कलीसिया के लिए परामर्श
मनोरंजन जिसका उपयोग धनी एवं दरिद दोनों कर सकते हैं
युवावस्था वृद्धावस्था की भांति शान्त एवं गम्भीर नहीं बनाई जा सकती और बालक,पिता की भांति गम्भीर.जब पापमय मनोविनोद का खण्डन किया जाता हैं, जैसे किया भी जाना चाहिए तो माता-पिता शिक्षकों अथवा अभिभावकों को चाहिये कि वे युवकों के लिए इनके बदले निर्दोष मनोरंजन का प्रबन्ध करें जो न उनके नैतिक विचारों को भ्रष्ट करें न उन पर अपना रंग चढ़ाए.युवकों को कठोर नियमों के बन्धनों में न बाँधिए जिनसे वे अपने आप को दबे हुए समझकर उन्हें तोड़कर मूर्खता और विनाश के मार्ग की ओर अग्रसर हो जावें.शासन की बागडोर को दृढ़ता, दयालुता से सम्भाले रहो और उनके मस्तिष्कों तथा ध्येयों का पथ प्रदर्शन तथा नियंत्रण ऐसी कोमलता बुद्धिमता तथा ऐसे प्रेम के साथ कीजिए कि वे समझ जायं कि आप उनके हितैषी हैं. ककेप 219.7
मनोरंजन कई प्रकार के होते हैं जो मस्तिष्क और शरीर दोनों के लिए उपयोगी है.प्रदीप्त समझदार व्यक्ति खेल क्रीड़ा के अनेकों साधन उन स्त्रोतों से पाएगा जो न केवल निर्दोष वरन् शिक्षाप्रद भी है.खुली हवा में मनोरंजन करने से प्रकृति में परमेश्वर के कार्यों पर चिन्तन से एक उच्चकोटि का लाभ मिलेगा. ककेप 220.1
जिस मनोरंजन से स्वयं ही को लाभ पहुंचे उससे बालकों तथा युवकों को इतनी बड़ी आशीष नहीं मिलेगी जितनी उस मनोरंजन से मिलेगा जिससे दूसरों को लाभ पहुंचता हैं. ककेप 220.2
परमेश्वर ने प्रत्येक के लिए ऐसे आनन्द प्रदान किए हैं जिनका उपयोग धनी और दरिद्र दोनों कर सकते है ऐसा आनन्द जो विचारों को परिशुद्ध बनाने में और परस्वार्थी कार्यों में प्राप्त होना हैं, ऐसा आनन्द जो सहानुभूति प्रदर्शित करने वाले शब्दों में तथा कृपामय कार्य करने में आता है.ऐसी सेवा करने वालों द्वारा मसीह का प्रकाश दुखियों के जीवन में अंधकार को दूर करने के हेतु चमकता है. ककेप 220.3
काम इस संसार में हमारे करने के लिए बहुत ऐसी आवश्यक और उपयोगी बातें हैं जिनको करने से आनन्द और मन बहलाव की कोईआवश्यकता नहीं रह जाती है.जब हम मस्तिष्क, अस्थि और माँसपेशी को परिश्रम से सोचने,योजना निर्माण करने के उद्देश्य से प्रयोग करते हैं तो इनको ठोसपन एवं बल प्राप्ति होगी जिनके प्रशिक्षण द्वार उनके मानसिक एवं शारीरिक अंगों की शक्ति का विकास होगा जिसका अर्थ यह निकलेगा कि वे अपनी ईश्वर प्रदत्त योग्यताओं को व्यावहारिक रुप दे रहे हैं जिससे परमेश्वर की महिमा हो सकती है. ककेप 220.4
शहर अथवा गांव में रहने वाले अनेकों परिवार संगठित होकर अपने उन व्यवआओं से अलग होकर जो उनके शरीर और मन को दबाते हैं, देहात भ्रमण के लिए निकल कर किसी झील के किनारे अथवा किसी कुंज या प्राकृतिक सौन्दर्यमय दृश्य को निकल जावें.वे अपने साथ साधारण स्वास्थ्यप्रद भोजन उत्तमोत्तम फल और अनाज ले जावें.और अपना भोजन किसी वृक्ष तले अथवा आकाशरुपी पंडाल के नीचे बिछा लें.यात्रा की सैर,परिश्रम,व्यायाम तथा प्राकृतिक दृश्य उनकी उदर ज्वाला को उत्तेजित करेंगे और वे एक ऐसे आनन्द का उपभोग कर सकें जिसे पाने के लिए राजा महाराजा भी लालायित होंगे, ककेप 220.5
ऐसे अवसर पर माता-पिता एवं बच्चे हर प्रकार की चिन्ता, श्रम और घबड़ाहट से स्वतंत्र रहें. मातापिता अपने बच्चों के साथ बच्चे बन जावें और जहाँ तक हो सके अपने बच्चों के लिए प्रत्येक वस्तु आनन्दमय बनावे.समस्त दिन मनोरंजन के लिए दिया जावें.ऐसे जनों के लिए जो घर, कारखाने व दूकान में कार्य करते रहते हैं खुली हवा में किया जाने वाला व्यायाम स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होगा जो कर सकते हैं उनको इस नियम का पालन करना कर्तव्य जानना चाहिए.हानि तो कुछ नहीं पर लाभ बहुत कुछ होगा. नये जीवन एवं साहस एवं जोश से परिपूरित होकर वे अपने धन्धों में लौटेंगे और रोगों का सामना करने के लिए अधिक तैयार रहेंगे. ककेप 220.6
मैं साधारण गेंद खेलने के व्यायाम के विरुद्ध नहीं पर कभी-कभी इस में भी अधिकाई हो सकती हैं. इन मनोरंजन के उपरान्त जो कुछ भी निश्चित फल होता है उससे मैं घबड़ा जाती हूँ.इन साधनों में जिस धन का व्यय होता है वह मसौह से दूर विनाश की ओर अग्रसर आत्माओं तक सत्य का प्रकाश पहुंचाने में लगाया जा सकता है धन व्यय और मनोविनोद जो अपने आप को प्रसन्न करने में किया जाता है धीरे धीरे स्वाभिमान की ओर ले जाता है.आनन्दोपजन निमित्त खेलों के प्रशिक्षण से लालसा एवं अनुराग का आविर्भाव होता जो मसीही चाल चलन को सिद्ध बनाने में सहायक नहीं हो सकता. ककेप 221.1
मस्तिष्क और शरीर के स्फूर्तिवर्धन के लिए परस्वार्थी आत्मा का प्रोत्साहन शिक्षक और विद्यार्थियों की एकांगी अभिरुचि का संयोग और उनके मैत्रिक सहयोग में जो समय जा बल व्यय किया जावे उसका सौगुणा प्रतिफल मिलेगा.इससे युवकों को चंचल स्फूर्ति के निकास के लिए अच्छा प्रवाह मिलेगा.जिसके अभाव में युवक का जीवन भययुक्त रहता है.बुराई से बचने के लिए मन को भली बातों में व्यस्त रखना कानून एवं अनुशासन के असंख्य प्रतिबंधों से अधिक उत्तम हैं. ककेप 221.2