महान संघर्ष

31/41

लालच

मैंने शैतान और उसके दूतों को सलाह-मशविरा करते देखा। उसने अपने दूतों को कहला भेजा कि विशेष कर जो लोग यीशु के आने की तैयारी कर रहे हैं और सब आज्ञाओं को मानते हैं, उनके पास जाओ। शैतान ने अपने दूतों से कहा कि सब कलीसिया सो रहे हैं। वह अपनी शक्ति और झूठा आश्चर्य कर्म दिखा कर सब को वश में करेगा। परन्तु जो लोग सब्त मानते हैं उनको हम घृणा करते हैं। वे लगातार हमारे विरूद्ध में काम करते हैं और हमारे लोगों को भी छीन कर ले रहे हैं। उन्हें वे ईश्वर का सब्त जिसे हम घृणा करते हैं, मनवा रहे हैं। 1SG 150.1

जमींदारों और पैसेवालों के पास जाकर उनकी चिन्ताओं को इसी में डूबाए रखो। यदि तुम लोग ऐसा कर सकोगे तो समझो, हमने उन्हें भी अपने अधीन में कर लिया है। उनको जो पसन्द है, वे उसे माने। तुम सिर्फ पैसे का लालच ज्यादा से ज्यादा उनके मन में डालो ताकि ईश्वर का राज्य को फैलाने के लिये मदद न करें। क्योंकि सुसमाचार के फैलने से हमें घृणा होती है। उनके सामने दुनिया को बहुत ही आकर्षक बना दो जिससे कि वे इस पर दीवाना हो जाएँ और इसकी पूजा करने लगें। जितना सम्भव हो हम जरिया को अपने पास रखें। यदि उनके पास अधिक जायदाद हो तो अधिक धर्म प्रचार कर हमारा राज्य को तहस-नहस कर हमारे सदस्यों को भी छीन लेंगे। जब वे विभिन्न जगहों में सभा चलाते हैं तो हम खतरे में पड़ जाते हैं। उस वक्त तुम लोगों को बहुत सावधान रहना होगा। जितना भी गड़बगड़ करने सकते हो करो। उनका प्रेम एक दूसरे पर है, उसे गड़बड़ कर दो मनमुटाव करो। उनके प्रचारक और पादरियों को निरूत्साह कर डालो क्योंकि हम उनसे घृणा करते हैं। उनके पास जो तार्किक बहाना है, उसे खोलने मत दो अन्यथा इसके खुलने से विश्वास करना आसान हो जायेगा। यथा सम्भव उनके पैसों को प्रचार काम में मत लगा कर अपने ही पास रखने बोलो जिससे प्रचारक-पादरियों के पास पैसे का अभाव होगा और धर्म सभा चलाना मुश्किल होगा। वे हतास-निरास हो कर भाग जायेंगे। हर ईंच पर मलयुद्ध करो। पैसे का लालच और दुनिया की मोह-माया में डालो क्योंकि धन सम्पत्ति से ही चरित्र गठन किया जा सकता है। जब उनके मन में ये भावनाएँ डालेंगे तो उद्धार पाने और अनुग्रह से मुक्ति पाने की सोच से वे दूर रहेंगे। उनके चारों ओर दुनियादारी के सुख-विलासों को भर कर फँसा दो, तब निश्चय ये हमारे हो जायेंगे। सिर्फ उनको ही हमें वश में नहीं करना है परन्तु उन का प्रभाव दूसरों को स्वर्ग ले जाने का है, उसे भी हमें रोकना है। जो लोग उन पर प्रभाव डालना चाहेंगे, तो उनके बीच में कुड़कुड़ाहट पैदा करो जिससे वे कम हो जाएँ। 1SG 150.2

मैंने देखा कि शैतान ने अपनी योजना का उचित उपयोग किया। जब ईश्वर के लोगों ने अपनी सभा की तो शैतान के दूतों को अपने-अपने कर्तव्य याद आये। वे वहाँ पर जा कर ईश्वर के कामों में बाधा पहुँचाने लगे। वह लगातार ईश्वर के लोगों के बीच काम कर किसी को इधर तो किसी को उधर भटकाने लगा। इस प्रकार भाईयों और बहनों के बीच गड़बड़ी पैदा करने लगा। यदि वे अस्थिर हो कर स्वार्थी और लोभी बनते हैं तो शैतान उनका पक्ष लेकर बहुत खुश होता है। वह अपनी सारी शक्ति से उन के बीच में अनबन उत्पन्न कर बैरता का पाप में डाल देता है जिसका उन्हे पता नहीं लगता है। जब ईश्वर की सच्चाई की ज्योति आकर कुछ देर के लिये उनके लालच और स्वार्थ को हटा देता है फिर भी वे उसको पूरी तरह से हटा नहीं सकते हैं तो वे बचाव के अधीन से बाहर हो जाते हैं। उसी समय फिर शैतान आकर उनके सब अच्छे गुणों जैसे कृपा और अनुग्रह और क्षमा को उठा ले जाता है। इसके बाद वे सोचते हैं कि मेल-मिलाप होना, एक-दूसरे को क्षमा करना हम से नहीं होगा, बोलते हैं। वे दूसरों की भलाई करने में थक जाते हैं और यीशु ने उनके लिये इतना बड़ा बलिदान किया है उसे भी भूल जाते है। शैतान का कब्जा से छुड़ाने और आशारहित दुःख से उबर कर मुक्ति देने का काम को भूल जाते हैं। 1SG 151.1

शैतान ने यहूदा के लालची चरित्र का फायदा उठाते हुए मरियम का यीशु के पाँवों में बहुमूल्य इत्र डाल कर पोंछने से उसे कुड़कुड़ाया। यहूदा ने इसे व्यर्थ खर्च कहा। यदि इसे बेचा जाता तो गरीबों की भी मदद होती। वह तो गरीबों की परवाह नहीं करता था। पर चाहता था कि यीशु के लिये चन्दा किया जाता तो यहूदा की थैली में यह रकम (रूपये) आते। यहूदा ने तो लालचवश सिर्फ ३० चाँदी के टुकड़ों से यीशु को बेचा। मैंने कुछ लोगों को यहूदा जैसा देखा जो अपने प्रभु यीशु के आने की बाट देख रहे हैं। शैतान ने उन्हें अपने वश में कर लिया है पर वे जानते नहीं। एक छोटा लालच और स्वार्थीपन को ईश्वर ग्रहण नहीं करेगा। जो ऐसे लोग हैं उनसे ईश्वर घृणा करता है और उनकी प्रार्थनाओं की भी उपेक्षा करता है। जब शैतान को यह मालूम है कि उसका समय थोड़ा ही है तो वह लोगों को स्वार्थी बनाने में लगा है। वह अधिक से अधिक लोगों को स्वार्थी, लोभी बनाना चाहता है। जब शैतान लोगों को स्वार्थ और लालच से मरा हुआ देखता है तो मन में बहुत खुश होता है। यदि मनुष्यों की आँखें खोली जाती तो वे देख सकते कि शैतान अपना नरकीय विजय यानी चालाकी और धूर्तता से अपनी बातों को मनवा कर उन्हें अपना जाल में फँसा कर खुशी मना रहा है। तब शैतान और उसके दूतगण लोगों के लालची काम के फलों को यीशु के पास ले जा कर घृणा से कहते हैं कि क्या आप के चेले हैं? क्या वे रूपान्तर हो कर स्वर्ग जाने को तैयार हैं? शैतान उनके पथभ्रष्ट को बाईबिल का मार्ग से तुलना करता है, उन पदस्थलों को दिखाता है जिसमें ऐसा करना पाप है बताता है और उन्हें स्वर्गदूतों को चिढ़ाने के लिये उसके पास हाजिर करवाता है। वह कहता है कि क्या ये लोग ख्रीस्त और उसके वचन के मानने वाले हैं? यीशु के बलिदान और उद्धार का क्या ये ही लोग फल हैं? स्वर्गदूत घबड़ा कर अपने मुँह फेर लेते हैं। ईश्वर चाहता है कि उसके लोग सदा भलाई के काम में लगे रहें और जब वे उदार दिखाने में थक जाते हैं तो ईश्वर भी उनकी ओर से मुँह फेर लेता है। मैंने देखा कि ईश्वर के लोगों के चरित्र में थोड़ा भी स्वार्थ पाया जाता है तो वह उस से नाराज होता है। क्योंकि उनके लिये उसने अपना एक लौटा पुत्र को भी नहीं रख छोड़ा। फिर यीशु ने भी अपने प्राण का बलिदान कर छुड़ाने से वंचित न रहा। हर लोभी, स्वार्थी व्यक्ति सत्य मार्ग से गिर जायेगा। जिस तरह से यहूदा स्कारियोति ने अपना प्रभु को बेच डाला उसी प्रकार वे अच्छा सिद्धान्त, अच्छा काम और उदार चरित्र को जगत का थोड़ा लाभ के लिये बेचेंगे। इस तरह के सभी लोग ईश्वर के लोगों की गिनती में नहीं आयेंगे। जो लोग स्वर्ग जाना चाहते हैं उनको अपनी सारी शक्ति से अच्छे सिद्धान्तों को मानना होगा और दूसरों को मानने के लिसे उत्साहित करना होगा। स्वार्थ से अपनी आत्मा को कमजोर बनाने के बदले उदारता से भर देना चाहिये और एक दूसरे की भलाई करने के लिये हर अवसर का लाभ उठाना चाहिए। इस प्रकार से स्वर्ग के सिद्धान्तों से अधिक से अधिक परिपूर्ण हो जाना चाहिए। यीशु को मेरे सम्मुख एक सिद्ध नमूना के रूप में दिखाया गया। उसका जीवन निःस्वार्थ था और उसे अपने लिये फायदा उठानेवाला के रूप में नहीं जाना गया। परन्तु उसने हमेशा परहित के लिए जीवन बिताया। 1SG 152.1