कलीसिया के लिए परामर्श

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सम्पूर्ण विश्राम और आत्मानन्द

युवकों को स्मरण रखना चाहिए कि जो विशेषाधिकार उन के समय का और अपनी योग्यताओं के सदापयोग का है उनका लेखा देना पड़ेगा.कदाचित वे पूछे तो क्या हमारे कोई मनोविनोद नहीं है? क्या हम निरन्तर काम ही काम करते रहें? ककेप 222.5

ऐसे शारीरिक श्रम से जिसने शक्ति का अपहरण किया है थोड़े समय के लिए अवकाश लेना अवश्य है जिससे परिश्रम में पुन: लगा जावे और सफलता प्राप्त की जावे.पर जहां तक शारीरिक बल का सम्बन्ध है अशेष विश्राम की न तो आवश्यकता ही है न इसका कोई फलदायी परिणाम होगा. जब एक प्रकार के श्रम से थकान प्रतीत होने लगे तो बहुमूल्य क्षणों को व्यर्थ बरबाद करने की आवश्यकता नहीं है. वे ऐसे कार्य के खोज करें जो इतना थकाने वाला न हों परंतु जो माता और बहिनों के लिए आशीष का कारण बन सके. वे भारी बोझों के उठाने की चिन्ताओं में व्यस्त रहती हैं उनको उठाकर वे उस आनन्द का अनुभव का अनुभव प्राप्त कर सकती हैं जो सिद्धांत पालन से मिलता है. इस प्रकार समय स्वार्थपूर्ण छोटे कामों में व्यस्त रहने में अपव्यय न होना.उनके समय का उपयोग लाभकारी बातों में होगा और कार्य परिवर्तन से उन्हें ताजगी प्राप्त होगी. उनका समय बहुमूल्य रहेगा जो किसी को अपना सुन्दर ब्यौरा देगा. ककेप 222.6

उनेकों का यह दावा है कि स्वास्थ्य के सरंक्षण के लिए स्वार्थी मनोविनोद में लीन होना अनिवार्य है.यह सत्य है कि शरीर की प्रगति के लिए बदलाव की आवश्यकता है, क्योंकि परिवर्तन के द्वारा मस्तिष्क और शरीर ताजे होते हैं.पर यह उद्देश्य पूर्ति व्यर्थ विलास में फंसने से नहीं होती जिनमें वह अपने दैनिक कर्तव्यों को त्याग कर फंसता है. ककेप 223.1

जब हम नकली तथा कृश्रिम का परित्याग करते हैं जिसमे घुड़दौड़ ताश खेलना, जुआ खेलना, पारितोषिक प्रतिद्वन्द्रिता,मघापान, धूम्रपान सम्मिलित हैं तो हमें आनन्द के उन साधनों की व्यवस्था करनी चाहिये जो शुद्ध समुन्नत तथा उत्थानात्मक हैं. ककेप 223.2

इनके विपरीत वह दुराचार का केन्द्र है.इन मनोरंजन साधनों द्वारा विषैली आदतों और पापमय व्यवहारों का समर्थन किया जाता है. निम्नकोटि के गाने,नीच इशारे और संकेत और मनोवृतियां चरित्र को पतन की ओर ले जाती हैं.प्रत्येक युवक जो ऐसे स्थानों में जाने का आदी हो गया है उसका अन्त:करण भ्रष्ट हो जाएगा. हमारे देश में नाटकशालाओं के सिवा कोई अन्य स्थान ऐसा नहीं है जहां इससे अधिक कल्पनी दुषित की जाती हो, धार्मिक मनोवेग पर आघात पहुंचाया जाता हो अथवा जीवनकी गम्भीर वास्तविकता अथवा आनन्द का परिहरण किया जाता हो.जिस प्रकार मादक पदार्थों के उपयोग से उसकी लिप्सा बढ़ती है उसी प्रकार नाटयाशाला में जाने की आदत निरंतर बढ़ती जाती है.नाटयाशाला,सरकस तथा मनोविनोद के संदिग्ध स्थानादि से दूर रहना सुरक्षा का सरल मार्ग है. ककेप 223.3

आधुनिक नाच के प्रेमी परमेश्वर के समक्ष आनन्द से प्रेरित होकर दाऊद के आदरमय नृत्य का उदाहरण देकर अपने आप को न्यायसंगत प्रमाणित करना चाहते हैं परन्तु इस प्रकार का वादानुवाद निराधार है.वर्तमान युग में नाच का मूर्खता एवं अर्धरात्रि के मद्यपान से घनिष्ट संबंध है. आनन्द की वेदी पर स्वास्थ्य और चरित्र को आहुति चढ़ाई जाती है. नाच घर में बार-बार जाने वाले के हृदय में परमेश्वर के प्रति आदर युक्त समझा जावेगा. वह जांच निर्णयात्मक है.ऐसे मनोरंजन साधन जिनसे पवित्र वस्तुओं से प्रेम में बांधा हो या परमेश्वर की सेवा के आनन्द में रुकावट हो उनकी खोज मसीही न करें.वाचा के संदूक के स्थानान्तर के अवसर पर परमेश्वर की आनन्दमय स्तुति निमित्त जो संगीत और नृत्य का आयोजन हुआ उसमें और आधुनिक नाच रंग की तुलना नहीं हो सकती.एक से तो परमेश्वर का स्मरण किया गया और उसके पवित्र नाम की महिमा की गई. दूसरी शैतान की ऐसी युक्ति है जिसके द्वारा मनुष्य परमेश्वर को भूल कर उसका निरादर करने लगे. ककेप 223.4

आम तौर पर युवक इस प्रकार अपना जीवन व्यतीत करते हैं मानो कि दयाकाल के मूल्यवान घन्टे जब दया विलम्ब करती है, एक अवकाश काल है और वे संसार में इसी लिए रखे गए हैं कि भोगविलास में अपनी तृत्ति अथवा रोमांच में व्यस्त रहें.शैतान विशेष रुप से प्रयत्न शील है कि वे सांसारिक विलास और आनन्द में लीन होकर अपने आप को यह कहकर निर्दोष ठहरावे कि ये मनोविनोद निर्दोष ,भोले और स्वास्थ के लिए अनिवार्य हैं. ककेप 223.5

अनेकों बड़ी अभिरुचि के साथ ऐसे अनैतिक सांसारिक मनोविनोदों में पड़ जाते हैं जिनके लिए परमेश्वर का वचन अनुमति नहीं देता.इस प्रकार वे परमेश्वर से अपना सम्बन्ध विच्छेद करके सांसारिक विलास प्रियजनों के समूह में मिल जाते हैं.वे पाप जिन्होंने प्रलय के पूर्व और मैदान के शहरों का विनाश  किया था आज विद्यमान हैं,न केवल अन्यजातियों में,न नाम मात्र के मसीहियों में वरन् उनमें भी जो मनुष्य के पुत्र के पुनरागमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं.जिस दृष्टि से परमेश्वर उन पापों को देखता है उसी से ‘यदि वह आप को दिखलावे तो आप लज्जित और भयभीत हो जावेंगे. ककेप 223.6

रोमांच और मनभाऊ मनोविनोद साधन परमेश्वर के जनों, विशेषकर युवकों के लिए प्रलोभन और फन्दे हैं.शैतान प्रलोभन को निरंतर तैयार करता है कि लोगों के मनों की शीघ्र भविष्य में होने वाले दृश्यों के लिए तैयारी करने के गम्भीर कार्य से अपनी ओर आकर्षित करे.संसार के संतान की सहायता से वह असावधानों को सांसारिक रंगरलियों में फंसाने के हेतु अपने उत्तेजक साधनों को निरंतर प्रस्तुत करता रहता है.तमाशे,व्याख्यान,नाना प्रकार के मनोविनोद आदि अनेक सामग्रियां हैं जो सांसारिक प्रेम को और ले जाती है;और संसार के साथ इस प्रकार के योग से विश्वास निर्बल जाता है.संसार का इस योग से विश्वास ढोला पड़ जाता है. ककेप 224.1

विलास खोजी व्यक्ति को परमेश्वर अपना अनुगामी नहीं समझता.केवल वे जो स्वयं त्यागो होकर दीनता और पवित्रता से गम्भीर जीवन व्यतीत करते हैं वे मसीह के सच्चे अनुगामी हैं. ऐसे व्यक्ति अश्लील और थोथे वार्तालाप में फंस कर संसार प्रेम नहीं हो सकते. ककेप 224.2

यदि आप सचमुच मसीह के हैं तो आप को उसकी साक्षी देने का अवसर होगा.आप को मनोविनोद के स्थानों में आमंत्रित किया जावेगा तब वहां आप को मसीह की साक्षी देने का अवसर होगा.यदि आप मसीह के प्रति विश्वस्त हैं तो आप वहां अनुपस्थित के लिए बहाना करने की कोशिश न करेंगे पर विनम्रभाव में सफाई से आप वोषित करेंगे कि आप परमेश्वर की संन्तान हैं और आप के सिद्धान्त आप का ऐसे स्थानों में उपस्थित होने की अनुमति नहीं देते.जिस स्थान में हमारा प्रभु आंमत्रित नहीं किया जाता वहां आप कदापि नहीं जा सकते. ककेप 224.3

मसीह के अनुयायियों के मसीही मनोरंजन के लिए एकत्रित होने और विलास के लिए सांसारिक घमघट में एक भारी भेद होगा.प्रार्थना और मसीह के नाम उच्चारण और पवित्र शब्दों के बदले सांसारिक लोगों के ओठों पर मूर्खतापूर्ण हंसी और हल्का वार्तालाप पाया जावेगा.उनका उद्देश्य साधारणतः रंगरलियों का होता है.उनका मन बहलाव मूर्खता में आरम्भी और व्यर्थता से समाप्त होता है ककेप 224.4