहीं जगात. विश्वास द्वार धर्मी ठहरना तथा मसीह कीधार्मिकता के मधुर राग जो परमेश्वर की ओर से मानव होंटों द्वारा निकलती हैं उनके प्रत्युत्तर में उनके मुंह से धन्यवाद व प्यार की कोई आवाज नहीं निकलतो. यद्यपि स्वर्गीय सौदागर उनके सामने विश्वास और प्रेम के अनमोल रत्नों को खोलकर रख देता है. यद्यपि वह नियंत्रण देता है, कि वे उससे म सामने विश्वास’‘ आग में तपाया हुआ सोना’‘ “खरीदें और उजाला वस्त्र’‘ `कि उसे पहिने और आंखों में लगाने का अंजन’ले कि देखने लगे तो भी वे अपने मन को उसके विरुद्ध पत्थर कर लेते और अपने गुनगुनेपन को प्रेम और उत्साह से बदलने में असफल रहते हैं. वे इकरार तो करते हैं परन्तु भक्ति की शक्ति का इकरार करती हैं. यदि वे इसी दशा में पड़े रहेंगे तो परमेश्वर उनको अस्वीकार कर देगा. वे अपने को उसके परिवार के सदस्य बनने के अयोग्य ठहरा रहे हैं. ककेप 64.4

कलीसिया के सदस्यों को स्मरण रखना चाहिये कि उनके नाम कलीसिया के रजिस्टर में दर्ज होने से ही उनका त्राण न होगा. उसको अपने को परमेश्वर के प्रगट योग्य दिखलाना चाहिये, ऐसे काम करने वाले जो लजाने न पाये, उनको दिन प्रतिदिन अपने चालचलन मसीह के आदेशनुसार बनाना चाहिये. उनको निरन्तर उसमें विश्वास का विकास करते हुये बना रहना चाहिये. इस प्रकार वे मसीह वे मसीह में पुरुष तथा स्त्रियों के पूरे डील डील तक बढ़ेंगे. अर्थात स्वस्थ हंस मुख कृतज्ञ मसीह होंगे.और परमेश्वर उनका नेतृत्व प्रकाश की ओर करेगा. यदि उनका अनुभव इस प्रकार का न हो तो उनकी गिनती उन लोगों में होगी जिनमें मुंह से एक दिन फूटफूटकर रोने व हाय हाय की आवाजें निकलेंगी.’’कटनी का समय बीत गया, फल तोड़ने की ऋतु भी बीत गई और हमारा उद्धार नहीं हुआ; मैं शरण लेने क्यों गढ़ की ओर नहीं भागा? मैं ने अपने आत्मिक उद्धार को क्यों तुच्छ जाना और अनुग्रह के आत्मा के विरुद्ध क्यों कार्यवाही की?’‘ ककेप 65.1

भाइयों और बहनो, आप जो सत्य पर देर से विश्वास रखने का दावा करते हैं मैं आप से व्यक्तिगत रुप से पूछना चाहती हूँ कि क्या आपके व्यवहार उस प्रकाश विशेषाधिकार और अवसरों के अनुकूल हैं जो आपको स्वर्ग की ओर से प्रदान हुये हैं? यह गम्भीर प्रश्न है. धार्मिकता का सूर्य कलीसिया पर उदय हो चुका है. अब कलीसिया का कर्तव्य है कि चमके. प्रत्येक-प्राणी का अधिकार है कि वह आगे बढ़े. जो मसीह से सम्बंध रखते हैं वे अनुग्रह में और परमेश्वर के पुत्र के ज्ञान में पुरुष व स्त्रियों के पूरे डील डील तक उन्नति करेंगे. यदि लोग सच्चाई पर दावा रखते हुये अपनी सारी योग्यता और अवसरों को सीखने और कार्य करने में लगाते तो वे मसीह में मजबूत हो जाते.जो कुछ भी उनका व्यवसाय हो चाहे वे कृषक हों, या शिल्पकार या शिक्षक हों या चरवाहे, यदि उन्होंने अपने को पूर्णतया परमेश्वर को अर्पण कर दिया होता तो अब तक वे स्वर्गीय स्वामी के लिये कुशल कर्मचारी बन गये होते. ककेप 65.2