महान संघर्ष

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साऊल का मन परिवत्र्तन

साऊल क्रिश्चियन स्त्री या पुरूषों को पकड़ कर यरूशेलम लाने का एक अधिकार पत्र प्राप्त कर दामिशक जा रहा था। उस वक्त बुरे दूत भी उसकी प्रशंसा कर रहे थे। जब वह रास्ते में जा रहा था तो अचानक बिजली चमकने जैसी रोशनी उस पर पड़ी। बुरे दूत भाग गए। साऊल जमीन पर गिर पड़ा। उसे ऐसी आवाज सुनाई इी - “साऊल, साऊल, क्यों मुझे सता रहे हो?” तब उसने पूछा - ‘हे प्रभु तू कौन है?’ नैं वही यीशु हूँ जिसे तुम सता रहे हो। पैरों पर लात मारना तेरे लिए कठिन है। साऊल डर से कहने लगा - ‘हे प्रभु, तू मुझ से क्या करवाना चाहता है?’ तू उठ कर नगर में चला जा वहीं तुझे बताया जायेगा कि क्या करना होगा। 1SG 64.1

जो लोग उसके साथ थे वे सुनकर अवाक थे, कोई नहीं दिखाई दे रहा था। रोशनी के हटते ही साऊल उठा तो किसी को न देख पाया। स्वर्ग की महिमा की चमक से उसकी आँखों की रोशनी धुंध हो गई थीं। उसका हाथ पकड़ कर उसे दामिशक नगर ले गया, जहाँ वह तीन दिनों तक अंधा ही रहा और न कुछ खाया न पिया। स्वर्गदूत हनन्याह के पास आया जिसे साऊल पकड़ कर कैद करना चाहता था। उसने उसे कहा सीधी नामक गली में यहूदा के घर में जाओ। वहाँ पैलुस (साऊल) को तुम चंगा करो। वह पश्चाताप कर प्रार्थना कर रहा है। उसे दर्शन दिया गया है कि हनन्याह नामक मनुष्य आकर उसके सिर पर हाथ रख कर देखने की शक्ति प्रदान कर रहा है। 1SG 64.2

वह उसके पास जाने से डरता था, क्योंकि उसके विषय यह सुना था कि वह क्रिश्चियनों को पकड़ कर कैदी बना रहा है। पर प्रभु ने उसे कहा कि तुम जाकर चंगा करो। वह तो अन्यजातियों, राजाओं और इस्त्राएलियों के बीच मेरा नाम सुनाने के लिये नियुक्त किया हुआ व्यक्ति है। मैंने उसे, मेरे नाम के कारण बहुत दुःख उठाने का भी दर्शन दिया हैं। हनन्याह प्रभु के मार्ग दर्शन का अनुसरण कर साऊल के पास पहुँच कर उससे कहने लगा - भाई साऊल, प्रभु ने, जिसे अपने दमिशक के रास्ते में पाया था वही भेजा है कि मैं तुझे अच्छा करूँ और आप पवित्रात्मा से परिपूर्ण होंगे। 1SG 65.1

साऊल के सिर पर हाथ रखते ही वह देखने लगा और उठ खड़ा हुआ। इसके बाद बपतिस्मा भी लिया। उसने यहूदियों की महासभा में प्रचार किया की ‘यीशु’ ही ईश्वर का पुत्र है। जितनों ने उसे यह कहते सुना वे आश्चर्य कर कहने लगे - क्या वही साऊल नहीं है। जो यीशु का नाम लेते थे, उन्हें पकड़ कर बन्दीगृह में डालता था? अभी यहाँ इसलिये आ रहा था कि यीशु के चेलों को पकड़ कर यरूशलेम ले जाकर प्रधानों और याजकों को सौंपे। साऊल तो समर्थवान होता गया और यहूदियों को हड़काता रहा। वे सब संकट में पड़ गए। साऊल ने पवित्रात्मा से साहस पाकर अपना अनुभव उन्हें बताया। सब को मालूम था कि साऊल पहिले यीशु का विरोधी था। जो यीशु के नाम की प्रतीति करते थे उन्हें वह बहुत उत्साह के साथ खोज कर मार डालने के लिये याजकों को देता था। 1SG 65.2

उसका आश्चर्यजनक मन बदलाहट से बहुत लोग विश्वास करने लगे कि सचमुच यीशु ही ईश्वर का बेटा है। साऊल ने किस तरह से दमिशक के रास्ते में यीशु से दर्शन में मिला और किस-किस घटनाओं से गुजरा उनकी चर्चा कर लोगों को सुनाया। साऊल बहुत प्रभावशाली ढंग से यीशु की गवाही देने लगा। वह धर्मशास्त्र को जानता था और जब उसका मन बदल गया तो स्वर्गीय ज्योति, भविष्यबानी सम्बन्धी मिली, जिसमें यीशु का जन्म होना था। अब उसे सच्चाई का स्पष्ट मालूम हो गया और बड़े साहस के साथ प्रचार करने लगा और धर्मशास्त्र के विरूद्ध जो गलती करते थे उन्हें सुधारता था। ईश्वर की आत्मा के द्वारा वह अपने श्रोताओं को बहुत ही प्रभावी ढंग से भविष्यवाणी की बातों को समझा कर, यीशु का आगमन, दुःख उठाना, जी उठना, स्वर्ग जाना को भविष्यवाणी का पूरा होना बताया। 1SG 65.3