कलीसिया के लिए परामर्श

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अध्याय 41 - संगीत

मधुर संगीत की कला का शिक्षण(नबियों के स्कूल) में बुद्धिमानी से किया जाता था.कोई ओछी संगीत नहीं सुनाई पड़ता था और न ऐसा क्षुद्रगान जो मनुष्य को घमंडी करे अथवा उसका ध्यान ईश्वर से दूर करे, सुनाई पड़ता था.परन्तु पवित्र,ईश्वर की स्तुति में गम्भीर भजन जो उसके नाम की व उसके अद्भुत कार्यों का वर्णन करते थे.इस प्रकार संगीत एक पवित्र कार्य के उद्देश्य के लिये कार्य में लाया जाता था ऐसे उच्च और आदर्श विचारों की उन्नति के लिये जो शुद्ध और आत्मा को ईश्वर के धन्यवाद और भक्ति की और प्रेरित करते थे. ककेप 230.1

ईश्वर के आँगनों में संगीत उसकी आराधना का एक भाग है.और हमें प्रयत्न करना चाहिए कि उसकी स्तुति के भजनों में स्वर्गीय क्वायर की समानता में उसके निकटतम भाव तक पहुँच सकें.शिक्षा में आवाज की तैयारी महत्वपूर्ण है,इसको नहीं भूलना चाहिये.धार्मिक उपासना में गान का वही स्थान है जो आराधना में प्रार्थना का है. गाने की भावना को वास्तविक रुप देने के लिये हृदय से उत्पन्न होना चाहिये. ककेप 230.2

मुझे स्वर्ग का सिद्ध क्रम बताया गया,उस सिद्ध संगीत को सुनकर मैं मुग्ध हो गई. उस दर्शन के पश्चात् यहां को गाना कठोर और बेसुर सुनाई पड़ता है.मैं ने स्वर्गदूतों के झुंड पवित्र आँगन के चारों ओर खड़े देखे,हर एक अपने हाथों में सोने की वीणा लिये था.प्रत्येक वीणा के अन्त में एक ऐसा यंत्र था जो उसके रागों को बदलता था. उनकी अंगुलिया असावधानी से तारों पर नहीं पड़ती र्थी लेकिन जैसे ही वे उन विभिन्न तारों को स्पर्श करते विभिन्न ध्वनियां निकलती थीं.एक स्वर्गदूत हमेशा अगुवाई करता था.सर्वप्रश्न वही वीणा के तारों से ध्वनि उत्पन्न करता था तब सारे उस सिद्ध मधुर संगीत में साथ देते थे.यह अवर्णनीय है,यह मधुर राग स्वर्गीय ईश्वरीय है जब कि उनमें मसीह के अवर्णनीय महिमा प्रगट होती थी. ककेप 230.3

मुझे यह भी दिखाया गया कि नौजवानों को उच्च स्तर पर ईश्वर के वचन को अपना शिक्षक और पथ प्रदर्शक बनाना चाहिये, गम्भीर उत्तरदायित्व नौजवानों पर है जिसे वे मामूली बात समझते हैं.उनके परिवारों में संगति का आरम्भ,पवित्रता और आत्मिकता बढ़ाने की अपेक्षा उनके मष्तिष्क को सत्य से दूर ले जाता है.क्षुद्र गाने और साधारण प्रचलित संगीत उन्हें अच्छा लगता है.संगीत के साजों ने उनको प्रार्थना के समय को हर लिया है.संगीत में यदि विकार उत्पन्न न हो तो वह एक बड़ी आशीष है.परन्तु जब उसका गलत प्रयोग होने लगता है तो यह भयानक श्राप बन जाता है.यह उत्तेजना पैदा करता परन्तु शक्ति और साहस का ह्यस होता है जिनको मसीही विश्वासी केवल अनुग्रह के सिंहासन के सामने पाता है जब वह दीन होकर अपनी आवश्यकताओं को प्रगट करता, आँसू और आहों के साथ और स्वर्गीय शक्ति के लिए विनती करता है जिससे उस दुष्ट को समस्त परीक्षाओं से उसका रक्षण हो.शैतान नौजवानों को बंधुवा बनाना चाहता है.ओह! मैं उसकी इस शक्ति को तोड़ने के लिए उनसे क्या कहूँ वह चतुर संपेरा है जो उन्हें विनाश की ओर आकर्षित करता है. ककेप 230.4