कलीसिया के लिए परामर्श
बपतिस्मा के लिए बच्चों की तैयारी
जिन माता-पिताओं के बच्चे बपतिस्मा लेना चाहते हैं उन्हें एक काम करना है आत्म निरीक्षण का तथा अपने बालकों को विश्वस्त निर्देश देने का बपतिस्मा एक पवित्र तथा महत्वपूर्ण संस्कार है जिसके अर्थ का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए.इस का अर्थ है पाप के लिए पश्चाताप और यीशु मसीह के नाम में नये जीवन में प्रवेश.इस विधि व संस्कार को ग्रहण करने में किसी प्रकार की अनुचित शीघ्रता न होनी चाहिए.माता-पिता तथा बच्चे दोनों को इस का मूल्यांकन करना चाहिए.अपने बालकों को बपतिस्मा के लिए स्वीकृति देते समय एक प्रकार से माता-पिता पवित्र ढंग से इस बात की प्रतिज्ञा करते हैं कि वे इन बच्चों के ऊपर एक विश्वसनीय भंडारी का कार्य करेंगे और चरित्र निर्माण में उनका पथ प्रदर्शन करेंगे.वे इस बात की भी प्रतिज्ञा करते हैं कि विशेष रुचि के साथ वे झुंड के दिन मेम्नों की रक्षा करेंगे ताकि वे उस धर्म का अनादर करने वाले न ठहरें जिसका वे इकरार करते हैं. ककेप 163.3
बच्चों को उनके प्रारम्भिक वर्षों से धार्मिक निर्देशन दिए जाने चाहिए.ये निर्देश तिरस्कारात्मक भाव से नहीं किन्तु प्रफुल्ल भावना के साथ दिए जाने चाहिए.माताओं को निरन्तर इस ताक में रहने की आवश्यकता है कि नहीं ऐसा न हो कि बच्चे प्रलोभन में इस प्रकार फंस जाएं कि उनको पता भी न चल पाए.बड़ी बुद्धिमानी से और मनोरंजक निर्देशन दे देकर माता-पिता को बच्चों की रक्षा करनी चाहिए.इन अबोध (अनुभवहीन) बच्चों के सबसे अच्छे मित्र होने के नाते माता-पिता को विजय के कार्य में उनकी सहायता करनी चाहिए क्योंकि बच्चों के लिए विजयी होना बड़ा अर्थ रखता है.उनकी यह सोचना चाहिए कि उनके अपने प्रिय जो बच्चे सत्य मार्ग ढूंढ रहे है,प्रभु के परिवार के छोटे सदस्य हैं और उन्हें आज्ञा पालन रुपी राज मार्ग में सीधा रास्ता बनाते समय इन बच्चों की सहायता करने में अत्यधिक रुचि लेनी चाहिए. प्रति दिन उन्हें इन बच्चों को प्यार और शौक से सिखाना चाहिए कि परमेश्वर की संतान होने का तथा अपनी इच्छा को उसकी आज्ञाधीन करने का क्या अर्थ है. उनको सिखलाएं कि उसकी आज्ञा पालन में माता-पिता का आज्ञा पालन छिपा हुआ है.यह नित्य का और हर घड़ी का कार्य होना चाहिए.पितामाताओं, ध्यान दीजिए,जागते रहिए और प्रार्थना कीजिए और अपने बालकों को अपना साथी बनाइए. ककेप 163.4
जब उनके जीवन का सबसे बड़ा सुख का समय आ गया है जब वे अपने हृदय में यौशु को प्यार करने लगे और बपतिस्मा लेना चाहते है तो उनके साथ ईमानदारी बरतिए.इस विधि व संस्कार को ग्रहण करने से पूर्व उनसे पूछिए कि क्या वे परमेश्वर के लिए कार्य करना अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य समझते हैं और तब उनको बताइए कि वे कार्य को कैसे आरम्भ करें. यह पहिला पाठ अत्यन्त महत्वपूर्ण है.बड़े सादे ढंग से उनको बताइए कि वे परमेश्वर की सेवा किस प्रकार से करें.इस कार्य को इतना सरल बनाइए कि आसानी से समझ में आ सके.उनके सामने यह स्पष्ट कीजिए कि प्रभु के लिए स्वार्थ को त्यागने का क्या अर्थ है और उसके वचन के अनुसार मसीही माता-पिता की सलाह के अधीन कार्य करने का क्या अर्थ है.इतने विश्वस्त परिश्रम के बाद यदि आप संतुष्ट हो जाते हैं कि आप के बच्चे बपतिस्मा और हृदय परिवर्तन का अर्थ समझ गये हैं और वास्तव में उनका हृदय परिवर्तन हो चुका है तो उनको बपतिस्मा लेने दीजिए.लेकिन मैं फिर दुहराती हूँ कि सबसे पहिले आज्ञा पालन के तंग रास्ते में इन बच्चों के अनुभवहीन पगों की रक्षा करने में आप विश्वस्त गडरिए का कार्य करने को तैयार हो जाइए.अपने बालकों को प्यार, शिष्टता और मसीही नम्रता और यीशु के लिए सम्पूर्ण रीति से आत्म त्याग में उचित नमूना देने के निमित्त माता-पिता में होकर परमेश्वर को कार्य करना चाहिए.यदि आप अपने बच्चों को बपतिस्मा लेने की स्वीकृति देते हैं और फिर उनको उनकी इच्छानुसार कार्य करने को छोड़ देते हैं और सीधे मार्ग पर उनके पगों को ले जाना अपना विशेष कर्तव्य नहीं समझते तो ऐसी दशा में यदि वे इस सत्य में विश्वास, साहस और रुचि खो देते हैं तब आप स्वंय इसके जिम्मेदार हैं. ककेप 164.1
उन उम्मीदवारों को जो अब प्रौढ़ावस्था में प्रवेश कर चुके हैं अपने कर्तव्य को छोटे बच्चों की अपेक्षा अधिक अच्छी तरह समझाना चाहिए परन्तु मंडली के धर्मध्यक्ष की प्राणियाँ के प्रति एक कर्तव्य है.क्या उनकी आदतें,अनुचित और व्यवहार गलत हैं? पास्टर का कर्तव्य है कि इन लोगों के संग एक विशेष मीटिंग करे. उन के संग बाइबल का अध्ययन कर,बात चीत करे और फिर प्रार्थना करे और उनको सफाई से बतलावे कि परमेश्वर उससे क्या चाहता है. उनके सामने हृदय परिवर्तन के विषय में धर्म पुस्तक की शिक्षा पढ़िये. उनको बतलाइए कि हृदय परिवर्तन का फल क्या है,वह प्रमाण क्या है कि वे परमेश्वर को प्यार करते हैं, उनको बतलाइए कि सच्चे हृदय परिवर्तन का अर्थ है हृदय,विचार तथा अभिप्राय का बदल जाना.बुरा आदतों का परित्याग होना चाहिए,चरित्र के प्रत्येक अंग के विरुद्ध युद्ध खड़ा करना चाहिए, तब विश्वासी इस प्रतिज्ञा को अपने ऊपर लागू समझ सकता है. “मांगी, तो तुम्हें दिया जाएगा; ढूंढो, तो तुम पाओगे; खटखटकाओ, तो तुम्हारे लिए खोला जाएगा.’’(मत्ती 7:7) ककेप 164.2