महान संघर्ष

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पाप का रहस्य

हमेशा से शैतान का यह प्रयास रहा है कि मनुष्यों का मन को यीशु की ओर से हटा कर मनुष्य की ओर खींच कर व्यक्तिगत जिम्मेवारी से वंचित रखे। जब यीशु की परीक्षा कर रहा था तो शैतान यहाँ हार गया। जब पतित मनुष्य के पास आया तो वहाँ उसे सफलता मिली। क्रिश्चियनों का सिद्धान्त को बिगाड़ दिया गया। पोप और उसके पुरोहितों ने लोगों के पाप क्षमा करने का अधिकार ले लिया और यीशु के पास जाने के बदले उनके पास जाने लगे। सच्चाई को छिपाने के लिये जिस के द्वारा वे दोषी ठहरते बाईबिल को पढ़ने नहीं दिए। 1SG 80.1

लोग बुरी तरह से ठगे गए। उन्हें सिखाया गया कि पोप और उस के पादरी ख्रीस्त के उत्तराधिकारी हैं जब कि असल में वे शैतान के हैं। तब वे उनके सामने झुकते हैं तो वे शैतान की उपासना करते हैं। जब लोग बाईबल माँगने लगे तो पादरियों ने उन्हें बताया कि उनके लिये अपने से बाईबल पढ़ना खतरा है। उनके हाथ में बाईबल देने से पादरियों को दोष मिलेगा। इन ठगों के ऊपर भरोसा करने के लिये सिखाया गया और उनके मुँह से जो वचन निकले उसे ईश्वर के मुँह से निकला हुआ समझने की सलाह दी गई। लोंगों के मन को सिर्फ ईश्वर वश में कर सकता है, उसे उन लोगों ने कर लिया। यदि कोई अपने ही विश्वास के अनुसार यदि चलना चाहे तो उन पर वैसा ही घृणा की दृष्टि से देखा जायेगा जैसा शैतान और यहूदियों ने यीशु को देखा था और वे उस के खून के प्यासे बने थे। मैंने उस समय को देखा था जिस वक्त शैतान विजयी हुआ था। धर्म की पवित्रता और विशुद्धता रखने के कारण बहुत से मसीही लोग भंयकर रूप से सताये गए थे। 1SG 80.2

बाईबिल को घृणा कर इसे संसार से ही उठा फेंकने का विचार था। बाईबिल पढ़नेवालों को मृत्युदण्ड देने की धमकी दी गई थी। इस किताब की प्रति जहाँ भी मिले उसे जलाने का भी आदेश था। परन्तु मैंने देखा कि इस पर ईश्वर की विशेष दृष्टि थी। उसने उसकी रक्षा की। भिन्न-भिन्न समयों में बाईबिल की प्रतियाँ बहुत कम दिखाई देती थीं। फिर भी ईश्वर ने इसे बचा ही लिया। अन्तिम दिनों में यह इतनी ज्यादा मात्रा में छापी गई कि हर व्यक्ति के हाथ में कम से कम एक हो गई। जब बाईबिल की संख्या बहुत कम थी उस वक्त मसीह के कारण सताये जाते थे उनको इससे सान्तवना मिलती थी। इसको बहुत ही श्रद्धा और भक्ति के साथ पढ़ी जाती थी और जिनके पास बाईबिल रहती थी वे अपने को बड़े भाग्यशाली होने का दावा करते थे और बाईबिल को पढ़कर सोचते थे कि मैंने साक्षात् ईश्वर से ही बातें की हैं। बाईबिल पढ़ने से उन्हें ऐसा लगता था मानों यीशु और उसके चेलों से मुलाकात हुई है। परन्तु इस प्रकार का बहुत सा अवसर ने उनके प्राणों की बलि चढ़ा दी है। यदि किसी को बाईबिल पढ़ते देखते तो उन्हें पकड़ कर सिर काटने की जगह या अंधकार जेल में भूख से मरने के लिये लाते थे। 1SG 81.1

शैतान ने उद्धार की योजना को बिगाड़ने में सफलता पाई। यीशु को क्रूस काठ पर मार डाला गया पर वह तीसरे दिन जी उठ गया। उसने (शैतान) अपने चेलों को बताया था कि क्रूसघात और जी उठना भी उसी के फायदे के लिये होंगे। जो यीशु पर विश्वास करते थे, उन्हें वह विश्वास दिलाना चाहता था कि जैसी व्यवस्था (यहूदियों की बलिदान-प्रथा) चलती थी, वह यीशु के मरने पर बन्द होगी - वैसा ही वह उन्हें यह विश्वास दिलाना चाहता था कि यीशु के मरने पर दस आज्ञा भी उठ गई। 1SG 81.2

मैंने देखा कि बहुत लोग शैतान की इस योजना को ग्रहण कर लिये। जब ईश्वर की पवित्र-आज्ञा को पाँवों तले रौंदी गयी तो सारा स्वर्ग क्रोध से भड़क उठा। यीशु और स्वर्ग के सारे दूतगण ईश्वर की व्यवस्था का मर्म जानते थे। उन्हें मालूम था कि ईश्वर अपनी व्यवस्था का एक बिन्दू भी न उठायेगा और न तोड़ फोड़ करेगा। मनुष्य की यह आशाहीन दशा ने स्वर्ग के लोंगो को गहरा शोक में डाल दिया। इस दशा ने या मनुष्य की आज्ञोल्लंघन ने यीशु को क्रूस पर मरने के लिये मजबूर कर दिया। यदि उसकी व्यवस्था बदली जाती तो मनुष्य यीशु के नहीं मरने पर भी बच जाता। यीशु की मृत्यु ने पिता की आज्ञा या व्यवस्था को नहीं बदला पर इसे और मजबूत किया। उसने इसे सम्मान किया, विस्तार किया, और सबको पालन करने के लिये जोर दिया। यदि शुरू से मण्डली शुद्ध और दृढ़ रहती तो शैतान को ठगने और व्यवस्था को रौंदने का मौका नहीं मिलता। इस योजना के तहत शैतान सीधा ईश्वर का राज्य को स्वर्ग में और पृथ्वी में बिगड़ाना चाहता है। उसका उपद्रवी विचार ने उसे स्वर्ग से निकाल बाहर किया। उपद्रव कर अपने को बचाने के लिये वह चाहता था कि ईश्वर उसकी व्यवस्था को बदले। ईश्वर ने शैतान को स्वर्गदूतों के सामने कह दिया कि उसकी व्यवस्था नहीं बदली जा सकती है। शैतान को मालूम है कि यदि कोई मनुष्य ईश्वर की व्यवस्था का उल्लंघन करे तो उसे मरना होगा। 1SG 82.1

शैतान ने चाहा कि इससे और आगे बढ़ना हैं शैतान ने अपने संगी दूतों से कहा कि कुछ लोग तो व्यवस्था का पालन करने में इतने मजबूत हैं कि उन्हें भ्रम-जाल में नहीं फँसाया जा सकता हैं दस आज्ञा समझने में इतना सरल है कि वे इससे दूर नहीं हट सकते हैं। इसलिये हम लोगों को चैथी आज्ञा को बिगाड़ना है। वही है जो ईश्वर को जीवित प्रमाण देता है। उसने अपने उत्तराधिकारियों को सख्त बदलने की बात कही। उसने दस में से एक ही को बदली की जो ईश्वर को स्वर्ग और पृथ्वी का सृष्टिकत्र्ता के रूप में दिखाता है। शैतान ने यीशु का गौरवपूर्ण पुनरुत्थान को दिखाकर कहा कि पहिला दिन जी उठने के बाद यीशु ने सब्त को सातवाँ दिन के बदले पहिला दिन में बदल दिया है। इस तरह से शैतान ने पुनरुत्थान को लेकर अपना मतलब पूरा करने में लगाया। शैतान और उसके दूतों ने देखा कि उनकी यह युक्ति बहुत काम में आया क्योंकि ख्रीस्त पर विश्वास करने वाले लोग मान गए। एक दल के लोग उसे धार्मिक पतन के रूप में देखने लगे तो दूसरा दल ने ग्रहण कर लिया। बहुत प्रकार की गलतियाँ दिखायी जायेंगी और इन्हें जोश के साथ सामना करना था। ईश्वर ने अपना वचन को स्पष्ट रूप से बताया है जिससे पता लग जाता है कि इस में परम्परा की रीति-विधियों और गलतियों से ढाँका गया है। किन्तु स्वर्ग से लाया गया धोखा जगत में तब तक प्रचार किया जायेगा जब तक कि यीशु दूसरी बार नहीं आता है। फिर भी ईश्वर ने इस के विषय में चेतावनी देना नहीं छोड़ा है। मण्डली का अंधकार दशा में भी और सताये जाने पर भी ईश्वर के विश्वासी लोगों की कमी न हुई। क्योंकि वे ईश्वर की आज्ञा को पालन करते ही आ रहे हैं। 1SG 83.1

मैंने देखा कि जब यीशु मृत्यु का दुःख उठा रहा था तो बुरे दूत आश्चर्य से भर गए थे। पर मैंने देखा कि स्वर्गदूतों का दल में आश्चर्य करने की नौबत नहीं आयी। जब प्रभु जो जीवन दाता है, उसने अपने इस ऐश्वर्यपूर्ण काम से स्वर्ग का वातावरण को आनन्द से भर दिया। क्योंकि उसने मृत्यु की बेड़ी को तोड़ी फिर विजयी होकर कब्र से निकल आया। इनमें से यदि किसी एक को मानना था तो क्रूस पर चढ़ाये जाने का दिन ही अच्छा होता। पर मैंने देखा कि उनमें से कोई भी दिन बदले जाने योग्य नहीं था। फिर भी उन्होंने सब्त दिन को बदले जाने का जैसा-तैसा कारण बताया। 1SG 84.1

इन दोनों मुख्य घटनाओं का स्मरणीय दिवस हैं। इसमें प्रभु भोज लेने की बिधि ठहरायी गई है जिसमें रोटी प्रभु की देह का प्रतीक है तो अंगूर फल का रस, उसके बहाए खून का। इस के खाने-पीने से हम उसकी मृत्यु को दिखाते हैं कि जब तक प्रभु न आवे ऐसा ही करते रहेंगे। इस दृश्य का स्मरण कर उसकी मृत्यु की घटना को मन में ताजा याद करते हैं। उसके पुनरुत्थान से हम यह याद करते हैं कि बपतिस्मा के द्वारा हम पानी रूपी कब्र में गाड़े जाते हैं और फिर उसके जी उठने से हम पानी से ऊपर उठ कर नया जीवन जीते हैं। 1SG 84.2

मैंने देखा कि ईश्वर की व्यवस्था सदा स्थिर है और वह नयी दुनिया में भी निकल कर अनन्त काल तक स्थिर रहेगी, बिना बदलाहट के। जब पृथ्वी की नींव डाली जा रही थी तो यीशु भी वहाँ था पिता के साथ और सारे स्वर्ग दूतगण आनन्द से जय ध्वनि कर रहे थे। उसी समय सब्त की नींव भी डाली गयी या उसे स्थापित किया गया। सृष्टि के छः दिन बाद ईश्वर ने अपनी रचना के सारे कामों को छोड़कर विश्राम किया। उसने सातवाँ दिन को आशीष दी और उसे पवित्र ठहराया। उस दिन उसने विश्राम किया। मनुष्य के पाप में गिरने के पहले ही सब्त पालन का नियम बनाया गया था। आदम और हव्वा और सारे स्वर्गदूत सब्त मानते थे। ईश्वर ने सातवाँ दिन को विश्राम कर आशीष दी और पवित्र भी किया। मैंने देखा कि सब्त कभी भी नहीं उठाया जायेगा। पर उद्धार पाये हुए सन्त लोग और पवित्रदूतगण, ईश्वर के सम्मान में अनन्त काल तक मानते रहेंगे। 1SG 84.3