कलीसिया के लिए परामर्श

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आहार में परिर्वतन के बारे में निर्देशन

पेशीय शक्ति मांस खाने पर निर्भर है ऐसा विचार रखना गलत है.निरामिष भोजन द्वारा देह की आवश्यकताओं की पूर्ति हो सकती तथा बलिष्ठ स्वास्थ्य का आनंद अच्छी तरह लिया जा सकता है.शुद्ध रक्त बनाने के लिये अनाज,फल,मेंवे तथा सबूजियों में सारी बलवर्द्धक शक्तियां पाई जाती हैं.मांसाहार इतनी उत्तम रीति से अथवा इतनी पूर्णता से इन तत्वों को जुटा नहीं सकता.यदि मांस का प्रयोग स्वास्थ्य तथा बल के लिये जरुरी होता तो मांसाहार मनुष्य को खुराक में आदि ही में संयुक्त किया जाता. ककेप 289.3

जब मांसा खाना बंद कर दिया जाता है उस समय कमजोरी,बलहीनता की अकसर महसूसियत होती है.बहुत से इसे एक प्रमाण कह कर अनुरोध करते हैं कि मांस खाना जरुरी है;परन्तु यह इस लिये होता है कि इस प्रकार के भोज्य प्रदार्थ उत्तेजिस होते हैं,इस लिये कि वे रक्त में ताप लाते और स्नायुयों को उत्तेजित करते हैं.उनकी आवश्यकता महसूस की जाती है.बाजों के लिये मांस छोड़ना इतना कठिन है जितना शराबी के लिये प्याली,परंतु उनकी बाद ही हालत बेहतर रहेगी. ककेप 289.4

जब मांसाहार का परित्याग किया जाता है तो उनकी जगह,विभिन्न प्रकार के अनाजों ,मेंवों, सब्जियों तथा फलों से पूरी होनी चाहिये जो बलवर्धक तथा भूख बढ़ाने वाले हों.यह बात विशेषकर उनके लिये आवश्यक किया है जो कमजोर हैं तथा जिन पर लगातार काम करने का भार रहता है. ककेप 289.5

विशेषकर जहां मांस आहार का मुख्य पदार्थ नहीं बनाया जाता वहां पाक शास्त्र की बड़ी जरुरत है.कोई ऐसा पदार्थ तैयार करना चाहिये जो मांस का स्थान ले सके और ये पदार्थ जो मांस का स्थान लेंगे अच्छी तरह तैयार करने चाहिये जिससे मांस की इच्छा ही न उपजे. ककेप 289.6

मेरा परिचय उन परिवारों से हुआ जिन्होंने मांसाहार को तो छोड़ दिया परन्तु वदले में दरिद्रता का आहार अपना लिया.उनका भोजन ऐसी असावधानी से तैयार किया जाता है कि पेट भी उससे घृणा करता है,ऐसों ही ने मुझसे कहा कि स्वास्थ्य सुधार उनको मुआफिक नहीं आता और उनकी शारीरिक शक्ति क्षीण होती है. भोजन साधारण रीति से तैयार करना चाहिये फिर भी ऐसी सुन्दरता से पकाना चाहिये जिससे भूख बढ़े. ककेप 289.7

परमेश्वर शेष मंडली को उन्हीं की भलाई की खातिर परामर्श देता है कि मांस,चाय तथा काफी आदि अन्य हानिकारक खाद्यों का उपयोग छोड़ दें.अनेकों अन्य पदार्थ है जिनपर हम निर्वाह कर सकते हैं और जो आरोग्यकर तथा अच्छे हैं. ककेप 290.1

जो लोग प्रभु के आगमन को इंतिजारो कर रहे हैं उन में मांस खाना अंत में पृथक हो जायगा;उनकी खुराक में मांस सम्मिलित न होगा.हमें सर्वदा यह बात दृष्टि में रखनी चाहिये और दृढ़ता से उसी ओर कार्यरत रहना चाहिये. ककेप 290.2

मांसाहार के निरंतर उपयोग से,मानसिक, नैतिक तथा शारीरिक अवयव अव्यवस्थित मस्तिष्क, धूमिल तथा नैतिक चेतनता कुन्द हो जाती है.प्यारे भाई और प्यारी वहिन हम आप से कहते हैं आपकी सुरक्षा इसी में है कि आप मांस को न छूवें. ककेप 290.3