कलीसिया के लिए परामर्श

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अध्याय 3 - अपने परमेश्वर से मिलने को तैयार हो जाइये

मुझे दिखलाया गया कि हमें प्रभु के आगमन की टालना नहीं चाहिए. स्वर्गदूत ने कहा, ‘’पृथ्वी पर आने वाली घटनाओं के लिये तैयार रहो, तैयार रही. तुम्हारे कार्य तुम्हारे विश्वास का समर्थन करें.’‘ मुझे दिखलाया गया कि हमारा मन परमेश्वर पर केन्द्रित हो और हमारा प्रभाव परमेश्वर और उसके सत्य का वर्णन करे. जब हम औरउदासीनता दिखलाते तो हमब हम परमेश्वर का आदर नहीं कर सकते. जब हम निराश होते हैं तो उसको स्तुति नहीं कर सकते. हमें अपनी तथा दूसरों की मुक्ति प्राप्त करने के लिए प्रयन्तशील रहना चाहिये. इसी को प्रथम महत्व देना चाहिये और अन्य वस्तुओं को द्वितीय. ककेप 40.1

मैं ने स्वर्ग का सौंदर्य देखा. मैं ने दूतों को यीशु को बड़ाई, प्रतिष्ठा तथा स्तुति में मनोहर गीत गाते सुना.तब मैं परमेश्वर के पुत्र के असीम प्रेम को कुछ हद तक महसूस कर सकी. उसने स्वर्ग की सारी महिमा तथा आदर को त्याग कर हमारे त्राण में इतनी दिलचस्पी ली कि मनुष्यों की ओर से धोपे हुए निरादर व अपमान को धोरज के साथ सहन किया. वह घायल किया गया, मारा कूटा गया और कुचला गया;कलवरी क्रूस पर चढ़ाया गया और अत्यन्त दु:खदाई मृत्यु सही कि हम मृतयु से बच जायं कि हम उसके लोहु में स्वच्छ किये जाये और उसके संग उन मकानों में रहने के लिये जिलाए जायं जिन्हें वह हमारे लिये तैयार कर रहा है कि हम स्वर्ग के प्रकाश और महिमा का आनन्द लेवें, दूतों का गीत सुनें और उनके संग गाने में सम्मिलित हों. ककेप 40.2

मैंने देखा कि स्वर्ग के सारे प्राणी हमारे त्राण में दिलचस्पी रखते हैं.क्या हम उदासीनता दिखलायेंगे? क्या हम लापरवाही दिखलाएगे मानो कि त्राण पा जाना या खो जाना हमारे निकट एक हल्की सी बात है? क्या हम उस बलिदान का जो हमारे लिये दिया गया है अपमान करेंगे? कुछ के ऐसा ही किया है. उन्होंने दयादान का तिरस्कार किया इस लिए परमेश्वर का कोप उनके ऊपर बना हुआ है. परमेश्वर का आत्मा सदा लो शोकित न रहेगा.यदि और देर तक दु:खो किया जायेगा तो वह बिदा ले लेगा. मनुष्यों को त्राण देने के हेतु सब कुछ करने के बाद भी यदि वे यीशु के दयादान को ठुकरा दें तो मृत्यु उनके भाग्य में आये और वह मृत्यु अत्यन्त महंगी होगी क्योंकि वे उस मानसिक दु:ख को भावेंगे जिसे मसीह ने क्रूस पर उस समय महसूस किया था जब वह उनके लिए उस त्राण को मोल ले रहा था जिसका उन्होंने इन्कार किया है. तभी वे महसूस करेंगे कि उन्होंने क्या खोया है- अनन्त जीवन और अमर मीरास. वह भारी जो मानव उद्धार के निमित दिया गया. हमें उनका मूल्य बतलाता है.जब कीमती मानव एक बार खो जाता है तो वह सदा के लिए खो जाता है. ककेप 40.3

मैंने देखा कि एक दूत हाथ में तराजू लिये परमेश्वर के लोगों के विचारों तथा रुचि को तौलने के लिए खड़ा है, विशेष कर युवकों के. एक पलड़े पर वे विचार व रुचि थे जो स्वर्ग की ओर संकेत करते थे; दूसरे में वे बातें थीं जो पृथ्वी की ओर संकेत करती थीं. इस पलड़े पर किस्से कहानियों को पढ़ने के ख्याल, वस्त्र पहिनने के ख्याल,कौतुक तामाशा, माया मोह, घमण्डशेखी के ख्याल रखे हुए थे. हाय! क्या ही गम्भीर क्षण ! स्वर्गदूत तराजू लिए परमेश्वर के इकरारी लोगों के विचारों को तौलने के लिए खड़े है, जो दावा करते हैं कि वे संसार के दृष्टिकोण से मर चुके हैं और परमेश्वर के विश्वास से जीवित हैं. जिस पलड़े में सांसारिक विचार, माया मोह तथा अभिमान के विचार थे उसमें से भार पर भार कम करने के बावजूद भी तुरन्त नीच ही झुकता गया, जिस पलड़े में ख्यालात तथा हित स्वर्ग की ओर संकेत कर रहे थे, ज्योंही दूसरा पलड़ा नीचे झुका वह शीघ्र ऊपर को चला गया और हाय, वह कितना हल्का दिखता था. परन्तु उस गम्भीर तथा स्पष्ट प्रभाव का जो मेरे हृदय पर पड़ा वर्णन नहीं कर सकती. जब मैं ने परमेश्वर को लोगों के विचारों तथा रुचियों को तौलने वाले दूत को तराजू लिये देखा. दूत ने कहा, क्या ऐसे लोग स्वर्ग में प्रवेश कर सकते हैं? नहीं, नहीं, कभी नहीं. उनसे कह दो कि वे व्यर्थ आशा करते हैं जब तक वे अविलम्ब पश्चाताप करके त्राण प्राप्त न करें वे अवश्य नाश होंगे. ककेप 41.1

भक्ति का रुप धारण करने से कोई लाभ नहों.सब को गहरा और जीवित अनुभव प्राप्त होना चाहिए. केवल यही संकट के समय उनकी रक्षा करेगा. फिर उनके कार्य परखे जायंगे कि वे किस प्रकार के थे; यदि वे सोना, चांदी व कीमती पत्थर जैसे थे, वे परमेश्वर के तम्बू के गुप्त स्थान में छिपाये जायंगे. परन्तु यदि उनका कार्य लकड़ी,घास तथा कूड़ा करकट जैसा हो तो उनको यहोवा के कोप की भीषणता से कोई न बचा सकेगा. ककेप 41.2

मैं ने देखा कि अनेक अपने को आपस में नाप तोल करते हैं और अपने जीवन की तुलना दूसरों के जीवन से करते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिये, सिवाय मसीह के कोई और हमारा नमूना नहीं है. वही हमारा असली नमूना है और प्रत्येक को उसकी नकल करने की कोशिश करनी चाहिये. हम या तो मसीह के सहकारी है या शत्रु के सहकारी है.या तो हम मसीह के संग बटोर रहे हैं या इधर-उधर बखेर रहे हैं. हम या तो सचमुच, तन,मन धन से मसीही हैं या कतई नहीं हैं. मसीह ने कहा, ‘कि मैं तेरे कामों को जानता हूँ कि तू न तो ठण्डा है और न गर्म: भला होता कि तू ठण्डा या गर्म होता .सो इस लिए कि तू गुनगुना है और न ठण्डा है और न गर्म, मैं तुझे अपने मुँह में से उगलने पर हूँ.’‘ (प्रकाशित वाक्य 3:15, 16) ककेप 41.3

मैंने देखा कि कुछ हैं जो अब तक नहीं जानते कि अपनी इच्छा को मारना अथवा बलिदान का क्या अर्थ है अथवा सत्य के लिए दु:ख सहने का अभिप्राय क्या है? परन्तु बिना बलिदान किये कोई स्वर्ग में प्रवेश न करेगा. इस लिए आत्म समर्पण तथा आत्म बलिदान की भावना का पालन करना चाहिये. कुछ ने अपने तई अपनी देहों को परमेश्वर की वेदी पर बलिदान नहीं किया हैं. वे चिड़चिड़े स्वभाव का लालन पालन करते क्षुधाओं की तृप्ति करते और परमेश्वर के मनोरथ की लापरवाही करते हुये अपने ही आत्म हितों की देख रेख में लगे रहते हैं. जो अनन्त जीवन प्राप्ति के लिए कुछ भी बलिदान करने को राजी हैं वे उसे अवश्य प्राप्त करेंगे क्योंकि अनन्त जीवन के लिये दु:ख उठाना, अभिलाषा को क्रूस पर चढ़ाना और प्रत्येक मूर्ति की बलि चढाना यथा योग्य है. ककेप 42.1

बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा के सामने प्रत्येक वस्तु अन्तर्धान हो जाती है और प्रत्येक सांसारिक सुख, भोग, विलास, फीके पड़ जाते हैं. ककेप 42.2