कलीसिया के लिए परामर्श
नवविवाहितों को परामर्श
मेरे प्रिय,भाई बहिन,आपने एक ऐसी वाचा बांधी है जिसका अन्त आप के जीवन के साथ होगा.अब आप का वैवाहिक जीवन सम्बन्धी प्रशिक्षण आरम्भ हुआ है.विवाह का प्रथम वर्ष अनुभव का वर्ष है,जिस प्रकार बालक पाठशाला में पाठ सीखता है.पति-पत्नी एक दूसरे के स्वभाव से परिचित होते है.आप के विवाहित जीवन के प्रथम वर्ष में ऐसी कोई घटना ने घटे जिससे आप के भावी जीवन के अध्याय कलंकित हो जावे. ककेप 184.2
वैवाहिक सम्बंध के विषय में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करना एक ऐसा कार्य है जिसमें सम्पूर्ण जीवन व्यय हो जाता है.विवाह करने वाले एक ऐसी पाठशाला में प्रविष्ट होते हैं जिसकी पढ़ाई कभी समाप्त नहीं होती.मेरे भाई आप की पत्नी का समय सामर्थ्य और आनन्द आप के साथ जुट गये हैं.उसके ऊपर आप का प्रभाव या तो उसके जीवन के लिए जीवन की सुगन्ध होगी अथवा उसकी मृत्यु के निमित्त की दुर्गन्ध.सावधान रहिए कहों उसके जीवन का नाश न हो जाय. ककेप 184.3
मेरी बहिन, आपको अब अवसर मिला है कि वैवाहिक जीवन के उतरदायित्व से संबंधित प्रथम व्यावहारिक पाठ सीखें,सावधान रहिए कि ये पाठ दिन प्रतिदिन विश्वस्ततापूर्वक सीखें जावें,झक्कीपन और असंतुष्टता का कभी अवसर न दीजिए.सुख और आलस्य जीवन की खोजी न हो.सावधान रहिए कि स्वार्थ आप के जीवन में स्थान न पा लेवे.आप के जोवन ऐक्य में, आप का परस्पर प्रेम आप के आनन्द वृद्धि में सहायक हो.परमेश्वर कीआपके लिए यही इच्छा है कि एक दूसरे के जीवन को आनंदमय बनाने के लिए प्रत्येक जनसेवा भाव अपनाएं.यद्यपि आप इस संयोजन से एक अंग बन गए हैं तौभी स्मरण रहे कि किसी के निज व्यक्तित्व का अपहरण न,हो परमेश्वर आपके व्यक्तित्व का स्वामी है.उसी से आप पूछे कि क्या उचित है अथवा अनुचित है? मुझसे अपनी सृष्टि के अभिप्राय की पूर्ति किस प्रकार हो सकेगी? “क्योंकि दाम देकर मोल ल लिए गये ,इस लिए अपनी देह के द्वारा परमेश्वर की महिमा करो. “(1कुरिन्थियों 6:20)ईश्वर के प्रति आप का प्रेम माववी प्रेम से बढ़कर होना चाहिए.आप की प्रेमधारी का प्रवाह उसी की ओर उन्मुख हो जिसने आप के निमित्त जीवित रह कर ही आप की आत्मा परमेश्वर को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रेम दान दे सकती है.क्या आप की प्रेमधारा का प्रवाह उसी की ओर है जिसने आप के लिए आप प्राण दिया? यदि ऐसा है तो एक दूसरे के प्रति आप का स्नेह ईश्वरीय नियमानुकूल होगा. ककेप 184.4
अपनी पवित्रता एवं सुन्दरता में स्फुटित हो पर जब तक उसकी परीक्षा न हुई हो तो सम्भव है कि वह छिछला है.प्रत्येक बात में मसौह ही को प्रथम प्रमुख और अन्तिम स्थान पाने दीजिए.निरन्तर उसी की ओर ताकते रहिए.ऐसा करने से परीक्षाओं को सामना करने पर आप का प्रेम प्रतिदिन गम्भीर और सुदृढ़ होता जाएगा. ज्यों-ज्यों उसके प्रति आप का प्रेम गहरा होग त्यों-त्यों एक दूसरे के प्रति आप का प्रेम भी दृढ़ होता जाएगा.’’परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्वी रुप में अंश-अंश करके बदलते जाते हैं.’’(कुलुस्सियों 3:12)’‘ और प्रेम में चलों ; जैसे मसीह ने भी तुम से प्रेम किया;और हमारे लिए अपने आप को सुखदायक सुगन्ध के लिए परमेश्वर के आगे भेंट करके बलिदान कर दिया.’‘ निम्नलिखित आदेशों की विशेष अध्ययन कीजिए.’’हे पत्नियों अपनेअपने पति से ऐसे अधीन रहो, जैसे प्रभु के.क्योंकि पति पत्नी का सिर है जैसे कि मसीह कलीसिया का सिर है;और आप ही देह का उद्धारकर्ता है.पर जैसे कलीसिया मसीह के अधीन है, वैसे ही पत्नियां भी हर बात में अपने-अपने पति के अधीन रहें.हे पतियों अपनी-अपनी पत्नी से प्रेम रखों जैसा मसीह ने भी कलीसिया से प्रेम करके अपने आप को उसके लिए दिया.’’(इफिसियों 5:2,22-25) ककेप 184.5
विवाह एक जीवन भर का संयोजन है. यह मसीह और कलीसिया के ऐक्य का प्रतीक है.पति और पत्नी को एक दूसरे के प्रति कहीं भावना प्रदर्शित करना चाहिए.जिसका प्रगटीकरण मसीह ने कलीसिया की ओर किया. ककेप 185.1
पति व पत्नी में कोई भी आधिपत्य की आकांक्षा न करें.प्रभु ने एक सिद्धान्त स्थापित कर दिया है,प्रत्येक बात में वही पथ प्रर्शक हो.जैसा प्रभु अपनी मझडली से दुलार करता है वैसे ही,पति अपनी पत्नी से दुलार करे.पत्नी भी अपने पति को आदर के साथ प्रेम करे.इस बात का निश्चय करते हुए कि एक दूसरे का हृदय दुखाया न जावे दोनों को सदैव दयालुता की भावना में व्यवहार करना चाहिए. ककेप 185.2
मेरे भाई बहिन आप दोनों की इच्छाशक्ति तीव्र है.इस शक्ति को आप अपनी अथवा अपने सम्पर्क में आने वाले के लिए या तो आप बड़ी आशीष अथवा पाप का कारण बना सकते हैं.एक दूसरे को अपनी इच्छा पूर्ति के लिए बाध्य न करना.ऐसा करते हुए आप का परस्पर प्रेम स्थायी न रह सकेगा.स्वेच्छा-पूर्ति की भावना प्रदर्शित करने से कौटुंबिक शान्ति एवं आनन्द का विनाश होगा.अपने वैवाहिक जीवन को कलहपूर्ण न बनने दीजिए.ऐसा करने से आप दोनों आनन्दविहीन होंगे.आप अपनी स्वेच्छा का परित्याग करते हुए वचन में विनम्र एवं विनीत रहिए.अपने वचन की चौकसी कीजिए क्योंकि भलाई अथवा बुराई पर इनका प्रचुर प्रभाव पड़ता है. तीव्रता का आपके स्वर में कोई स्थान प्राप्त न हो, आप के संयोजित जीवन मसीह स्वरुप सुगन्ध का समावेश हो. ककेप 185.3
विवाह संबंधी निकटवर्ती ऐक्य में प्रवेश करने से पूर्व प्रत्येक जन यह सौख ले कि अपने आप को वश में किस प्रकार किया जाता है अथवा दूसरे से व्यवहार कैसे किया जाता है. ककेप 185.4
मेरे भाई, दयालु, धैर्यवान तथा सहनशील बनिए. स्मरण रखिए कि आप की पत्नी ने आप को अपना सहायक होने निमित्त अपना पति चुना है,शासन जमाने के लिए नहीं. धृष्ट और सर्वाधिकार शासन करने वाले न बनिए.अपनी पत्नी से अपनी मर्जी पूरी करवाने में अपनी प्रबल स्वेच्छा बल का प्रयोग न कीजिए.स्मरण रखिए कि उसकी भी अपनी इच्छा है.जिस प्रकार आप अपनी इच्छापूर्ति चाहते हैं उसकी भी यही भावना है.यह भी स्मरण रखिए कि आप को विस्तृत अनुभव का सौभाग्य प्राप्त हो चुका है.विचार शील एवं शिष्टचारी बनिए.’’पर जो ज्ञान ऊपर से आता है वह पहले तो पवित्र होता है फिर मिलनसार,कोमल और मृदभाव और दया ,और अच्छे फलों से लदा हुआ और पक्षपात और कपट रहित होता है.’’(याकूब 3:17) ककेप 185.5
स्मरण रखिए, प्रिय भाई और बहिन,परमेश्वर प्रेम है.उसके अनुग्रह से आप एक दूसरे को आनंदित रखने में सफल होंगे जैसा कि आपने विवाह की प्रतिज्ञा में वचन दिया था.अपने उद्धाकर्ता की सामर्थ्य में आप ज्ञान एवं सामर्थ्य पाकर किसी टेढ़े जीवन को परमेश्वर में सीधा बना सकेंगे.कौन-सा काम है जो मसीह नहीं कर सकता? वह प्रेम धार्मिकता और ज्ञान में सिद्ध है.अपने प्रेम को एक दूसरे पर ही उंडेल कर अपने ही में सीमित न रखिए.आप के पड़ोसियों पर अपने प्रेम प्रकटीकरण के प्रत्येक अवसर को भी हाथ से न जाने दीजिए.आप के दयालु वचन,सहानुभूति पूर्ण दृष्टि किसी के प्रति आभार प्रदर्शन न जाने कितने जीवन संग्रामग्रस्त संगति होनों की प्यास बुझाने के निमित्त एक कटोरा ठंडे पानी का काम देंगे ढाढ़स दिलाने वाले दो शब्द,दयालुता का एक व्यवहार किसी बोझ से लादे हुए पथिक के कंधों के असहाय बोझ को उतार कर उसे विश्राम देंगे.स्वार्थरहित सेवा ही में वास्तविक आनंद की प्राप्ति है.प्रत्येक ऐसा काम जो आप ने किया है स्वर्ग में इस प्रकार लिखा जाएगा मानो वह आप ने मसीह के लिए किया हो.’’तुमने जो मेरे इन छोटे से छोटे भाइयों में से किसी एक के साथ किया,वह मेरे ही साथ किया.’’(मत्ती 25:40) ककेप 186.1
प्रभु के प्रेमरुपी सूर्य के प्रकाश में जीवन बिताइए,तब ही आप का प्रभाव संसार के लिए हितकर होगा.आप का जीवन मसीह के आत्मा का वशी भूत हो.आपके अधरों पर सदा दयालुता की व्यवस्था हो.मसीह में नवजीवन का अनुभव करने के निमित्त प्रत्येक नए जन्म पाए हुए के लिए यह आवश्यक है कि उसके वचन एवं कार्य पर सहनशील और परस्वार्थ की छाप हो. ककेप 186.2