कलीसिया के लिए परामर्श

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’परमेश्वर का भय रखने वाले माता-पिता की सलाह

जब विवाह के फलस्वरुप इतना दु:ख होना है, तो युवक बुद्धि से काम क्यों न लें?उनमें ऐसी भावना क्यों हो कि उन्हें बुढ़े और अपने से अधिक अनुभवी परमेश्वर लोगों की आवश्यकता नहीं?व्यवहार व्यापार में पुरुष स्त्रियां बड़ी सावधानी करते हैं.कोई महत्वपूर्ण काम में हाथ लगाने के पूर्व वे अपने आप को उक्त कार्य के लिए तैयार करते हैं.उस विषय पर समय, धन लगाया जाता है,न हो कि वे अपने कार्य में असफल हो जावें. ककेप 175.3

विवाह सम्बन्ध में प्रवेश करने से पूर्व कितनी सावधानी से काम लेना चाहिए-विवाह सम्बन्ध ! जो भविष्य की पीढियों और भविष्य जीवन को प्रभावित करता है? इसके अतिरिक्त बहुधा मजाक और चपलतता में प्रवृति और लालसापूर्ण अन्धेपन में तथा अशान्त विचार में यह प्रबन्ध किया जाता हैं इसकी एक ही व्याख्या है कि शैतान इस संसार में नाश और दु:ख देखना पसन्द करता है,और वह अपना जाल आत्माओं के फंसाने के लिए बुनता है.वह इन अविचारशील मनुष्यों को खोता हुआ देखकर प्रसन्न होता ककेप 175.4

क्या बालक अपने माता-पिता की सलाह पर ध्यान न देकर अपनी इच्छाओं और रुचियों की सम्मति लेंगे? कई तो अपने माता-पिता के परामर्श,इच्छा और रुचि पर तनिक भी ध्यान नहीं देते.स्वार्थ उनके हृदय को कपाटों को संतान सम्वन्धी स्नेह के प्रति बन्द कर देता है.युवकों के मन को इस विषय में जाग्रत किए जाना चाहिए. पांचवीं आज्ञा ही एक ऐसी आज्ञा है जिसके साथ साथ प्रतिज्ञा जोड़ी गई है.परन्तु एक प्रेमी के दावों के समक्ष बड़े हल्के वरन् निश्चयात्मक रुप से इस आज्ञा की अवहेलना की जाती है.माता के प्रेम की उपेक्षा,पिता की चिन्ता व रक्षा का अपमान ये निष्ठुर पाप अनेकों युवकों के जीवन में पाए गए हैं, ककेप 175.5

इस विषय से सम्बन्धित त्रुटियों में सब से भारी यह है कि अनुभव रहित युवक अपनी प्रीति में बाधा नहीं डालने देना चाहते कि कहीं उनके प्रेमानुभव में रुकावट न हो.यदि कोई ऐसा विषय है जिसे प्रत्येक दृष्टिकोण से देखना आवश्यक है वह यही हैं.दूसरों के अनुभवों की सहायता,शन्ति और सावधानी से इस विषय का दोनों ओर से मनन किया जाना अति आवश्यक है.यह एक ऐसा विषय है जिसे अनेकों लोग हलकी सी बात जानते हैं.हे युवक मित्रो अपने परामर्श में ईश्वर का भय मानने वाले अपने माता-पिता को यथा योग्य स्थान दो.इस विषय पर अधिक प्रार्थना करो. ककेप 175.6

आप पूछे ‘ ‘कि क्या माता-पिता को पुत्र या पुत्री के मन और भावनाओं पर ध्यान न देते हुए साथी चुनना चाहिए? यही प्रश्न जैसे रखा जाना चाहिए आपके समक्ष रखा जाता हैं.क्या किसी पुत्र या पुत्री को पहिले अपने माता-पिता की सलाह लिए हुए एक साथी चुन लेना चाहिए?विशेषकर उस हाल में मातापिता को अपने बच्चों से स्नेह है और वह कदम वस्तुत:माता-पिता के आनन्द को प्रभावित करेगा.क्या बालक को अपने माता-पिता को याचना और सलाह की परवाह न करते हुए अपने ही मार्ग पर अग्रस होना चाहिए? मेरा तो निश्चय यही उत्तर होगा कि नहीं यदि वह विवाह भी न करें.पांचवी आज्ञा ऐसी प्रगति का निषेध करती है: ‘‘ अपने माता-पिता का आदर कर कि तेरे दिन इस पृथ्वी पर अधिक हो.” यहां एक आज्ञा एक प्रतिज्ञा के साथ है जिसे कि परमेश्वर उन लोगों के लिए अवश्य पूर्व करेगा जो उसके आज्ञाकारी हैं.बुद्धिमान माता-पिता बिना अपने बच्चों की इच्छा के मान का ध्यान रखते हुए कभी उनके लिए जीवन साथी का चुनाव नहीं करेंगे. ककेप 176.1

माता-पिता को यह अवश्य बोध होना चाहिए कि बालकों के प्रेम का मार्ग निदर्शन करने का कर्तव्य उनके हाथ में रहता है.उनका कर्तव्य है कि युवक की ऐसी सहायता तथा अगुवाई की जाए कि वे अपना प्रेम दान किसी योग्य साथी को दे सकें. ककेप 176.2

उनको अपना यह कर्तव्य समझना चाहिए कि परमेश्वर के अनुग्रह द्वारा सहायता पाकर, अपनी शिक्षा और नमूने के द्वारा अपने बच्चों का चरित्र उनका प्रारंभिक आयु हो से इस प्रकार ढालें कि वे पवित्र ककेप 176.3

और शिष्ट बनते हुए भलाई और सत्य की ओर आकर्षित होते जावें.रुप अपने समरुप ही को आकर्षित करता है.सदुश्य अपने ही सदृश्य को चाहता है.सत्य, भलाई और पवित्रता के प्रति प्रेम आरम्भ ही से आत्मा में अपना यथा योग्य स्थान प्राप्त करें जिनके फल स्वरुप युवा समाज में उन्हीं की खोज करेंगे जो इन गुणों को धारण करते हों. ककेप 176.4