कलीसिया के लिए परामर्श
“सब कुछ ईश्वर की के लिये करो”
आहार के सम्बंध में हम कोई विशेष नियम निश्चित नहीं करते कि उसका पालन किया जाय परन्तु यह अवश्य कहेंगे कि जिन देशों में फल, अनाज,तथा मेवे आदि बहुतायत से मिल सकते हैं वहां मासादि भोजन परमेश्वर के लोगों के लिये उचित नहीं है.मुझे आदेश मिला है कि मांसाहार में प्रकृति को पाशविक बनाने की और पुरुष तथा स्त्रियों में से उस प्रेम तथा सहानुभूति को जिसे उन्हें दूसरों के प्रति रखनी चाहिये छीन लेने की और निम्न इच्छाओं की उच्चकोटि की शक्तियों पर प्रभुता जमाने की प्रवृति है.हो सकता है कि मांस खाना किसी समय स्वास्थ्य जनक रहा हो परन्तु अब वह सुरक्षापूर्ण नहीं हैं.कैन्सर,टयूमर,रसौलियां तथा फेफड़ों की बीमारियां अधिकतर मांस खाने ही से पैदा होती हैं. ककेप 293.5
हमें मांसादि भोजनों के उपयोग को भाईचारे की जांच नहीं बनाना चाहिये परन्तु हमें उस प्रभाव पर विचार अवश्य करना चाहिये जो मांसाहारी दूसरों के ऊपर डालते हैं.परमेश्वर के संदेशदाताओं के रुप में हम लोगों को यह न कहें?’’सो तुम जो खाओ अथवा कोई काम करो तो सब कुछ ईश्वर की महिमा के लिये करो.’’(1कुरिन्थियों 10:31)क्या हम भ्रष्ट क्षुधा को तृप्ति के विरुद्ध निश्चित गवाहो न दें? क्या समाचार के सेवकों (अध्यक्ष)में से खोई जो नश्वर को दिये गये सबसे गम्भीर सत्य का प्रचार करते हैं.मिस्र की मांस की हांडियों को ओर लौटने में नमूना पेश करें?क्या वे जो परमेश्वर के भंडार के दशमांश से परवारिश पाते है आत्मतृप्ति के द्वारा अपनी वाहिनियों में बहती हुई प्राणदा घर को विषैला होने देंगे? क्या वे उस प्रकाश तथा चितावनी का जिसे परमेश्वर ने उन्हें दिया है अपमान करेंगे? शारीरिक स्वास्थ्य को अनुग्रह में बढ़ने और संतुलित स्वभाव की प्राप्ति के लिये परमावश्यक समझना चाहिये.यदि आमाशय की यथोचित रीति से देख-रेख न की जाय तो उचित नैतिक चालचलन के निर्माण में बाधा उत्पन्न हो जायगी.दिमाग तथा वाहिनियां कौ आमाशय के साथ सहानुभुति है.गलत खाने पीने से गलत विचार तथा कार्य पैदा होते हैं. ककेप 294.1
सबकी इस समय जांच व परीक्षा हो रही है.हमने मसीह में बपिस्ताम लिया है,यदि हम अपने को हर एक वस्तु से जो हमें फंसा लेती है पृथक करेंगे तो हमें मसीह में,जो हमारा जीवित सिर है बढ़ने के लिये शक्ति दी जायेगी,और हम परमेश्वर के उद्धार को देखेंगे.केवल जब हम स्वास्थ्यपूर्ण जीवन के नियमों के प्रति चौकन्ना रहते है तभी हम अनुचित भोजन-अन्य खराबियों को देखने के लिये पूरी तौर से जाग सकते हैं.जिन लोगों को भूल पहचानने के बाद अपनी आदतों को बदलने का साहस होता है वे मालूम करेंगे कि सुधार की कार्यवाही में संघर्ष तथा बड़े धैर्य की आवश्यकता पड़ती है, परन्तु जब एक बार उचित स्वाद का निर्माण हो चुकता है तो वे महसूस करेंगे कि वे खाद्यप्रदार्थ जिन्हें वे पहिले हानिरहित समझते थे धीरे धीरे परंतु निश्चित रुप में अजीर्ण तथा अन्य बीमारियों के बुनियाद डाल रहे थे. ककेप 294.2
माता-पिताओं ,प्रार्थना के निमित्त जागते रहो,असंयम की हर शकूल से बचे रहो.अपने बालकों को असली स्वास्थ सुधार के नियमों को सिखाइये.उनको बतलाइये कि स्वास्थ्य रक्षा के निमित्त किन-किन पदार्थों का तिरस्कार करना चाहिये.परमेश्वर का कोष आज्ञा उल्लंघनकारियों पर भड़कने लगा है.चारों और कैसे-कैसे अपराध,कैसे कैसे पाप, कैसे कैसे दुष्ट व्यवहार प्रकाश में आ रहे हैं !मंडली के रुप में हमें अपने बालकों की दुष्ट सहयोगियों से बचाने में बड़ी खबरदारी बरतनी चाहिये. ककेप 294.3