कलीसिया के लिए परामर्श

188/320

उत्तेजक कहानियों के अध्ययन में भय

हमारे बालक क्या पढ़ेंगे? यह एक गम्भीर प्रश्न है जिसका गम्भीर उत्तर देना आवश्यक है. मुझे यह देखकर खेद होता है,कि सब्बत मानने वाले परिवारों में समय -समय पर निकलने वाली पत्रिकाओं में लगातार कथाओं का कोई प्रभाव इन बच्चों और जवानों के मस्तिष्क पर नहीं पड़ता.मैं ने उनकी इच्छा को देखा जो उपन्यास पढ़ने के शौकीन हो गये. उनको सत्य के विषय में सुनने का और हमारे धर्म के सिद्धांतों से परिचय प्राप्त करने का अवसर प्राप्त हो हुआ लेकिन सच्ची भक्ति तथा व्यावहारिक आचरण का अभाव पाया गया, ककेप 228.3

तुच्छ और उत्तेजनाशील कथाओं के पाठक व्यावहारिक जीवन के कार्यों को करने में अयोग्य होते हैं.वे काल्पनिक संसार में रहते हैं.मैं ने उन बालकों को देखा जिन्हें ऐसी कहानियों को पढ़ने और उसके अनुसार चलने की अनुमति मिली.चाहे देश में या विदेश में वे सदैव ही बेचैन हैं और सामान्य विषयों के सिवाय अन्य विषयों की चर्चा में असमर्थ रहते हैं.धार्मिक विचार और धार्मिक चर्चा उनके मस्तिष्क के लिये एक विदेशी चीज थी. सनसनीखेज कहानियों की भूख उनके मस्तिष्क में बौद्धिक विकार उत्पन्न करती है और मस्तिष्क बिना ऐसे अस्वास्थकर भोजन के सन्तुष्ट नहीं होता,मैं ऐसे अध्ययन में पड़े व्यक्तियों को मानसिक उन्मत से कोई और यथोचित नाम नहीं दे सकती.अध्ययन में असंयम की आदत मस्तिष्क पर प्रभाव नहीं डालती है जो खाने पीने का असंयम शरीर पर डाल सकता है. ककेप 228.4

इस वर्तमान सत्य को स्वीकार करने से पूर्व,कुछ को उपन्यास अध्ययन की आदत पड़ गई थी. मण्डली में सम्मिलित होने पर उन्होंने उस पर जय पाने का प्रयत्न किया.ऐसी श्रेणी के मनुष्यों के समक्ष इस प्रकार की पुस्तकें रखना जिसका उन्होंने सदैव बहिष्कार किया है;याने पियक्कड के सामने शराब देना है.लगातार परीक्षाओं में गिरने के कारण उनक के स्वस्थ्य अध्ययन की रुचि जाती रहती है.बाइबल अध्ययन की रुचि उन्हें नहीं रहती,उनकी आत्मिक शक्ति निर्बल हो जाती.पाप उन्हें कम भंयकर मालूम पड़ता.जीवन के व्यावहारिक कर्तव्यों को करने की रुचि घटती और अविश्वास योग्यता अधिक प्रगट होती.जब मस्तिष्क में विकार उत्पन्न हो जाता तो अशिष्ट चरित्र की पुस्तकें पढ़ना आसान है.इस प्रकार शैतान के लिए आत्मा पर पूर्ण अधिकार करने का मार्ग खुल जाता है. ककेप 228.5